Wednesday, January 5, 2011

और ये है अमेरिकी न्यायालय

अमेरिकी न्यायालय की श्रेष्ठता की दुहाई दी जाती है और अमेरिका और ब्रिटेन के न्यायालय से कुछ कुछ नियम चुराकर भारत की कानून व्यवस्था बनाई गई है। अपनी उम्र के तीस साल जेल में बिताने के बाद उसे रिहा कर दिया गया है क्योंकि वह बेक़सूर था. अब अदालत ने उसके ख़िलाफ़ सुनाए गए 75 साल की क़ैद की सज़ा को भी पलट दिया है.
अमरीका के टैक्सस प्रांत में रहने वाले कॉर्नेलियस डूप्री जूनियर इस फ़ैसले से ख़ुश भी हैं और नाराज़ भी. डूप्री को वर्ष 1979 में जेल भेजा गया था. उन पर आरोप था कि उन्होंने घातक हथियार के साथ डकैती की. अब 51 वर्ष के हो चुके कॉर्नेलियस डूप्री को 2010 में पैरोल पर रिहा किया गया और इसके सात दिनों बाद ही डीएनए टेस्ट से ये पता चला कि वे निर्दोष हैं. अब एक जज ने अधिकृत रुप से पुराने फ़ैसले को पलट दिया है.
डलास में अदालत के बाहर डूप्री ने कहा, "फिर से आज़ाद होना ख़ुशी देता है."
सीएनएन नेटवर्क से हुई बातचीत में उन्होंने कहा कि यह ध्यान में रखने के बाद कि उन्होंने इतना लंबा समय जेल में गुज़ारा है, उनकी भावनाएं मिली-जुली सी हैं। उन्होंने कहा, "मैं मानता हूँ कि मुझे थोड़ा ग़ुस्सा भी आ रहा है लेकिन ख़ुशी भी है और ख़ुशी ग़ुस्से की तुलना में ज़्यादा है."
कॉर्नेलियस डूप्री पर आरोप लगा था कि उन्होंने एक और व्यक्ति के साथ मिलकर एक 26 वर्षीय महिला के साथ बलात्कार किया और फिर उसे लूट लिया। हालांकि उन पर बलात्कार का मुक़दमा कभी नहीं चला लेकिन डकैती के लिए उन्हें दोषी ठहराया गया और 75 साल जेल की सज़ा सुनाई गई। ( बीबीसी की खबर )

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

न्याय व्यवस्था भी समाज का प्रतिबिम्ब बन उभरी है।