Monday, January 31, 2011

इतनी सस्ती सब्जी? कैसे जिएं किसान?

आज किसानों की दुर्दशा सब्जी मंडी में दिखी। फूलगोभी 5 रुपये किलो, आलू 6 रुपये किलो, टमाटर 7 रुपये किलो, मेथी और बथुए का साग 12 रुपये किलो, मूली 3 रुपये किलो, पत्तागोभी 5 रुपये किलो, मटर 7 रुपये किलो मिल गए।

मामला समझ में आ गया। किसानों के खेतों में सब्जियां उगने लगी हैं। क्या सब्जी खरीदने के पहले सोचा जाता है कि अगर बेहतरीन क्वालिटी की फूलगोभी खुदरा बाजार में 5 रुपये किलो बिक रही है तो थोक बाजार में 3 रुपये किलो से ज्यादा के भाव नहीं आई होगी औऱ थोक बाजार में ट्रक पर लादकर लाने वाले कारोबारियों को भी ऐसा तो नहीं है कि डीजल सस्ता मिलने लगा है। उन्होंने अधिक से अधिक किसानों को 2 रुपये किलो दिया होगा, नहीं तो मुनाफा ही नहीं निकलेगा।

क्या यह सरकार, इस देश के वैग्यानिक, जानकार, समझदार, पढ़े लिखे जानकार कोई भी यह सोच रहा है कि गोभी की उत्पादन लागत कितने रुपये किलो होती है? इस महंगाई में 2 रुपये किलो तो नहीं ही होगी, क्योंकि डीजल, खाद, कीटनाशक, बीज, खेती करने के लिए काम आने वाले उपरकरण- कुछ भी तो सस्ते नहीं हुए हैं। आखिर इसका समाधान क्या है? अगर उत्पादन लागत नहीं निकलेगी तो किसान जिंदा कैसे रहेंगे?

Thursday, January 27, 2011

अपराध का कारपोरेटाइजेशन

आज आईबीएन-७ पर यशवंत सोनवाने पर बहुत बेहतरीन कवरेज देखने को मिला। ढेरों मसाले थे चैनलों पर। कहीं राजा चौधरी, कहीं काला धन, कहीं गणतंत्र दिवस तो कहीं भाजपा की झंडा यात्रा। वहीं इस चैनल ने महाराष्ट्र में एडीएम को जलाए जाने की घटना को न सिर्फ प्रमुखता दी, बल्कि मामले की गहराई तक झांकने की कोशिश की।
अपराध की धारणा देखने पर पता चलता है कि उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में जहां अपराध को अपराध के नजरिए से देखा जाता है, वहीं औद्योगिक रूप से विकसित राज्यों में अपराध का कारपोरेटाइजेशन हो चुका है। इसका आशय यह है कि जो बेइमानी करे, किसी भी तरीके से पैसे बनाए, उसका सम्मान है। वह नेता है, कारोबारी है। उत्तर प्रदेश और बिहार में जहां राजनीतिग्यों व भ्रष्ट ताकतवर लोगों पर लगातार बलात्कार व छोटे मोटे भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे हैं, महाराष्ट्र में माफियाओं और राजनेताओं की मिलीभगत से अधिकारी को जला देने जैसी घटना सामने आ रही है।
संकेत देखिए। उन राज्यों की जनता कितनी हताश और हारी हुई है, जहां अपराध का कारपोरेटाइजेशन हो चुका है। चाहे वह महाराष्ट्र हो, दिल्ली हो, हरियाणा हो या इस तरह के अन्य राज्य। वैसी स्थिति अभी राजनीतिक रूप से जागरूक या कहें कि औद्योगिक रूप से पिछड़े राज्यों में नहीं है और अपराधी को अपराधी ही माना जा रहा है। जबकि औद्योगिक राज्यों में अपराधियों को कारोबारी माना जा रहा है और वे अपने मुताबिक कानून के साथ खेल रहे हैं। कार्रवाई होती भी है तो दिखावे के लिए।
नासिक जिले के मनमाड में तेल माफिया को चुनौती देने वाले मालेगांव के अपर जिलाधिकारी (एडीएम) यशवंत सोनवाने करीब 35 मिनट तक धू-धू कर जलते हुए तकलीफ और दर्द से चिल्लाते रहे। कोई उन्हें बचाने के लिए सामने नहीं आया। इसके पहले भी खैरनार ने अपराधियों पर धावा बोला था। खैरनार को भी वहां की जनता ने बेवकूफ मान लिया कि वह कमाने के चक्कर में न पड़कर आम लोगों की सोचते थे। पता नहीं कहां गायब हो गए खैरनार। उस समय खबरें आईं कि खैरनार की सगी बहन दूसरे के घर में चौका बरतन का काम करती थीं। यशवंत भी इन औद्योगिक सोच वाले राज्यों की पीढ़ी के बेवकूफ अधिकारी निकले। जिस पोपट के यहां उनके आला अधिकारी और बड़े नेता सलामी ठोंकते थे, उसके खिलाफ उन्होंने कार्रवाई करने की बेवकूफी की। अभी मामला ज्वलंत है। छापेमारी चल रही है और सैकड़ों की संख्या में मिलावटखोर पकड़े जा रहे हैं। मिलावटखोर भी वही पकड़े जाएंगे जो हजार-दो हजार की नौकरी करते हैं। करोड़ों के काले कारोबार में एक भी उच्च स्तरीय माफिया या उसे संरक्षण देने वाला नेता पकड़ा जाए, उसकी गुंजाइश कम ही है, क्योंकि वह तो ईमानदार कारोबारी या रसूखदार नेता होता है।

