Thursday, November 29, 2007

चाकलेट खाओ, लड़की पाओ नमकीन खाओ, लड़का पाओ



पता नहीं कैसे-कैसे शोध करते हैं शोधकर्ता। दक्षिण अफ्रीका के प्रिटोरिया विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने कहा है कि लड़की पैदा करने के लिए चाकलेट और लड़का पैदा करने के लिए नमकीन, चिप्स वगैरह खाना लाभदायक होता है। ब्रिटिश अखबार डेली मेल की एक रिपोर्ट में शोधकर्ताओं के हवाले से कहा गया है कि अगर महिलाएं लड़की पैदा करने की चाहत रखती हैं तो उन्हे खानपान में शुगर की मात्रा बढ़ा देनी चाहिए। इसके लिए चाकलेट खाना फायदेमंद रहेगा।
चूहों पर किए गए शोध के आधार पर शोधकर्ताओं की रिपोर्ट में कहा गया है कि गर्भस्थ शिशु के लिंग निर्धारण में खानपान की अहम भूमिका होती है। हालांकि शोधकर्ता अभी रक्त में शर्करा की उस मात्रा का सटीक अनुमान नहीं लगा पाए हैं, जो बच्चे का लिंग निर्धारक होता है।

Friday, November 23, 2007

कोर्ट पर हमला क्यों?


सत्येन्द्र प्रताप

वाराणसी में हुए संकटमोचन और रेलवे स्टेशनों पर विस्फोट के बाद जोरदार आंदोलन चला। भारत में दहशतगर्दी के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ था जब गांव-गिराव से आई महिलाओं के एक दल ने आतंकवादियों के खिलाफ फतवा जारी किए जाने की मांग उठा दी थी। बाद में तो विरोध का अनूठा दौर चल पड़ा था। संकटमोचन मंदिर में मुस्लिमों ने हनुमानचालीसा का पाठ किया और जबर्दस्त एकता दिखाई। मुस्लिम उलेमाओं ने एक कदम आगे बढ़कर दहशतगर्दों के खिलाफ़ फतवा जारी कर दिया।
इसी क्रम में न्यायालयों में पेश किए जाने वाले संदिग्धों के विरोध का भी दौर चला और वकीलों ने इसकी शुरुआत की। लखनऊ, वाराणसी और फैजाबाद में वकीलों ने अलग-अलग मौकों पर आतंकवादियों की पिटाई की थी।शुरुआत वाराणसी से हुई। अधिवक्ताओं ने पिछले साल सात मार्च को आरोपियों के साथ हाथापाई की और उसकी टोपी छीनकर जला डाली। आरोपी को न्यायालय में पेश करने में पुलिस को खासी मशक्कत करनी पड़ी। फैजाबाद में वकीलों ने अयोध्या में अस्थायी राम मंदिर पर हमले के आरोपियों का मुकदमा लड़ने से इनकार कर दिया। कुछ दिन पहले लखनऊ कचहरी में जैश ए मोहम्मद से संबद्ध आतंकियों की पिटाई की थी।
अब राजधानी लखनऊ के अलावा काशी तथा फैजाबाद के कचहरी परिसर बम विस्फोटों से थर्रा उठे हैं। यह सीधा हमला है आतंकियों का विरोध करने वालों पर। कश्मीर के बाद यह परम्परा देश के अन्य भागों में भी फैलती जा रही है। नीति-निर्धारकों और चरमपंथियों का समर्थन करने वालों को एक बार फिर सोचा होगा कि वे देश में क्या हालात बनाना चाह रहे हैं।

