Tuesday, September 30, 2008

कोसी की धारा में बह गए कारोबारियों के अरमान

सत्येन्द्र प्रताप सिंह / पूर्णिया September 06, 2008
नेपाल के कुसहा में तटबंध टूटने से दर्जन भर से अधिक बाजार जलमग्न हो गए हैं।
स्थानीय लोगों में स्वर्गनगरी के नाम से विख्यात सुपौल जिले का बीरपुर बाजार ध्वस्त हो गया है, जो नई बनी धारा के बीच में है। इस बाजार में भारत, नेपाल, चीन की बहुत सारी सामग्री उपलब्ध रहती है, महंगी शराब से लेकर सूई तक। यह बिहार और नेपाल के कुछ इलाकों के लिए पर्यटन स्थल के रूप में विख्यात था, जहां लोग छुट्टियां मनाने जाते थे।
बीरपुर बाजार के पहले भीमनगर का अस्तित्व खत्म हुआ। नदी की तेज धार ने आगे बढ़ते हुए बलुआ बाजार, छातापुर, फारबिसगंज, रानीगंज, नरपतगंज को डुबोते हुए मधेपुरा के रामनगर, कुमारखंड और मुरलीगंज के बाद पूर्णिया को प्रभावित किया है। इसके अलावा, जीतपुर, आलमनगर, पुरैनी, चौसा सहित तमाम बाजार प्रभावित हुए हैं। बीरपुर बाजार भारत-नेपाल के प्रमुख बाजार के रूप में जाना जाता है। यहां अनुमान के मुताबिक, प्रतिदिन 50 लाख रुपये का कारोबार होता था। यहां पर हीरो होंडा का शोरूम, थोक व फुटकर दुकानें, अदालत, सरकारी कार्यालय सभी डूब गए हैं। कुछ इमारतें बंद हो गई हैं, बाकी बची इमारतें भी टूट रही हैं।
इसके अलावा, मुरलीगंज और बिहारीगंज इस इलाके का सबसे बडा थोक बाजार था, जहां प्रतिदिन 2 करोड़ रुपये से ज्यादा का कारोबार होता था। सुपौल के थोक व्यवसायी तपेश्वर मिश्र ने बताया, मुरलीगंज और बिहारीगंज, सहरसा जिले से भी बड़े थोक बाजार थे, जहां सामान कोलकाता से लाया जाता था और मधेपुरा, पूर्णिया के तमाम इलाके और सुपौल में सामान की आपूर्ति की जाती थी। इन इलाकों की नदियों पर अध्ययन कर चुके रणजीव ने कहा, नदी ने रुख बदल लिया है और ये सभी बाजार भरी हुई नदी धमदाहा कोसी मार्ग पर है, जिस मार्ग को तटबंध टूटने के बाद नदी ने पकड़ा है। इन सभी बाजारों में पानी की धार तेज है और सारा कारोबार चौपट हो गया है।
सुपौल व्यापार संघ के सचिव गोविन्द प्रसाद अग्रवाल का कहना है कि जो बाजार बचे हैं, वे टापू बन गए हैं। पूरा का पूरा कारोबार चौपट हो गया है। इस समय सभी व्यापारी इस कोशिश में लगे हैं कि जो पानी से निकलकर बाहर आ रहे हैं, उन्हें बचाया जाए।

पल भर में बने करोडपति से मोहताज
मधेपुरा जिले में मुरलीगंज बाजार के जोरगामा में अरविन्द चौधरी तेल मसाला व जिंस का कारोबार करते थे। उनका एक करोड़ से अधिक को थोक व्यापार था। 21 अगस्त को उनके घर में पानी घुसा, तो वे छत पर आ गए। 7 दिनों तक छत पर रहने के बाद सेना की नाव उन तक पहुंची और किसी तरह परिवार के साथ जान बचाकर भागे।जब वे अपने बहनोई के घर सहरसा पहुंचे तो उनके तन पर केवल लुंगी और बनियान थी। कुछ भी पूछने पर शून्य में खो जाते हैं और बार-बार सेना और भगवान को धन्यवाद देते हैं कि जान बच गई। कारोबार के बारे में पूछने पर कहते हैं कि जान बच गई है, तो जीने का कोई सहारा तो ढूंढ़ ही लेंगे।

Monday, September 29, 2008

बेलगाम कोसी से जूझ रहे लोग

सत्येन्द्र प्रताप सिंह / कुसहा/नेपाल September 04, 2008
कुसहा में तटबंध टूटने के साथ कोसी नदी ने रास्ता बदल लिया है। टूटे तटबंध से प्रतिदिन एक से दो लाख क्यूसेक तक पानी निकल रहा है।
वहीं भीमनगर बैराज से, जो पहले नदी का मुख्य रास्ता था, महज 15 से 20 प्रतिशत पानी बह रहा है। तटबंध पर अधिशासी अभियंता के। एन. सिंह के नेतृत्व में इंजीनियरों का एक दल टूटे तटबंध को और ज्यादा चौड़ा होने से रोकने में लगा है।साथ ही मजदूर बालू की बोरियों से कटाव रोकने की कोशिश कर रहे हैं। तटबंध पर बोल्डर लाया जा रहा है, जो ट्रकों से भरकर नेहरू पार्क से आ रहा है। इसके साथ ही एचसीएल (हिंदुस्तान कंस्ट्रक्शन लिमिटेड) का एक प्रबंधक इस कार्य को देख रहा है। धारा प्रवाह पानी बह रहा है और वह बाढ़ से डूबे इलाके में जा रहा है।

