Thursday, April 21, 2011

भ्रष्टाचार का मनमोहन तंत्र

सत्येन्द्र प्रताप सिंह
"प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने आगाह किया कि भ्रष्टाचार को बर्दाश्त करने का जनता के सब्र का बांध अब टूट चुका है। उन्होंने कहा कि सरकार इस दुराचार की चुनौती से सख्ती से निपटने को प्रतिबद्ध है, क्योंकि जनता इसके खिलाफ तुरत और कठोर कार्रवाई चाहती है। उन्होंने कहा कि सरकार की तरफ से संसद के मानसून सत्र में भ्रष्टाचार की नकेल कसने के लिए चर्चित लोकपाल विधेयक पेश कर दिए जाने की उम्मीद है।"

वाह... कितनी खूबसूरत बातें कही गई हैं। मजे की बात है कि यह कहते हुए शर्म भी नहीं आई कि यह वही व्यक्ति कह रहा है जिसके हाथ में पिछले ७ साल से केंद्र सरकार की सत्ता है। जिसके द्वारा तैयार की गई खुली लूट की व्यवस्था पिछले २० साल से भारत में चल रही है।

हमारे प्रधानमंत्री इतने नासमझ भी नहीं हैं कि वे समझ न रहे हों। उन्होंने जो व्यवस्था दी है, उसमें भ्रष्टाचार को संस्थागत रूप दे दिया गया है और लगातार उसे संस्थागत रूप दिया जा रहा है।

एक छोटा सा सवाल। अगर कोई व्यक्ति पचास हजार रुपये की नौकरी कर रहा है और वह दिल्ली में दो कमरे का फ्लैट खरीद लेता है तो उसके ऊपर बीस साल के लिए तीस हजार रुपये महीने की किश्त बंध जाएगी। बैंक खुलेआम यह धन मुहैया करा देते हैं। हां, इसमें पेंच सिर्फ इतना है कि पचास हजार महीने कमाने वाले की नौकरी सुरक्षित नहीं है, और वह भय में जी रहा है। अगर वह इस कर्ज के दुश्चक्र में फंस गया तो जल्द से जल्द कर्ज पाट देना चाहेगा। ऐसे में स्वाभाविक रूप से नौकरी के दौरान खुलकर भ्रष्टाचार करना उसकी मजबूरी है। हां अगर पांच साल तक कर्ज भरने के बाद उसकी नौकरी चली जाती है तो अगर उसके भीतर जरा सा भी साहस होगा तो आत्महत्या करने की बजाय वह बैंक लूट लेना या किसी के बच्चे का अपहरण करने को तत्पर होगा, जिससे उसका फ्लैट बचा रह जाए। क्यों बनाई गई ऐसी व्यवस्था? ईमानदारी बरतने के लिए? अगर ईमानदारी की आस की जाती है तो जिस व्यक्ति को कर्ज दिया जा रहा है उसको नौकरी की काउंटर गारंटी दे दी गई होती, लेकिन यह मुमकिन नहीं।

यही हाल क्रेडिट कार्ड बांटने वालों का है। जब किसी युवक के ऊपर कर्ज चढ़ जाता है औऱ बैंक का वसूली विभाग उसे गालियां देना शुरू कर देता है तो वह किसी महिला के गले से चेन खींचकर वह पैसा लौटा देने में सुविधा महसूस करता है। हां, पहले वह सोनार के यहां चेन बेचता था तो दिक्कत आती थी, क्योंकि स्थानीय पुलिस सोनार को टाइट करती थी। अब उसके लिए सोने के बदले कर्ज देने वाले वैधानिक संस्थान खुल गए हैं। जब चोरी का माल इन संस्थानों के पास आने का मामला खुलता है तो दस-पांच हजार वेतन पाने वाला मैनेजर नौकरी से हाथ धोता है और उसके परिवार वाले जमानत कराने के लिए न्यायालय के चक्कर लगाते हैं, लेकिन लूट का तंत्र यूं ही चलता रहता है।

