Friday, January 9, 2009

आइये देखते हैं क्यों डगमगाती नजर आ रही है डीएलएफ की नाव

सत्यम वह करने में सफल नहीं हो सकी, जो डीएलएफ पिछले कई महीनों से कर रही है। दरअसल डीएलएफ ने मंदी आने के बाद खुद ही तमाम सहायक कंपनियां बना डालीं। उसके बाद उनकी ही सहायक कंपनियों ने बढ़े हुए दामों पर डीएलएफ की प्रॉपर्टी खरीदी। इस खेल से फायदा यह हुआ कि डीएलएफ का मुनाफा दिखाया जाता रहा। कंपनी के शेयर गिरे भी, लेकिन इस गड़बड़झाले और मुनाफा दिखाए जाने के चलते कंपनी के शेयरों के भाव बढ़े, जबकि हकीकत में कंपनी को मुनाफे जैसी कोई चीज मिली ही नहीं। कंपनी ने ताश के पत्तों के महल बनाए हैं। अब देखना है कि उसकी गति सत्यम जैसी कब होती है....

2 comments:

  1. चक्र चला है, और कुछ जरूर आयेंगे फेर में। डीएलएफ़ वाले सज्जन ज्यादा होशियार लगते हैं। हो सकता है भंवर मैनेज कर ले जायें! :)

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  2. सत्येंद्रजी
    वैसे तो यह पुराणी बात है की हमाम में सब नंगे हैं .
    पर कारपोरेट जगत के सन्दर्भ में तो यह लग रहा है की हम्माम ओवर फुल है और बहार में एक लम्बी क़तर
    है.
    इस एक कंपनी की बात क्या ,अब तो सब के दामन दागदार नजर आते हैं. रियल इस्टेट में लगी कंपनियां ही नहीं टेलिकॉम आदि छेत्रों की कंपनियों पर भी नज़र फेरने की जरूरत है
    सादर

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