राज्य सरकार ने कोसी नदी से जुड़े रहे वरिष्ठ इंजीनियर नीलेंदु सान्याल की अध्यक्षता में उच्च सदस्यीय समिति का गठन किया है, जिसके सदस्य के.एन. लाल और वृजनंदन प्रसाद हैं। समिति का पहला उद्देश्य कटे हुए तटबंध को अधिक चौड़ा होने से रोकना और पानी की धारा को मूल दिशा की और ले जाना है। बाढ़ की हालत अगर बात करें बाढ़ पीड़ित इलाकों में पानी घटने की, तो जब टूटे तटबंध से कम पानी आता है या कोई सड़क तोड़कर पानी दूसरे इलाकों को डुबाता है, तो डूबे हुए इलाके में पानी घटता है। नई बनी नदी के पेट में तो अभी तूफानी गति से पानी बह रहा है। हालांकि यह पानी कुरसेला नामक स्थान से गंगा नदी में मिलने लगा है, जहां पहले भी कोसी का पानी गंगा से मिलता था।
'जब नदी बंधी' पुस्तक के लेखक और 'बाढ़ सुखाड़ मुक्ति अभियान' के सदस्य रणजीव का कहते हैं कि जब तक राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 31 को काटकर और उस पर पुल बनाकर रास्ता नहीं दिया जाएगा, सुपौल, मधेपुरा, सहरसा,पूर्णिया के तमाम जिले लंबे समय तक डूबे रहेंगे। आने वाले हथिया और कान्हा नक्षत्र में (सितंबर-अक्टूबर में) जमकर बारिश होगी। उस समय यह पानी 2 लाख क्यूसेक के आंकड़े को भी पार करता है।

अभिशाप की वजह

फरक्का बैराज पर जमी गाद की वजह से भारी तबाही होती है, क्योंकि कोसी का पानी गंगा से जल्दी नहीं मिल पाता है। इस बार का संकट तो और गहरा है, क्योंकि नदी की नई धार को अपने मुताबिक निकलने का रास्ता बनाना है।

भ्रष्ट लोगों की चारागाह

महिषी विधानसभा क्षेत्र के स्थानीय नेता कपिलेश्वर सिंह कहते हैं कि कोसी का बांध भ्रष्ट नेताओं और अधिकारियों का अड्डा है, जहां करोडों का वारा-न्यारा होता है। यही कारण है कि नदी में बालू जमा हो रही है और तटबंध कमजोर हो चुके हैं।उन्होंने मांग की कि नई धारा पर भी बैराज बनाया जाना चाहिए और साथ ही भीमनगर के पुराने बैराज की मरम्मत और नदी की गाद की तत्काल सफाई की जानी चाहिए। इसी में इस इलाके के लोगों का हित है।

Sunday, September 28, 2008

जहां गम भी न हों, आंसू...

सत्येंद्र प्रताप सिंह / सहरसा September 03, २००८


सहरसा से अमृतसर जाने वाली रेलगाड़ी जैसे ही प्लेटफॉर्म पर पहुंचती है, स्टेशन पर भयंकर चीख-पुकार मच जाती है। ठसा-ठस भरे प्लेटफॉर्म पर लोग परिजनों को चीख-चीख कर बुला रहे हैं, ताकि जल्द से जल्द गाड़ी में बैठकर इस इलाके से निकल सकें।

प्रधानमंत्री ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना सहित राज्य की विभिन्न योजनाओं के तहत काम मिलने लगा, तो मजदूर दूसरे राज्यों से घर वापस लौटने लगे थे, लेकिन बाढ़ ने जब सबको बेघर कर दिया, तो लाखों की संख्या में नए दिहाड़ी मजदूर भी पैदा हो गए, जो किसी तरह बाढ़ वाले इलाकों से निकल भाग जाना चाहते हैं। सहरसा से पटना-दिल्ली जाने वाली हर ट्रेन का यही हाल है।

मुरादपुर ब्लॉक के बिहारीगंज में रहने वाले 70 वर्षीय धनश्याम झा पूरे कुनबे के साथ अपने रिश्तेदार के घर पटना जा रहे हैं। गांव में आई बाढ़ से जूझते हुए, जब जान पर बन आई, तो एक निजी नाविक को 3,000 रुपये देकर किसी तरह बाहर निकले। अब उन्हें समझ में नहीं आ रहा है कि जाएं, तो कहां जाएं!वहीं मजदूर वर्ग के लोग सीधा महानगरों का रुख कर रहे हैं। सुपौल जिले के सियानी गांव के रवि यादव पंजाब जा रहे हैं, उनका परिचित वहां नौकरी करता है। वह इस आस में जा रहे हैं कि उन्हें पंजाब में कोई काम मिल जाएगा, जिससे दो वक्त की रोटी का जुगाड़ हो जाएगा। उसके बाद वह पूरे परिवार को वहां लाने की सोचेंगे। फिलहाल, मां, बाप, बहन को बांध पर छोड़ आए हैं।

बहुत से ऐसे मजदूर भी हैं, जो बाहर जाकर काम करते हैं और अब पूरे परिवार को लेकर पलायन कर रहे हैं। सहरसा के जमरा गांव के दिनेश सिंह दिल्ली के बदरपुर इलाके में रहकर वाहन चालक का काम करते हैं। अब वे पूरे कुनबे को लेकर दिल्ली जा रहे हैं। उन्होंने कहा, 'जान बच गई तो कुछ न कुछ काम तो मिल ही जाएगा।' सच तो यह है कि बिहार का कोसी इलाका कृषि के लिए उपयुक्त माना जाता है, बावजूद इसके उचित जल-प्रबंधन के अभाव में हर साल नए मजदूर पैदा हो रहे हैं। महानगरों में पुल-इमारत आदि बनाने के लिए अनुमानत: इस साल करीब 5 लाख मजदूर तैयार हो चुके हैं। जिनके दम पर रियल एस्टेट, आधारभूत क्षेत्र और छोटे-बड़े उद्योग चलते हैं, फिर भी मजदूरों की हालत दयनीय है।