मनमोहनी नीतियों ने कारोबारियों को खुली लूट की छूट दे रखी है। यह किसी से छिपा नहीं है। सरकार वैधानिक तरीके से औऱ बगैर किसी भ्रष्टाचार के कारोबारियों को तेल के कुएं, खनिज पदार्थ, स्पेक्ट्रम मुफ्त में दे रही है। वह कारोबारी जमकर मुनाफा काट रहा है। किराना से लेकर सब्जी की दुकान तक कुछ बड़े हाथों में चली गईं। तो सब्जीवाले, गलियों में किराना की दुकान चलाने वाले क्या करें? उनके लिए कोई व्यवस्था है क्या? कैसे वे अपना पेट पालें?... बहरहाल, ये विषय लंबा है और लोग धीरे-धीरे ही सही, इसको समझ ही रहे हैं।

आजकल लोकपाल की नौटंकी चली। इससे कुछ लोगों को लगा कि राहत मिलने वाली है। अब इसमें कोई कड़े प्रावधान न आएं, इसके लिए शांति भूषण-प्रशांत भूषण पर कांग्रेसी फौज क्या, भाजपा सहित सबने हमला बोल दिया। जब इसी तंत्र में रहकर भूषण परिवार ने 100 करोड़ बनाए हैं तो उनके खिलाफ मामले निकल रहे हैं तो उसमें आश्चर्य कहां से होना चाहिए? क्या कोई अमीर या भ्रष्ट आदमी भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम नहीं चला सकता? अगर टीम मनमोहन भ्रष्टाचार का तंत्र विकसित करने के बाद से भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम चलाने की नौटंकी कर सकती है, तो भूषण क्यों नहीं?

मीडिया भी बड़ी अजीब है। हमारे इलाके में कहावत है, थूककर चाटना। इस समय की खबरें देखने पर कुछ ऐसा ही अहसास हो रहा है। अभी तक अन्ना-भूषण बड़ा बढ़िया काम कर रहे थे और अब वे खलनायक हो गए? अरे भाई, पहले होमवर्क क्यों नहीं कर लिया था, कि अन्ना-भूषण भ्रष्ट हैं? या उन्होंने धरने के बाद सारे भ्रष्टाचार किए हैं? उस समय तो सारे अखबार और चैनल जीत गए थे, जब सरकार ने अन्ना का अनशन तोड़वा दिया था। उस समय अगर गलती से भी कोई सवाल उठाता था कि इस लोकपाल से कुछ खास होने वाला नहीं है तो ये संपादकाचार्य कहते थे कि इस जीत के बाद आपको मुस्कराना चाहिए, आपके चेहरे पर इतनी हताशा क्यों है? आज वही लोग कह रहे हैं कि ये सिविल सोसाइटी वाले भ्रष्ट हैं।

प्रधानमंत्री जी। आपही अब भ्रष्टाचार से लड़ाई लड़िए। आपके सलाहकार कौशिक बसु ने बहुत अच्छी सलाह दी थी कि हरासमेंट ब्राइब को वैध रूप दे दिया जाना चाहिए। ऐसा कर दीजिए। न्यायालय का भी बोझ कम होगा। वहां भ्रष्टाचार के मामले आने कम हो जाएंगे।।

2 comments:

अनुनाद सिंह said...

किसी ने पूच्हा नहीं कि मनमोहन भ्रष्टाचार रोकने के लिये कौन-कौन से कदम बढाये।

satyendra said...

अनुनाद जी, मनमोहन जी ने वित्त मंत्री रहते भ्रष्टाचार बढ़ाने के लिए जो कदम बढ़ाये थे, उसपर भाजपा दो कदम आगे चली थी. फिर जब मनमोहन प्रधानमत्री बन गए तो पूरी रफ़्तार से उस पर आगे चल रहे हैं! इसमें रोकने का मामला तो आता ही नहीं.