Wednesday, October 31, 2007

कितना बदल गया इंसान


देश की कुछ घटनाएं जो कवि प्रदीप के मशहूर गीत की याद दिलाती हैं.. देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई भगवान, कितना बदल गया इंसान।


सट्टे में लिप्त छह सिपाही निलंबित


फर्रुखाबाद। उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद में जुए के धंधे में लिप्त छह पुलिसकर्मियों को कल निलंबित कर दिया गया और तीन थाना प्रभारियों एवं पुलिस क्षेत्राधिकारी को कार्य में सुधार लाने के लिए नोटिस जारी किया गया।

पुलिस अधीक्षक श्रीमती लक्ष्मी सिंह ने यहां बताया कि शहरी क्षेत्र में कल सट्टे के धंधे का भंडाफोड़ करके एक महिला समेत आठ लोगों को गिरफ्तार किया गया था। मौके से पुलिस ने करीब सवा तीन लाख रुपये की सट्टा पर्ची बरामद की थी। सट्टे में लिप्त पाये गये छह पुलिसकर्मियों को आज निलंबित कर दिया ।

निलंबित पुलिसकर्मियों में एसओजी के महाराज सिंह, श्यामाबाबू, कायम सिंह के अलावा कोतवाली का चालक ललित दुबे, सिपाही कमलेश कुमार तथा रामदास राठौर शामिल हैं।


लूटपाट का आरोपी थानाध्यक्ष निलम्बित

गाजीपुर। उत्तर प्रदेश के गाजीपुर में मकान में घुसकर लूटपाट और मारपीट करने के आरोप में आज एक थानाध्यक्ष को निलम्बित कर दिया गया।

पुलिस सूत्रों ने यहां बताया कि दिलदारनगर क्षेत्र के उसिया गांव में अपने सहकर्मियों के साथ एक मकान पर धावा बोलकर महिलाओं और बच्चों के साथ मारपीट और लूटपाट करने के आरोप में आज थानाध्यक्ष नीरज कुमार सिंह को निलम्बित कर दिया गया।

लूटपाट के मामले में पुलिस कार्यवाही जारी है।


छात्रवृत्ति घोटाले में प्राचार्य समेत 15 निलंबित

भोपाल। मध्यप्रदेश सरकार ने इंदौर के शासकीय कला, वाणिज्य महाविद्यालय में छात्रवृत्ति घोटाले के एक मामले में सख्त कदम उठाते हुये प्राचार्य सहित 15 शासकीय सेवकों को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया है।

आधिकारिक जानकारी के अनुसार इन लोगों को फर्जी दस्तावेज तैयार कर छात्रवृत्ति की राशि का दुरूपयोग और गबन करने तथा कर्तव्य के प्रति गंभीर लापरवाही बरतने का दोषी पाया गया।

इन लोगों को दोषी पाये जाने पर संयुक्त विभागीय जांच भी संस्थापित की गयी है। निलंबित कर्मचारियों का मुख्यालय नेत्रीय अतिरिक्त संचालक कार्यालय उच्च शिक्षा इंदौर निर्धारित किया गया है।

(

साभार : जोश १८)

Tuesday, October 30, 2007

वाह, क्या बात है




संयुक्त राज्य अमेरिका में कुत्तों की सजावट पर आयोजित एक प्रदर्शनी में मशहूर पॉप गायिका ब्रिटनी स्पीयर्स का भेष बनाए एक कुतिया।