भुखमरी


यह फोटो बहुत पुरानी है, फिर भी भेज रहा हूं क्योंकि इस फोटो को दुनियां के सामने लाने वाले फोटोग्राफर से भी दर्द सहा नहीं गया। उसने आत्महत्या कर ली। लेकिन पेश कर चुका था एक ऐसा फोटो जिससे किसी भी संवेदनशील आदमी का कलेजा बैठ जाए।
यह फोटो १९९४ में सूडान में फैली भुखमरी के दौरान लिया गया था। फोटो यूनाइटेड नेशन्स के फूड कैंप से महज़ एक किलोमीटर की दूरी पर लिया गया। एक बच्चा मरने की कगार पर है और गिद्ध इंतजार में है कि बच्चा मरे और उसे खाया जाए। इस फोटो के लिए केविन कार्टर को वर्ष १९९४ का पुलित्जर पुरस्कार दिया गया था।
दुनिया ये नहीं जानती कि उस बच्चे का क्या हस्र हुआ। फोटोग्राफर भी नहीं। यह फोटो दुनियां के सामने लाने के तीन महीने बाद ही केविन कार्टर ने आत्महत्या कर ली थी।

Wednesday, November 21, 2007

पहल


मधुकर उपाध्याय

सूरज रोज उगता है। तय दिशा से। नियत समय पर। सबके लिए। अपनी ओर से वह सबकी खातिर एक नया दिन लेकर आता है। सूरज की चमक में कमी नहीं होती। भेदभाव नहीं होता। वह आता है तो सब साफ़-साफ़ दिखने लगता है। कुतुबमीनार से लेकर संसद और कारखानों से दफ्तर तक। ऊंची इमारतों और झुग्गियों को उसकी चमक में बराबर का हिस्सा मिलता है। यही तो सूरत का काम है। यही काम अखबार का भी है। सब साफ दिखा देना। बताना कि जो साफ़ नहीं है, वह साफ क्यों नहीं है? और नहीं है तो कैसे होगा? अखबार रोज सुबह उगते हैं लेकिन अब उनका उगना घटना नहीं होता। सूरज की तरह तो बिल्कुल नहीं। कुछ गायब लगता है, जैसे चमक-दमक में खो गया है। असली दुनिया की तस्वीर से कतई अलग।आज का सूरज कुछ नए पन्ने जोड़कर उगा है। नए अखबार की शक्ल में। उम्मीद के साथ। सबको साथ लेकर। तबके, धर्म, आयवर्ग और कौमी रुझानों से बेपरवाह। सबको समेटता। सब उजागर करता। यही मंशा है और यही कोशिश। कुल मिलाकर यही आज समाज है।हमें सूरज होने या बनने की गलतफहमी नहीं है। हम उससे अलग हैं। इस मायने में कि हम आपके पास हैं। सूरज की चमक से कोई हिस्सा छूट जाए तो आप उसे बता नहीं सकते। हमें बता सकते हैं।आज समाज में आपका स्वागत करते हुए हम बस एक बात कहना चाहते हैं। अब तक आप अखबार पढ़ते थे। अब समाज को पढ़िए। पूरा समाज। हम उसी में शामिल हैं।
(आज समाज के पहले अंक में।)

Sunday, November 18, 2007

आखिरी कोशिश

(यह फोटो बांग्लादेश में आए तूफान के बाद का है। कितना संघषॆ किया होगा इस आदमी ने, जान बचाने की। डाल पकड़ी कि आसरा बने। उस डाल ने भी पेंड़ का साथ छोड़ दिया। मृतक का परिजन उसी डाल के सहारे शव को बाहर निकालने की कोशिश कर रहा है। बच्चे को सहारा देने वाला तो चला गया, अब बच्चा उसी डाल का सहारा ले रहा है, शव को बाहर निकालने के लिए।)



जिंदगी भी अजीब है.
प्रकृति,
मनुष्य को हमेशा समझाने की कोशिश करती है.
वह पीटती है-
एक ही लाठी से.
चाहे अमीर हो,या गरीब.
हिन्दू हो...
या मुसलमान।
दिखाती है-
कि तुम क्या हो?
कोशिश करती है समझाने की।
आदमी...
घमंड में जीता है।
वह जीता है
और दूसरों की जिंदगी देखता है।
लेकिन मौत...!
किसी को नहीं पहचानती।
आदमी कोशिश करता है, हर वक्त बचने की।
आखिरी कोशिश!
भले ही वह नाकाम हो जाए।
मौत के सामने,
कितनी बेबस...है यह ज़िंदगी!

