Thursday, January 31, 2008

दलालों को ही सट्टा लगाने दें, आप जब भी निवेश करें, आंख कान खुला रखें।

सत्येन्द्र प्रताप सिंह
बाजार के बड़े-बड़े खिलाड़ी भी वायदा बाजार की चाल समझने में गच्चा खा जाते हैं। शेयर बाजार में पैसा लगाना, उससे मुनाफा कमाने इच्छा आज हर उस भारतीय को है जो कुछ पैसे अपनी तनखाह से बचा लेता है। बाजार गिर रहा है, बाजार चढ़ रहा है। वह देखता है, सोचता है- लेकिन क्या तमाशा है उसे समझ में नहीं आता।
आईपीओ की बात करें तो रिलायंस जैसे ही बाजार में आया उसका शेयर बारह गुना ओवर सब्सक्राइब हुआ। वास्तविक धरातल पर कंपनियों के पास कुछ हो या न हो अगर बाजार में एक बार शाख बन गई या किसी तरीके से बनाने में कामयाब रहे तो रातोंरात अरबपति और खरबपति बनते देर नहीं लगती।
शेयर का दाम भी बंबई शेयर बाजार में बेतहाशा बढ़ता है। किस तरह बढ़ता है? पता नहीं। इसका कोई ठोस आधार नहीं है। इसीलिए तो इसे वायदा कारोबार कहते हैं। आम लोगों को लगता है कि कंपनी को लाभ हो रहा है इसलिए शेयर बढ़ रहा है, लेकिन हकीकत इससे अलग है। किसी कंपनी का शेयर जनवरी में ४० रुपये का है तो फरवरी में वह ६० रुपये का हो जाता है। हालांकि कंपनी जब अपना तिमाही मुनाफा पेश करती है तो महज १०-१५ प्रतिशत लाभ दिखाती है। स्वाभाविक है शेयर भहराएगा ही। कुछ कंपनियां तमाम प्रोजेक्ट दिखाकर कृत्रिम बढ़त को सालोंसाल बनाए रखती हैं। सपने दिखाती रहती हैं और जनता से पैसा खींचती रहती हैं। अब कंपनी की दूरगामी परियोजनाओं की सफलता पर निर्भर करता है कि वे बाजार में टिकी रहती हैं या सारा पैसा लेकर रफूचक्कर हो जाती हैं। यह भी संभव है कि कृतिमता कुछ इस तरह बनाई जाए कि एक कंपनी की ३०० परियोजनाएं हों और जिसमें सबसे ज्यादा निवेश हो जाए उसे बर्बाद बता दिया जाए। बाकी के शेयरों में खुद निवेश कर कृत्रिम बढ़त बनाए रखा जाए।
इन सभी तथ्यों से आम निवेशक को हमेशा सावधान रहने की जरूरत है।
भारतीय शेयर बाजार में वर्ष 1930 में बॉम्‍बे रिक्‍लेमेशन नामक कंपनी सूचीबद्ध थी जिसका भाव उस समय छह हजार रुपये प्रति शेयर बोला जा रहा था, जबकि लोगों का वेतन उस समय दस रुपए महीना होता था। कंपनी का दावा था कि वह समुद्र में से जमीन निकालेगी और मुंबई को विशाल से विशाल शहर में बदल देगी लेकिन हुआ क्‍या। कंपनी दिवालिया हो गई और लोगों को लगी बड़ी चोट। अब यह लगता है कि अनेक रियालिटी या कंसट्रक्‍शंस के नाम पर कुछ कंपनियां फिर से इतिहास दोहरा सकती हैं। आप खुद सोचिए कि ऐसा क्‍या हुआ कि रातों रात ये कंपनियां जो अपने आप को करोड़ों रुपए की स्‍वामी बता रही हैं, आम निवेशक को अपना मुनाफा बांटने आ गईं।
इसमें किसी भी तरह का फ्राड संभव है और ऐसा न हो कि बरबादी के बाद रोने पर आंसू भी न आए। हमेशा ठोस परियोजनाओं और ठोस कारोबार की ओर नजर रखें और लाभ के चक्कर में किसी एक कंपनी में बहुत ज्यादा निवेश न करें। इसी में भलाई है।

Monday, January 21, 2008

माया की हनक



सत्येन्द्र प्रताप
उत्तर प्रदेश की राजनीति पर बसपा की हाथी छाने के बाद कांग्रेस, सपा, भाजपा सहित प्रदेश में जनाधार रखने वाली सभी पार्टियों पर असर पड़ा है। बुंदेलखंड के मुद्दे पर राहुल ने माया को ललकारा वहीं मुलायम भी सारे दाव चल रहे हैं। हालत यहां तक पहुंच गई है कि प्रदेश में सपा-कांग्रेस में समझौते के आसार बनने लगे हैं।
उत्तर प्रदेश में समीकरण बदला है। पहले जहां अंबेडकर और जगजीवन राम जैसे बड़े नामों के साथ वहां का आम दलित जुड़ा था, वह मायावती की झोली में पहुंच गया। एक मजबूत जनाधार के बाद मायावती ने कांग्रेस के समीकरण को दोहराने की कोशिश की। कांग्रेस का फार्मूला ब्राह्मण-दलित-मुस्लिम गठजोड़ बना और सफल भी रहा। बदला है तो सिर्फ इतना कि पहले सत्ता कुलीन और उच्च वर्ग के हाथ में हुआ करती थी और अब दलित नेता मायावती के हाथ आ गई है।
स्वाभाविक है कि सत्ता से जु़ड़े रहने का लोभ रखने वालों ने मायावती का साथ दिया और मंडल कमंडल के साथ कांग्रेस भी धूल फांकने लगी। हाल के गुजरात चुनावों में माया का कोई जादू नहीं चला, लेकिन यूपी में पूर्ण बहुमत के मानसिक बढ़त ने इतना प्रभाव जरूर डाला कि तमाम सीटों पर कांग्रेस हार गई। यही किस्सा हिमाचल में भी दोहराया गया।
यूपी में हार का स्वाद चख चुके मुलायम को भी कोई रास्ता नहीं सूझ रहा है। कांग्रेस, मध्य प्रदेश और राजस्थान को लेकर चिंतित है कि कहीं मायावती ने आगामी चुनावों में इन राज्यों में ४ प्रतिशत वोटों की सेंधमारी की तो हालत पतली होना तय है। इसी के साथ कम्युनिष्टों की धमकी से भी कांग्रेस के माथे पर बल पड़ रहा है।
ऐसे हालत में ऊंट किस करवट बैठने जा रहा है, सबकी नज़र इसी पर है।