बाढ़ ने तो इस इलाके के लोगों की उम्मीदों पर पूरी तरह से पानी फेर दिया है, वे पूरी तरह से लाचार नजर आ रहे हैं। गुजरात समेत अन्य राज्यों के प्राकृतिक आपदा की तरह यहां न तो कोई बचाव कार्य होता है और न ही पुनर्वास का काम। पेशे से शिक्षक डॉ. मनोरंजन झा कहते हैं कि क्या जरूरत पड़ी है यहां उद्योग जगत के लोगों को आकर किसी गांव को गोद लें-फिर से बसाएं। उन्हें तो विस्थापन बाद मुफ्त के मजदूर मिलेंगे।

पशु नहीं, रोजी डूबी

सत्येन्द्र प्रताप सिंह / मधेपुरा September 02, 2008

'गाय-भैंस और बकरी पालि के अप्पन बेटा के पढ़ै ले भेजलिये रहे, जे डीएम-कमिश्नर नै बनतै त किरानियो बैनिये जैते। मुदा इ बाढ़ि त सब किछु खतमे क देलकै। आब की हैते।'

मधेपुरा से बाढ़ की वजह से घर छोड़कर भाग रहे अभय कुमार ने अपना दुख बताते हुए कहा कि सब कुछ डूब गया, जो पिछले 50 सालों में कमाया था। अब वे अपने परिवार के साथ पटना जा रहे हैं, जहां उनका बेटा पढ़ाई करता है।कोसी प्रमंडल के बाढ़ से डूबे इलाके में रोजगार का मुख्य साधन कृषि और पशुपालन है।

सहरसा से सड़क के रास्ते मधेपुरा जाने पर सैकड़ों महिलाएं, बच्चे, बुजुर्ग और युवक झुंड बनाकर भाग रहे हैं। सवेला चौक से पानी शुरू होता है, जबकि अररहा-महुआ, चकला गांव पानी से घिरे हैं। मुख्य मार्ग को छोड़कर हर तरफ पानी ही पानी है।शुक्र है कि इन गांवों में पानी नहीं घुसा है। इसके थोडा आगे जाने पर तुनियाही गांव है, जहां रेल मंत्री लालू प्रसाद ने विद्युत रेल इंजन कारखाना खोलने का प्रस्ताव दिया था। आसपास के इलाकों की जमीन अधिग्रहण के लिए विज्ञापन भी आया था। अब यह सब जलमग्न है। आगे बढ़ने पर मठाही बाजार है, जहां सड़क के दोनों हिस्से में पानी है। बीच में जलमग्न छोटे-छोटे टोले हैं। इसके बाद साहूगढ़ गांव आता है, जो लालू प्रसाद की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल के समर्थकों का गांव माना जाता है। साहूगढ़ से आगे पुल बना है, जिसके बाद का इलाका जलमग्न है और सड़क मार्ग पूरी तरह से बंद है।
लालू प्रसाद और शरद यादव का राजनीतिक अखाडा मधेपुरा शहर पहुंचने का अब नाव ही एकमात्र जरिया है।मधेपुरा के वार्ड संख्या 11 के अब्दुल करीम अपनी बकरी और पत्नी को लेकर बाहर निकले हैं, बच्चों को पहले ही रिश्तेदार के यहां भेज दिया गया है। यह पूछे जाने पर कि बकरी क्यों लाए हैं, वे कहते हैं कि यही तो है, जो जिंदगी चलाती है। बाकी बत्तख और मुर्गी-मुर्गा तो घर में ही छोड़कर आए हैं।किसानों की फसल तो खत्म हो ही गई, घर में रखा अनाज, कपड़े और सामान भी डूब गए। पानी की मुख्यधारा में पड़ने वाले गांवों के सभी जानवर पानी में बह गए। लोगों ने खूंटा खोल दिया और अपनी जिंदगी के आधार को पानी में बहते हुए देखते रह गए।

नए इलाकों में पानी :

रोज बढ़ रहे जलस्तर से सहरसा के कई गांवों में पानी फैल गया है। बायसी अनुमंडल के नए इलाके पानी की चपेट में आ गए हैं। इसके साथ ही अररिया के फारबिसगंज कस्बे में भी पानी घुस गया है। त्रिवेणीगंज के समीप 20 फीट सड़क टूट गई है, जिससे राहत और बचाव कार्य में खासी दिक्कत आ रही है। अररिया के किनारे बहने वाली परमान नदी में जलस्तर बढ़ने से शहर में पानी घुसने की संभावना है। पूर्णिया-बनमनखी रेल खंड पर सरसी के समीप पटरी के नीचे से पानी बहने लगा है।

प्रभावित पशुओं के आंकड़े :

राज्य सरकार द्वारा जारी आंकड़े के मुताबिक, मधेपुरा में 3 लाख, अररिया में 10,250, सुपौल में 1355, सहरसा में 529 पशु प्रभावित हुए हैं। कुल प्रभावित पशुओं की संख्या 3,14,134 बताई गई है। भागकर आ रहे लोगों के साथ जो पशु आए हैं, उनके लिए सहरसा के पटेल मैदान में प्रबंध किया गया है, जहां करीब 300 पशु हैं।

दक्षिणपंथ छोड़ वामपंथी बनी कोसी

सत्येन्द्र प्रताप सिंह / सुपौल September 02, 2008

सन '1731 में फारबिसगंज और पूर्णिया के पास बहने वाली कोसी धीरे-धीरे पश्चिम की ओर खिसकते हुए 1892 में मुरलीगंज के पास, 1922 में मधेपुरा के पास, 1936 में सहरसा के पास और 1952 में मधुबनी और दरभंगा जिला की सीमा पर पहुंच गई। इस तरह लगभग सवा दो सौ साल में कोसी 110 किलोमीटर पश्चिम की ओर खिसक गई।

