Sunday, September 24, 2017

क्या बीएचयू और भारत के अन्य विश्वविद्यालय अब तेहरान युनिवर्सिटी बनने की ओर बढ़ रहे हैं?

सत्येन्द्र पीएस

ईरान में 1979 में इस्लामिक क्रांति हुई। बड़े बड़े आंदोलन हुए। खोमैनी का शासन आ गया। ईरान इस्लामिक स्टेट बन गया। वहां सब कुछ बदल गया। ड्रेस कोड बना। विश्वविद्यालयों में इस्लामी पहनावा लागू हो गया। तरह-तरह के प्रतिबंध लग गए। अब हालात यह हैं कि जिस तेहरान युनिवर्सिटी को अमेरिका या ब्रिटेन के तमाम नामी गिरामी विश्वविद्यालयों के साथ मुकाबले के लिए जाना जाता था, उसका कोई नामलेवा नहीं है। क्या आपने सुना है कि आपका कोई परिचित कह रहा हो कि उसका सपना तेहरान युनिवर्सिटी में अपने बच्चे को पढ़ाने का है? ज्यादातर लोग तो जानते भी नहीं हैं कि ईरान या तेहरान में कोई युनिवर्सिटी भी है, या वहां के स्कूल कॉलेज को मदरसा वगैरा ही कहते हैं।



भारत में नरेंद्र मोदी सरकार आने के बाद तमाम बदलाव हुए। सरकार ने विश्वविद्यालयों में अपनी मर्जी के कुलपति रखे। उन्हीं में से एक काशी हिंदू विश्वविद्यालय है। काशी हिंदू विश्वविद्यालय को मैं हरि गौतम के जमाने से जानता हूं। उस समय कैंपस अशांत थे। तरह तरह के आंदोलन होते थे। गुंडे न केवल विश्वविद्यालय की छात्र राजनीति में दखल करते थे, बल्कि वहां के तमाम प्रोफेसर राजनीतिक रूप से ताकतवर जातीय गुंडा राजनेताओं के आदमी बन चुके थे और विद्यार्थियों को भड़काते थे। आए दिन विश्वविद्यालय में मारपीट, गुंडागर्दी, बमबाजी होती थी।
हरि गौतम के समय से सख्ती शुरू हुई। कैंपस शांत हो गया। उसके बाद वाई सी सिम्हाद्री, पंजाब सिंह, लालजी सिंह कुलपति बने। सभी अपने ज्ञान क्षेत्र में अव्वल थे। पहले भी वाइस चांसलर या तमाम बड़े पदों पर रहने के बाद बीएचयू पहुंचे थे।
केंद्र में 2014 में नरेंद्र मोदी सरकार बनने के बाद प्रोफेसर गिरीश चंद्र त्रिपाठी कुलपति बने। उस समय तक मैंने कभी इनका नाम नहीं सुना था। नाम न सुनना कोई बड़ी बात नहीं। देश में तमाम ऐसे विद्वान हैं, जिनका हम नाम नहीं सुने हुए होते हैं। लेकिन बाद में पता करने पर जानकारी मिल जाती है कि संबंधित व्यक्ति की पृष्ठभूमि क्या है। मुझे याद है कि सबसे पहली जानकारी प्रोफेसर त्रिपाठी के बारे में यही मिली थी कि वह पंडित मदन मोहन मालवीय के नाती के बहुत खास हैं। उसके बाद मैंने कई स्रोतों से पता करने की कोशिश की कि त्रिपाठी की एकेडमिक या प्रशासनिक उपलब्धि क्या रही, लेकिन कुछ भी जानकारी नहीं मिल सकी।
त्रिपाठी के कुलपति बनने के बाद उनके एक से बढ़कर एक कारनामे सामने आने लगे। बयान तो किसी विकृत मानसिकता के पुरबिया क्षुद्र व्यक्ति से नीचे।
विश्वविद्यालय के परिसर में लाइब्रेरी को 24 घंटे खोले जाने के लिए चल रहे आंदोलन के दौरान उनके बयानों को देखें। उन्होंने कहा, “लड़के बदमाश हैं, कॉपर वायर तोड़ ले जात्ते हैं, माउस चुरा ले जाते हैं, हार्डडिस्क निकालकर ले जाते हैं। पेन ड्राइव में अश्लील फ़िल्में देखते हैं। इन सबसे अलग उनके वहां रहने से एकदम दूसरी समस्या पैदा हो सकती है कि वे वहां क्या कर रहे हैं?”

