Friday, April 29, 2011

सियासत तो निवाले पर भी हुई

हरिशंकर मिश्र


खेत सूखे क्यों, पेट भूखे क्यों और चेहरे रूखे क्यों? बुंदेलखंड का यह यक्ष प्रश्न है और इसका जवाब है वह 85 पैसा जो बकौल राहुल गांधी केंद्र से चलते हुए रास्ते में गायब हो जाता है। केंद्र और प्रदेश सरकार इस 85 पैसे की रार में है और बुंदेलखंड आश्वासनों के सहारे जी रहा है। वे गांव भी सियासत का शिकार हो गए, जहां एक निवाले के लाले थे और भुखमरी व कर्ज से मौत की घटनाएं प्रकाश में आई थीं। वे छोटे-मोटे वायदे भी पूरा नहीं हुए जिन पर शत-प्रतिशत पूरा होने की मुहर थी।


सन 2007 की बात है। मुख्यालय से 18 किलोमीटर दूर माधोपुर गांव पहुंचे कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने एक विकलांग बालिका सुमन को शादी का सपना दिखाया था। एक हजार रुपये भी दिए थे। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी भी उनके साथ थीं। राहुल के जाने के बाद इस बालिका से मिलने कोई कांग्रेसी नहीं पहुंचा। पिता मर चुके हैं, इसलिए गांववालों ने कोशिश करके उसकी व उसकी छोटी बहन संगीता दोनों की शादी तय कर दी है। अब मां श्याम रानी परेशान है कि विवाह के लिए रुपये कहां से आयेंगे। विकलांग सुमन कहती है-साहब मोर गुहार पहुंचाय दीन्हा।


उसे उम्मीद है कि शायद प्रधानमंत्री के आने पर कोई उसकी सुन ले। प्रदेश सरकार की ओर से इस परिवार को शादी-बीमारी योजना का भी लाभ दिलाने की कोशिश नहीं की गई। राहुल गांधी ने यह भी आश्वासन दिया था कि माधोपुर गांव में तीन ट्यूबवेल लगाए जाएंगे। पूरा गांव आज तक ट्यूबवेल का इंतजार कर रहा है।


अब से महज चार पांच साल पहले माधोपुर गांव के बगल का पड़री गांव इसलिए चर्चा में रहा था कि यहां कर्ज में डूबे एक किसान किशोरी साहू ने आत्महत्या कर ली थी। गांव में प्रत्यक्षत: मुफलिसी के लक्षण नजर नहीं आते। कुएं हैं हैंडपंप हैं, उनमें पानी है और गांव के बगल से नहर भी गुजरती है। ग्राम प्रधान उर्मिला के पति गोविंद इसका खुलासा करते हैं-दस बीघा में दस मन गेंहू हुआ है। यही पूरे बांदा और बुंदेलखंड का सच है। किसान क्रेडिट कार्ड उनके लिए उम्मीदों की राह लेकर आया और हताशा का कारण बन गया। किसानों ने कार्ड से कर्ज लिया लेकिन खेती दगा दे गई। कर्ज वापसी की राह न मिली तो मौत को गले लगा लिया। लोग बताते हैं पड़री मे इसी वजह से बबली और बिंदु नामक दो युवाओं ने आत्महत्या कर ली थी।


एग्रीकल्चर फाइनेंस कार्पोरेशन की ओर से भू्मि के सर्वेक्षण को लखनऊ से इस गांव में पहुंचे वीके कटियार बताते हैं-गांव वाले क्या करें, तापमान तो तेजी से बढ़ा, लेकिन पानी नहीं। पहाड़ की तराई के नीचे बसा नहरी गांव भुखमरी से हुई मौतों की वजह से चर्चा में आया था। सन 2008 के अप्रैल में यहां राहुल गांधी के साथ उम्मीदें भी पहुंची थीं। गांववालों की सिर्फ एक फरियाद थी कि हमारा राशन कार्ड बनवा दिया जाए, लेकिन अब तक ऐसा न हो सका।