पिछले कुछ वर्षो से तटबंधों में कैद कोसी अब पुन: पूरब की ओर लौटने को व्यग्र दिखती है। 1984 में पूर्वी कोसी तटबंध का टूटना उसकी इस व्यग्रता का ही परिणाम था।' रणजीव और हेमंत द्वारा लिखित पुस्तक 'जब नदी बंधी' के इस अंश से संकेत मिलता है कि हिमालय से निकलकर भारत आने वाली कोसी नदी, जो उत्तर दिशा से आकर दक्षिण दिशा में गंगा से मिलती है, अब दक्षिणपंथी से वामपंथी होने को व्यग्र है। अब इसे राज्य सरकार की लापरवाही कहें, केन्द्र की लापरवाही कहें या नेपाल सरकार के मत्थे इसका दोष मढ़ दें, नेपाल में वामपंथियों की सरकार आते ही नेपाल से निकलने वाली कोसी वामपंथी हो गई है। दरअसल कोसी अपनी धारा परिवर्तन की प्रवृत्ति के कारण ही 'बिहार का शोक' कही जाती है।हालांकि यह अवगुण उत्तर बिहार की हर नदियों में है किन्तु कोसी इसलिए बदनाम है कि वह अन्य नदियों की तुलना में विस्तृत भूभाग में तेजी से धारा परिवर्तन करती है। 1892 में मुरलीगंज के पास से बहने वाली कोसी 2008 में बांध टूटने के बाद फिर मुरलीगंज से होकर बहने लगी है। इस कारण मधेपुरा जिले के मुरलीगंज क्षेत्र में सबसे ज्यादा तबाही है। सहरसा जिले में स्थापित किसी भी बांध में आज आपको मुरलीगंज इलाके के सबसे ज्यादा बाढ़ पीड़ित मिलेंगे।

कुछ कही, कुछ सुनी

चर्चा का बाजार गर्म है कि जब भी बिहार सरकार में कोशी क्षेत्र का विधायक जल संसाधन मंत्री बनता है तो इलाके में भारी तबाही आती है। 1984 में हेमपुर गांव के पास पूर्वी तटबंध टूटा था।यह गांव सहरसा जिले के नवहट्टा ब्लाक में आता है। उस समय कांग्रेस पाटी की सरकार थी और सिंचाई मंत्री थे सहरसा के महिसी विधानसभा क्षेत्र के विधायक लहटन चौधरी। 24 साल बाद 2008 में बांध टूटा है। इस समय जल संसाधन मंत्री विजेंद्र प्रसाद यादव हैं। ये भी कोसी क्षेत्र के सुपौल विधानसभा क्षेत्र के विधायक हैं।

Friday, September 26, 2008

पीने को बाढ़ का पानी...खाने को कच्चा चावल

(ये रिपोर्टें कोशी नदी का तटबंध टूटने के बाद बिहार में आई बाढ़ की हैं, जिन्हें हिंदी के अग्रणी आर्थिक अखबार बिज़नेस स्टैंडर्ड ने प्रमुखता से लगातार ६ दिनों तक पहले पन्ने पर प्रकाशित किया।पेश है पहला भाग...)
सत्येन्द्र प्रताप सिंह / सहरसा September 01, 2008
कोसी का कहर झेल रहे लोग जिंदगी भर की कमाई गंवाकर बाढ़ग्रस्त इलाकों से सिर्फ आंसू लेकर निकल रहे हैं।
सहरसा के सरकारी और गैर-सरकारी कैंपों में 50 हजार से अधिक बाढ़ पीड़ित पहुंच चुके हैं, जबकि बाढ़ प्रभावित इलाकों से लोगों के यहां आने का सिलसिला बदस्तूर जारी है। सहरसा के अलावा, शोरगंज कैंप में 10 हजार, सुपौल के कैंपों और बांधों पर 1 लाख से ज्यादा लोग जान बचाने के लिए जमा हैं।
इस बाढ़ ने कई लोगों के परिवार को बिखेर दिया है। मुरलीगंज, मधेपुरा के विपिन कुमार लाइटिंग का काम करते हैं। उन्होंने बताया कि वे किसी तरह कैंप तक पहुंच पाए हैं, लेकिन परिवाार के बाकी सदस्यों का कोई अता-पता नहीं है। बाढ़ प्रभावित इलाकों से बचकर निकल आने वाले कई लोगों ने 4-5 दिनों से कुछ भी खाया-पीया नहीं है। छोटे-छोटे बच्चों के लिए दूध तो जैसे सपना बन गया है। शंकरपुर के जंझड़ से आए रामकिशुन अपने पूरे परिवार के साथ यहां के एक कैंप में पड़े हैं। उन्होंने जो बताया उससे बाढ़ की विभीषिका का अंदाजा लगाया जा सकता है। रामकिशुन बताते हैं कि वे छत्त पर बैठे बाढ़ का पानी पीते रहे और कच्चा चावल खाकर 5 दिन तक गुजारा किया। बच्चे को पिलाने के लिए बोतल में दूध की जगह सत्तू डाला जा रहा है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, इस त्रासदी में मधेपुरा के 378 गांवों के 2 लाख 4 हजार परिवार, अररिया के 12 गांवों के 15 हजार, सुपौल के 243 गांवों के 1 लाख 79 हजार और सहरसा के 62 गांवों के 29 हजार परिवार प्रभावित हुए हैं। इन चार जिलों में करीब 700 गांवों के 4 लाख 27 हजार से ज्यादा परिवार बाढ़ की चपेट में हैं।

