Tuesday, May 10, 2011

पुलिस का कब्जा बरकरार, नहीं लौटे ग्रामीण

शशि भूषण कुमार / ग्रेटर नोएडा

भट्टा परसौल गांव में घटना के तीन दिन बाद भी पूरे गांव पर पीएसी और यूपी पुलिस के जवानों का कब्जा है और किसी को गांव के अंदर जाने नहीं दिया जा रहा है। किसी प्रकार गांव के अंदर जाकर बहुत खोजबीन करने पर महज दो-चार घरों में कुछ उम्रदराज महिलाएं एवं बुजुर्ग पुरुष मिले। गांव के सारे लोग पुलिस के डर से अपनी रिश्तेदारी में जा छिपे हैं।


गांववालों में पुलिस के प्रति जबरदस्त आक्रोश था। उन्होंने बताया कि पुलिस ने गांव के 20 से ज्यादा युवकों को उठा लिया है और उनका पता अभी तक नहीं चल पाया है। इस उपद्रव के बाद पूरे गांव में पुलिस वाले ही दिख रहे हैं। लोगों के घरों के दरवाजे खुले थे। कई जानवर गांव में बेसहारा भटक रहे थे और जहां तहां अपने मालिक के बिना भूखे-प्यासे गाय-भैंस नजर आ रही थीं।

चालीस का उम्र पार कर चुकी चंद्रवती कहती हैं कि अनाज के बिटोरों में पुलिस आग लगाकर उसे बरबाद कर रही है। उसका कहना है कि पुलिसवालों ने उसके पूरे घर को तहस-नहस कर दिया है। पेट भर खाने के लिए चूल्हा जलाना मुश्किल हो रहा है। इसके अलावा कई जगह अनाज के ढेर आग मेंं धू-धू जलते दिखाई दे रहे थे।

इस गांव के अधिकतर किसान छोटे रकबे की जमीन के मालिक है। लोगों के पास 2 से 5 बीघा तक की जमीनें है। कुछ किसान जरूर 10 या 15 बीघा जमीन वाले भी हैं। कुछ गांववाले जो मुआवजे की रकम ले चुके हैं वे इसे गाड़ी-टैक्टर या पशुधन खरीदने में खर्च भी कर चुके हैं। गांव में अधिकतर पक्के मकान हैं और कई गांववालों के पास ट्रैक्टर, सूमो और मारुति जैसी कारें भी हैं। इन सभी गाडिय़ों के शीशे टूटे हुए थे। एक वाहन आग में पूरी तरह जला हुआ मिला।

आंदोलन की अगुआई कर रहे मनवीर तेवतिया को लेकर गांववालों में एक राय नहीं है। कुछ लोग जहां उसके समर्थक है वहीं कुछ लोगों का कहना है कि वह गांववालों को भड़का रहा है। कई गांववाले यह भी मानते हैं कि अब मसला जमीन के मुआवजे से कहीं अधिक दोनों पक्षों के बीच अहम का बन चुका है। दोनों तरफ के ही लोग मामले को सुलझाने की बजाए अपनी चलाने की कोशिश कर रहे हैं। गांव मुख्यत: जाट बहुलहै और आंदोलन में ज्यादातर इसी जाति के लोग हिस्सा ले रहे हैं। इसके अलावा 5 मकान दलितों के तथा अन्य पिछड़ी जातियों के हैं। कुछ घर अल्पसंख्यकों के भी हैं।

बगल के गांव मुतैना में भी खौफ का मंजर है। इस गांव के अधितकर लोग मुआवजा ले चुके हैं और इस विवाद को बेवजह खड़ा किया गया मसला मानते हैं। लेकिन उनके मन में पुलिस-प्रशासन के प्रति ज्यादा रोष है। उनका मानना था कि पहले के जिलाधिकारी किसानों की बातों को तवज्जो देते थे। नए आए अधिकारियों के कारण मसला ज्यादा उलझा है।

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

काश कुछ सद्बुद्धि लौटे।