Tuesday, June 28, 2011

न्याय के लिए अलग-अलग परिभाषाएँ!

Satyendra Pratap Singh

अभी-अभी उच्चतम न्यायालय का फैसला आया कि पश्चिम बंगाल सरकार सिंगुर की जमीन किसानों को न बांटे. मतलब सरकार के फैसले पर स्टे लग गई.
इसके पहले २६ जून को उच्चतम न्यायालय ने नोएडा एक्सटेंसन में बिल्डरों के जमीन अधिग्रहण के मसले पर बहुत सख्त रूख अपनाते हुए कहा कि हम देश बार में जगह जगह "नंदीग्राम" नहीं बनने देंगे. दरअसल नोएडा एक्सटेंसन में तुलनात्मक रूप से छोटे-छोटे सेठ हैं, जो कानून की ऐसी की तैसी करके बिल्डिंगें बना रहे हैं... साथ ही वहां अपने फ़्लैट के इच्छुक करीब १५-२० हजार लोग पैसे देकर फंस गए हैं, जो अगर पैसे वापस लेते हैं तो उन्हें करीब एक लाख रुपये का चूना लगने वाला है. बिल्डर उनका पैसा वापस करेंगे या नहीं, इसका भी कोई भरोसा नहीं है. कर्ज के जाल में फंसे फ़्लैट लेने के इच्छुक लोगों का क्या हस्र होगा, इसके बारे में न सरकार को चिंता है, न न्यायालय का- जबकि उन्होंने कोई गैरकानूनी काम नहीं किया है!
न्यायालय को जगतसिंह पुर का पोस्को संयंत्र भी नहीं दिख रहा है, जहाँ हजारों की संख्या में बूढ़े, बच्चे, महिलाएं एक पखवाड़े से सड़कों पर लेटे पड़े हैं. स्थानीय प्रशाशन ने उनपर अब तक गोली नहीं चलाई है, लेकिन जो हालात हैं, वहां कभी भी लाशें गिर सकती हैं और हो सकता है कि उसकी ख़बरें भी निकलकर बाहर न आने पाएं...
न्यायालय को दंतेवाड़ा और अबुझमाड इलाका भी नजर नहीं आ रहा है, जहाँ टाटा और जिंदल के संयंत्र लगने वाले हैं. औने पौने भाव, डरा-धमकाकर जमीन का अधिग्रहण हो रहा है. जिलाधिकारी महोदय कहते हैं कि सरकारी काम में हस्तक्षेप करना गैर कानूनी है. साथ ही जहाँ तीब्र प्रतिरोध की सम्भावना है, वहां पुलिस और पैरा मिलिट्री फ़ोर्स लगाकर आदिवासियों के घर फूंक दिए गए.
वाह, क्या न्याय है! न्याय की हालात देखें...
-छोटे सेठो के लिए अलग न्याय, बड़े सेठों के लिए अलग! (नोएडा एक्सटेंसन में छोटे सेठ हैं और उपरोक्त ३ जगहों पर बड़े सेठ है!)
- जहाँ भाजपा, कांग्रेस शाशन में हैं, या यूँ कहें कि पूंजीवादी लूट का खुलेआम समर्थन करने वाले सत्ता में हैं, वहां नंदीग्राम बने तो कोई हर्ज नहीं, लेकिन मायावती और कम्मुनिस्तों के इलाके में नंदीग्राम बनना खासा शर्मनाक है...

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