रक्षक भी बन रहे पीड़ित

मधेपुरा के पास रहने वाले श्रीनाथ यादव के यहां पिछले 10 दिन से 17 गांवों के तकरीबन 90 रिश्तेदार शरण लिए हुए हैं। किसी तरह इन मेहमानों को वे रख रहे थे और भोजन करा रहे थे, लेकिन शनिवार को अचानक जलस्तर बढ़ जाने से उनके घर में 2 फीट पानी जमा हो गया है। सवाल है कि इतने लोगों को कहां और कैसे ले जाया जाए।यही हाल मधेपुरा के ही कृतनारायण का है। वे अपने यहां रिश्तेदारों को शरण दिए हुए थे, पर रविवार को उनके घर में भी 5 फीट पानी जमा हो गया। अब वे सहरसा पहुंच चुके हैं। उन्होंने बताया कि वे पत्नी और दो रिश्तेदारों के साथ पटना में पढ़ाई कर रहे अपने बेटे के यहां जा रहे हैं।

कोई लालू से यह तो पूछे

रविवार को दिन के करीब 1 बजे रेलमंत्री लालू प्रसाद विशेष रेलगाड़ी से सहरसा पहुंचे। मंच पर चढ़ते ही लालू ने माइक संभाल लिया। लोगों से उन्होंने वही पुरानी बात दोहरायी कि 1 लाख बोतल पानी भेज दिया है। हर स्टेशन पर चना, चूड़ा और भूंजा बांटा जा रहा है। जैसे ही उन्होंने कहा कि कोसी की धार को पुराने रास्ते पर लाया जाएगा कि पूरा स्टेशन परिसर तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। अपनी अनोखी भाषा के लिए मशहूर लालू ने कहा कि लोगों को बचाने के लिए दो 'गजराज' (हेलीकॉप्टर) चल चुके हैं। अब उनसे कौन पूछे कि 1 लाख बोतल पानी और दो गजराज से बाढ़ में फंसे 15 लाख लोगों को कैसे बचाया जा सकेगा!

कुछ लुभावने दृश्य

मां-बेटे का प्यार- असली है भाई

वाह भाई वाह, क्या स्टाइल है पानी पीने का।

Sunday, September 21, 2008

कुछ ऐसे दृष्य, जिन्हें आप पसंद नहीं करेंगे





गुजरात के वड़ोदरा में हिंदू-मुस्लिम के बीच सांप्रदायिक लड़ाई में शहीद हो गया मंदिर। यह १५ सितंबर २००८ का दृष्य है।

Tuesday, September 9, 2008

अहमद फ़राज़ की ग़ज़ल -3

इक संगतराश1 जिसने बरसों
हीरों की तरह सनम2 तराशे
आज अपने सनमकदे3 में तन्हा
मजबूर, निठाल, ज़ख़्मखुर्दा4
दिन रात पड़ा कराहता है।

1. पत्थर तराशने वाला,
2. मूर्ति
3. मूर्ति घर, मंदिर,
4. घाव से परेशान

कज1 अदाओं की इनायत2 है कि हमसे इश्शाक़3
कभी दीदार के पीछे कभी दीदार के बीच
तुम होना खुश तो यहाँ कौन है खुश भी फराज़
लोग रहते हैं इसी शहरे-दिल-आजार4 के बीच

मुहब्बतों का भी मौसम है जब गुज़र जाए
सब अपने-अपने घरों को तलाश करते हैं।

सुना है कि कल जिन्हें दस्तारे-इफ़्तिख़ार5 मिली
वह आज अपने सरों को तलाश करते हैं।
रात क्या सोए कि बाकी उम्र की नींद गई
ख़्वाब क्या देखा कि धड़का लग गया ताबीर6 का

अब तो हमें भी तर्के-मिरासिम7 का दुख नहीं
पर दिल यह चाहता है कि आगाज़8 तू करे

अब तो हम घर से निकलते हैं तो रख देते हैं
ताक पर इज़्ज़ते-सादात9 भी दस्तार10 के साथ

हमको इस शहर में तामीर11 का सौदा है जहाँ
लोग मेमार12 को चुन देते हैं दीवार के साथ

1. कुटिल, वक्र, 2. कृपा, 3. प्रेमी, 4. जख्मी दिल शहर 5. पगड़ी का सम्मान, 6. साकार, 7. संबंध-विच्छेद, 8. प्रारंभ, 9. सैयदों की इज़्ज़त, 10. पगड़ी, 11. निर्माण। 12. निर्माता

इतने सुकून के दिन कभी देखे न थे ‘फ़राज़’
आसूदगी1 ने मुझको परेशान कर दिया

रुके तो गर्दिशें उसका तवाफ़2 करती हैं
चले तो उसको ज़माने ठहर के देखते हैं।

राहे-वफ़ा3 में हरीफ़े-ख़राम4 कोई तो हो
सो अपने आप से आगे निकलके देखते हैं।

1. संपन्नता, 2. परिक्रमा, 3. प्रेम का पथ, 4. प्रतिद्वंदी साथी

मुझे तेरे दर्द के अलावा
भी और दुख थे यह मानता हूँ
हज़ार गम थे जो ज़िंदगी की
तलाश में थे यह जानता हूँ
मुझे ख़बर थी कि तेरे आँचल
में दर्द की रेत छानता हूँ

मगर हर एक बार तुझको छूकर
यह रेत रंगे-हिना1 बनी है
यह जख़्म गुलज़ार बन गए हैं
यह आहे-सोज़ाँ घटा बनी है
यह दर्द मौजे-सबा2 बनी है
आग दिल की सदी बनी है
और अब यह सारी मताए-हस्ती3
यह फूल यह जख़्म सब तेरे हैं
यह दुख के नोहे4 यह सुख के नग़में
जो कल मेरे थे वो अब तेरे हैं
जो तेरी कुरबत5 तेरी जुदाई
में कट गए रोज़ो-शब6 तेरे हैं