शायद प्रोफेसर त्रिपाठी को अपने देश के ही जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की लाइब्रेरी के बारे में ही जानकारी नहीं है, जहां विद्यार्थियों को 24 घंटे पढ़ने की सुविधा दी जाती है। वहां सेक्सुअल क्राइम के केसेज बहुत कम सामने आते हैं। आप कैंपस में घूमिए। तमाम झाड़ियां हैं। पहाड़ी विश्वविद्यालय बना है और आधे से ज्यादा छात्राएं हैं। लेकिन कहीं कुछ भी आपत्तिजनक या अश्लील या सेक्सुअल क्राइम नहीं मिलता, जबकि प्रोफेसर त्रिपाठी ने विश्वविद्यालय कैंपस में क्या ढूंढा, उनके इस बयान से अंदाज लगा सकते हैं। उन्होंने कहा, “एक बात मैंने यहां सघन तलाशी करायी। रात नौ बजे के बाद शहर के तमाम लड़के और लड़कियां यहां बैठे रहते हैं। अपनी कार से रात में निकला, लोगों ने कहा कि अरे आप वीसी हैं, हम ले चलते हैं। लेकिन मैं अध्यापक हूं। मैं निकला और मैंने देखा कि एक लड़का और लड़की ऐसी अवस्था में बैठे थे कि क्या बताऊं. मैंने गाड़ी रोकी। मैंने बैठा लिया गाड़ी में, कुछ और नहीं किया. मैंने केवल इतना कहा कि चलो तुम्हारे गार्जियन से बात करें. वे गिडगिडाने लगे, अरे नहीं सर, गलती हो गयी सर। फिर मैंने उन्हें छोड़ भी दिया।”

यह है काशी हिंदू विश्वविद्यालय का माहौल। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में कंडोम गिनने का ठेका तो भारतीय जनता पार्टी के विधायक को दिया गया है, लेकिन बीएचयू में कंडोम बीनने खुद कुलपति निकल चुके हैं। उनका यह मकसद कतई नहीं रह गया है कि विश्वविद्यालय में ऐसा माहौल बना दिया जाए, जहां बच्चों के दिमाग में विश्व का सर्वश्रेष्ठ विद्यार्थी बनने और लगातार पठन पाठन, शोध में रहे बल्कि वह विद्यार्थियों को किसी अलग ही नियम में बांधने को आतुर नजर आते हैं। जबकि हकीकत यह है कि विश्वविद्यालय में श्रेष्ठ विद्यार्थियों का एडमिशन होता है, जिनका पहले से एकेडमिक रिकॉर्ड बहुत शानदार रहा होता है। विश्वविद्यालय कड़ी परीक्षा लेने के बाद विद्यार्थियों को एडमिशन देता है। वाराणसी में कुल मिलाकर 4 विश्वविद्यालय हैं। महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय, उदय प्रताप स्वायत्तशासी कॉलेज के अलावा पूर्वांचल विश्वविद्यालय जौनपुर के डिग्री कॉलेज भी शहर में हैं। इसके अलावा बौद्ध विश्वविद्यालय़ भी सारनाथ में उपस्थित है। इन सबकी मौजूदगी के बीच विद्यार्थियों का सपना होता है कि वह अगर वाराणसी में पढ़ें तो बीएचयू में ही पढ़ें। बाहरी दुनिया के बच्चे भी बीएचयू में ही पढ़ने आते हैं। इस स्थिति में स्वाभाविक रूप से विश्वविद्यालय में क्रीम स्टूडेंट्स को ही जगह मिल पाती है।

हालांकि जेएनयू को भी श्रेष्ठ विश्वविद्यालय नहीं माना जा सकता। वैश्विक दुनिया में जेएनयू का कोई खास मुकाम नहीं है। लेकिन बमुश्किल 10,000 विद्यार्थियों के कैंपस का भारत के स्तर पर सफलता का अनुपात जबरदस्त है। वहां से आईएएस निकलते हैं, ब्यूरोक्रेट्स निकलते हैं, राष्ट्रीय स्तर के नेता निकलते हैं। वहीं अगर मौजूदा बीएचयू को देखें तो देश के प्रतिष्ठित संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा में अक्सर बीएचयू का नाम गायब रहता है, जो एक लाख विद्यार्थियों का कैंपस है। वैश्विक स्तर पर विश्वविद्यालय की स्थिति तो जाने ही दें।
काशी हिंदू विश्वविद्यालय में जातीय लंपटई का इतिहास पुराना है। यह देश का एकमात्र ऐसा विश्वविद्यालय है जहां 80 के दशक तक एडमिशन के लिए फार्म भरने वाले विद्यार्थियों से यह पूछा जाता था कि आप ब्राह्मण हैं या गैर ब्राह्मण। मोटे तौर पर इस समय भी विश्वविद्यालय में 70-80 प्रतिशत ब्राह्मण टीचिंग स्टाफ है। इतना ही नहीं, तमाम प्रोफेसर तो खानदानी हैं, जो वहां कई पीढ़ियों से पढ़ाए जाने के योग्य पाए जा रहे हैं। ऐसे में जातीय बजबजाहट यहां नई बात नहीं है।