-सत्येन्द्र प्रताप

Saturday, November 17, 2007


सत्येन्द्र प्रताप

हर देश में सरकारें, शिक्षा को बेचने की तैयारी में हैं । छात्र इसका विरोध करने में लगे हैं। हाल ही में यूनान के छात्र-छात्राओं ने सरकार के विश्वविद्यालयों के निजीकरण के फैसले के खिलाफ झंडा बुलंद करते हुए अनोखा विरोध किया था, जिसमें एक पूंजीपति को सिगरेट पीते, छात्रों को कंटीले तार में बांधकर ले जाते दिखाया गया था। अब फ्रांस में भी छात्रों ने इसके खिलाफ आवाज उठाई है। फ्रांस की सरकार ने एक कानून बनाया है जिसके तहत वहां के विश्वविद्यालयों को निजी व्यवसाय के निकट लाने की बात कही गई है। १५ नवंबर को छात्र-छात्राओं को देश के सभी ८५ विश्वविद्यालयों में विरोध प्रदर्शन किया। ३१ विश्वविद्यालय पूरी तरह से बंद रहे। छात्रों के इस संघर्ष को वैश्विक स्तर पर समर्थन की जरूरत है जिससे शिक्षा के बाजारीकरण को रोका जा सके। शिक्षा के क्षेत्र में भारत सरकार भी निवेश करती है, लेकिन यहां भी इसमें धीरे-धीरे जहर घोले जाने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। यहां पर सीधे तौर पर तो कोई फैसला नहीं आया है, लेकिन सरकारी विद्यालयों में शिक्षा का स्तर गिराकर आम लोगों को निजी शिक्षण संस्थानों की ओर ढ़केला जा रहा है।

Friday, November 16, 2007

नाम प्रभावित करते हैं परीक्षा के अंक


सत्येन्द्र प्रताप

पता नहीं यह सही है या गलत, लेकिन अमेरिका के शोधकर्ताओं ने सर्वे के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला है। नाम के पहले अक्षर में जादुई करिश्मा होता है। अमेरिका के दो शोधकर्ताओं ने प्रबंधन छात्रों और विधि छात्रों के ग्रेड पर अध्ययन किया है।

इन वैज्ञानिकों ने अपनी शोध रिपोर्ट में खुलासा किया है कि जिन संस्थानों की ग्रेडिंग (दर्जा) पद्धति की सर्वोच्च श्रेणी वहां के छात्रों के नाम के पहले अक्षर से मेल खाते हैं, उनकी सफलता का रिकॉर्ड ऊंचा रहता है।

उदाहरण के लिए प्रबंधन संस्थानों में ग्रेडिंग पद्धति ए, बी, सी, डी के हिसाब से होती है। इनमें सबसे अच्छा ग्रेड ‘ए’ और ‘बी’ होता है। तो इस हिसाब से जिन छात्रों का नाम ‘ए’ या ‘बी’ से शुरू होता है उनका प्रदर्शन उन छात्रों से बेहतर होता है जिनका नाम ‘बी’ या ‘सी’ से शुरू होता है।

कैलीफोर्निया विश्वविद्यालय के लीफ नेल्सन और येल विश्वविद्यालय के जोसेफ सिमोंस ने अपने शोध में पाया कि जब विधि के छात्रों पर यही अध्ययन किया गया तो इस बार उन छात्रों का प्रदर्शन सर्वश्रेष्ठ नहीं था जिनके नाम ‘ए’ या ‘बी’ अक्षर से शुरू होते हैं। इसकी वजह यह है कि यहां ग्रेडिंग के लिए ‘ए’ या ‘बी’ रैंकिंग पद्धति का इस्तेमाल नहीं किया जाता है।

हालांकि इस अध्ययन में यह भी कहा गया है कि कोई छात्र अगर अपने नाम को लेकर सजग हो जाता है तो परिणाम मनमाफिक होने की सम्भावना कम होती है।

इस अध्ययन रिपोर्ट को ‘साइकोलॉजिकल साइंस’ जर्नल में प्रकाशित किया गया है। वैज्ञानिकों ने इस सिद्धांत को ‘नाम अक्षर प्रभाव’ नाम दिया है।

