Tuesday, August 12, 2008

... मुमकिन है सपनों की मंजिल पाना

सत्येन्द्र प्रताप सिंह

अगर आपके मन में कुछ कर गुजरने की इच्छा हो तो धन की कमी कोई मायने नहीं रखती।
यकीन नहीं होगा, लेकिन देश भर में ऐसे तमाम विद्यार्थी, जिन्हें विदेशों में पढ़ने के लिए पैसे नहीं थे, उसके बावजूद उन्होंने न केवल यूरोप और अमेरिका में पढ़ाई की बल्कि अपने उद्देश्यों को लेकर सफलता की राह पर चल रहे हैं। फोर्ड फाउंडेशन के फेलोशिप प्रोग्राम के तहत वर्ष 2000 से हर साल 40 ऐसे छात्र-छात्राओं को उच्च शिक्षा के लिए मदद दी जा रही है, जो उच्च शिक्षा के अवसरों से वंचित रह गए हैं।
उत्तर प्रदेश के भदोही जैसे पिछड़े जिले की रहने वाली दीप्ति का कहना है कि '25 साल की उम्र में शादी हो गई, उस समय उन्होंने स्नातक की शिक्षा पूरी की थी।उसके बाद कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था, लेकिन फोर्ड फाउंडेशन के इंटरनेशनल फेलोशिप प्रोग्राम ने उनकी जिंदगी को नई दिशा दे दी।' उन्होंने ब्रिटेन में रहकर शिक्षा हासिल की और अब वाराणसी के ही एक एनजीओ में काम कर रही हैं, जो वहां के बुनकरों की हालत को सुधारने के लिए काम कर रही है।
फोर्ड फाउंडेशन का इंटरनेशनल फेलोशिप प्रोग्राम सन 2000 में स्थापित किया गया था। फाउंडेशन का उद्देश्य था कि उन छात्रों को उच्च शिक्षा के लिए मदद की जाए, जो ऐतिहासिक कारणों से धनाभाव के चलते उच्च शिक्षा नहीं पा सके हैं। कार्यक्रम का उद्देश्य है कि ऐसे लोग सामाजिक विकास तथा नेतृत्व के क्षेत्र में अपने देश का प्रतिनिधित्व कर सकें तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर व्यापक, आर्थिक तथा सामाजिक न्याय के क्षेत्र में काम कर सकें। इस कार्यक्रम के तहत बिहार, छत्तीसगढ़, गुजरात, झारखंड, मध्य प्रदेश, उड़ीसा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड राज्य से छात्रों का चयन किया जाता है। इस फेलोशिप कार्यक्रम के निदेशक विवेक मनसुखानी का कहना है कि चयन की प्रक्रिया में इस बात का खास खयाल रखा जाता है कि ऐसे लोग चुने जाएं, जिन्होंने उस क्षेत्र में कम से कम 3 साल तक काम किया हो, जिसमें वे उच्च शिक्षा प्राप्त करना चाहते हैं। साथ ही यह कोशिश की जाती है कि चयनित अभ्यर्थी ऐसा हो, जो केवल कैरियर बनाने के लिए विदेश में पढ़ाई न करना चाहता हो और वापस आकर अपने देश में वंचितों, पिछड़ों को सामाजिक न्याय दिलाने के लिए काम कर सके। आठ साल से चल रहे इस कार्यक्रम के तहत करीब 240 छात्र विदेशों में पढ़ाई करने जा चुके हैं। इनमें से 150 शिक्षा पूरी करके आ चुके हैं, जो विभिन्न क्षेत्रों में काम कर रहे हैं। इसके अलावा 50 छात्रों को पोस्ट ग्रेजुएशन के बाद पीएचडी में दाखिला मिल गया और आगे की पढ़ाई पूरी कर रहे हैं। अमेरिका, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया जैसे देशों में शिक्षा प्राप्त कर लौटे छात्र-छात्राओं ने एलुमिनी एसोसिएशन भी बना लिया है और वे हमेशा एक दूसरे के संपर्क में रहते हैं। यह लोग विभिन्न एनजीओ, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में काम कर रहे हैं।
राजस्थान के धौलपुर जिले के शाला गांव के रहने वाले नेकराम के लिए तो शिकागो जाकर पढ़ाई करना सपने जैसा था। फेलोशिप पाने के बाद उन्होंने अपनी एमएससी की पढ़ाई शिकागो की यूनिवर्सिटी आफ इलिनाइस से पूरी की। अब वे पिछले 2 साल से दिल्ली में शारीरिक रूप से अक्षम लोगों के लिए विभिन्न उपकरण तैयार करने वाले संस्थान में काम करते हैं। उनका कहना है कि अब उन्हें 40,000 रुपये प्रतिमाह वेतन मिल जाता है, साथ ही ऐसे तबके के लिए काम करने पर बेहद खुशी होती है, जो अक्षम हैं। हालांकि फोर्ड फाउंडेशन की यह योजना 2010 में खत्म होने वाली है। यानी अब केवल दो बैच को ही मदद मिल पाएगी। फाउंडेशन की मदद से शिक्षा प्राप्त सभी युवक-युवतियां एक स्वर में कहते हैं कि इस योजना को विस्तार दिए जाने की जरूरत है, जिससे वंचितों को वैश्विक दुनिया के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी हासिल करने के अवसर मिल सके।
courtesy: bshindi.com

