Monday, April 19, 2010

अब इंतजार कीजिए कि ललित मोदी कब जेल जाते हैं?????

जैसी कि उम्मीद थी, शशि थरूर केंद्रीय मंत्रिमंडल से बाहर हो गए और ललित मोदी पर हमले शुरू हो गए। सवाल वहीं का वहीं है। सोनिया गांधी का क्या हुआ? उन दो केंद्रीय मंत्रियों का क्या हुआ, जिनके दिल्ली और मुंबई स्थित सरकारी आवासों में कोच्चि टीम से हिस्सेदारी छोड़ने के लिए गुजरात के दो कारोबारियों को धमकाया गया और उनसे निपट लेने के तरीके बताए गए, जिसके चलते उन्हें निजी सुरक्षा बढ़ानी पड़ी।

क्यों गए थरूर? निश्चित रूप से यह सवाल जेहन में आता है। क्या भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते? नहीं। अगर ऐसा होता तो दो मंत्री और सोनिया गांधी के खिलाफ भी कार्रवाई होती और ललित मोदी पर अचानक हमले नहीं होते। ललित मोदी आईपीएल में आने से पहले प्रतिबंधित दवाओं के कारोबार में लिप्त पाए जा चुके थे, जो खबरें इस समय एक्सक्लूसिव चलाई गईं। भ्रष्टाचार और काले धन को सफेद करने का सिलसिला भी तो आईपीएल शुरू होने के समय से ही चल रहा था, तो आखिर कार्रवाई अब क्यों?

दरअसल कांग्रेस पार्टी आभामंडल पर चलती है। देश की जनता को हजारों साल की राजशाही की आदत है। पहले हिंदू सम्राट, फिर मुगल सम्राट और फिर अंग्रेजों का आभामंडल। राजनीतिक सिद्धांतों के मुताबिक राजशाही में राजा को ईश्वर का अवतार माना जाता है। उसमें दैवीय शक्तियां मानी जाती हैं। इसी आभामंडल पर राजशाही चलती है, क्योंकि ऐसे में जनता राजा बनने के बारे में नहीं सोचती, क्योंकि वह राजपरिवार में पैदा नहीं होती। इसके लिए वह अपने पूर्व जन्म या अपनी किस्मत को कोसती है। अब वही हाल नेहरू-गांधी परिवार का है, जिन्हें जन्मजा शासन के योग्य और त्यागी माना जाता है। शशि थरूर कांड में शक की सुई सोनिया की ओर घूम गई और उनके आभामंडल पर चोट पहुंची। ऐसे में जरूरी था कि किसी की बलि ले ली जाए। थरूर की बलि ले ली गई।

जहां तक ललित मोदी की बात है, वो विशुद्ध रूप से कारोबारी रहे हैं- उनके इतिहास से ऐसा ही पता चलता है। चाहे वह अवैध ड्रग्स से पैसा कमाएं या आईपीएल में काला धन सफेद करके। जब तक भाजपा (वसुंधरा राजे) से फायदा मिला, उनके रहे और जब कांग्रेस का जलवा हुआ तो कांग्रेस के साथ हो लिए।

अब तो उनकी कुर्बानी भी तय है। और शायद उनकी ऐसी कुर्बानी होगी, जैसी हर्षद मेहता या तेलगी और सत्यम के राजू की हुई। यह भी संभव है कि आने वाले दिनों में वे जेल में ही नजर आएं। इसके पीछे कहीं से इमानदारी या बेइमानी नहीं आती। आता है तो सिर्फ आभामंडल बचाने की कोशिश। अगर मोदी को कुर्बान किया जाता है तो यह प्रचारित करने में भी सहूलियत मिल जाएगी कि वो भाजपा के आदमी थे और कींचड़ भाजपा की तरफ उछल जाएगा।

Friday, April 16, 2010

ताकि प्रसव पीड़ा में न जुड़े वित्तीय कष्ट

मनीश कुमार मिश्र

प्रसव के दौरान इलाज पर होने वाले खर्च (मैटरनिटी कवर) के साथ नवजात की बीमारियों के लिए भी साधारण बीमा कंपनियां कवर उपलब्घ कराती है। विभिन्न साधारण बीमा कंपनियां सामूहिक स्वास्थ्य बीमा के अतिरिक्त पारिवारिक स्वास्थ्य बीमा के तहत यह सुविधा उपलब्ध कराती हैं।

