Thursday, May 8, 2008

नए जमाने के मुताबिक होगा नया मूल्य सूचकांक


सत्येन्द्र प्रताप सिंह और कुमार नरोत्तम


थोक मूल्य सूचकांक से हर सप्ताह महंगाई में होने वाली बढ़ोतरी या कमी के आंकड़े मिलते हैं। वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय ये आंकड़े जारी करता है।
हालांकि मूल्यों के नमूने और इस सूचकांक में शामिल जिंसों से सामान्य अनुमान लगाया जाता है, लेकिन इससे सही आंकड़े नहीं मिल पाते। वर्तमान थोक मूल्य सूचकांक को लेकर ढेरों सवाल उठ रहे हैं। पहला मुद्दा यह है कि आधार वर्ष पुराना पड़ चुका है। दूसरा, इसमें शामिल किए गए जिंसों की संख्या कम है, साथ ही विनिर्मित क्षेत्र के उत्पादों में क ई परिवर्तन हुए हैं। वर्तमान बास्केट में शामिल कई जिंसों का महत्व घट गया है। इसके अलावा मूल्यों के ताजा आंकड़े सही समय पर नहीं पहुंचते, जिससे मुद्रास्फीति की सही सूची ही नहीं बन पाती।
थोक मूल्य सूचकांक को अद्यतन करने के लिए जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अभिजीत सेन की अध्यक्षता में कार्य समूह का गठन किया गया है। इसका प्रमुख काम वर्तमान थोक मूल्य सूचकांक, जिसका आधार वर्ष 1993-94=100 है, को पुनरीक्षित करना है।
वाणिज्य मंत्रालय के ऑफिस आफ इकनॉमिक एडवाइजर की इच्छा है कि यह कार्य समूह थोक मूल्य सूचकांक की पुनरीक्षित श्रृंखला पेश करे, जिससे मुद्रास्फीति के सही आंकड़े जानने के लिए बेहतर संकेतक मिल सके। साथ ही इस बारे में भी जानकारी हासिल हो सके कि अंतरराष्ट्रीय बाजार का भारतीय जिंसों पर क्या प्रभाव पड़ रहा है। इस कार्य समूह में चार उप समूह शामिल किए गए हैं।
विश्लेषणात्मक मुद्देविनिर्मित वस्तुओं के मामलेकृषि जिंस संगठित और असंगठित क्षेत्र
प्रो. अभिजीत सेन की अध्यक्षता वाले कार्य समूह से जुड़े सूत्रों का कहना है कि थोक मूल्य सूचकांक की तकनीकी रिपोर्ट बनकर तैयार हो गई है। इसे अंतिम रूप दिया जा रहा है। लेकिन संकट आंकड़ों को लेकर संकट अब भी बरकरार है। सेन रिपोर्ट में मुद्रास्फीति की साप्ताहिक के बदले मासिक रिपोर्ट जारी किए जाने की भी बात कही जा रही है। साथ ही स्पष्ट और समय के मुताबिक आंकड़े प्राप्त करना भी अहम मुद्दा बना हुआ है। बहरहाल इस साल के अंत तक रिपोर्ट आने की संभावना है।
एक्सिस बैंक के प्रमुख अर्थशास्त्री और वाइस प्रेसीडेंट सौगात भट्टाचार्य का कहना है कि पुराने थोक मूल्य सूचकांक में ढेरों खामिया है, जिसे दुरुस्त किए जाने की जरूरत है। उन्होंने कहा, ''कंपनियों के लिए परिवर्तित कीमतों के आंकड़े देना अनिवार्य नहीं किया गया है, जिससे समय पर आंकड़े नहीं मिल पाते। साथ ही कंज्यूमर डयूरेबल्स के तमाम आयटम को शामिल किए जाने की जरूरत है।
पेट्रोल की खपत भी आधार वर्ष की तुलना में बहुत ज्यादा बढ़ चुकी है, जिसका वेटेज बढ़ाया जाना चाहिए। साथ ही विभिन्न सामग्रियों की संख्या वर्तमान में 435 है, जिसे बढ़ाकर 1000 तक किए जाने की जरूरत है, जिससे महंगाई की सही स्थिति का अनुमान लगाया जा सके। ''

साथ ही औद्योगिक मूल्य सूचकांक, थोक मूल्य सूचकांक और जीडीपी के लिए एक ही आधार वर्ष बनाए जाने की बात चल रही है। इसे सांख्यिकी के जानकार बेहतर मान रहे हैं। हालांकि अभी इसकी राह बहुत कठिन लगती है।
भारत के मुख्य सांख्यिकीयविद् प्रणव सेन ने बताया कि वैसे तो राष्ट्रीय आय को निर्धारित करने के लिए 1999-2000 को भी अभी स्थिरता प्राप्त करना बाकी है। इसलिए 2004-05 को आधार वर्ष बनाने में अभी काफी समय लगेगा। एचडीएफसी के मुख्य अर्थशास्त्री अभीक बरुआ ने कहा कि कॉमन आधार वर्ष से आंकड़ों का विश्लेषण आसान हो जाएगा।


साभारः बिजनेस स्टैंडर्ड

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