Wednesday, August 6, 2008

विकास की बयार से ही बदलेगी मेवात की तस्वीर

सत्येन्द्र प्रताप सिंह

देश के विकसित राज्यों में शुमार हरियाणा का मेवात जिला आज भी विकास से कोसों दूर है। राज्य में प्रति व्यक्ति आय देश में सबसे ज्यादा, 32712 रुपये है।
2006-07 के आंकड़ों के मुताबिक, राज्य में 9636 पंजीकृत फैक्टरियां हैं, लेकिन मेवात के करीब 95।36 प्रतिशत लोग गांवों में रहते हैं और उनके रोजगार का मुख्य साधन खेती है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से 145 किलोमीटर दूर अरावली पर्वत शृंखला के किनारे बसा यह ऐसा इलाका है, जहां आज भी बेरोजगारों की फौज सड़कों के किनारे ताश के पत्ते खेलते हुए मिलती है। हालांकि सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों की कोशिशों के बाद अब हालात बदल रहे हैं.
हरियाणा के विकसित इलाकों में से एक, गुड़गांव से महज 25 किलोमीटर आगे बढ़ने पर गरीबी का वीभत्स चेहरा दिखाई देता है। यहां फैक्टरियों, मॉल्स और विकास के अन्य सोपानों की सीमा समाप्त हो जाती है।
मेवात जिले का गठन 4 अप्रैल, 2005 को किया गया, जिसका मुख्यालय नूंह में है। पूरा जिला 6 ब्लॉक में विभाजित है। जिले की कुल आबादी करीब 12 लाख है, जिनमें 70 फीसदी जनसंख्या मेव (मुस्लिम) की है। इसके अलावा, यहां 78,802 लोग अनुसूचित जाति के हैं। पहाड़ी इलाका होने की वजह से यहां पानी की भी किल्लत है और मीठे पानी की खोज में गांव की महिलाओं को चंद कुओं पर निर्भर रहना पड़ता है। पिछड़ेपन की शृंखला यहीं खत्म नहीं होती। राज्य में शिक्षित लोगों का प्रतिशत जहां 67.91 है, वहीं मेवात जिले में शिक्षा का प्रतिशत 44 है। इसमें भी 61.54 प्रतिशत पुरुष और केवल 24.26 प्रतिशत शिक्षित महिलाएं हैं।
मेवात के एक आला प्रशासनिक अधिकारी का कहना है, 'यहां पर रूढ़िवादिता इतनी ज्यादा है कि सरकार की कोशिशें बेकार साबित हो रही हैं। अगर रोजगारपरक शिक्षा मुफ्त में देने के लिए छात्र-छात्राओं को दूसरे राज्य में सरकारी खर्चे पर भी भेजना होता है, तो ढूंढना मुश्किल हो जाता है। किसी भी नई योजना के लागू होने पर लोग उसमें शामिल होने को तैयार ही नहीं होते।' मेवात के विकास के लिए सरकार ने अलग से मेवात डेवलपमेंट एजेंसी का गठन किया है। यह न केवल विकास कार्यों की निगरानी करती है, बल्कि विभिन्न क्षेत्रों में जरूरत के मुताबिक आर्थिक मदद भी देती है। विभिन्न गावों को सड़कों से जोड़ा जा चुका है।
हरियाणा ऐसा राज्य है, जहां नवंबर 1970 में ही सभी गावों का विद्युतीकरण कर दिया गया था। मेवात भी इससे अछूता नहीं है। अब इलाकाई विकास (क्लस्टर डेवलपमेंट) के माध्यम से विकास को गति देने की कोशिश की जा रही है। इस आधार पर कुछ इलाकों को दुग्ध उत्पादक क्षेत्र, सब्जी उत्पादक क्षेत्र, कृषि के साथ अन्य रोजगारपरक गतिविधियों से जोड़ने और सिलाई-कढ़ाई, अपैरल ट्रेनिंग और शिक्षा के लिए ब्लॉकवार व्यवस्था की जा रही है। इसके साथ ही स्थानीय लोगों को रोजगार से जोड़ने के लिए एलऐंडटी, डॉन बोस्को जैसी तमाम संस्थाओं की मदद ली जा रही है।
मेवात डेवलपमेंट एजेंसी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अतर सिंह अहलावत कहते हैं, 'इस इलाके में अशिक्षा सबसे बडी समस्या है। कोशिशों के बाद यहां के विद्यालयों में शत-प्रतिशत शिक्षकों की उपस्थिति सुनिश्चित कर ली गई है। इसके साथ स्वास्थ्य क्षेत्र और पेयजल की स्थिति में सुधार लाने का प्रयास किया जा रहा है।' सरकारी आंकडों के मुताबिक, मेवात का कुल क्षेत्रफल 19,1154 हेक्टेयर है। इसमें 14,6805 हेक्टेयर कृषि और 44349 हेक्टेयर गैर कृषि भूमि है। कृषि भूमि में 1,0100 हेक्टेयर भूमि ही सिंचित है। इसके अलावा, शैक्षिक पिछड़ापन कोढ़ में खाज का काम करता है।
इलाके में पिछले 8 साल से एक स्वयंसेवी संस्था स्मार्ट का संचालन करने वाली अर्चना कपूर कहती हैं, 'लोगों में सकारात्मक सोच विकसित हो रही है और विभिन्न योजनाओं को लेकर जागरूकता आ रही है, लेकिन अभी भी सरकारी और गैर सरकारी संगठनों को पेयजल, रोजगारपरक शिक्षा और आधारभूत ढांचे के क्षेत्र में काम करने की जरूरत है।'

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