क्या है मैटरनिटी कवर
व्यापक स्तर पर देखा जाए तो मैटरनिटी इंश्योरेंस में गर्भावस्था से लेकर प्रसव के बाद तक (नवजात शिशु के इलाज सहित), अस्पताल या इलाज पर होने वाले तमाम खर्चे शामिल होने चाहिए।
कुछ मैटरनिटी बीमा पॉलिसी है जिसके तहत गर्भावस्था के दौरान अस्पताल जाकर चिकित्सक से सलाह लेने का खर्च भी शामिल होता है।
उदाहरण के तौर पर आईसीआईसीआई लोम्बार्ड का हेल्थ एडवांटेज प्लस स्वास्थ्य बीमा के साथ बहिरंग विभाग (ओपीडी) के लिए भी कवर उपलब्ध कराता है जिसमें प्रसव-पूर्व जांच और दवाओं पर होने वाला खर्च शामिल होता है। इसकी सीमा 8,000 रुपये तक की है। ओपीडी के अतिरिक्त मैटरनिटी से जुड़े कई अन्य खर्च इस पॉलिसी में शामिल नहीं हैं।

कहां मिलेगा ये कवर
भारत में कोई भी बीमा कंपनी मैटरनिटी कवर के लिए स्टैंडएलोन पॉलिसी उपलब्ध नहीं कराती हैं। इसकी वजह है कि व्यक्तिगत स्तर पर केवल अप्रत्याशित जोखिमों के लिए ही कवर उपलब्ध कराया जाता है और गर्भावस्था या प्रसव इस दायरे में नहीं आते हैं।
ऑप्टिमा इंश्योरेंस ब्रोकर्स के मुख्य कार्याधिकारी राहुल अग्रवाल कहते हैं, 'कुछ साधारण बीमा कंपनियां ऐसी भी हैं जो पारिवारिक स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी में मैटरनिटी कवर को शामिल करती हैं लेकिन इसके लिए न्यूनतम 4 साल तक का इंतजार करना होता है।' उललेखनीय है कि इस तरह की पॉलिसी शादी के बाद ही ली जा सकती है और मैटरनिटी कवर का लाभ लेने के लिए 4 साल तक का इंतजार करना होता है।
अग्रवाल ने बताया 'नैशनल इंश्योरेंस ने बैंक ऑफ इंडिया के ग्राहकों के लिए स्टार नैशनल स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी लॉन्च की थी जिसके तहत बैंक के ग्राहकों को मैटरनिटी कवर के साथ नवजात शिशु के इलाज पर हुए खर्च की वापसी की जाती है। लेकिन इसकी सीमा सम एश्योर्ड का मात्र 5 प्रतिशत है। इसमें इंतजार की अवधि मात्र एक महीने की है।'
नैशनल इंश्योरेंस कंपनी की वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार 1 लाख के सम एश्योर्ड का सालाना प्रीमियम 1,746 रुपये और 5 लाख रुपये का 7,071 रुपये है। अपोलो म्यूनिख ईजी हेल्थ इंडिविजुअल एक्सक्लूसिव और मैक्सिमा 360 के तहत मैटरनिटी कवर उपलब्ध कराता है लेकिन इसके इंतजार की अवधि न्यूनतम 4 साल की है।
इस पॉलिसी के तहत प्रसव-पूर्व, अस्पताल में भर्ती होने, प्रसव और प्रसव के बाद होने वाले खर्चे एक विशेष सीमा तक कवर किए जाते हैं। 3 से 5 लाख रुपये तक के सम एश्योर्ड के लिए सामान्य प्रसव की दशा में खर्च की सीमा 15,000 रुपये और शल्य प्रसव के लिए 25,000 रुपये की सीमा है।
नवजात शिशु पर होने वाले खर्च की अधिकतम सीमा 2,000 रुपये है जबकि गर्भावस्था के दौरान और प्रसव के बाद शिशु की मां पर होने वाले खर्च की अधिकतम सीमा 1,500 रुपये है और यह उपरोक्त खर्च में सम्मिलित है।