इन सबके बावजूद हाल के वर्षों में ब्राह्मण या गैर ब्राह्मण पूछा जाना बंद हुआ। जातीय कुंठा भी कुछ घटी और अध्यापक नहीं तो विद्यार्थियों में जातीय विविधता आई। आरएसएस के स्वयंसेवक प्रोफेसर त्रिपाठी के कुलपति बनने के बाद विश्वविद्यालय एक बार फिर ब्राह्मणवादी कुंठा में फंसता नजर आ रहा है।

(बीएचयू बज, फेसबुक से ली गई तस्वीर। लड़कियों पर लाठी चार्ज के बाद)
विश्वविद्यालय में कुलपति अपने को गैर राजनीतिक होने का दावा कर रहे हैं। लेकिन मामला इससे उलट है। अगर विश्वविद्यालय की छात्राएं छेड़खानी का विरोध कर रही हैं तो उन पर लाठियां चल रही हैं। विश्वविद्यालय के सुरक्षाकर्मियों की लंबी चौड़ी फौज है, जिनकी कैंपस में जबरदस्त गुंडागर्दी चलती है। वह मामला नहीं संभाल पाते हैं तो बाहर से पुलिस और पीएसी बुलाई जाती है। रात रात भर कैंपस में बवाल चलता है। लड़कियों को पीट पीटकर पुलिस हाथ पैर तोड़ देती है।

यह मामला काशी हिंदू विश्वविद्यालय तक सीमित नहीं है। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के कुलपति परिसर में टैंक रखवाना चाहते हैं, जिससे विद्यार्थियों में देशभक्ति आए। विश्वविद्यालय के कुलपति को टैंक में देशभक्ति दिखती है।

इसमें सबसे ज्यादा बुरा हाल छात्राओं का होने जा रहा है। भारतीय जनता पार्टी के सांसद साक्षी महराज बयान देते हैं कि लड़कियां मोटरसाइकिल पर बैठकर चलती हैं, इसलिए उनके साथ बलात्कार हो जाता है।

सवाल यह है कि हम किस दौर की ओर बढ़ रहे हैं। क्या हम इस्लामिक स्टेट की तरह भारत को हिंदू स्टेट बनाकर बर्बादी की ओर ले जाना चाहते हैं या रूस, ब्रिटेन, अमेरिका, जापान, यूरोपियन यूनियन की तरह समृद्ध और खुला समाज चाहते हैं? भारत में तो यह कल्पना करना भी मुश्किल है कि कोई लड़की या महिला रात के सुनसान में अपने घर से निकलकर अकेले कहीं सड़क पर घूम सकती है, या किसी अपने परिचित की मदद के लिए पैदल निकल सकती है। महिला ही क्या, पुरुष भी यह सोचकर नहीं निकल सकते कि दो बजे रात को अगर वह सड़क पर जा रहे हों तो सुरक्षित घर लौटेंगे या नहीं। लेकिन किसी भी सभ्य, विकसित देश में यह आम बात है। फैसला हमें करना है कि हम देश को किस तरफ ले जाना चाहते हैं। विकसित, समृद्ध, सुरक्षित देश बनना चाहते हैं जहां ज्ञान विज्ञान और सुविधाओं के साथ सुरक्षा हो, या इस्लामिक स्टेट आफ ईरान की तरह हिंदू स्टेट आफ इंडिया बनना चाहते हैं।

फोटो क्रेडिट -1 और 2
http://www.dailymail.co.uk/travel/travel_news/article-4148684/Stunning-photos-reveal-life-Iran-revolution.html
फोटो क्रेडिट-3
http://www.payvand.com/news/17/sep/1083.html





1 comment:

Unknown said...

यह तो आंखे खोल देने वाली खबर है। Your written article is very sensitive. I like your writing skill. I am also writer, please read my article and give my review. Latest News by Yuva Press India