Tuesday, October 20, 2009

काऊ बेल्ट वालों को आईआईटी में नहीं घुसने देना चाहते कपिल सिब्बल


आज कपिल सिब्बल की खबर पढ़कर काऊ बेल्ट (यह तथाकथित अंग्रेजी दां लोगों का शब्द है, जिसे हिंदी भाषी बड़े राज्यों के लिए प्रयोग किया जाता है। इसी अंग्रेजी दां पीढ़ी के प्रतिनिधि कपिल सिब्बल भी हैं) वाले निश्चित रूप से दुखी होंगे। बिहार और झारखंड से तो प्रतिक्रिया भी आ गई। हालांकि उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री इस मसले पर या तो सो रही थीं, या वे अपने मतदाताओं को आईआईटी परीक्षा के योग्य नहीं समझती, इसलिए उनकी प्रतिक्रिया पढ़ने को नहीं मिली।
अब उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, मध्यप्रदेश, राजस्थान, उत्तराखंड आदि राज्यों में अध्यापकों के नंबर देने का ट्रेंड देखिए। आज ही मेरे एक मित्र से मेरी बातचीत हो रही थी। उसके पिता अध्यापक हैं। उन्होंने बताया कि उसके भाई ने झारखंड बोर्ड से परीक्षा दी थी। सभी पेपरों की कापियां संबंधित विषयों के अध्यापकों ने लिखीं, लेकिन उसे ७९ प्रतिशत अंक मिले। (बात मैं नकल की नहीं कर रहा हूं, क्योंकि यह तो हर राज्य और हर बोर्ड में होता है, चाहे वह दिल्ली हो या हरियाणा। जहां भी निजी संस्थानों का बोलबाला है, १० कापियां अध्यापक लिखते हैं, जिससे स्कूल का नाम मेरिट सूची में चमक सके।) दरअसल इससे इन राज्यों में अध्यापकों के अंक देने की प्रवृत्ति का पता चलता है। वे पूर्णांक नहीं देते, इस आस में कि और बेहतर देने के लिए भी छात्र मिलेंगे। वहीं सीबीएसई और आईसीएसई बोर्ड के छात्रों को खुले हाथ से नंबर बांटा जाता है। इसका उदाहरण भी मेरे पास है। मेरा एक सहपाठी हाई स्कूल में यूपी बोर्ड से फेल होने के बाद निजी स्कूल में सीबीएसई बोर्ड में एडमिशन लेने में सफल हो पाया, क्योंकि फेल होने में उसका इतना कम अंक था कि स्कूल ने दूसरी जगह एडमिशन कराने के लिए दबाव डाला। वहां से छात्र ७० प्रतिशत अंक लेकर पास होने में सफल हुआ।

कोचिंग रोकने का बेमानी तर्क


सिब्बल साहब का तर्क है कि इससे कोचिंग संस्थानों पर लगाम लगेगी। अरे जनाब, कोचिंग भी तो आईसीएसई और सीबीएसई वाले ही पढ़ पाते हैं? ग्रामीण इलाकों के छात्र तो पैसे और सुविधा के मामले में बेचारे साबित होते हैं। रहा सवाल आईआईटी कोचिंग का तो कोई भी छात्र केवल आईआईटी के लिए कोचिंग नहीं पढ़ता। उसके अलावा तमाम राज्य सरकारों के इंजीनियरिंग कॉलेज हैं, जिसमें प्रवेश पाने की छात्रों की इच्छा होती है। अब अगर कोचिंग बंद ही करना है, तो क्या मानव संसाधन विभाग के अधिकार खत्म हो गए? वह ताकत के मामले में हिजडा़ हो गया है कि सीधे कोचिंग संस्थानों को बंद नहीं करा सकता?

6 comments:

अविरत यात्रा said...

sibal sahab ek taraf to marksvad (number system)ko khant karne ki baat kartee hai aur dusri taraf 80%ki badhyta. baat kuchh hajam nahi hui

संगीता पुरी said...

यदि सरकार की इच्‍छा है कि प्रतिभावानों को ही सीट मिलनी चाहिए .. तो किसी भी प्रकार की प्रतियोगिता के लिए कोचिंग संस्‍थानों को बंद करवा देना चाहिए .. इसके अलावे हर जगह भ्रष्‍टाचार बंद कर देना चाहिए !!

निशाचर said...

बारहवीं के गुणांक जोड़ने में कोई बुराई नहीं है परन्तु इसे इतना ज्यादा महत्व भी नहीं दिया जाना चाहिए कि स्कूली शिक्षा में भी भ्रष्टाचार और ज्यादा नंबर दिलवाने का खेल चालू हो जाये और प्रतिभा पीछे रह जाये. IIT की प्रवेश परीक्षा इतनी आसान नहीं होती कि कोई राह चलता उसे पास कर ले. हाँ इसकी तैय्यारी करने वाले किशोर गणित, भौतिकी और रसायन के अलावा अन्य विषयों पर उतना ध्यान नहीं देते जिसके लिए कोई अन्य उपाय खोजा जाना चाहिए परन्तु यह कहना कि केवल ८०-८५ प्रतिशत पाने वाले छात्र ही IIT में प्रवेश पा सकेंगे ज्यादती है. जब संघ लोक सेवा आयोग CIVIL SERVICES के लिए किसी प्रकार के प्राप्तांक प्रतिशत की बंदिश नहीं लगाता तो फिर IIT के लिए यह शर्त रखना ज्यादती और स्कूली शिक्षा में भ्रष्टाचार को बढावा देने जैसा है.

Mishra Pankaj said...

मेरे हिसाब से कोचिंग बंद करना सरासर बेमानी है

मुनीश ( munish ) said...

I think among all the posts on this issue , only u have raised the real problem. State boards definitely do not give 80-85% marks easily. What will happen to those studying through Haryana or say jaharkhand board? This is a very regressive decision . It will create one more hurdle in the way of students coming from State education boards.

नीलिमा सुखीजा अरोड़ा said...

स्टेट बोर्ड के बच्चे यूपी बिहार में ही नहीं राजस्थान और हर राज्य में भी ७०-८० फीसदी तक ही अंक पाते हैं, हालांकि मैं खुद सीबीएसई से पढ़ी हूं पर जानती हूं कि वहां स्टेट बोर्ड के मुकाबले अच्छी मार्किंग होती है, उसके पीछे उसका पैटर्न है। ८५ मार्क्स का क्राइटएरिया लगाना मतलब स्टेट बोर्ड से पढने वालों बच्चों को परीक्शा में बैठने ही नहीं देना