सामूहिक मेडिक्लेम और मैटरनिटी कवर
अब नियोक्ता द्वारा कराए जाने वाले सामूहिक स्वास्थ्य बीमा की बात करते हैं। आम तौर पर मैटरनिटी कवर प्राप्त करने का यह जरिया सबसे अधिक फायदे का है।
मैटरनिटी कवर सामूहिक स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी में स्वत: ही शामिल नहीं होता। कंपनी साधारण बीमा कंपनियों से इसे शामिल करने का अनुरोध करती हैं और इसके लिए अतिरिक्त प्रीमियम का भुगतान करती हैं। अग्रवाल कहते हैं, 'नियोक्ता को कर्मचारी के परिवार के स्वास्थ्य बीमा में प्रसव से जुड़े खर्च शामिल करवाने के एवज में 10 प्रतिशत तक अतिरिक्त प्रीमियम देना होता है।'
इसकी वजह भी है कि इरडा अधिनियम 1999 में मेडिक्लेम या स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी का उल्लेख विशेष रूप से नहीं किया गया है। विभिन्न बीमा कंपनियां भिन्न-भिन्न मेडिक्लेम पॉलिसी बेचती है जिनमें शामिल की जाने वाली बीमारियां और शामिल नहीं होने वाले रोग अलग-अलग होते हैं।
व्यक्तिगत या पारिवारिक स्तर (फ्लोटर पॉलिसी) पर इन पॉलिसियों को अपने अनुरूप बना कर लेना संभव नहीं है। लेकिन, कंपनियों के सामूहिक बीमा के मामले में पॉलिसियां कंपनी की जरूरतों को ध्यान में रखते तैयार की जाती हैं और प्रीमियम भी उसी के अनुसार निर्धारित किया जाता है।
ऐसा नहीं कि मैटरनिटी कवर का लाभ नई कंपनी में नियुक्ति के तुरंत बाद ही उठाया जा सकता है। इस कवर के फायदे लेने के लिए 9 महीने तक का इंतजार करना होता है। यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि सामूहिक स्वास्थ्य बीमा के तहत अधिकांश कंपनियां मैटरनिटी कवर को शामिल कराती हैं।
उन्होंने बताया कि मैटरनिटी के मद में अस्पताल या नर्सिंग होम में होने वाले खर्च, सम एश्योर्ड या 50,000 रुपये में से जो भी कम हो, को सामूहिक मेडिक्लेम पॉलिसी के तहत कवर किया जाता है। नवजात शिशु का इलाज भी इसमें पहले दिन से ही शामिल होता है। 3 महीने बाद बच्चे को सामूहिक मेडिक्लेम पॉलिसी में शामिल करवाया जा सकता है।

नवजात शिशु का मेडिक्लेम
अगर आपने न्यू इंडिया इंश्योरेंस या मैक्स बुपा जनरल इंश्योरेंस से मेडिक्लेम पॉलिसी ली हुई है तो जन्म के पहले दिन से ही शिशु को कवर उपलब्ध होगा। अपनापैसा डॉट कॉम के मुख्य कार्याधिकारी हर्ष रूंगटा ने कहा, 'न्यू इंडिया इंश्योरेंस की बर्थराइट पॉलिसी बच्चे के जन्मजात रोगों को पॉलिसी में वर्णित एक खास समय सीमा के भीतर कवर करती है।'
उन्होंने बताया कि मैक्स बुपा भी हाल में ऐसी ही एक पॉलिसी लॉन्च की है जो नवजात बच्चे की बीमारियों को पहले दिन से ही कवर करती हैं। मैक्स बुपा मैटरनिटी कवर फैमिली फ्लोटर पॉलिसी के तहत उपलब्ध कराती है और इसके लिए इंतजार की अवधि न्यूनतम 24 महीने की है।