पति भी हैं शोषण के शिकार


भले ही यह बात सुनने में अटपटी लगे कि पत्‍नी पति का शोषण करती है लेकिन आंकडों के अनुसार उत्तरप्रदेश में पत्‍नी द्वारा पति के शोषण के मामलों में बढोत्तरी हुई है।
आगरा की पारिवारिक अदालत के आंकडों पर नजर डाले जाने से यह बात उजागर हुई है कि पत्‍नी के मुकाबले पति शोषण के शिकार अधिक हैं।
शारीरिक हो या मानसिक शोषण दोनों ही तरीकों से आज की पत्‍नी, पति पर हावी रहने की कोशिश करती नजर आ रही हैं। सूत्रों के अनुसार इस अदालत में ज्यादातर पत्‍नी से परेशान पतियों के मामले सामने आते हैं। अधिकतर लोगों की शिकायत रहती है कि उनकी पत्‍नी उनका शारीरिक और मानसिक शोषण करती हैं। इन मामलों की संख्या बढ़ती जा रही है। पिछले आंकडों को देखें तो कुछ समय से पत्‍नी से आजिज पुरूष की संख्या में वृद्धि हो रही है। प्राप्त आंकडों के अनुसार वर्ष 2005 में महिलाओं के खिलाफ 550 मुकदमें दाखिल किए गए जबकि पुरूषों के खिलाफ 409 मामले ही दर्ज हुए। वर्ष 2006 में महिलाओं के खिलाफ 640 मुकदमें दाखिल किए गए जबकि महिलाओं के खिलाफ मात्र 417 मामले दर्ज हुए।इस वर्ष गत 13 जुलाई तक महिलाओं के खिलाफ 475 मुकदमें दाखिल किए गए हैं जबकि पत्‍नी को तंग करने वाले पुरूषों के खिलाफ 176 मामले ही दाखिल किए जा चुके हैं।
(साभार- जोश १८)

Saturday, October 27, 2007

मांस और शराब का शौकीन बकरा




बारगढ (उडीसा)। अगर आप यह सोचते हैं कि बकरे विशुद्घ रूप से शाकाहारी होते हैं तो मंटू नामक बकरे से मिल कर आपकी धारणा गलत हो सकती है। यह बकरा न सिर्फ मांस खाता है बल्कि छक कर शराब भी पीता है।

ढाई साल का यह बकरा राजधानी भुवनेश्वर से 350 किलोमीटर दूर साना बडा ढाबा में रहता है। ढाबा के मालिक साना नाइक ने कहा कि मंटू नामक उनका बकरा जन्म से ही इस ढाबे में रह रहा है और धीरे-धीरे इस बकरे को मांसाहारी व्यंजन खाने की लत लग गई। यहां इस बकरे को प्यार से मंटू कहकर पुकारा जाता है।

इस बकरे को घास पसंद नहीं है। यहां आने वाले ग्राहक जब बचा-खुचा गोश्त या हड्डी फेंकते हैं तो बकरा कुत्ते की तरह घूम- घूम कर उसका लुत्फ उठाता है। उन्होंने बताया कि इस बकरे को बकरों और मुर्गों का मांस काफी पसंद है।

इस बकरे की यह आदत ही उसके लिए प्राणरक्षक बन गई है। उन्होंने कहा कि उसकी इस विचित्र आदत से प्रभावित होकर हमने उसे नहीं मारने का फैसला किया है।

नाइक का मानना है कि इस बकरे के अनोखेपन से प्रभावित होकर भी ग्राहक उनके ढाबे में आते हैं। बकरे ने एक-दो बार बची-खुची शराब क्या चख ली, इसे शराब पीने की लत लग गई है।

शराब पीने के बाद यह स्वभाव से बंदर बन जाता है और अपने मालिक के इशारों पर एक से बढकर एक करतब दिखाता है। नाइक ने कहा कि अगर आप इस बकरे को मुर्दा बनने का निर्देश देंगे तो यह जमीन पर ऐसे लेट जाएगा जैसे मरा हुआ बकरा लेटा हुआ हो। जब आप इसे लड़ने का निर्देश देंगे तो वह दीवारों से टक्कर मारना शुरू कर देता है।

उसकी ऐसी शरारतों से ग्राहक प्रभावित हुए बगैर नहीं रहते। ऐसे में कई ग्राहक खुश होकर उसे मांस और शराब भी परोसते हैं।

यहां आने वाले एक ग्राहक सत्य मोहंती ने कहा कि यह बकरा इस होटल में आकर्षण का केंद्र बन गया है। मैं तो इसी बकरे से प्रभावित होकर यहां मन बहलाव के लिए खाना खाने आता हूं।
(साभार ः जोश१८)

देख लो भइया, ये हाल है तुम्हारी दुनिया का।




चीन के बीजिंग शहर में प्रदूषण का धुंध इस कदर छा गया है कि सड़क पर खड़े होकर बहुमंिजली इमारत का ऊपरी हिस्सा देखना मुश्किल हो गया है। चीन में अगले साल ओलंपिक खेल होने जा रहा है और उससे जुड़े अधिकारियों ने उद्योगों से होने वाले वायु प्रदूषण पर चेतावनी भी दी है।

