tag:blogger.com,1999:blog-3124261744486772692.post3188897295563327118..comments2023-06-19T02:39:24.462-07:00Comments on जिंदगी के रंग: आखिर क्यों न मिले गन्ने का उचित दाम...क्या कंपनियां और सरकार जवाबदेह नहीं?Satyendra PShttp://www.blogger.com/profile/06700215658741890531noreply@blogger.comBlogger4125tag:blogger.com,1999:blog-3124261744486772692.post-7738533642922355932009-11-21T06:04:38.283-08:002009-11-21T06:04:38.283-08:00मेरे पास तो आयातित कच्ची चीनी का एक रेक बहुत दिनों...मेरे पास तो आयातित कच्ची चीनी का एक रेक बहुत दिनों से स्टेबल पड़ा है। किसी की हिम्मत नहीं हो रही उसकी डिलिवरी ले प्रयोग करने की। देखें क्या होता है!Gyan Dutt Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124261744486772692.post-17898721159386650782009-11-19T17:56:50.196-08:002009-11-19T17:56:50.196-08:00सत्येन्द्र जी ,
आप का यह लेख और बाकी के भी लगातार ...सत्येन्द्र जी ,<br />आप का यह लेख और बाकी के भी लगातार पढता रहा .जन सरोकारों पर आपकी नज़र को सलाम !<br /><br />सोचते सोचते यही ज़िंदगी गुजर गयी .उम्र हो आयी .किया क्या जाये .कुछ तो करना ही होगा .<br />हम से ,जो भी हैं ,जहां भी ,कुछ कर सकते हैं ? कुछ जमीन पर उतरे बिना नहीं बनेगा .<br />अब तो ये सूरत बदलनी चाहिए ........RAJ SINHhttps://www.blogger.com/profile/01159692936125427653noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124261744486772692.post-82590036637352652942009-11-19T04:15:45.571-08:002009-11-19T04:15:45.571-08:00इनके पास अपनी मूर्तिया सजाने के लिए पैसा है , इनके...इनके पास अपनी मूर्तिया सजाने के लिए पैसा है , इनके पास तेल कुंए में जलाने के लिए पैसा है, इनके पास पैसे का कॉमन खेल खेलने के लए पैसा है, मगर जो किसान म्हणत कर इनका पेट भर रहा है उसको देने के लिए इनके पास पैसा(फंड ) नहीं है !पी.सी.गोदियाल "परचेत"https://www.blogger.com/profile/15753852775337097760noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3124261744486772692.post-85846335459806675922009-11-19T02:44:41.274-08:002009-11-19T02:44:41.274-08:00शुक्रिया, ये मुद्दा ब्लॉग पर उठाने के लिए, वरना ब्...शुक्रिया, ये मुद्दा ब्लॉग पर उठाने के लिए, वरना ब्लॉग वाले तो 'धर्म' बचाने मैं लगे हुए हैं. ये कैसी विडंबना है के यह लोगो असली मुद्दो को भूल कर ,अपने आपको बुद्धिजीवी साबित करने मैं लगे हुए हैं, किसानो का दर्द कौन समझेगा, संस्कृति से ज़्यादा ज़रूरी धरतीपुत्र को बचना हैं, क्यों नही सब मिल कर गन्ना किसानो के हक़ मैं खड़े होते.सहसपुरियाhttps://www.blogger.com/profile/09067316996435869621noreply@blogger.com