क्या नहीं होते शामिल
अधिकांश सामूहिक स्वास्थ्य बीमा में गर्भावस्था के दौरान होने वाली मासिक जांच और दवाओं के खर्च शामिल नहीं होते। मैटरनिटी कवर में शुरुआती 12 हफ्तों के दौरान होने वाले गर्भपात को भी शामिल नहीं किया जाता है। इसके अतिरिक्त मैटरनिटी कवर लेने के 9 महीने के दौरान गर्भावस्था से जुड़ा चिकित्सकीय खर्च भी इसमें शामिल नहीं होता है।
http://hindi.business-standard.com/storypage.php?autono=33422

Thursday, April 15, 2010

आईपीएल घोटाले में सोनिया गांधी शामिल

सोनिया गांधी के राजनीति में आने और उनके
प्रधानमंत्री पद ग्रहण करने से इनकार के बाद सामान्यतया उन्हें त्यागी, साध्वी,
धर्मनिष्ठ और जनसेवक महिला के रूप में प्रचारित किया जाता है। आईपीएल यानी क्रिकेट
तमाशे में 200 करोड़ रुपये के घोटाले में सोनिया गांधी की भी हिस्सेदारी सामने आ
रही है। साथ ही यह भी सामने आ रहा है कि हुल्लड़बाजी और अनावश्यक खेल से अरबों की
कमाई में हिस्सेदारी के लिए टीम के हिस्सेदारों को केंद्रीय मंत्रियों ने अपने आवास
पर बुलाकर धमकाया और कारोबारियों को अपनी निजी सुरक्षा बढ़ानी पड़ी।
सामान्यतया
हम लोग किसी यूपी या बिहार के नेता को सांसद कोटे की राशि में से कुछ लाख रुपये
कमाने पर उसे बेइमान कहते हैं। या उसके कुछ लाख रुपये की अवैध कमाई (ठेकेदारी,
चंदावसूली आदि) के चलते बेइमान कहते हैं, लेकि न राजनीति से दूर रहने वाले और गणित
करके मंत्री पद हथियाने वाले मंत्री तो एक झटके में 100 करोड़ या 1000 करोड़ कमा
लेते हैं और यह उन्हें मिलता है उन कंपनियों से, जो गरीब जनता से पाई पाई निचोड़कर
अरबपति बनते हैं।
आश्चर्य है कि विदेश राज्य मंत्री ने अपनी प्रेमिका को 75
करोड़ रुपये का तोहफा कारोबारियों को धमकी देकर दिला दिया। और इस मामले में उन्हें
सीधा संरक्षण मिल रहा है सोनिया गांधी से। अगर उन्हें मंत्री पद से हटा दिया जाता
है तो सोनिया गांधी शायद खुद को साफ-पाक दिखा सकेंगी, लेकिन क्या इन बेइमानों को
उनकी बेइमानी की सजा मिल पाएगी... सत्येन्द्र


इसके तथ्यों को जानने के लिए एक रिपोर्ट पढि़ए....

http://www.business-standard.com/india/news/of-intriguearm-twisting-in-high-places/391883/