(ये मेरी ग़ज़लें, ये मेरी नज़्में)

यह कौन मासूम हैं
कि जिनको
स्याह7 आँधी
दीये समझकर बुझा रही है
उन्हें कोई जानना नहीं है
उन्हें कोई जानना न चाहे
यह किस क़ाबिल के सरबकफ़-जॉनिसार8 हैं
जिनको कोई पहचानना न चाहे
कि उनकी पहचान इम्तहान है
न कोई बच्चा, न कोई बाबा, न कोई माँ है
महल सराओं में खुश-मुकद्दर9
श्य्यूख़10 चुप
बादशाह चुप हैं
हरम के पासबान11
आलम पनाह चुप है।
तमाम अहले-रिया12 कि जिनके लबों पे है
‘लाइलिहा’ चुप हैं
(-बेरुत-1)

1. मेहंदी का रंग, 2. सुबह की हवा, 3. वजूद की पूँजी, 4. शोकगीत, 5. प्रेम, 6. दिन-रात, 7. काली, 8. सर पर कफन बांध, जान देने वाले, 9 अच्छा भाग्यशाली, 11 पहरेदार, 12, तमाम जनता

कौन इस कत्ल-गाहे-नाज1 के समझे इसरार
जिसने हर दशना2 को फूलों में छुपा रखा है
अमन की फ़ाख़्ता उड़ती है निशां पर लेकिन
नस्ले-इंसाँ को सलीबों3 पे चिढ़ा रखा है
इस तरफ नुफ्त4 की बाराने-करम5 और इधर
कासाए-सर6 से मीनारों को सजा रखा है।
(-सलामती कौउंसिल)
मुझे यकीन है
कि जब भी तारीख की अदालत में
वक़्त लाएगा
आज के बे-जमीर-ब-दीदा-दलेर कातिल7 को
जिसकी दामानों-आसतीं
ख़ून बेगुनाही से तरबतर हैं
तू नस्ले-आदम
वुफूर-नफरत8 से सुए-क़ातिल पे थूक देगी
मगर मुझे भी यक़ीन है
कि कल तारीख़
नस्ले-आदम से यह पूछेगी
ऐ-मुहज़्जब जहाँ9 की मख़लूक़10
कल तेरे रूबरू यही बेज़मीर क़ातिल
तेरे क़बीले के बेगुनाहों को
जो तहतेग़11 कर रहा था
तो तू तमाशाइयों की सूरत
ख़ामोश व बेहिस
दरिंदगी के मुज़ाहिरे12 में शरिक
क्यों देखती रही है
तेरी यह सब नफ़रतें कहाँ थीं
बता कि इस ज़ुल्म-कैश क़ातिल की तेग़बर्रा13 में
और तेरी मसलेहत के तीरों में
फ़र्क़ क्या है ?
—————————————————————
1. दबाव, चाकू, 3. फाँसी, 4. वाणी, 5. वर्षा की कृपा, 6. सिर के कटोरों, 7. हृदयविहीन, बेशर्म हत्यारा, 8. प्रभु घृणा, 9. सभ्यसंसार, 10. रचना, 11. हत्या, 12. प्रदर्शन, 13. तलवार की धार

अहमद फ़राज़ की ग़ज़ल -2

जिससे ये तबियत बड़ी मुश्किल से लगी थी
देखा तो वो तस्वीर हर एक दिल से लगी थी

तनहाई में रोते हैं कि यूँ दिल को सुकूँ हो
ये चोट किसी साहिबे-महफ़िल से लगी थी

ऐ दिल तेरे आशोब1 ने फिर हश्र2 जगाया
बे-दर्द अभी आँख भी मुश्किल से लगी थी

ख़िलक़त3 का अजब हाल था उस कू-ए-सितम4 में
साये की तरह दामने-क़ातिल5 से लगी थी

उतरा भी तो कब दर्द का चढ़ता हुआ दरिया
जब कश्ती ए-जाँ6 मौत के साहिल7 से लगी थी
1. हलचल, उपद्रव, 2. प्रलय, मुसीबत, 3. जनता 4. अत्याचार की गली 5. हत्यारे के पल्लू 6. जीवन नौका 7. किनारा
2
तू पास भी हो तो दिले-बेक़रार अपना है
कि हमको तेरा नहीं इन्तज़ार अपना है

मिले कोई भी तेरा जिक्र छेड़ देते हैं
कि जैसे सारा जहाँ राज़दार अपना है

वो दूर हो तो बजा तर्के-दोस्ती1 का ख़याल
वो सामने हो तो कब इख़्तियार2 अपना है

ज़माने भर के दुखो को लगा लिया दिल से
इस आसरे पे कि एक ग़मगुसार3 अपना है

बला से जाँ का ज़ियाँ4 हो, इस एतमाद5 की ख़ैर
वफ़ा करे न करे फिर भी यार अपना है

फ़राज़ राहते-जाँ भी वही है क्या कीजे
वो जिसके हाथ से सीना फ़िगार6 अपना है
1. दोस्ती छोड़नी 2. वश 3. दुख सहने वाला 4. नुकसान 5. विश्वास, भरोसा, 6 घायल, आहत
3
अब वो झोंके कहाँ सबा1 जैसे
आग है शहर की हवा जैसे

शब सुलगती है दोपहर की तरह
चाँद, सूरज से जल बुझा जैसे

मुद्दतों बाद भी ये आलम है
आज ही तो जुदा हुआ जैसे

इस तरह मंज़िलों से हूँ महरूम2
मैं शरीके-सफ़र3 न था जैसे

अब भी वैसी है दूरी-ए-मंज़िल
साथ चलता हो रास्ता जैसे

इत्तफ़ाक़न भी ज़िन्दगी में फ़राज़
दोस्त मिलते नहीं ज़िया4 जैसे

1 पुरवाई, समीर, ठण्डी हवा 2. वंचित, 3. सफ़र में शामिल 4 ज़ियाउद्दीन ज़िया
4
फिर उसी रहगुज़ार पर शायद
हम कभी मिल सकें मगर, शायद

