Friday, September 26, 2008

पीने को बाढ़ का पानी...खाने को कच्चा चावल

(ये रिपोर्टें कोशी नदी का तटबंध टूटने के बाद बिहार में आई बाढ़ की हैं, जिन्हें हिंदी के अग्रणी आर्थिक अखबार बिज़नेस स्टैंडर्ड ने प्रमुखता से लगातार ६ दिनों तक पहले पन्ने पर प्रकाशित किया।पेश है पहला भाग...)
सत्येन्द्र प्रताप सिंह / सहरसा September 01, 2008
कोसी का कहर झेल रहे लोग जिंदगी भर की कमाई गंवाकर बाढ़ग्रस्त इलाकों से सिर्फ आंसू लेकर निकल रहे हैं।
सहरसा के सरकारी और गैर-सरकारी कैंपों में 50 हजार से अधिक बाढ़ पीड़ित पहुंच चुके हैं, जबकि बाढ़ प्रभावित इलाकों से लोगों के यहां आने का सिलसिला बदस्तूर जारी है। सहरसा के अलावा, शोरगंज कैंप में 10 हजार, सुपौल के कैंपों और बांधों पर 1 लाख से ज्यादा लोग जान बचाने के लिए जमा हैं।
इस बाढ़ ने कई लोगों के परिवार को बिखेर दिया है। मुरलीगंज, मधेपुरा के विपिन कुमार लाइटिंग का काम करते हैं। उन्होंने बताया कि वे किसी तरह कैंप तक पहुंच पाए हैं, लेकिन परिवाार के बाकी सदस्यों का कोई अता-पता नहीं है। बाढ़ प्रभावित इलाकों से बचकर निकल आने वाले कई लोगों ने 4-5 दिनों से कुछ भी खाया-पीया नहीं है। छोटे-छोटे बच्चों के लिए दूध तो जैसे सपना बन गया है। शंकरपुर के जंझड़ से आए रामकिशुन अपने पूरे परिवार के साथ यहां के एक कैंप में पड़े हैं। उन्होंने जो बताया उससे बाढ़ की विभीषिका का अंदाजा लगाया जा सकता है। रामकिशुन बताते हैं कि वे छत्त पर बैठे बाढ़ का पानी पीते रहे और कच्चा चावल खाकर 5 दिन तक गुजारा किया। बच्चे को पिलाने के लिए बोतल में दूध की जगह सत्तू डाला जा रहा है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, इस त्रासदी में मधेपुरा के 378 गांवों के 2 लाख 4 हजार परिवार, अररिया के 12 गांवों के 15 हजार, सुपौल के 243 गांवों के 1 लाख 79 हजार और सहरसा के 62 गांवों के 29 हजार परिवार प्रभावित हुए हैं। इन चार जिलों में करीब 700 गांवों के 4 लाख 27 हजार से ज्यादा परिवार बाढ़ की चपेट में हैं।

रक्षक भी बन रहे पीड़ित

मधेपुरा के पास रहने वाले श्रीनाथ यादव के यहां पिछले 10 दिन से 17 गांवों के तकरीबन 90 रिश्तेदार शरण लिए हुए हैं। किसी तरह इन मेहमानों को वे रख रहे थे और भोजन करा रहे थे, लेकिन शनिवार को अचानक जलस्तर बढ़ जाने से उनके घर में 2 फीट पानी जमा हो गया है। सवाल है कि इतने लोगों को कहां और कैसे ले जाया जाए।यही हाल मधेपुरा के ही कृतनारायण का है। वे अपने यहां रिश्तेदारों को शरण दिए हुए थे, पर रविवार को उनके घर में भी 5 फीट पानी जमा हो गया। अब वे सहरसा पहुंच चुके हैं। उन्होंने बताया कि वे पत्नी और दो रिश्तेदारों के साथ पटना में पढ़ाई कर रहे अपने बेटे के यहां जा रहे हैं।

कोई लालू से यह तो पूछे

रविवार को दिन के करीब 1 बजे रेलमंत्री लालू प्रसाद विशेष रेलगाड़ी से सहरसा पहुंचे। मंच पर चढ़ते ही लालू ने माइक संभाल लिया। लोगों से उन्होंने वही पुरानी बात दोहरायी कि 1 लाख बोतल पानी भेज दिया है। हर स्टेशन पर चना, चूड़ा और भूंजा बांटा जा रहा है। जैसे ही उन्होंने कहा कि कोसी की धार को पुराने रास्ते पर लाया जाएगा कि पूरा स्टेशन परिसर तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। अपनी अनोखी भाषा के लिए मशहूर लालू ने कहा कि लोगों को बचाने के लिए दो 'गजराज' (हेलीकॉप्टर) चल चुके हैं। अब उनसे कौन पूछे कि 1 लाख बोतल पानी और दो गजराज से बाढ़ में फंसे 15 लाख लोगों को कैसे बचाया जा सकेगा!

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