आदिति फडणीस
आईपीएल की नई टीम कोच्चि को भले ही आगाज से पहले ही कई मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा हो लेकिन उनके लिए चिंता की कोई बात नहीं क्योंकि देश की सबसे बड़ी वीटो पावर का वरदहस्त उन्हें हासिल हैं। यहां बात हो रही है कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की जो इस मामले में कोच्चि के हक में खड़ी दिखाई दे रही हैं।
कोच्चि की टीम हासिल करने वाले रॉन्दिवु स्पोट्र्स ग्रुप (आरएसडब्ल्यू) के सात निवेशकों में से 2 को पिछले हफ्ते एक केंद्रीय मंत्री के मुंबई स्थित आवास पर तलब किया गया। उनसे कोच्चि टीम की दावेदारी से हटने के लिए कहा गया। यह बातचीत रात 10 बजे शुरू हुई और सुबह करीब 4 बजे तक चली। मंत्रीजी ने उनसे कहा, 'आप जैसे लोगों से निपटने के हमें कई तरीके मालूम हैं।Ó जाहिर है उन दोनों निवेशकों में खौफ सा बैठ गया होगा।
अब उन्होंने दिल्ली दरबार का रुख किया और उसी राजनीतिक दल से संबद्घ एक अन्य मंत्री से गुहार लगाई। उन मंत्री महोदय ने अपने साथ के व्यवहार के लिए उनसे माफी मांगी लेकिन उनका भी विनम्र शब्दों में यही कहना था, 'आईपीएल से बाहर आ जाओ और टीम बेच दो।Ó
अब दोनों निवेशक अपने आप को असहाय स्थिति में पा रहे थे। उनमें से एक अपना कारोबार चलाते हैं और दूसरे एक ब्रोकिंग फर्म के मालिक हैं जो कीमती रत्नों के सौदे करती है। वे करोड़पति हैं। लेकिन उन्हें यह मालूम नहीं था कि क्रिकेट में पैसा लगाना जान में हाथ में लेकर घूमने जैसा काम होगा।
इस कहानी की शुरुआत साल भर पहले हुई जब देश के सात धनाढ्यों ने आईपीएल में पैसा लगाने का मन बनाया। अगले सत्र से इस टूर्नामेंट में दो नई टीमों के आने से उन्हें यह मौका भी मयस्सर हो गया। इस समूह की कमान एक बैंकर के हाथ में थी। जब यह निर्धारित हो गया कि कोच्चि की भी टीम बन सकती है तो समूह ने तय किया कि अगर केरल का कोई जनप्रतिनिधि उनके अभियान का समर्थन करे तो उनकी राह कुछ आसान हो सकती है। उन्होंने शशि थरूर से संपर्क किया और थरूर ने अपनी सहयोगी सुनंदा पुष्कर की हिस्सेदारी के लिए समर्थन मांगा। समूह का कहना है कि पुष्कर की टीम में केवल 5 फीसदी हिस्सेदारी है और उनकी 20 फीसदी हिस्सेदारी की चलाई जा रही खबरें बेबुनियाद हैं।
आरएसडब्ल्यू खेल प्रशंसकों का एक समूह है जो सहायतार्थ आयोजन कराता रहा है लेकिन उसका नाम बहुत ज्यादा सुर्खियों में कभी नहीं रहा। बोली लगाने के लिए बहुत ज्यादा रकम की जरूरत थी। इसके लिए कंपनी की कुल हैसियत 1 अरब डॉलर (तकरीबन 4,500 करोड़ रुपये) होनी चाहिए थी। समूह को लगा कि किसी दिग्गज कारोबारी के सहयोग के बिना उनका मकसद हासिल नहीं हो पाएगा। रॉन्दिुवु ने इसके लिए गौड़ समूह के जे पी गौड़ से संपर्क किया।
आरएसडब्ल्यू के एक सदस्य का कहना है, 'हमें किसी बड़े उद्योगपति के सहारे की दरकार थी।Ó उस समय तक यह स्पष्टï हो चुका था कि दो अन्य स्थानों के लिए भी आक्रामक बोलियां लगाई जाएंगी। इनमें अदाणी समूह अहमदाबाद और वीडियोकॉन और सहारा समूह पुणे के लिए बोली लगाने जा रहे थे। गौड़ ने फैसला लिया कि उन्हें खुद अपने दम पर बोली लगानी चाहिए और उन्होंने आरएसडब्ल्यू का साथ छोड़ दिया। तब रॉन्दिवु का एहसास हुआ कि वह इस खेल में पिछड़ते जा रहे हैं।