जिनके हम मुन्तज़र1 रहे उनको
मिल गये और हमसफर शायद

जान पहचान से भी क्या होगा
फिर भी ऐ दोस्त, ग़ौर कर शायद

अजनबीयत की धुन्ध छँट जाये
चमक उठे तेरी नज़र शायद

ज़िन्दगी भर लहू रुलायेगी
यादे-याराने-बेख़बर2 शायद

जो भी बिछड़े, वो कब मिले हैं फ़राज़
फिर भी तू इन्तज़ार कर शायद

1. प्रतीक्षारत 2. भूले-बिसरे दोस्तों की यादें
5
बेसरो-सामाँ1 थे लेकिन इतना अन्दाज़ा न था
इससे पहले शहर के लुटने का आवाज़ा2 न था

ज़र्फ़े-दिल3 देखा तो आँखें कर्ब4 से पथरा गयीं
ख़ून रोने की तमन्ना का ये ख़मियाज़ा5 न था

आ मेरे पहलू में आ ऐ रौनके- बज़्मे-ख़याल6
लज्ज़ते-रुख़्सारो-लब7 का अबतक अन्दाजा न था

हमने देखा है ख़िजाँ8 में भी तेरी आमद के बाद
कौन सा गुल था कि गुलशन में तरो-ताज़ा न था

हम क़सीदा ख़्वाँ9 नहीं उस हुस्न के लेकिन फ़राज़
इतना कहते हैं रहीने-सुर्मा-ओ-ग़ाज़ा10 न था

1 ज़िन्दगी के ज़रूरी सामान के बिना 2. धूम 3. दिल की सहनशीलता 4. दुख, बेचैनी, 5. परिणाम, करनी का फल 6. कल्पना की सभा की शोभा 7. गालों और होंटों का आनन्द 8. पतझड़ 9,. प्रशस्ति-गायक, प्रशंसक 10 सुर्मे और लाली पर निर्भर

अहमद फराज की गजल

हर्फ़े-ताज़ा की तरह क़िस्स-ए-पारीना1 कहूँ
कल की तारीख़ को मैं आज का आईना कहूँ

चश्मे-साफ़ी से छलकती है मये-जाँ तलबी
सब इसे ज़हर कहें मैं इसे नौशीना2 कहूँ

मैं कहूँ जुरअते-इज़हार हुसैनीय्यत है
मेरे यारों का ये कहना है कि ये भी न कहूँ

मैं तो जन्नत को भी जानाँ का शबिस्ताँ3 जानूँ
मैं तो दोज़ख़ को भी आतिशकद-ए-सीना4 कहूँ

ऐ ग़मे-इश्क़ सलामत तेरी साबितक़दमी
ऐ ग़मे-यार तुझे हमदमे-दैरीना5 कहूँ

इश्क़ की राह में जो कोहे-गराँ6 आता है
लोग दीवार कहें मैं तो उसे ज़ीना कहूँ

सब जिसे ताज़ा मुहब्बत का नशा कहते हैं
मैं ‘फ़राज़’ उस को ख़ुमारे-मये-दोशीना7 कहूँ
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1. गुज़रा हुआ, पुराना क़िस्सा 2. शर्बत 3. शयनागार 4. सीना या छाती की भट्ठी 5. पुराना मित्र 6. मुश्किल पहाड़ 7. ग़ुजरी रात की शराब का ख़ुमार

न कोई ख़्वाब न ताबीर ऐ मेरे मालिक
मुझे बता मेरी तक़सीर ऐ मेरे मालिक

न वक़्त है मेरे बस में न दिल पे क़ाबू है
है कौन किसका इनागीर1 ऐ मेरे मालिक

उदासियों का है मौसम तमाम बस्ती पर
बस एक मैं नहीं दिलगीर2 ऐ मेरे मालिक

सभी असीर हैं फिर भी अगरचे देखने हैं
है कोई तौक़3 न ज़ंजीर ऐ मेरे मालिक

सो बार बार उजड़ने से ये हुआ है कि अब
रही न हसरत-ए-तामीर ऐ मेरे मालिक

मुझे बता तो सही मेहरो-माह किसके हैं
ज़मीं तो है मेरी जागीर ऐ मेरे मालिक

‘फ़राज़’ तुझसे है ख़ुश और न तू ‘फ़राज़’ से है
सो बात हो गई गंभीर ऐ मेरे मालिक
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1. लगाम थामने वाला 2. ग़मगीन 3. गले में डाली जाने वाली कड़ी
तेरा क़ुर्ब था कि फ़िराक़ था वही तेरी जलवागरी रही
कि जो रौशनी तेरे जिस्म की थी मेरे बदन में भरी रही

तेरे शहर से मैं चला था जब जो कोई भी साथ न था मेरे
तो मैं किससे महवे-कलाम1 था ? तो ये किसकी हमसफ़री रही ?