Tuesday, January 25, 2011

क्या पाकिस्तान में है लाल चौक?

अब कश्मीर के भी भारत के हाथ से निकल जाने की उम्मीद लग रही है। भाजपा का कहना है कि कश्मीर भारत का अंग है। अब तक सभी भारतीय भी मानते ही रहे हैं। लेकिन अब उस पर विवाद हो गया है।
मुझे याद आ रहा है अयोध्या का मसला। अयोध्या के पड़ोसी जिला गोंडा का निवासी होने के कारण मुझे भी बचपन से थोड़ी बहुत जानकारी मिलती रहती थी। हिंदू अयोध्या के विवावित स्थल को राम जन्मभूमि मानते थे। जो ढांचा ढहाया गया उसका गुंबद मस्जिद जैसा था, लेकिन उसी के नीचे रामलला विराजमान थे। उसमें जाने के लिए एक टूटा-सा, छोटा-सा गेट था, जिसमें सरकारी ताला लगा था। वीर बहादुर सिंह जब मुख्यमंत्री थे तो उसी ताले को खोलने के लिए यात्रा निकली थी और बाद में ताला खुल गया (हालांकि राम भक्तों को ताले से कोई फर्क नहीं पड़ता था, वे बगल के टूटे रास्ते से जाकर दर्शन करते थे)। उसके बाद भारतीय जनता पार्टी ही वह राजनीतिक दल थी, जिसने व्यापक रूप से बताया कि हिंदू जिस इमारत के नीचे पूजा करते हैं और उसे मंदिर मानते हैं, वह मस्जिद है और उन्होंने उस ढांचे को तोड़ डाला।
तोड़े जाने के पहले हिंदू (जिनकी संख्या बहुत ज्यादा थी) उस ढांचे को मंदिर, मुसलमान उसे मस्जिद और कुछ जानकार (सभी धर्मों के) उसे विवादास्पद ढांचा कहते थे। लेकिन भाजपा के पुण्य प्रताप से उसे अब सब लोग मस्जिद कहते हैं। कोई नहीं कहने वाला कि भाजपा ने मंदिर तोड़ दिया या विवादास्पद ढांचा तोड़ दिया। (वैसे भी राम गरीबों के देवता हैं, कोई कारोबारी राम मंदिर के निर्माण में निवेश नहीं करता। जबसे अयोध्या के राम मंदिर में पूंजी आई है, विवाद और गहरा हुआ है)।
लेख लंबा होने के लिए माफी। लेकिन कुछ ऐसा ही दृष्य कश्मीर मसले में भी बन रहा है। अभी तक पाकिस्तान सरकार से मुर्गा-रोटी पाने पाले कुछ लोग (मुसलमान या हिंदू नहीं) लाल चौक पर पाकिस्तान या कोई अन्य झंडा फहराकर या भारत विरोधी नारे लगाकर यह दिखाने की कोशिश करते थे कि कश्मीर का लाल चौक पाकिस्तान का हिस्सा है। या ऐसे ही कुछ लोग दिखाते रहते हैं कि कश्मीर का स्वतंत्र अस्तित्व है। भारतीय जनता पार्टी भी उसी जमात के साथ खड़ी हो गई है और यह दिखाने की कोशिश कर रही है कि कश्मीर भारत का अंग है।
कोई भी भारतीय यह मानने को तैयार नहीं होगा कि कश्मीर पाकिस्तान का अंग है। अगर भाजपा को कश्मीर पर अपना आधिपत्य दिखाना ही है तो वह कश्मीर के उस हिस्से में घुसे, जिसे लेकर आम भारतीय का दिल तड़पता है, जिसे पाकिस्तान ने अवैध रूप से अपने कब्जे में ले रखा है। पाकिस्तान तो हमारी धरती (भारत के कब्जे वाले इलाके) में घुसकर लोगों से कहलाता है कि लाल चौक पाकिस्तान का है। आम लोगों को भाजपा यह दिखाने की कोशिश क्यों कर रही है कि लाल चौक भारत का हिस्सा है। वह तो है ही, वहां के आसपास के हर जिला मुख्यालयों पर शान से तिरंगा फहराया जाता है। अब तो जो लोग कश्मीर को कम जानते हैं उन्हें कुछ ऐसा लगने लगेगा कि लाल चौक भारत का अंग है ही नहीं, जैसे कि राम मंदिर को मस्जिद बताकर तोड़ा गया था।

