Sunday, September 27, 2009

सुखी दांपत्य जीवन की बचत योजना

विवाह के बाद जिम्मेदारियां तो बढ़ती ही हैं, साथ ही भविष्य को बेहतर बनाने के बारे में भी सोचना होता है


मनीष कुमार मिश्र




प्रत्येक व्यक्ति इस बात से सहमत होगा कि विवाह के बाद चाहे स्त्री हो या पुरुष दोनों के जीवन में महत्वपूर्ण परिवर्तन आते हैं। यह परिवर्तन आर्थिक, सामाजिक और भावनात्मक होते हैं।
विवाह के बाद स्त्री-पुरुष परस्पर एक दूसरे के सुखों और खुशियों की जिमेदारी उठाते हैं और उनकी पूरी कोशिश होती है कि इसमें कोई कमी न रह जाए। हम केवल इसके आर्थिक पक्ष की बात करेंगे। सफल विवाह का एक महत्वपूर्ण तत्व, मिल-जुलकर धन का प्रबंधन करना है।
यह मायने नहीं रखता कि आप उम्र के किस पड़ाव में हैं। कोई भी महत्वपूर्ण वित्तीय निर्णय अगर आपस में बातचीत करने के बाद लें तो जीवन सुखमय रहेगा और एक दूसरे के प्रति प्यार और आदर का भाव भी जीवंत बना रहेगा।


विवाह से पहले यदि आप अपने माता-पिता के साथ रहते थे तो आपको केवल फोन के बिल और अपने खर्चों की व्यवस्था करनी पड़ती रही होगी। अब आपके ऊपर ही परिवार की पूरी जिम्मेदारी है।

छुट्टियां मनाने जाना चाहते हैं? उससे पहले आपको यह सुनिश्चित करना होगा कि क्या आपके बैंक के जमा खाते में इसके लिए पर्याप्त पैसे हैं। विवाह के बाद वित्तीय जिम्मेदारियां बढ़ जाती हैं और ऐसी परिस्थिति में पैसे बचाना उतना आसान नहीं होता है। न ही यह स्वयमेव शुरु होने वाली चीज है। इसके लिए आपको दृढ़ निश्चय करने की जरूरत है। अगर आप शुरु से ही बचत-प्रेमी हैं तो शादी के बाद भी नियमित बचत के अनुशासन को मत छोड़ें। इसकी एक युक्ति है। आप खुद को थोड़ा अधिक व्यवस्थित करते हुए वास्तविक वित्तीय योजना बनाने की शुरूआत करें।


जहां पहले आपकी बचत का लक्ष्य केवल बचत और निवेश करना था, वहीं अब परिवार के भविष्य को देखते हुए वित्तीय योजना बनाने का समय है। इसलिए पति-पत्नी दोनों को मिलकर निवेश की योजना बनानी चाहिए। योजना ऐसी हो जिससे दोनों को ही फायदा भी हो और राहत भी मिले।


कैसी हो वित्तीय योजना
सर्वप्रथम आपको यह देखने की जरूरत है कि आपका पर्याप्त बीमा है या नहीं, खासतौर पर तब जब आपकी पत्नी (या पति) आप पर आर्थिक रूप से निर्भर है। पति या पत्नी के नौकरीपेशा होने के बावजूद यह न भूलें की आपकी कमाई का एक महत्वपूर्ण हिस्सा घरेलू खर्चों और ऋण की अदाएगी के लिए है।
आपको यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि आपने पर्याप्त बीमा लिया हुआ है, ताकि आपके साथ किसी प्रकार का हादसा (मृत्यु) हो जाने की दशा में आपके पति या पत्नी को आर्थिक कष्ट न झेलना पड़े और घर के मासिक खर्च के अलावा अन्य आर्थिक जिम्मेदारियों का निर्वाह करने में भी उसे कोई बाधा न आए। इसके लिए आप समय-समय पर अपने बीमा की जरूरतों का पुनर्आंकलन भी करते रहें।
उदाहरण के लिए मान लेते हैं कि आपका जीवन बीमा 10 लाख रुपये का है और आपकी पत्नी भी नौकरी करती हैं। जब आप पिता बनते हैं तो कुछ वर्षों के लिए उन्हें ऑफिस से छुट्टी लेनी पड़ेगी। अब घर के कमाऊ सदस्य केवल आप हैं।


मां और बच्चा दोनों की जिम्मेदारी आपके ऊपर है। ऐसे में आपको अपनी बीमा जरूरतों का फिर से आकलन करने की जरूरत है। अपने बचत करने के लक्ष्यों की एक सूची बनाएं और प्रत्येक लक्ष्य के लिए एक समय-सीमा का निर्धारण करें। इससे आपको अपने निवेश को सार्थक तरीके से आवंटित करने में मदद मिलेगी। यह मत भूलिए कि इन सबमें आपके परिवार की भलाई छिपी है।


लक्ष्य का निर्धारण जरूरी
मान लीजिए कि खास समय सीमा में आपने अपने लिए तीन लक्ष्य निर्धारित किए हैं-
आप कुछ महीनों के अंदर अपना घर खरीदना चाहते हैं जिसके लिए डाउन पेमेंट की व्यवस्था करनी है। यह आपकी तात्कालिक जरूरत है जिसकी पूर्ति आप अपने बचत खाते में जमा की गई राशि से या नकदी-कोष से कर सकते हैं।


आपकी इच्छा है कि आप जीवन-साथी के संग छुट्टियां मनाने जाएं - इसके लिए की जाने वाली बचत को अल्पावधि के ऋण फंड में डाल देना चाहिए। अगर आप दो-तीन वर्षों में छुट्टियां मनाने जाना चाहते हैं तो बैंक की सावधि जमा या इनकम फंड में पैसे डाल सकते हैं।


रिटायरमेंट फंड - रिटायरमेंट के लिए धन-कोष इकट्ठा करने के लिए सबसे बढ़िया विकल्प है इक्विटी में निवेश, अगर आप 20 या 30 के दशक में हैं।
आपके पोर्टफोलियो में ऋण और इक्विटी संतुलित रूप में होने चाहिए। अगर आपका लक्ष्य 7 वर्ष या उससे अधिक समय सीमा का है तो इक्विटी में निवेश करना ज्यादा तर्कसंगत है। लेकिन पोर्टफोलियो को संतुलित रखने के लिए ऋण का एक छोटा हिस्सा भी होना आवश्यक है।


अगर आप विशुद्ध ऋण फंड में निवेश नहीं करना चाहते हैं तो 10-15 प्रतिशत निवेश की जाने वाली राशि का आवंटन बैलेंस्ड फंड में कर सकते है। आपको ऋण इक्विटी संतुलन पर तब ज्यादा गौर फरमाने की जरूरत है जब आपने पब्लिक प्रोविडेंट फंड, कर्मचारी भविष्य निधि, राष्ट्रीय बचत प्रमाण-पत्र या किसान विकास पत्र में निवेश पहले से किया हुआ है।
विवाह के बाद जिम्मेदारियां तो बढ़ती ही हैं साथ ही भविष्य के बारे में भी सोचना होता है। बचत अचानक नहीं शुरू हो सकती, इसके लिए दृढ़प्रतिज्ञ होना जरूरी है।

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