बहरहाल पहले दौर की बोली निरस्त कर दी गई और इसे दो हफ्ते बाद चेन्नई में करने का निश्चय किया गया। यह रविवार की एक सुबह थी और चेन्नई में क्रिकेट का एक मैच भी चल रहा था। तब तक पांच कंपनियां होड़ में बरकारर थीं। ये थीं अदाणी समूह, वीडियोकॉन, आरएसडब्ल्यू, साइरस पूनानवाला और उनके साथ बिल्डर अजय शिर्के और सहारा समूह।
जब रॉन्दिवु के पास यह संदेश गया कि उनकी बोली 30 करोड़ डॉलर से कम है और उनकी दावेदारी पिछड़ सकती है। उन्होंने आपस में राय-मशविरा किया और अपनी बोली बढ़ाकर 33.3 करोड़ डॉलर (तकरीबन 1,533 करोड़ रुपये) कर दी। आखिरकार वह टीम हासिल करने में कामयाब हो गए। जश्न मनाने की तैयारी भी हो गई थी लेकिन उनके मुखिया ने चेताया कि पहले फ्रैंचाइजी लैटर हाथ में आ जाए उसके बाद ही कुछ किया जाए।
उन्होंने दिल्ली में आईपीएल कमिश्नर ललित मोदी से मुलाकात की। जिस कमरे में बातचीत हो रही थी उसमें एक केंद्रीय मंत्री की बेटी भी मौजूद थीं। उनसे कहा गया कि चलो 5 करोड़ डॉलर लो और इससे बाहर आ जाओ। पहले तो समूह भौचक्का रह गया लेकिन जवाब आया, 'मान लीजिए कि हम इससे निकल भी जाते हैं तो कौन हमें यह रकम देगा।Ó यह जवाब एक निवेश बैंकर की ओर से आया था। मुखिया ने कहा, 'बातें न बनाएं! मैं निवेश बैंकर हूं और अच्छी तरह से जानता हूं कि कोई भी हमें इतनी बड़ी रकम नहीं देगा।Ó दूसरी ओर से जवाब आया, 'एक निवेश बैंकर का ही ग्राहक।Ó
हालांकि समूह खुद अचरज में पड़ गया लेकिन उन्होंने जवाब दिया कि उनकी साख दांव पर लगी है इसलिए वे ऐसा नहीं कर सकते। सिलसिला यहीं खत्म नहीं हुआ। संभाव्य देनदारियों, हिस्सेदारी का तरीका और आखिर में 10 फीसदी बैंक गारंटी जैसी तमाम औपचारिकताओं की आड़ में फ्रैंचाइजी पत्र वाले दस्तावेज को देने में देरी की जाती रही। आखिर में एक संदेश आया, 'आप इसमें क्यों फंसे? टीम बेच दो।Ó बातचीत की आखिरी जगह मंत्री का बंगला ही था।
समूह को लग गया था कि अगर राजनीतिक तरीके से ही उन्हें न्याय मिल पाएगा तो इसके लिए भी उन्हें किसी राजनेता का ही दरवाजा खटखटाना होगा। शशि थरूर ने अपने दोस्तों को भरोसा दिलाया कि वह विवाह की अपनी योजना को थोड़ा आगे खिसका सकते हैं। सुनंदा पुष्कर जरूर रुआंसी हो गईं। समूह के दो गुजराती निवेशकों ने अपने और अपने परिवार के लिए अतिरिक्त निजी सुरक्षा तैनात कर दी।
समूह के एक सदस्य का कहना है, 'पूरा खेल कुछ यूं था कि हम फ्रैंचाइजी अगले बोलीकर्ता के लिए खाली कर दें।Óयह मामला तो तब है जब किसी भी फ्रैंचाइजी को शुरुआती दो साल में 40 से 50 फीसदी का नुकसान झेलना पड़ता है। एक सदस्य का कहना है, 'हम पहले दो साल में कम से कम 100 करोड़ रुपये का नुकसान होते देख रहे हैं।Óतटस्थ जानकारों का मानना है कि यह विवाद महज 'चालाक लोगोंÓ के दो समूहों के हितों का टकराव है। बीसीसीआई की गवर्निंग परिषद के एक सदस्य का कहना है, 'मोदी के मामले में तो एकदम स्पष्टï है। उनके दामाद के पास इंटरनेट विज्ञापन अधिकार हैं और उनके साले एक टीम में हिस्सेदार हैं। जहां तक शशि थरूर की बात है तो वह जिस महिला से शादी करने जा रहे हैं उन्हें 75 करोड़ रुपये की हिस्सेदारी दी गई जो कुछ साल के बाद 500 करोड़ रुपये तक की हो सकती है। उनके पास जो मंत्रालय है उसमें भी उन्हें पश्चिम एशिया प्रभार मिला हुआ है और उनका कारोबार भी यहीं फैला है। क्या यह भी किसी संपत्ति से कम है।Ó