Thursday, January 27, 2011

अपराध का कारपोरेटाइजेशन

आज आईबीएन-७ पर यशवंत सोनवाने पर बहुत बेहतरीन कवरेज देखने को मिला। ढेरों मसाले थे चैनलों पर। कहीं राजा चौधरी, कहीं काला धन, कहीं गणतंत्र दिवस तो कहीं भाजपा की झंडा यात्रा। वहीं इस चैनल ने महाराष्ट्र में एडीएम को जलाए जाने की घटना को न सिर्फ प्रमुखता दी, बल्कि मामले की गहराई तक झांकने की कोशिश की।
अपराध की धारणा देखने पर पता चलता है कि उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में जहां अपराध को अपराध के नजरिए से देखा जाता है, वहीं औद्योगिक रूप से विकसित राज्यों में अपराध का कारपोरेटाइजेशन हो चुका है। इसका आशय यह है कि जो बेइमानी करे, किसी भी तरीके से पैसे बनाए, उसका सम्मान है। वह नेता है, कारोबारी है। उत्तर प्रदेश और बिहार में जहां राजनीतिग्यों व भ्रष्ट ताकतवर लोगों पर लगातार बलात्कार व छोटे मोटे भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे हैं, महाराष्ट्र में माफियाओं और राजनेताओं की मिलीभगत से अधिकारी को जला देने जैसी घटना सामने आ रही है।
संकेत देखिए। उन राज्यों की जनता कितनी हताश और हारी हुई है, जहां अपराध का कारपोरेटाइजेशन हो चुका है। चाहे वह महाराष्ट्र हो, दिल्ली हो, हरियाणा हो या इस तरह के अन्य राज्य। वैसी स्थिति अभी राजनीतिक रूप से जागरूक या कहें कि औद्योगिक रूप से पिछड़े राज्यों में नहीं है और अपराधी को अपराधी ही माना जा रहा है। जबकि औद्योगिक राज्यों में अपराधियों को कारोबारी माना जा रहा है और वे अपने मुताबिक कानून के साथ खेल रहे हैं। कार्रवाई होती भी है तो दिखावे के लिए।
नासिक जिले के मनमाड में तेल माफिया को चुनौती देने वाले मालेगांव के अपर जिलाधिकारी (एडीएम) यशवंत सोनवाने करीब 35 मिनट तक धू-धू कर जलते हुए तकलीफ और दर्द से चिल्लाते रहे। कोई उन्हें बचाने के लिए सामने नहीं आया। इसके पहले भी खैरनार ने अपराधियों पर धावा बोला था। खैरनार को भी वहां की जनता ने बेवकूफ मान लिया कि वह कमाने के चक्कर में न पड़कर आम लोगों की सोचते थे। पता नहीं कहां गायब हो गए खैरनार। उस समय खबरें आईं कि खैरनार की सगी बहन दूसरे के घर में चौका बरतन का काम करती थीं। यशवंत भी इन औद्योगिक सोच वाले राज्यों की पीढ़ी के बेवकूफ अधिकारी निकले। जिस पोपट के यहां उनके आला अधिकारी और बड़े नेता सलामी ठोंकते थे, उसके खिलाफ उन्होंने कार्रवाई करने की बेवकूफी की। अभी मामला ज्वलंत है। छापेमारी चल रही है और सैकड़ों की संख्या में मिलावटखोर पकड़े जा रहे हैं। मिलावटखोर भी वही पकड़े जाएंगे जो हजार-दो हजार की नौकरी करते हैं। करोड़ों के काले कारोबार में एक भी उच्च स्तरीय माफिया या उसे संरक्षण देने वाला नेता पकड़ा जाए, उसकी गुंजाइश कम ही है, क्योंकि वह तो ईमानदार कारोबारी या रसूखदार नेता होता है।

3 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

दुर्भाग्य है देश का कि ऐसी घटनायें हो रही हैं।

रंजना said...

बहुत सही कहा आपने...

छपा और धड पकड़ केवल खानापूर्ती है...चिल्लारों को पकड़ कर प्रशासन और पुलीस सीना फुलायेगी...

बड़े लोग निश्चिंत निर्भीक रहे हैं सदा ही और आगे भी रहेंगे...

Sushil said...

हमारे यहाँ एक सड़क के गड्ढे को भी ठीक होने के लिए, उसमे किसी का गिरना ही काफी नहीं, उसे किसी बड़े न्यूज़ चैनल आना चाहिए !!