Wednesday, February 9, 2011

फेसबुक की मिस्र क्रांति

कारोबार का एक और चेहरा। मिस्र में होस्नी मुबारक को हटाने के लिए जनता सड़कों पर है। इसी बीच खबर आई कि फेसबुक से यह क्रांति शुरू हुई।
क्या कहा जाए इस फेसबुक क्रांति के बारे में। खासकर अरब देश की क्रांति के बारे में। जिन देशों में इंटरनेट का इस्तेमाल करने वालों की अच्छी-खासी तादात है, वहां तो फेसबुक कोई क्रांति नहीं ला पाया, लेकिन मिस्र में क्रांति लाने का श्रेय जरूर फेसबुक को दे दिया गया।
हालांकि फेसबुक पर मिस्र के बारे में खोजने पर बहुत थोड़ा कुछ ही मिलता है। होमोसेक्स, फ्रीसेक्स, पंरपराओं को तोड़ने, मुस्लिम प्रथाओं का विरोध करने जैसे जुमले जरूर मिल जाएंगे। कुछ ऐसा तो कम ही मिलता है, जिसमें यह कहा जा रहा हो कि होस्नी मुबारक तानाशाह हैं। या कुछ आंकड़े दिए जा रहे हों कि वहां की तानाशाही सत्ता से जनता परेशान है।
उधर इन दावों के बीच फेसबुक ने घोषणा कर दी कि वह मिस्र के उपभोक्ताओं को मोबाइल सेवा देने जा रहा है। यानी मोबाइल से अपना मैसेज भेजें और वह फेसबुक पर खुद-ब-खुद आ जाएगा। हो गया न कारोबारी इस्तेमाल एक जन विरोध का।
ऐसी ही क्रांति भारत में भी कर रहा है फेसबुक। कुछ लाइनों में भड़ास निकालिए या निरर्थक बातें लिख दीजिए। अगर आप अच्छे पद पर हैं और नौकरी की चाह रखने वाले बेरोजगारों को थोड़ी भी उम्मीद आपसे बनती है तो तुरंत फेसबुक पर क्रांति आ जाएगी। यानी प्रतिक्रियाओं की बाढ़। अगर ऐसे लोग (जिनसे बेरोजगारों से थोडी़ भी मदद की उम्मीद है) अपने थोबड़े की घटिया सी फोटो भी डाल दें तो वाह उस्ताद वाह कहने वाले बेचारों की बाढ़ लग जाती है।
मजेदार बात है कि भारत में भी यह चर्चा उठी कि भ्रष्टाचार, शोषण के इतने मामले भारत में हैं कि यहां भी मिस्र जैसा विरोध हो सकता है। लेकिन ऐसा कहने वाले फेसबुक तक ही सिमटे हैं। अखबारों में भी थोड़ा बहुत लिखा गया। अब उम्मीद करिए फेसबुक से। क्रांति ले आएगा। जमीनी हकीकत न तो जानने की जरूरत है और न ही पीड़ित लोगों के बीच जाकर उनका पक्ष जानने का। बस फेस बुक से आस रखिए। एक न एक दिन भारत में भी क्रांति जरूर आएगी।

2 comments:

संदीप कुमार said...

आप देखिए कि फेसबुक पर कौन लोग ज्यादा सक्रिय हैं; जिनके फोकटिया इंटरनेट है वो यहां ज्यादा क्रांति करते हैं; ऐसा नहीं है कि गांव कस्बों में इंटरनेट नहीं है, है लेकिन वहां पैसे देकर कैफे जाने वाले बच्चे अपने काम की चीजों पर ध्यान देते हैं फेसबुक आरॅकुट पर नहीं। इसके अलावा आभासी दोस्तियों और नेटवर्किंग की ज्यादा जरूरत तो शहरी उच्च मध्यवर्ग को ही है उन्हें इसकी क्या दरकार जहां पूरा गांव ही आपका रिश्तेदार लगता है;

प्रवीण पाण्डेय said...

सच कहा, मेरे देश पर भी कृपा करो फेसबुकजी।