Friday, January 21, 2011

लाल चौक पर तिरंगा फहराने की क्या है मंशा?

अगर भारतीय जनता पार्टी के युवा नेता अनुराग ठाकुर श्रीनगर के लाल चौक पर तिरंगा फहराते हैं तो उससे भारत को क्या फायदा मिलने जा रहा है? आखिर वहां तिरंगा फहराने के पीछे ठाकुर की मंशा क्या है?
तिरंगा फहराना देश के लिए गर्व की बात होती है। प्रधानमंत्री और सभी राज्यों के मुख्यमंत्री स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर ध्वजारोहण करते हैं। इसे स्वतंत्रता मिलने की याद के रूप में मनाते हैं और हम गर्व महसूस करते हैं कि इसी दिन हम स्वतंत्र हुए थे और स्वतंत्रता को खुशी, समृद्धि और गुलामी से मुक्ति के प्रतीक के रूप में एक दूसरे से बांटते हैं। लेकिन लाल चौक पर तिरंगा फहराकर खुशी मनाने का उद्देश्य क्या हो सकता है? तिरंगा फहराना ही है तो आखिर उसे देश भर में प्रचारित कर विवाद क्यों खड़ा किया जा रहा है और इसके पीछे भारतीय जनता पार्टी की मंशा क्या है?

ऐसा भी तो नहीं है कि जो लोग लाल चौक जाकर झंडा नहीं फहरा रहे हैं वे देशभक्त नहीं हैं। रही बात वहां तिरंगा फहराने से रोकने की.. तो मैं दिल्ली में बैठा हूं लेकिन मुझे तो लाल किले की प्राचीर पर तिरंगा फहराना क्या, वहां लगे पुलिस कर्मी प्राचीर के निकट फटकने भी नहीं देते। इसकी भी मांग होनी चाहिए कि मेरे जैसे आम आदमी को भी लाल किले की प्राचीर पर झंडा फहराने का मौका मिले, नहीं तो मुझे लगता है कि मेरी देशभक्ति खतरे में पड़ जाएगी।