प्रशासन ने इसलिए दूरी बनाए रखी कि वहां राहुल गए थे। गांव में सामुदायिकता का विकास करने में जुटे राजा भैया कहते हैं-तब से कुछ मौतें और हुई हैं। असली जड़ सूदखोरों के जाल में फंसना है। यहां के लक्ष्मीबाजार में महिलाएं तीन बजे से पानी के लिए लाइन न लगाएं तो दो बूंद पानी को तरस जाएं। इस स्थिति का कारण सिर्फ यही है कि 85 पैसा का हिसाब देने को कोई तैयार नहीं। सामाजिक कार्यकर्ता देवी प्रसाद गुप्ता ने तो इसके लिए 85 पैसे ढूढ़ों आंदोलन भी शुरू किया है। वे कहते हैं-आखिर कौन बतायेगा कि पैसे कहां जा रहे हैं।


courtsy : http://in.jagran.yahoo.com/epaper/index.php?location=37&edition=2011-04-29&pageno=20

Friday, April 22, 2011

आखिर कैसे मिलेगा मुख्तारन माई जैसी महिलाओं को न्याय?

सत्येन्द्र प्रताप सिंह


...औरतों के खिलाफ जुल्म का मसला कितना बड़ा है, मैं यह महसूस करके भौचक्की रह जाती हूं। हर उस औरत के मुकाबले, जो जुल्म के खिलाफ लड़ती है और बच निकलती है, कितनी औरतें रेत में दफन हो जाती हैं, बिना किसी कद्र और कीमत के, यहां तक कि कब्र के बिना भी। तकलीफ की इस दुनिया में मेरा दुख कितना छोटा है।...

पाकिस्तान की मुख्तारन माई का ये दुख दरअसल उतना छोटा नहीं है। मुख्तारन माई की किताब ...इन द नेम ऑफ ऑनर... तकरीबन 5 साल पहले आई थी।

आज फिर मुख्तारन माई चर्चा में हैं. आज ही पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायालय ने उनके साथ हुए सामूहिक बलात्कार का फैसला सुनाया है. मुख्तारन माई रो रही है. पाकिस्तान के मानवाधिकारवादी रो रहे है, जिन्हें न्याय प्रणाली में आस्था है (थी). मुख्तारन माई ने कहा कि अगर अब उनकी हत्या हो जाती है तो पाकिस्तान की सरकार के साथ यहाँ की न्यायपालिका भी जिम्मेदार होगी.

पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायालय ने गुरुवार को उच्च न्यायालय के फैसले को बरक़रार रखते हुए मुख्तारन माई के सामूहिक बलात्कार के मामले में ५ आरोपियों को बाइज्जत बरी कर दिया. वहां की एक पंचायत ने मुख्तारन माई के भाई के अपराध के लिए २००२ की गर्मियों में उसके साथ सामूहिक बलात्कार करने की सजा सुनाई थी. सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि साक्ष्य पर्याप्त नहीं हैं और इसका फायदा आरोपियों के पक्ष में जाता है.

अब कौन सी औरत होगी, जो इतने थू-थू के बीच न्याय की आस लगाएगी? और इस व्यवस्था में कैसे आस्था कर पाएंगे लोग?

Thursday, April 21, 2011

भ्रष्टाचार का मनमोहन तंत्र

सत्येन्द्र प्रताप सिंह
"प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने आगाह किया कि भ्रष्टाचार को बर्दाश्त करने का जनता के सब्र का बांध अब टूट चुका है। उन्होंने कहा कि सरकार इस दुराचार की चुनौती से सख्ती से निपटने को प्रतिबद्ध है, क्योंकि जनता इसके खिलाफ तुरत और कठोर कार्रवाई चाहती है। उन्होंने कहा कि सरकार की तरफ से संसद के मानसून सत्र में भ्रष्टाचार की नकेल कसने के लिए चर्चित लोकपाल विधेयक पेश कर दिए जाने की उम्मीद है।"

वाह... कितनी खूबसूरत बातें कही गई हैं। मजे की बात है कि यह कहते हुए शर्म भी नहीं आई कि यह वही व्यक्ति कह रहा है जिसके हाथ में पिछले ७ साल से केंद्र सरकार की सत्ता है। जिसके द्वारा तैयार की गई खुली लूट की व्यवस्था पिछले २० साल से भारत में चल रही है।

हमारे प्रधानमंत्री इतने नासमझ भी नहीं हैं कि वे समझ न रहे हों। उन्होंने जो व्यवस्था दी है, उसमें भ्रष्टाचार को संस्थागत रूप दे दिया गया है और लगातार उसे संस्थागत रूप दिया जा रहा है।

