Tuesday, October 26, 2010

बिहार में नीतीश कुमार के लिए संभावनाएं

बिहार में नीतीश कुमार फिर ५ साल के लिए मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं- २ चरण के चुनाव में ही स्पष्ट हो गया।

दरअसल दुनिया की किसी लोकतांत्रिक व्यवस्था में करीब सात प्रतिशत मतदाता बेवकूफ होते हैं। वे विकास और नेता के कामों को मतदान का आधार बनाते हैं। उनकी कोई राजनीतिक विचारधारा या निष्ठा, पूर्वाग्रह या ग्रंथि नहीं होती। वे अंत तक भ्रमित रहते हैं। बिहार में ऐसे मतदाताओं को लुभाने की कोशिश में नीतीश ने कहा कि हमने काम किया, लालू ने कहा कि सब स्टंट है और कांग्रेस ने कहा कि सब हमारे पैसे से हुआ। लेकिन ये मतदाता नीतीश कुमार के पक्ष में शत प्रतिशत जाते नजर आ रहे हैं।

दूसरे, जातीय समीकरण नीतीश के खिलाफ था। ऐसे में कांग्रेस बेहतरीन भूमिका निभा रही है। पहले चरण में जहां उसने लालू प्रसाद के भूराबाल (भूमिहार, राजपूत, ब्राह्मण, लाला) का वोट कांग्रेस ने नीतीश से छीना है, दूसरे चरण में राम विलास पासवान का बेड़ा... गर्क करती कांग्रेस साफ नजर आ रही है।
नीतीश को असल खतरा भूराबाल से ही था, जिस वर्ग ने पिछले चुनाव में यह सोचकर नीतीश को वोट दिया था कि जिस तरह की लूट का अवसर उन्हें श्रीकृष्ण सिंह और जगन्नाथ मिश्र के समय मिला था, वैसा ही अवसर नीतीश के कार्यकाल में मिलेगा। लेकिन इन्हें निराशा ही हाथ लगी है। इनके फ्रस्टेटेड वोट (करीब ३० प्रतिशत) कांग्रेस को जा रहे हैं, वहीं तमाम क्षेत्रीय आदि समीकरण बैठाने में सफल रहे नीतीश के पक्ष में अभी भी ६० प्रतिशत भूराबाल हैं। इस तरह से कांग्रेस, नीतीश कुमार के पक्ष में वोटकटवा की भूमिका में ज्यादा नजर आ रही है।

Sunday, October 17, 2010

न्यायालय पहुंचा ब्राह्मणवाद, वहां भी न्याय नहीं

गुजरात उच्च न्यायालय में अजीत मकवाना ने एक मामला दायर किया है। इसमें आरोप लगाया गया है कि ब्राह्मणवाद के चलते जूनागढ़ जिला न्यायालय के न्यायधीश ने त्रितीय औऱ चतुर्थ श्रेणी के ६० प्रतिशत नियुक्ति ब्राह्मणों का किया है।

इसमें पेंच यह फंसा कि उच्च न्यायालय के न्यायधीश आरआर त्रिपाठी भी ब्राह्मण थे। अब अजीत ने अपने वकील एएम चौहान के माध्यम से कहा कि उसे उच्च न्यायालय के न्यायाधीश से भी न्याय की उम्मीद नहीं है, क्योंकि वे भी ब्राह्मण जाति के हैं।

जैसे ही वकील ने यह आधार बनाकर मामले का स्थानांतरण किसी अन्य न्यायालय में करने को कहा, न्यायाधीश त्रिपाठी ने फैसला दिया कि या तो यह आरोप न्यायालय पर दबाव बनाने के लिए लगाया गया है .या फिर मामले का स्थानांतरण दूसरे न्यायालय में कराने के लिए। यह आधार बनाकर न्यायाधीश ने मामले को खारिज कर दिया, जिससे यह प्रवृत्ति रोकी जा सके।