Tuesday, January 18, 2011

फिर भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ा युवक-२

गोरखपुर के निकट नेपाल की सीमा से सटे इलाके में फिर एक बच्चे की जान चली गई। कल की पोस्ट में भी कुछ खास नहीं था, आज भी नहीं है। इस बार बच्चे ने आत्महत्या नहीं की है, बल्कि सिर्फ वह वसूली के डर से भागने में जान दे बैठा। दरअसल नेपाल सीमा पर रहने वाले लोगों पर अक्सर खाद की तस्करी के आरोप लगते हैं। सब कुछ सुरक्षा बलों के संरक्षण में होता है, लेकिन अगर उनका हिस्सा न दिया जाए तो वे कुछ भी कर देते हैं। जेल में डालने से लेकर जान देने तक। हालांकि अगर देखा जाए तो खाद इधर-उधर करने वाले कुछ तो किसान होते हैं और कुछ गरीब लोग, जो सौ पचास रुपये कमाई के लालच में खाद इधर उधर करते हैं। लेकिन उस पचास की कमाई में पचीस रुपये पुलिस को भी चाहिए होते हैं। इसमें अगर किसी किसान का बेटा अपने खेत में भी खाद लेकर जा रहा हो और पुलिस पहुंच जाए तो उसकी शामत आ जाती है।
महराजगंज जिले के नौतनवा थाना क्षेत्र के मुडि़ला गांव में एसएसबी जवानों के खौफ से सत्रह वर्षीय मोनू डांडा नदी में कूद गया। मुडि़ला गांव का सत्रह वर्षीय मोनू पुत्र राम बचन यादव सुबह सात बजे साइकिल पर खाद लाद कर डांडा नदी की ओर जा रहा था। इसी दौरान पेट्रोलिंग करते हुए एसएसबी के जवान वहां पहुंच गए। खाद देखकर वह मोनू को तस्कर समझ कर लाठियों से पीटने लगे। जान बचाने के लिए मोनू ने नदी में छलांग लगा दी। निकलने का प्रयास करने पर एसएसबी जवानों ने मोनू पर राइफल तान दिया। अंतत: मोनू की मौत हो गयी।
सूचना मिलते ही ग्रामीण नदी की ओर भागे। शव को बाहर निकाला। इसके बाद राष्ट्रीय राजमार्ग पर शव रख कर जाम लगाया। ग्रामीण मांग कर रहे थे कि जब तक आरोपी जवानों की गिरफ्तारी नहीं होगी, जाम समाप्त नहीं होगा।
एसएसबी जवानों की ज्यादती से मोनू की हुई मौत के बाद शव के साथ विरोध कर रहे ग्रामीणों के साथ पुलिस भी सख्ती से पेश आयी। उन्हें खदेड़ने के लिए लाठियां भांजी। जवाब में ग्रामीणों ने भी ईट-पत्थर चलाए। जाम स्थल पर एसएसबी कमांडेंट ललित कुमार के पहुंचते ही ग्रामीण नारेबाजी करने लगे। इस पर भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पुलिस ने लाठियां पटकीं।

Monday, January 17, 2011

भ्रष्टाचार की बीमारी का शिकार हुआ छात्र

मामला छोटा सा है। १०वीं के एक छात्र ने आत्महत्या कर ली है। शायद राष्ट्रीय खबर न बने। शायद यह देश के लोगों तक न पहुंचे। पठनीय भी नहीं है। खासकर ग्रामीण इलाकों में ऐसा होना आम है, हां इस घटना में आत्महत्या जुड़ जाना नई बात है। पुलिस द्वारा उठा लिया जाना, रिश्वत लेकर छोड़ दिया जाना व्यापक बीमारी है।
कानपुर के पड़ोसी जिले रमाबाईनगर के डेरापुर के बिहारी गांव में पुलिस की कथित पिटाई से क्षुब्ध होकर हाईस्कूल के एक छात्र ने आत्महत्या कर ली, इस घटना के बाद जनता के गुस्से को देखते हुए पुलिस प्रशासन ने विहाराघाट चौकी इंचार्ज और दो सिपाहियों को सस्पेंड कर दिया है तथा उनके खिलाफ एफआईआर भी दर्ज करा दी गई है।लोगों के गुस्से को देखते हुए इलाके में अतिरिक्त पुलिस बल तैनात किए गए हैं।
डेरापुर इलाके के विहारी गांव के पास एक ढाबे से 13 जनवरी की रात एक नलकूप चोरी हो गया। ढाबे के मालिक सुरेश फौजी की शिकायत पर पुलिस चौकी इंचार्ज ने 14 जनवरी की रात को गांव के चार लड़कों को उठा लिया और उनसे पूछताछ की। इन चार लड़कों में से एक हाईस्कूल के छात्र विजय कुमार के पिता रघुवीर का आरोप है कि उसके पुत्र की बुरी तरह की पिटाई की गई और चौकी इंचार्ज एम पी सिंह ने 14 हजार रूपए रिश्वत लेकर उसे छोड़ा। पुलिस चौकी से लौटने के बाद विजय शनिवार रात अपने कमरे में सोने गया और कल सुबह जब काफी देर तक उसके कमरे का दरवाजा नही खुला तो घर वालों को आशंका हुई। उन्होंने अंदर झांका तो विजय को पंखे के कुंडे से रस्सी के सहारे लटकता पाया।