मुझे अपने आप पे मान था कि न जब तलक तेरा ध्यान था
तू मिसाल थी मेरी आगही2 तू कमाले-बेख़बरी रही

मेरे आश्ना3 भी अजीब थे न रफ़ीक़4 थे न रक़ीब5 थे
मुझे जाँ से दर्द अज़ीज़ था उन्हें फ़िक्रे-चारागरी6 रही

मैं ये जानता था मेरा हुनर है शिकस्तो-रेख़्त7 से मोतबर8
जहाँ लोग संग-बदस्त9 थे वहीं मेरी शीशागरी रही

जहाँ नासेहों10 का हुजूम था वहीं आशिक़ों की भी धूम थी
जहाँ बख़्यागर11 थे गली-गली वहीं रस्मे-जामादरी12 रही

तेरे पास आके भी जाने क्यूँ मेरी तिश्नगी13 में हिरास1अ था
बमिसाले-चश्मे-ग़ज़ा14 जो लबे-आबजू15 भी डरी रही

जो हवस फ़रोश थे शहर के सभी माल बेच के जा चुके
मगर एक जिन्से-वफ़ा16 मेरी सरे-रह धरी की धरी रही

मेरे नाक़िदों17 ने फ़राज़’ जब मेरा हर्फ़-हर्फ़ परख लिया
तो कहा कि अहदे-रिया18 में भी जो खरी थी बात खरी रही
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1.बात करने में मग्न 2. जानकारी, चेतना 3. परिचित 4. मित्र 5. शत्रु 6. उपचार की धुन 7. टूट फूट 8. ऊपर, सम्मानित 9. हाथ में पत्थर लिए हुए 10. उपदेश देने वाले 11.कपड़ा सीने वाले 12. पागलपन की अवस्था में कपड़े फाड़ने की रीत
13.प्यास 1अ. आशंका निराशा 14.हिरन की आँख की तरह 15.दरिया के किनारे 16.वफ़ा नाम की चीज़ 17. आलोचक 18. झूठा ज़माना

यूँ तुझे ढूँढ़ने निकले के न आए ख़ुद भी
वो मुसाफ़िर कि जो मंज़िल थे बजाए ख़ुद भी

कितने ग़म थे कि ज़माने से छुपा रक्खे थे
इस तरह से कि हमें याद न आए खुद भी

ऐसा ज़ालिम कि अगर ज़िक्र में उसके कोई ज़ुल्म
हमसे रह जाए तो वो याद दिलाए ख़ुद भी

लुत्फ़ तो जब है तअल्लुक़ में कि वो शहरे-जमाल1
कभी खींचे कभी खिंचता चला आए ख़ुद भी

ऐसा साक़ी हो तो फिर देखिए रंगे-महफ़िल
सबको मदहोश करे होश से जाए ख़ुद भी

यार से हमको तगाफ़ुल का गिला है बेजा
बारहा महफ़िले-जानाँ से उठ आए ख़ुद भी
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1. महबूब
आज फिर दिल ने कहा आओ भुला दें यादें
ज़िंदगी बीत गई और वही यादें-यादें

जिस तरह आज ही बिछड़े हों बिछड़ने वाले
जैसे इक उम्र के दुःख याद दिला दें यादें

काश मुमकिन हो कि इक काग़ज़ी कश्ती की तरह
ख़ुदफरामोशी के दरिया में बहा दें यादें

वो भी रुत आए कि ऐ ज़ूद-फ़रामोश1 मेरे
फूल पत्ते तेरी यादों में बिछा दें यादें

जैसे चाहत भी कोई जुर्म हो और जुर्म भी वो
जिसकी पादाश2 में ताउम्र सज़ा दें यादें

भूल जाना भी तो इक तरह की नेअमत है ‘फ़राज़’
वरना इंसान को पागल न बना दें यादें

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1.जल्दी भूलने वाला 2. जुर्म की सज़ा

बुझा है दिल तो ग़मे-यार अब कहाँ तू भी
मिसाले साया-ए-दीवार1 अब कहाँ तू भी

बजा कि चश्मे-तलब2 भी हुई तही3 कीस:4
मगर है रौनक़े-बाज़ार अब कहाँ तू भी

हमें भी कारे-जहाँ5 ले गया है दूर बहुत
रहा है दर-पए आज़ार6 अब कहाँ तू भी

हज़ार सूरतें आंखों में फिरती रहती हैं
मेरी निगाह में हर बार अब कहाँ तू भी

उसी को अहद फ़रामोश क्यों कहें ऐ दिल
रहा है इतना वफ़ादार अब कहाँ तू भी


मेरी गज़ल में कोई और कैसे दर आए
सितम तो ये है कि ऐ यार अब कहाँ तू भी

जो तुझसे प्यार करे तेरी नफ़रतों के सबब
‘फ़राज़’ ऐसा गुनहगार अब कहाँ तू भी
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1.दीवार के साये की तरह 2. इच्छा वाली आँख 3. ख़ाली 4. झोली, कटोरा, प्याला 5. दुनिया, ज़माने वाला कार्य 6. तकलीफ़ और मुसीबत पहुँचाने पर प्रतिबद्ध

मैं दीवाना सही पर बात सुन ऐ हमनशीं मेरी
कि सबसे हाले-दिल कहता फिरूँ आदत नहीं मेरी

तअम्मुल1 क़त्ल में तुझको मुझे मरने की जल्दी थी
ख़ता दोनों की है उसमें, कहीं तेरी कहीं मेरी

भला क्यों रोकता है मुझको नासेह गिर्य:2 करने से
कि चश्मे-तर मेरा है, दिल मेरा है, आस्तीं मेरी

मुझे दुनिया के ग़म और फ़िक्र उक़बा3 की तुझे नासेह
चलो झगड़ा चुकाएँ आसमाँ तेरा ज़मीं मेरी

मैं सब कुछ देखते क्यों आ गया दामे-मुहब्बत में
चलो दिल हो गया था यार का, आंखें तो थीं मेरी

‘फ़राज़’ ऐसी ग़ज़ल पहले कभी मैंने न लिक्खी थी
मुझे ख़ुद पढ़के लगता है कि ये काविश4 नहीं मेरी

1. हिचकिचाहट, देरी, फ़िक्र, संकोच 2. रोना, विलाप, 3. परलोक 4. प्रयास