Tuesday, December 21, 2010

देश को प्याज के आंसू रुलाती कांग्रेस की प्याज राजनीति

शनिवार की शाम मैने ३६ रुपये किलो प्याज खरीदी थी। सोमवार रात १० बजे जब मैं पांडव नगर सब्जी मंडी में सब्जी खरीदने पहुंचा तो खराब क्वालिटी की प्याज भी ७० रुपये किलो थी। रात के १० बजे बची खुची सब्जियां सस्ती होती हैं, लेकिन प्याज की कीमत ७०-९० रुपये किलो और मटर और टमाटर, जो ४ दिन पहले १५ रुपये किलो थे, ४० रुपये प्रति किलो पर पहुंच गए।
आखिर रातों रात कौन सा ऐसा तूफान आया कि प्याज के दाम दोगुना से ज्यादा हो गए? यह तो अब कांग्रेस सरकार ही समझा सकती है। आखिर क्या है इस सरकार की गणित।
प्याज के इतिहास में जाएं तो सबसे पहले इंदिरा गांधी ने १९८० में प्याज की बढ़ी कीमतों के नाम पर जनता पार्टी को चुनावी मैदान में धूल चटा दिया। उसके बाद दिल्ली में सुषमा स्वराज के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार १९९८ का चुनाव प्याज की बढ़ी कीमतों के चलते हार गई। उसके बाद आज तक भाजपा दिल्ली प्रदेश में सत्ता के लिए तरस रही है। राजस्थान में भैरों सिंह शेखावत ने १० साल तक शासन किया, लेकिन १९९८ के चुनाव में वे भी प्याज के आंसू रोए।
आश्चर्य है। प्याज का राजनीतिक इस्तेमाल करना कोई कांग्रेस से सीखे। लेकिन इस बार तो कांग्रेस सरकार में है। पूरा देश प्याज के आंसू रो रहा है। वह भी रातो-रात प्याज का संकट हो गया। कहा जा रहा है कि असमय बारिश से फसल खराब हो गई। इसके पहले कांग्रेस ने कालाबाजारी करने वालों और चीनी मिलों को खूब कमाई कराई थी, कहा गया कि देश में चीनी कम है। हालांकि कोई ऐसी दूकान नहीं थी, जहां चीनी न हो। लेकिन सरकार कहती रही कि चीनी कम है। हालत यह हुआ कि आयात किया गया। लेकिन बाजार में आयातित चीनी नहीं पहुंची, नए सत्र की चीनी भी बाजार में नहीं पहुंची, लेकिन कारोबारियों ने कहना शुरू किया कि देश में चीनी बहुत ज्यादा है।
आखिर इसके पीछे क्या राजनीति है? आखिर किस तरह से कांग्रेस प्याज का राजनीतिक इस्तेमाल कर रही है? लगता है कि स्पेक्ट्रम घोटाले और हर कांग्रेसी राज के भ्रष्टाचार के खुलासे सामने आने लगे हैं और इससे सरकार डर गई है। पहले दिग्विजय उवाच। फिर चिदंबरम की आग। जब कोई दवा काम न आई तो जनता से सीधे निपटने का तरीका। अब एक तीर से दो शिकार हो रहा है। पहला- प्याज की कीमतों के पीछे जनता भ्रष्टाचार भूल जाए, दूसरा- कालाबाजारी करने वालों को बेहतर कमाई हो जाए। साथ ही कालाबाजारी करने वालों का तालमेल इस सरकार से इतना अच्छा है कि शायद चुनाव ४ महीने पहले फिर कांग्रेस सरकार प्याज को १५ रुपये प्रति किलो के नीचे ले ही आएगी।

2 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

प्याज में तो सरकारें गिराने की ताकत होती है।

Satyendra PS said...

प्रवीण जी, प्याज के नाम सरकार तो तभी गिरेगी, जब वह गैर कांग्रेसी होगी। कम से कम अब तक का इतिहास तो यही बताता है।