एक छोटा सा सवाल। अगर कोई व्यक्ति पचास हजार रुपये की नौकरी कर रहा है और वह दिल्ली में दो कमरे का फ्लैट खरीद लेता है तो उसके ऊपर बीस साल के लिए तीस हजार रुपये महीने की किश्त बंध जाएगी। बैंक खुलेआम यह धन मुहैया करा देते हैं। हां, इसमें पेंच सिर्फ इतना है कि पचास हजार महीने कमाने वाले की नौकरी सुरक्षित नहीं है, और वह भय में जी रहा है। अगर वह इस कर्ज के दुश्चक्र में फंस गया तो जल्द से जल्द कर्ज पाट देना चाहेगा। ऐसे में स्वाभाविक रूप से नौकरी के दौरान खुलकर भ्रष्टाचार करना उसकी मजबूरी है। हां अगर पांच साल तक कर्ज भरने के बाद उसकी नौकरी चली जाती है तो अगर उसके भीतर जरा सा भी साहस होगा तो आत्महत्या करने की बजाय वह बैंक लूट लेना या किसी के बच्चे का अपहरण करने को तत्पर होगा, जिससे उसका फ्लैट बचा रह जाए। क्यों बनाई गई ऐसी व्यवस्था? ईमानदारी बरतने के लिए? अगर ईमानदारी की आस की जाती है तो जिस व्यक्ति को कर्ज दिया जा रहा है उसको नौकरी की काउंटर गारंटी दे दी गई होती, लेकिन यह मुमकिन नहीं।

यही हाल क्रेडिट कार्ड बांटने वालों का है। जब किसी युवक के ऊपर कर्ज चढ़ जाता है औऱ बैंक का वसूली विभाग उसे गालियां देना शुरू कर देता है तो वह किसी महिला के गले से चेन खींचकर वह पैसा लौटा देने में सुविधा महसूस करता है। हां, पहले वह सोनार के यहां चेन बेचता था तो दिक्कत आती थी, क्योंकि स्थानीय पुलिस सोनार को टाइट करती थी। अब उसके लिए सोने के बदले कर्ज देने वाले वैधानिक संस्थान खुल गए हैं। जब चोरी का माल इन संस्थानों के पास आने का मामला खुलता है तो दस-पांच हजार वेतन पाने वाला मैनेजर नौकरी से हाथ धोता है और उसके परिवार वाले जमानत कराने के लिए न्यायालय के चक्कर लगाते हैं, लेकिन लूट का तंत्र यूं ही चलता रहता है।

मनमोहनी नीतियों ने कारोबारियों को खुली लूट की छूट दे रखी है। यह किसी से छिपा नहीं है। सरकार वैधानिक तरीके से औऱ बगैर किसी भ्रष्टाचार के कारोबारियों को तेल के कुएं, खनिज पदार्थ, स्पेक्ट्रम मुफ्त में दे रही है। वह कारोबारी जमकर मुनाफा काट रहा है। किराना से लेकर सब्जी की दुकान तक कुछ बड़े हाथों में चली गईं। तो सब्जीवाले, गलियों में किराना की दुकान चलाने वाले क्या करें? उनके लिए कोई व्यवस्था है क्या? कैसे वे अपना पेट पालें?... बहरहाल, ये विषय लंबा है और लोग धीरे-धीरे ही सही, इसको समझ ही रहे हैं।

आजकल लोकपाल की नौटंकी चली। इससे कुछ लोगों को लगा कि राहत मिलने वाली है। अब इसमें कोई कड़े प्रावधान न आएं, इसके लिए शांति भूषण-प्रशांत भूषण पर कांग्रेसी फौज क्या, भाजपा सहित सबने हमला बोल दिया। जब इसी तंत्र में रहकर भूषण परिवार ने 100 करोड़ बनाए हैं तो उनके खिलाफ मामले निकल रहे हैं तो उसमें आश्चर्य कहां से होना चाहिए? क्या कोई अमीर या भ्रष्ट आदमी भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम नहीं चला सकता? अगर टीम मनमोहन भ्रष्टाचार का तंत्र विकसित करने के बाद से भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम चलाने की नौटंकी कर सकती है, तो भूषण क्यों नहीं?