Wednesday, January 5, 2011

और ये है अमेरिकी न्यायालय

अमेरिकी न्यायालय की श्रेष्ठता की दुहाई दी जाती है और अमेरिका और ब्रिटेन के न्यायालय से कुछ कुछ नियम चुराकर भारत की कानून व्यवस्था बनाई गई है। अपनी उम्र के तीस साल जेल में बिताने के बाद उसे रिहा कर दिया गया है क्योंकि वह बेक़सूर था. अब अदालत ने उसके ख़िलाफ़ सुनाए गए 75 साल की क़ैद की सज़ा को भी पलट दिया है.
अमरीका के टैक्सस प्रांत में रहने वाले कॉर्नेलियस डूप्री जूनियर इस फ़ैसले से ख़ुश भी हैं और नाराज़ भी. डूप्री को वर्ष 1979 में जेल भेजा गया था. उन पर आरोप था कि उन्होंने घातक हथियार के साथ डकैती की. अब 51 वर्ष के हो चुके कॉर्नेलियस डूप्री को 2010 में पैरोल पर रिहा किया गया और इसके सात दिनों बाद ही डीएनए टेस्ट से ये पता चला कि वे निर्दोष हैं. अब एक जज ने अधिकृत रुप से पुराने फ़ैसले को पलट दिया है.
डलास में अदालत के बाहर डूप्री ने कहा, "फिर से आज़ाद होना ख़ुशी देता है."
सीएनएन नेटवर्क से हुई बातचीत में उन्होंने कहा कि यह ध्यान में रखने के बाद कि उन्होंने इतना लंबा समय जेल में गुज़ारा है, उनकी भावनाएं मिली-जुली सी हैं। उन्होंने कहा, "मैं मानता हूँ कि मुझे थोड़ा ग़ुस्सा भी आ रहा है लेकिन ख़ुशी भी है और ख़ुशी ग़ुस्से की तुलना में ज़्यादा है."
कॉर्नेलियस डूप्री पर आरोप लगा था कि उन्होंने एक और व्यक्ति के साथ मिलकर एक 26 वर्षीय महिला के साथ बलात्कार किया और फिर उसे लूट लिया। हालांकि उन पर बलात्कार का मुक़दमा कभी नहीं चला लेकिन डकैती के लिए उन्हें दोषी ठहराया गया और 75 साल जेल की सज़ा सुनाई गई। ( बीबीसी की खबर )

Tuesday, January 4, 2011

इसीलिए चाहिए जनसेवकों को सुरक्षा

बिहार के पूर्णिया जिले में भाजपा के एक स्थानीय विधायक राजकिशोर केसरी की रूपम पाठक नाम की एक महिला ने चाकू मारकर हत्या कर दी। आरोपी महिला ने छह महीने पहले विधायक केसरी के खिलाफ यौन शोषण का आरोप लगाया था।
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सीपी ठाकुर ने कहा कि केसरी की मौत से भाजपा ने एक युवा और समर्पित सिपाही खो दिया है। राजद के महासचिव रामकृपाल यादव ने कहा कि मैंने अपना एक करीबी साथी खो दिया। घटना के बाद विधायक के घर पर मौजूद लोगों ने महिला को बुरी तरह पीटा और बाद में उसे पुलिस के हवाले कर दिया।

(स्वाभाविक है कि जनता दरबार का संचालन कर रहे विधायक पर हमला करने आई महिला को पता रहा होगा कि चाकू मारने के बाद उसका जिंदा बचना मुश्किल है। विधायक के पास हमेशा पुलिस सुरक्षा होती है- उसकी मौजूदगी में ही महिला की पिटाई हुई होगी। साथ ही उनके पास निजी सुरक्षा फोर्स भी होती है। उसने बलात्कार का आरोप ६ महीने पहले लगाया था और शायद उसे "न्याय" की आस थी। अगर यह सहमति से हुआ यौन संबंध था, तब भी उस महिला के साथ कुछ ऐसा धोखा जरूर हुआ होगा कि उसने आपा खो दिया। अब देखिए कि सत्ता पक्ष और विपक्ष के किस तरह के बयान सामने आ रहे हैं।)