Tuesday, November 13, 2007

निकम्मों के लिए खतरे की घंटी


देश के निकम्मों, सावधान हो जाओ। अब न तो चार्वाक दर्शन चलेगा और न ही मलूकदास की कविता, जिसमें सबके दाता राम होते हैं। भारतीय न्यायालय का डंडा चल पड़ा है। बचना मुश्किल।

गरीबी और नकारापन के कारण अपनी पहली पत्नी और उसके बच्चों को भरण-पोषण न देने पर मेरठ की एक अदालत ने एक व्यक्ति को जेल में मेहनत, मजदूरी की सजा सुनाई है। अभियोजन के अनुसार मेरठ जिले के कस्बा किठौर निवासी सलीम की शादी जिले के मुंडाली थाना अन्तर्गत ग्राम सफियाबाद लोटी की रहने वाली दिलजहान से 28 जून 1991 में हुई थी।
दूसरी शादी कर लेने और अपने परिवार का खर्च न उठाने पर परिवार न्यायालय के न्यायाधीश ने पत्नी का 450 रुपया और उसके तीन अव्यस्क बच्चों का भरण-पोषण 350 रुपए प्रत्येक के हिसाब से 1500 रुपए प्रतिमाह देने का आदेश गत 31 जनवरी 2001 को पारित किया था। अदालत के आदेश के बावजूद भरण-पोषण का एक भी पैसा न देने और अदालत में उपस्थित न होने के कारण सजायाफ्ता सलीम के विरुद्ध कई वारंट और रिकवरी वारंट भी जारी किए गए, लेकिन सलीम कोई चल-अचल संपत्ति न होने और रोजी के तौर पर कोई काम न करने की बात करता रहा। गत एक सितंबर 2007 को इसी न्यायालय ने कारावास का दंड देकर उसे मेरठ जेल भिजवा दिया। जहां वह इन दिनों अपनी सजा काट रहा है। परिवार न्यायाधीश आर.एस. यादव की अदालत में दिलजहान की खराब आर्थिक स्थिति को देखते हुए मेरठ जिला जेल के जेलर को आज आदेश दिए कि 40 वर्षीय सलीम को जेल में ही मेहनत, मजदूरी करवाकर कमाए गए तमाम पैसे को अदालत में जमा करवाया जाए जिससे गुजारा भत्ते के तौर पर उसकी पत्नी और बच्चों को दिया जा सके। अदालत ने अपने फैसले में यह भी आदेश दिए है कि भरण पोषण भत्ते की पूरी रकम अदा हो जाने तक उसे जेल में ही रखा जाए। अदालत ने यह भी स्वीकार किया है कि सलीम मन, बुद्धि और शरीर से स्वस्थ व्यक्ति है और सिर्फ नकारापन के कारण मेहनत, मजदूरी करके गुजारा भत्ता नहीं दे रहा है।
इस मामले में वादी दिलजहान के अधिवक्ता वी.के. गुप्ता ने बताया कि अदालत ने उच्चतम न्यायालय की ठक्कर एवं एस. नटराजन बैंच द्वारा वर्ष 1989 में 128 सीआरपीसी के तहत कुलदीप कौर बनाम सुन्दर सिंह मामले की रलिंग को आधार मानकर यह फैसला सुनाया है। अदालत के इस निर्णय से यह सवाल भी उठ गया है कि बकाया 1 लाख 18 हजार 500 रुपये और प्रति माह 1500 रुपए के गुजारे भत्ते की रकम क्या वह पूरी उम्र जेल में चक्की पीसकर चुका पाएगा? क्योंकि जिला जेल में मजदूरी के औसतन दस रुपए प्रतिदिन दिए जाने का प्रावधान है। उन्होंने कहा कि अदालत के आदेशों पर यदि पालन हुआ तो सलीम पूरी जिन्दगी जेल में बिताकर भी गुजारा भत्ते की पूरी रकम अदा नहीं कर पाएगा।
(साभार-जोश१८)

