Wednesday, September 1, 2010

न्यायालय भी किसानों के लिए नहीं!!

अभी सर्वोच्च न्यायालय के एक फैसले पर हंगामा मचा है। कोर्ट ने केंद्र सरकार को आदेश दिया है कि जो अनाज सड़ रहा है वह गरीबों में वितरित किया जाए। यह चिंता केंद्र सरकार की है कि किस तरह का नियम बनाए और किस ढंग से वह अनाज को गरीबों में वितरित करे, क्योंकि न्यायालय आदेश दे सकती है, व्यवस्था नहीं।हां न्यायायालय ने केंद्र सरकार की एक चिंता दूर कर दी है। उसने कहा है कि सरकार उतना ही अनाज खऱीदे, जितने अनाज के रखरखाव की व्यवस्था हो। अब सरकार को किसानों का अनाज नहीं खरीदना पड़ेगा, क्योंकि सरकार आसानी से कह देगी कि वह सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का पालन कर रही है। और इसी आदेश पालन के तहत अनाज नहीं खरीदा जा रहा है।

लघु एवं कुटीर उद्योग के तहत बनने वाले उत्पाद के खरीद की व्यवस्था सरकार करती है। केंद्र सरकार ने अनाज की सरकारी खरीद व्यवस्था बनाई थी। लेकिन यह व्यवस्था फाइलों तक ही सीमित रही। पंजाब और हरियाणा को छोड़ दिया जाए तो किसी भी राज्य में सरकारी खरीद नाममात्र को होती है। सरकारी खरीद का ही फायदा है कि वहां के किसान बिचौलियों के चंगुल में नहीं फंसते और कुछ हद तक इन राज्यों के किसान खुशहाल हैं। अन्य राज्यों में तो किसान आज भी आत्महत्या करने की कगार पर हैं, वे इसलिए नहीं मरते कि गांवों में अभी भी लोगों की जिजीविषा ज्यादा है।

हां कुछ सालों से सरकारी खरीद इसलिए बढ़ गई, क्योंकि स्थानीय जनता और नेताओं का दबाव अनाज के सरकारी खऱीद को लेकर बढ़ा। सरकारी खरीद होती ही कितने खाद्यान्न की है? गेहूं, चावल, दाल, कपास जैसे कुछ नाममात्र के कृषि जिंस हैं, जिनकी खरीदारी सरकार करती है। आलू, प्याज और अन्य कच्चे माल की खेती करने वाले किसान तो आज भी आए दिन बर्बाद होते रहते हैं और लाखों टन आलू खेतों में या किसानों के घर-आंगन में सड़-गल जाता है।

अगर न्यायालय किसानों के हित की बात सोचते तो कब का यह व्यवस्था दे चुके होते कि किसानों का सारा अनाज सरकार खरीदे और उसका रखरखाव करे। उसके बाद किसानों को भी खाने के लिए अनाज सब्सिडी रेट पर या फ्री में दिया जाए। लेकिन ऐसा नहीं। अगर गेहूं का उत्पादन लागत १० रुपये किलो आता है और किसान उसे ३० रुपये किलो बेचे तो शायद उसे हाथ फैलाने को विवश नहीं होना पड़े। किसान खुद कोल्ड स्टोरेज और अनाज के रखरखाव की सुविधा विकसित कर लेगा। लेकिन खाद्यान्न कीमतों पर तो सरकार का शिकंजा है और कीमतें बढ़ाने या घटाने में दलालों और बिचौलियों की ही मुख्य भूमिका होती है।

आखिर हमारी न्यायपालिका कब कहेगी कि देश में ऐसी नीति बनाइये कि हर इलाके में पर्याप्त गोदाम, कोल्ड चेन और अन्य सुविधाएं हों, जिससे किसानों के उत्पाद बर्बाद न होने पाएं। इससे न सिर्फ खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित होगी, बल्कि किसान को अगर उचित फायदा और बेहतर जीवन स्तर मिलने लगेगा तो वे महानगरों में मजदूरी करने के लिए विवश नहीं होंगे।

4 comments:

रंजना said...

Shabdah sahmat hun aapne...

Is saarthak aalekh ke liye aapka sadhuvaad...

Pata nahi kab yah aawaaz hamare desh ke karndhaaron ke kaanon tak pahunchenge....

Satyendra PS said...

उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद रंजना जी। जमीन, खेत, खेती, किसान और गांवों की समस्या से लंबा जुड़ाव रहा है, इसलिए दिल्ली में नौकरी करते हुए भी कभी कभी दर्द फूट पड़ता है।

प्रवीण पाण्डेय said...

विचारणीय प्रश्न, सुन्दर प्रस्तुति।

शरद कोकास said...

फिर किसान कहाँ जायें