अब क्या कहा जाए? न्याय तो अजीत को मिला नहीं। और शायद इस देश के अजीतों को कभी न्याय नहीं मिलेगा। दलित, पिछड़ा उत्थान के नारे लाख लगें- हकीकत यही है कि जातिवादी भ्रष्टाचार आज भी चरम पर है। उसकी सुनवाई कहीं नहीं है।

स्कूल, कार्यालय, या जहां भी भ्रष्टाचार की संभावना वाली जगहें हैं, कहीं भी अगर सही सर्वे किया जाए तो नियोक्ता की जाति के कार्यकाल में नियुक्त लोगों के आंकड़े यही बयान करते हैं। सरकारी नौकरियां तो अब कम ही हैं... निजी क्षेत्र में यह खेल खुलेआम और धड़ल्ले से चल रहा है। वहां पर तो इस बीमारी को खत्म करने के लिए कोई राजनीतिक दबाव भी नहीं है।

Tuesday, October 12, 2010

कर्नाटक में लोकतंत्र का जनाजा

लंबे समय से कर्नाटक में संघर्ष कर रही भारतीय जनता पार्टी आखिर मुसीबत में आ ही गई। कितना विरोधाभास है कि एक तरफ येदियुरप्पा जैसे साफ छवि के और पिछड़े वर्ग से ताल्लुक रखने वाले मुख्यमंत्री हैं तो उसी पार्टी में अगड़ी जाति के रेड्डी बंधु भी।

भाजपा के इस विरोधाभास का फायदा को कांग्रेस और विपक्षी दलों को उठाना ही था। खबरों के मुताबिक ३०० करोड़ रुपये खर्च करके १२ विधायक खरीद लिए गए और येदियुरप्पा सरकार अल्पमत में आ गई।

कर्नाटक जैसे राज्य में येदियुरप्पा सरकार को गिराने के लिए तीन सौ करोड़ रुपये की राशि बहुत छोटी है। राज्य सरकार ने लौह अयस्क की लूट पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया है। कोर्ट के फैसले के बाद भी लौह अयस्क माफियाओं की दाल नहीं गल रही है। जिस राज्य में लौह अयस्क के खनन व निर्यात पर प्रतिबंध के चलते लौह अयस्क माफिया कंपनियों और ठेकेदारों को प्रतिदिन तीन सौ करोड़ रुपये का घाटा हो रहा हो, वहां सरकार गिराने के लिए इतना पैसा खर्च करना तो बहुत छोटी राशि है।

रही बात भारतीय जनता पार्टी की। वह कर्नाटक में सरकार बचाना भी चाहती है और रेड्डी बंधुओं के साथ भी रहना चाहती है। भाजपा अपने चाल-चरित्र के मुताबिक पिछड़े वर्ग को एक शानदार नेता के रूप में नहीं देख सकती, लेकिन वह उत्तर प्रदेश में पिछड़े वर्ग के नेतृत्व को हाशिए पर लगाने का परिणाम देख चुकी है और केंद्र में सत्ता के लिए लार टपकाने के सिवा उसके हाथ में आज कुछ भी नहीं है। ऐसे में वह येदियुरप्पा को ठिकाने लगाने का जोखिम भी नहीं उठाना चाहती, क्योंकि ऐसा करने पर वह राज्य भी भाजपा के हाथ से निकलना तय है।

कर्नाटक में लोकतंत्र बहाली में असल समस्या लौह अयस्क के अवैध लूट पर रोक है। अगर येदियुरप्पा हटते हैं तो कांग्रेस, भाजपा सहित सभी पार्टियां खुश ही होंगी, क्योंकि लूट में सबका मुंह काला है। लेकिन येदियुरप्पा को हटाने का मतलब होगा की भाजपा अपनी कब्र तैयार कर लेगी। ऐसे में संकट गहराना स्वाभाविक है।