Friday, October 26, 2007

सबूत लपेटकर फांसी पर लटकाया

satyendra




सीरियाः अलेपो के उत्तरी शहर में १८ से २३ साल के पांच युवकों को सार्वजनिक रूप से फांसी पर लटकाया गया।ये युवक हत्या के मामले में दोषी पाए गए थे। फांसी पर लटकाए गए युवकों के शरीर पर उनके अपराधों के बारे में विस्तृत रूप से लिखकर लपेट दिया गया था।

Thursday, October 25, 2007

जय हनुमान


Acapulco, - MEXICO : A cliff diver jumps from "La Quebrada" cliff in Acapulco, Mexico, on September 30th, 2007. The tradition of "La Quebrada" goes back to 1934, when two neighbours of Acapulco challenged themselves to demonstrate their courage and decided to measure their forces by throwing themselves to the sea from the stop of a cliff. The rivalry between those two men ended first in a reckless spectacle, and later in a form of earning a living. The myth of "La Quebrada" was born, and today it is almost a religion for its followers.

Tuesday, October 23, 2007

बीड़ी जलइले िजगर से पिया....




यूनान में शिक्षा के निजीकरण के िवरोध में सड़कों पर उतरे छात्र-छात्राओं का अनोखा विरोध

बड़ा पढ़वइया है रे ये तो


GERMANY : An Amazon employee packs the German version of the latest book of the Harry Potter series 'Harry Potter and the Deathly Hallows', authored by J. K. Rowling, 23 October 2007 at the Amazon logistic center in Bad Hersfeld, eastern Germany.

वाह भाई, क्या बात है !


सुंदरता का ऐसा पऱदर्शन देखकर युवा तो दांतों तले उंगिलयां दबाएंगे ही

पत्रकार का प्रेमपत्र



सत्येन्द्र प्रताप
सामान्यतया प्रेमपत्रों में लड़के -लड़िकयां साथ में जीने और मरने की कसमें खाते हैं, वादे करते हैं और वीभत्स तो तब होता है जब पत्र इतना लंबा होता है िक प्रेमी या प्रेिमका उसकी गंभीरता नहीं समझते और लंबे पत्र पर अिधक समय न देने के कारण जोड़े में से एक भगवान को प्यारा हो जाता है.
अगर पत्रकार की प्रेिमका हो तो वह कैसे समझाए। सच पूछें तो वह अपने व्यावसाियक कौशल का प्रयोग करके कम शब्दों में सारी बातें कह देगा और अगर शब्द ज्यादा भी लिखने पड़े तो खास-खास बातें तो वह पढ़वाने में सफल तो हो ही जाएगा.

पहले की पत्रकािरता करने वाले लोग अपने प्रेमपत्र में पहले पैराग्राफ में इंट्रो जरुर िलखेंगे. साथ ही पत्र को सजाने के िलए कैची हेिडंग, उसके बाद क्रासर, अगर क्रासर भी लुभाने में सफल नहीं हुआ तो िकसी पार्क में गलबिहयां डाले प्रेमिका के साथ का फोटो हो तो वह ज्यादा प्रभावी सािबत होगा और प्रेमिका के इमोशन को झकझोर कर रख देगा.
नया अखबारनवीस होगा तो उसमें कुछ मूलभूत परिवर्तन कर देगा. पहला, वह कुछ अंगऱेजी के शब्द डालेगा िजससे प्रेमिका को अपनी बात समझा सके. समस्या अभी खत्म नहीं हुई क्योंिक वक्त की भी कमी है और पढ़ने के िलए ज्यादा समय भी नहीं है. फोटो तो बड़ा सा डालना होगा िजससे पत्र हाथ में आते ही भावनाएं जाग जाएं. अगर फोटो का अभाव है तो इंट्रो कसा हुआ हो, साथ ही टेक्स्ट कम होना बेहद जरुरी है.