गाय का धमाका


आपने लैंड स्लाइड की खबरें पढ़ी हैं, पेंड़ गिरने, बिल्डिंग ढहने की खबर पढ़ी है, लेकिन अगर कार पर गाय आ गिरे तो क्या होगा। सोच भी नहीं सकते कि इस तरह की भी दुर्घटना हो सकती है। लेकिन ऐसा हुआ ।
जी हां, ऐसा ही वाकया वाशिंगटन प्रांत में कार में यात्रा कर रहे एक जोड़े के साथ हुआ। इस जोड़े की कार पर गाय आ गिरी।
यह विचित्र घटना चार्ल्स एवरसन के साथ हुई। उन्होंने वेनात्ची वर्ल्ड नामक अखबार से बातचीत करते हुए कहा कि अचानक मेरी कार की छतरी के अगले हिस्से पर कोई चीज जोर से टकराई। मुझे इसका अहसास नहीं था कि मेरी कार से टकराने वाली चीज गाय होगी। ऐसा लगा जैसे मेरी कार पर किसी ने बम फेंक दिया हो। उन्होंने कहा कि इस गाय का वजन करीब 270 किलोग्राम होगा। इसके असर से कार के शीशे टूट गए और उसका अगला हिस्सा भी बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया। अगर यह गाय मेरी कार के बीच में गिरती तो मैं और मेरी पत्नी मारे जाते। यह गाय सड़क के किनारे स्थित एक छोटी पहाड़ी से फिसलकर कार पर गिरी थी।

Monday, November 12, 2007

प्राकृतिक असंतुलन की मार झेल रहे हैं पंक्षी


A dying bird covered in oil lies at the Black Sea shore in Port Kavkaz, 12 November 2007, some 160 km from Krasnodar after a heavy storm। The bodies of three sailors washed ashore Monday after a ferocious Black Sea storm sank five ships, including an oil tanker, raising fears of severe environmental damage to the virtually landlocked sea.

Friday, November 9, 2007

भयानक संकटः यह आचरण का




लीजिए कविता झेलिए। मेरी लिखी हुई नहीं है इसलिए आपको अगर गाली देना हो तो "प्रताप राव कदम" को दें। हालांकि मुझे बहुत पसंद आई है।


जिन्हें इस खयाल से भी परहेज
उन्होंने ही कहा
धर्म का इस तरह इस्तेमाल गलत
दिन भर लगाते ग्राहकों को चूना,
उन्होंने भी दुकान पर लिखवाया,
ग्राहक हमारा भगवान है।
दहेज की मंडी में वह मंहगा बिका,
कहता था जो
प्रेम के खातिर कुछ भी करेगा।
जो कहते हैं
वे न इधर हैं न उधर
कामकाज औऱ घर
यह चतुराई है
नहीं उनका डर।

और आखिर में शानदार लाइनें देखिये जिसके कारण मैं इस कविता को आप तक पहुंचा रहा हूं।


शब्द निरर्थक
खोखल में से आ रही आवाज़
एक कहता कुछ, करता कुछ औऱ
दूसरा उससे कतई अलग नहीं
बिकने-खरीदने की पंसारी भाषा
चमक-दमक रैपर में लिपटी
भयानक संकटः यह आचरण का।

Thursday, November 8, 2007

समलैंगिकों के लिए होटल ???



सत्येन्द्र प्रताप

दुनिया भी अजीब है। अमीर लोगों के शौक। पहले तो समलैंगिकों के लिए विवाह करने के लिए छूट मांगी गई और अब उनके लिए पांच सितारा होटल भी खुल गया।

कोई गरीब आदमी रोटी मांगता है, मुफ्त शिक्षा की माँग करता है, उद्योगपतियों द्वारा कब्जियाई गई जमीन के लिए मुआवजा मांगता है तो देश चाहे जो हो, उसे गोली ही खानी पड़ती है। लेकिन इन विकृत मानसिकता वालों के लिए आंदोलन चले, उनकी मांगों को माना भी गया और होटल खुला, वो भी पांच सितारा। अर्जेंटीना की राजधानी ब्यूनस-आयर्स मे समलैंगिकों के होटल खोला गया है! पांच सितारा होटल। ४८ कमरे हैं। पारदर्शी तल वाला स्विमिंग पुल है, साथ ही बार, रेस्टोरेंट भी. यह होटल शहर के सबसे पुराने इलाके san telmo मे खोला गया है।