मीडिया भी बड़ी अजीब है। हमारे इलाके में कहावत है, थूककर चाटना। इस समय की खबरें देखने पर कुछ ऐसा ही अहसास हो रहा है। अभी तक अन्ना-भूषण बड़ा बढ़िया काम कर रहे थे और अब वे खलनायक हो गए? अरे भाई, पहले होमवर्क क्यों नहीं कर लिया था, कि अन्ना-भूषण भ्रष्ट हैं? या उन्होंने धरने के बाद सारे भ्रष्टाचार किए हैं? उस समय तो सारे अखबार और चैनल जीत गए थे, जब सरकार ने अन्ना का अनशन तोड़वा दिया था। उस समय अगर गलती से भी कोई सवाल उठाता था कि इस लोकपाल से कुछ खास होने वाला नहीं है तो ये संपादकाचार्य कहते थे कि इस जीत के बाद आपको मुस्कराना चाहिए, आपके चेहरे पर इतनी हताशा क्यों है? आज वही लोग कह रहे हैं कि ये सिविल सोसाइटी वाले भ्रष्ट हैं।

प्रधानमंत्री जी। आपही अब भ्रष्टाचार से लड़ाई लड़िए। आपके सलाहकार कौशिक बसु ने बहुत अच्छी सलाह दी थी कि हरासमेंट ब्राइब को वैध रूप दे दिया जाना चाहिए। ऐसा कर दीजिए। न्यायालय का भी बोझ कम होगा। वहां भ्रष्टाचार के मामले आने कम हो जाएंगे।।

Tuesday, April 5, 2011

ताकि सनद रहे....

सत्येन्द्र प्रताप सिंह

अन्ना हजारे में ७३ साल की उम्र में भी जोश है. मेरा उन्हें पूरा समर्थन है. समर्थन देने के लिए मैं सुबह सबेरे जंतर-मंतर पहुच गया. तब तक जाऊंगा, जब तक वो बैठे रहेंगे. दादा चाहते हैं कि भ्रष्टाचार खत्म हो. मेरे मन में कुछ सवाल उमड़-घुमड़ रहे हैं, उसका जवाब खोज रहा हूँ.

१- दादा, आप चाहते हैं कि भ्रष्टाचार खत्म हो, मैं भी चाहता हूँ. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी चाहते हैं. सोनिया गाँधी भी चाहती हैं. साथ में राजनाथ सिंह भी चाहते है. बिहार वाले सुशील मोदी और शरद यादव भी चाहते है. यहाँ तक कि बिहार वाले पप्पू यादव भी आपके समर्थन में हैं. कुल मिलाकर सत्तापक्ष और विपक्ष आम जनता सभी चाहते हैं कि भ्रष्टाचार खत्म हो, फिर आपको आमरण अनशन क्यों करना पड़ रहा है?


२- हमारे नेता मुरली मनोहर जोशी आजकल २जी घोटाले के सिलसिले में लोगों से पूछताछ कर रहे हैं. सोमवार को वे टाटा से मिले, नीरा राडिया से भी. टाटा से जब पूछा गया कि आपके मुताबिक २जी में कितने का घोटाला हुआ, तो वे कहते हैं कि जो घोटाला हुआ ही नहीं, उसकी राशि कहाँ से बता दूं कि कितने का घोटाला हुआ? हमारे जोशी जी कहते हैं कि नीरा कुछ नहीं बताती, टाटा जी ने सब कुछ सही सही बताया. आखिर जो महिला उनके लिए काम करती है, और उसके एवज में पैसा लेती है वो गलत है, और टाटा सही हैं, ये कैसे हो जाता है?


३- २जी में सरकार ने २ लाख करोड़ रूपये का स्पेक्ट्रम १०-१२ हजार करोड़ में कारोबारियों को दे दिया. उसमे से एक कारोबारी ने तो ४०० करोड़ में खरीदे गए स्पेक्ट्रम का महज आधा हिस्सा अपने विदेशी सहयोगी को १५०० करोड़ रुपये में बेंच डाला. सरकार और कारोबारी कहते हैं कि इसमें कोई घोटाला हुआ ही नहीं. कोई घूसखोरी भी नहीं हुई. कोई कानून भी नहीं टूटा. कोई भ्रष्टाचार भी नहीं हुआ. सब नियम के मुताबिक ही हुआ है.. अगर किसी ने ऐसे मामले में रिश्वत न ली हो और अगर लोकपाल आ जाए तो वो क्या करेगा? इसे कैसे रोकेगा, जो सब कुछ क़ानून के मुताबिक हो रहा है? आजकल मैंने इसे सांस्थानिक और कानूनी लूट का नाम दिया है.