अलग अलग अखबारों के पत्रकार अलग अलग तरीके से प्रेमपत्र िलखेंगे. िहन्दुस्तान में होगा तो बाबा कामदेव का प्रभाव, भास्कर में हुआ तो फांट से अलग िदखने की कोिशश, जागरण का हुआ तो ठूंसकर टेक्स्ट भरेगा, नवभारत टाइम्स का हुआ तो अंगऱेजी झाड़कर अपनी बेचारगी दशाॆएगा, अगर आज समाज का हुआ तो हेिडंग के नीचे जंप हेड जरूर मारेगा, चाहे डबल कालम का लव लेटर हो या चार कालम का.

आम आदमी भी प्रेम पत्र िलखने के इन नुस्खों को अपना सकते हैं, िजससे प्रेमी प्रेमिका की आपसी समझ बढ़ेगी और प्यार में लव लेटर के खतरे से पूरी तरह से बचा जा सकेगा.

तो कामदेव की आराधना के साथ शुरु करिये प्रेमपत्र लिखना. सफलता के िलए शुभकामनाएं.

Saturday, October 6, 2007

स्कूप से कम नहीं रामकहानी सीताराम












सत्येन्द्र प्रताप
मधुकर उपाध्याय की 'राम कहानी सीताराम' एक ऐसे सिपाही की आत्मकथा है जिसने ब्रिटिश हुकूमत की ४८ साल तक सेवा की. अंगऱेजी हुकूमत का विस्तार देखा और आपस में लड़ती स्थानीय रियासतों का पराभव. सिपाही से सूबेदार बने सीताराम ने अपनी आत्मकथा अवधी मूल में सन १८६० के आसपास लिखी थी जिसमें उसने तत्कालीन समाज, अपनी समझ के मुताबिक़ अंग्रेजों की विस्तार नीति, ठगी प्रथा, अफगान युद्ध और १८५७ के गदर के बारे में लिखा है. अवधी में लिखी गई आत्मकथा का अंग्रेजी में अनुवाद एक ब्रिटिश अधिकारी जेम्स नारगेट ने किया और १८६३ में प्रकाशित कराया.
अंग्रेजी में लिखी गई पुस्तक फ्राम सिपाय टु सूबेदार के पहले सीताराम की अवधी में लिखी गई आत्मकथा इस मायने में महत्वपूर्ण है कि गद्य साहित्य में आत्मकथा है जो भारतीय लेखन में उस जमाने के लिहाज से नई विधा है. सीताराम ने अपनी किताब की शुरुआत उस समय से की है जब वह अंग्रेजों की फौज में काम करने वाले अपने मामा के आभामंडल से प्रभावित होकर सेना में शािमल हुआ। फैजाबाद के तिलोई गांव में जन्मे सीताराम ने सेना में शामिल होने की इच्छा से लेकर सूबेदार के रूप में पेंशनर बनने के अपने अड़तालीस साल के जीवनकाल की कथा या कहें गाथा लिखी है जिसमें उसने अपने सैन्य अभियानों के बारे में विस्तार से वर्णन किया है.
सीताराम बहुत ही कम पढ़ा लिखा था लेकिन जिस तरह उसने घटनाओं का वर्णन िकया है, एक साहित्यकार भी उसकी लेखनी का कायल हो जाए. भाषा सरस और सरल के साथ गवईं किस्से की तरह पूरी किताब में प्रवाहित है. एक उदाहरण देिखए...
सबेरे आसमान िबल्कुल साफ था। दूर दूर तक बादल दिखाई नहीं दे रहे थे। मुझे याद है, वह १० अक्टूबर १९१२ का िदन था। सबेरे छह बजे मैं मामा के साथ िनकला,एक ऐसी दुनिया में जाने के िलए, जो मेरे लिए बिल्कुल अनजान थी. हम िनकलने वाले थे तो अम्मा ने मुझे िलपटा िलया, चूमा और कपड़े के थैले में रखकर सोने की छह मोहरें पकड़ा दीं. अम्मा ने मान िलया था िक मुझसे अलग होना उनकी किस्मत में लिखा है और वह िबना कुछ बोले चुपचाप खड़ी रहीं. सिसक-सिसक कर रोती रहीं. घर से चला तो मेरे पास सामान के नाम पर घोड़ी, मोहरों वाली थैली, कांसे का एक गहरा बर्तन, रस्सी -बाल्टी, तीन कटोिरयां, लोहे का एक बर्तन और एक चम्मच, दो जोड़ी कपड़े, नई पगड़ी, छोटा गंड़ासा और एक जोड़ी जूते थे.
सीताराम की आत्मकथा में किताब में अंग्रेजों के नाम भी भारतीय उच्चारण के साथ ही बदले-बदले नजर आते हैं, मसलन अजूटन साहब,अडम्स साहब, बर्रमपील साहब, मरतिंदल साहब... आिद आिद. हालांिक कथाक्रम और खासकर अफगान और ठगों के िखलाफ अभियान के बारे में िजस तरह पुख्ता और ऐितहािसक जानकारी दी गई है उसे पढ़कर यह संदेह होता है कि एक कम पढ़े िलखे और िसपाही के पद पर काम करने वाला आदमी ऐसी िकताब सकता है.
आलोचकों ने इस पुस्तक के बारे में यहां तक कहा है कि यह Fabricated & False है. इस िकताब में तमाम ऐसे तथ्य हैं जो यह िसद्ध करते हैं िक लेखक की स्थानीय संस्कृति में गहरी पैठ थी। मसलन समाज में छुआछूत और शुद्धि का प्रकरण..इस तरह का वर्णन सीताराम ने कई बार किया है...
एक रोज शाम को मैं अपने घायल होने का िकस्सा सुना रहा था. उसी में जंगल में भैंस चराने वाली लड़की का जिक्र आया, जिसने पानी पिलाकर मेरी जान बचाई थी. पुजारी जी मेरी बात सुन रहे थे। बोले िक मैनें जैसा बताया, लगता है वह लड़की बहुत नीची जाति की थी और उसका िनकाला पानी पीने से मेरा धर्म भ्रष्ट हो गया।मैने बहुत समझाया कि बर्तन मेरा था लेिकन वह जोर-जोर से बोलने लगे और बहुत सी उल्टी-सीधी बातें कही. देखते-देखते बात पूरे गांव में फैल गई. हर आदमी मुझसे कटकर रहने लगा। कोई साथ हुक्का पीने को तैयार नहीं. मैं पुजारी पंडित दिलीपराम के पास गया। उन्होंने भी बात सुनने के बाद कहा कि मेरा धर्म भ्रष्ट हो गयाऔर मैं जात से गिर गया. वह मेरी बात सुनने को तैयार नहीं थे. मुझपर अपने ही घर में घुसने पर पाबंदी लगा दी गई. मैं दुखी हो गया. बाबू ने बहुत जोर लगाकर पंचायत बुलाई और कहा कि फैसला पंचों को करना चािहए. बाद में पंडित जी लोगों ने पूजा-पाठ किया, कई दिन उपवास कराया और तब जाकर मुझे शुद्ध माना गया। ब्राहमणों को भोज-भात कराने और दक्षिणा देने में सारे पैसे खत्म हो गए जो मैने चार साल में कमाए थे.
यह वर्णन उस समय का है जब सीताराम िपंडारियों से युद्ध करते हुए घायल होने के बाद घर लौटा था. संभवतया इस तरह का बर्णन वही व्यक्ति कर सकता है िजसने उस समाज को जिया हो. ( मुझे अपने गांव में १९८५ में हुई एक घटना याद आती है जब मैं दस साल का था और महज पांचवीं कक्षा का छात्र था। गांव के ही दुखरन शुक्ल की िबटिया, बिट्टू मुझसे दो साल वरिष्ठ। महज सातवीं कक्षा की छात्रा थी. उसकी एक प्रिय बछिया थी जो बीमारी के चलते घास नहीं चर रही थी. उसने गुस्से में आकर बछिया को मुंगरी से मार िदया. बाद में उसने वह घटना मुझे भी बताई. वह बहुत दुखी थी कि आिखर उसने अपनी प्रिय बछिया को क्यों मारा. बाद में उसने कुछ और बच्चों से कह िदया। छह महीने बाद बछिया मर गई. धीरे धीरे गांव में यह चर्चा फैली कि ...