४- लोकपाल की नौटंकी भारत में १९६६ से चल रही है.१९६८ में विधेयक आया. आख़िरी बार २००५ में आया. ठीक है कि ये केन्द्र में नहीं है. लेकिन महाराष्ट्र (१९७२), बिहार (१९७४), उत्तर प्रदेश (१९७७) मध्य प्रदेश (१९८१), आंध्र प्रदेश (१९८३), हिमाचल प्रदेश (१९८३), कर्नाटका (१९८४), असम (१९८६), गुजरात (१९८८), दिल्ली (१९९५) पंजाब (१९९६) केरल (१९९८) छत्तीसगढ़ (२००२), उत्तराँचल (२००२), पश्चिम बंगाल (२००३) और हरियाणा (२००४) में लोकायुक्त हैं. ये आजतक क्या कर पाए है? आप कहते हैं कि सामाजिक संस्थाओं से उसमे सदस्य हों तो कुछ ठीक हो. आपके अगल-बगल जो नारे लगा रहे थे, हो सकता है वो सदस्य भी हो जाएँ, लेकिन नियुक्ति तो इसी सरकार को करनी है न?


५- अगर रिक्शेवाले के लिए सरकार ने वैशाली से आनंद विहार का किराया ३० रूपये तय कर दिया है तो वो अगर ३५ रूपये ले लेता है, सिर्फ यही भ्रष्टाचार है क्या? अगर छत्तीसगढ़ में आदिवासियों से जमीन छीनकर महज १ लाख रूपये में लौह अयस्क के खनन के लिए कारोबारियों को पट्टा दे दिया जाता है तो वो गुनाहगार नहीं होता, क्योकि वो सब कुछ कानून के मुताबिक होता है, ये जायज है क्या? और तब किस मुंह से हम रिक्शेवाले को कहें कि तुम ५ रूपये ज्यादा लेकर भ्रष्टाचार कर रहे हो?

6-देखिये न. मुझे बड़ी तकलीफ हो रही है. दादा आप धरने पर बैठे है. उधर झारखण्ड की राजधानी रांची में एक मोहल्ला है इस्लामनगर. वहां के घरों में करीब बीस हजार लोग रहते हैं. रांची राजधानी नहीं बनी थी उसके पता नहीं कितना पहले से ये रहते है. लेकिन सरकार कहती है कि ये मकान गैरकानूनी है. ये लोग अवैध हैं. वहां के उच्च न्यायालय ने भी कहा कि इनसे जमीन खाली कराओ तभी शहर सुन्दर होगा. करीब २-२ पीढ़ियों की कमाई इन्होने अपने घर पर छत उठाने के लिए लगा डाली. सरकार जब उनके सीने पर बुलडोजर चलाने पहुची तो वे उग्र होकर मरने-मारने पर उतारू हो गए. उन्होंने गैर कानूनी काम किया और पुलिस ने गोली चला दी, १ ढेर हो गया और २ जिंदगी-मौत से जूझ रहे है. सरकार के मुताबिक उन इस्लामनगर के गरीबों ने भ्रस्ट आचरण किया..गैर कानूनी काम किया. लोकायुक्त किसे रोकेगा? सरकार को या सरकार की नजर में अवैध रूप से रह रहे इन गरीबों को?

७- एक बात और. आपका लोकपाल क्या समानांतर सरकार होगा? अगर चुने हुए प्रतिनिधि पर भरोसा नहीं है तो आखिर आपवाले पर भरोसा कैसे कर लें.. मान लेते हैं कि आप वाला ईमानदार होगा.. तो जब हर थाना क्षेत्र से बोरे में भरकर शिकायतें आने लगेंगी तो उसे आपका लोकपाल कैसे पढ़ेगा. क्या उन आवेदनों को पढ़ने और ढोने के लिए एक समानांतर पुलिस, न्याय व्यवस्था होगी... और वो पूरी व्यवस्था का खर्च, उसका संचालन कौन करेगा...


दादा, मैं फिर भी आपका समर्थन करूँगा, क्योंकि आप नेक काम कर रहे हैं. मैं आपके समर्थन में धरने पर भी आऊंगा. नहीं तो आप कहेंगे कि अगर इस देश का युवा साथ देता तो बदलाव हो जाता, भ्रष्टाचार इस देश से मिट जाता. मैंने फोटो भी खींच ली है, आपके साथ. मौका मिलेगा तो और फोटो खींच लूँगा. ताकि सनद रहे....