िबट्टुआ बछिया का मुंगरी से मारे रही यही से बछिया मरि गै है... पहले बच्चे उसे अशुद्ध मानकर तरजनी पर मध्यमा उंगली चढाते थे िक उसके छूने से अपवित्र न हो जाएं. बाद में समाज ने बिट्टू का हुक्का पानी बंद कर दिया. मैने अम्मा से पूछा था िक वो तो हुक्का पीती ही नहीं तो उसका हुक्का कैसे बंद किया? मुझे बताया गया िक उसे पाप का भागी मानकर समाज से वहिष्कृत कर िदया गया है. जब उसके पिता से कहा गया कि उसको शुद्ध करने के िलए भोज करें तो वे भोज देने की हालत में नहीं थे. समाज ने दुखरन सुकुल के पूरे परिवार का हुक्का पानी बंद कर दिया. लड़की की शादी की बात आई. समाज ने उस परिवार का बहिष्कार कर दिया था. पंडित जी को मजबूरन हुक्का पानी खोलवाने के िलए भोज देना पड़ा। मुझे याद है िक भोज के िलए पैसा कमाने वे पंजाब के िकसी िजले में मजदूरी करने गए थे.)
िकताब में अंग्रेजों की फौज और उनके िनयमों की भूिर-भूिर प्रशंसा की गई है. सीताराम ने खुद भी कहा है िक उसने वह िकताब नारगेट के कहने पर िलखी थी. साथ ही भारत में नमक का कर्ज अदा करने की परम्परा रही है. ऐसे में भले ही उसका बेटा िवद्रोह के चलते गोिलयों का िशकार हुआ लेिकन सीताराम उसे ही रास्ते से भटका हुआ बताता है. हालांिक अपनी आत्मकथा में उसने तीन बार इस बात पर आश्चर्य जताया है िक अंग्रेज बहादुर िकसी दुश्मन को जान से नहीं मारते ऐसी लड़ाई से क्या फायदा.
रामकहानी सीताराम, भारतीय समाज और संस्कृित, तत्कालीन इितहास के बारे में एक आम िसपाही की सोच को व्यक्त करती है। पुस्तक इस मायने में भी महत्वपूर्ण हो जाती है िक यह अवधी भाषा में िलखी गई आत्मकथा की पहली पुस्तक है.
इस िकताब के लेखक की िवद्वत्ता के बारे में अगर िवचार िकया जाए तो भारतीय समाज में ऐसे तमाम किव, लेखक हुए हैं िजन्होंने मामूली िशक्षा हािसल की थी लेिकन समाज के बारे में शसक्त िंचंतन िकया. अवधी भाषा में कृष्ण लीला के बारे में गाया जाने वाला वह किवत्त मुझे याद है जो बचपन में मैने सुनी थी.
हम जात रिहन अगरी-डगरी,
िफर लउिट परिन मथुरा नगरी.
मथुरा के लोग बड़े रगरी,
वै फोरत हैं िसर की गगरी..
आम लोगों द्वारा गाई जाने वाली यह किवता भी शायद िकसी कम पढ़े िलखे व्यिक्त ने की होगी, लेिकन ग्राह्य और गूढ़ अथॆ वाली हैं ये पंिक्तया.
सीताराम ने इस पुस्तक में अंग्रेजों द्वारा िहन्दुस्तािनयों से दुर्व्यवहार का भी वर्णन िकया है। साथ ही वह पदोन्नित न िदए जाने को भी लेकर खासा दुखी नजर आता है। अंितम अध्याय में तो उसने न्यायप्रिय कहे जाने वाले अंग्रेजी शासन की बिखया उधेड़ दी है. उसने कारण भी बताया है िक भारतीय अिधकारी क्यों भ्रष्ट हैं. िकताब में एक जगह लेखक ने अंग्रेजों के उस िरवाज का वर्णन िकया है िजसमें दो अंग्रेजों के बीच झगड़ा होने पर वे एक दूसरे पर गोली चलाते हैं. यह िकताब सािहत्य जगत, समाजशास्त्र और इितहास तीनों िवधाओं के िलए महत्वपूर्ण है.
पुस्तक में मधुकर जी ने बहुत ही ग्राह्य िहंदी का पऱयोग िकया है जो पढ़ने और समझने में आसान है.
पुस्तक : रामकहानी सीताराम
लेखक : मधुकर उपाध्याय
मूल्य : ६० रुपये
प्रकाशक : वाणी प्रकाशन