पिछले साल सितंबर महीने की 22 तारीख को अमेरिका के केंद्रीय बैंक, फेडरल रिजर्व ने गोल्डमैन सैक्स को बैंक होल्डिंग कंपनी बनने की इजाजत दे दी।
दरअसल, इस कवायद के बाद इसने फेडरल रिजर्व द्वारा दिए जा रहे बेलआउट पैकेज को लेने की पात्रता हासिल की। इसके बाद वित्तीय जगत में विलय और अधिग्रहण के मामलों का यह दिग्गज निवेश बैंक बचा तो रहेगा लेकिन अपनी मूल पहचान के साथ नहीं बल्कि एक सामान्य बैंक के तौर पर ही कायम रहेगा।
और इस तरह दुनिया के सबसे पुराने निवेश बैंक के अस्तित्व पर ही सवालिया निशान लग गए। सितंबर 2008 दुनिया के बड़े निवेश बैंकों के लिए बड़े बदलाव लेकर आया।
गोल्डमैन सैक्स और मॉर्गन स्टैनली सामान्य बैंक बन गए। जबकि लीमन ब्रदर्स तो दिवालिया ही हो गया और मेरिल लिंच, बैंक ऑफ अमेरिका के हाथों बिक गया।
लेकिन इन चारों में से कोई भी नाम गोल्डमैन सैक्स से बड़ा नहीं था। दुनियाभर में नामी गिरामी बिजनेस स्कूलों के छात्रों का सपना गोल्डमैन सैक्स में नौकरी करने का होता था तो बड़ी-बड़ी कंपनियां भी इसकी सलाह लेने के लिए लाइन लगा कर खड़ी रहती थीं।
वैसे, इसके अतीत की पड़ताल करने के लिए एक किताब से बेहतर कुछ और नहीं हो सकता जो इसकी शुरूआत से लेकर अब तक के बारे में सब कुछ बता सके। इसकी राह में आए उतार चढ़ावों का जिक्र कर सके तथा उन लोगों और सिद्धांतों के बारे में बता सके जिन्होंने इसकी सफलता में अहम भूमिका निभाई।
और किताब लिखने के लिए चार्ल्स डी एलिस से बेहतर शख्स और कोई नहीं हो सकता। दरअसल, उनका और गोल्डमैन सैक्स का साथ काफी पुराना है।
उन्होंने ग्रीनविच एसोसिएट्स नाम की कंसल्टेंसी सेवा की स्थापना की। ग्रीनविच पिछले तीस सालों से दुनिया की बड़ी-बड़ी कंपनियों के साथ काम कर चुकी हैं जिनमें से गोल्डमैन सैक्स भी एक हैं।
इस सबकी वजह से एलिस को न केवल गोल्डमैन सैक्स के अंदर की कई बातें मालूम होंगी बल्कि वह कई और बड़ी संस्थाओं से उसकी तुलना आसानी से कर सकते हैं। गोल्डमैन सैक्स की शुरुआत 1869 में जर्मनी से अमेरिका आए एक यहूदी मार्क्स गोल्डमैन ने की थी।
इसके तेरह साल बाद मार्क्स के दामाद सैमुअल सैक्स भी इसमें शामिल हुए और तब इसका नाम गोल्डमैन सैक्स किया गया। 1896 में इसे न्यू यॉर्क स्टॉक एक्सचेंज में शामिल होने का न्यौता मिला। 1929 की मंदी तक गोल्डमैन सैक्स के लिए सब कुछ बेहतर होता रहा। इसने धीरे-धीरे अपनी पहचान पुख्ता करनी शुरू कर दी।
बाजार में इसका काफी नाम होने लगा। 1906 में इसने सीयर्स, रीबॉक एंड कंपनी के आईपीओ का प्रबंधन किया। यह उस समय की एक बड़ी आर्थिक हलचलों में से एक थी।
लेकिन शेयर बाजार की टूट ने गोल्डमैन सैक्स की प्रतिष्ठा को धक्का पहुंचाया। लेकिन इसके बाद सिडनी वेनबर्ग ने इसकी कमान संभाली और नुकसान की भरपाई करने की शुरुआत की।
पोलैंड के एक शराब व्यवसायी के बेटे वेनबर्ग ने 1907 में गोल्डमैन सैक्स में काम की शुरुआत की थी। उस वक्त उनकी उम्र 16 साल की ही थी। उन्होंने एक सहायक के तौर पर काम शुरू किया।
वेनबर्ग 1930 में सीनियर पार्टनर बन गए और उन्होंने अपना ध्यान ट्रेडिंग से हटाकर निवेश बैंकिंग पर करना शुरू कर दिया। उनकी सरपरस्ती में गोल्डमैन सैक्स में निवेश के लिए एक शोध टीम बनाई गई।
इसने म्युनिसिपल बॉन्ड डिविजन भी बनाई और जोखिम से फायदा बनाने की रणनीति अख्तियार की। इसके बाद फोर्ड मोटर कंपनी ने 1956 में अपने आईपीओ के लिए इसको मुख्य सलाहकार बनाया।
1969 में वेनबर्ग की जगह गस लेवी ने ली। लेवी जाने माने ट्रेडर थे और उन्होंने गोल्डमैन सैक्स की ट्रेडिंग फ्रेंचाइजियों को फिर से खड़ा किया।
यह लेवी ही थे जिन्होंने गोल्डमैन सैक्स को नया कारोबारी मंत्र दिया। उनका मानना था कि अगर बड़े फायदे के लिए थोड़ा नुकसान भी उठा लिया जाए तो इसमें क्या बुराई है।
उनके इस सिद्धांत को 'लॉन्ग टर्म ग्रीडी' का नाम दिया गया। 1974 में गोल्डमैन सैक्स ने विलय और अधिग्रहण के लिए 'व्हाइट नाइट' के तौर पर एक नायाब कॉन्सेप्ट पेश किया।
इसने इलेक्ट्रिक स्टोरेज बैटरी के जबरन अधिग्रहण की कोशिश में लगी इंटरनेशनल निकेल और गोल्डमैन की प्रतिद्वंद्वी मॉर्गन स्टैनली की कोशिशों को परवान नहीं चढ़ने दिया। इस मामले को गोल्डमैन ने बेहतरीन ढंग से संभाला।
हालांकि,गोल्डमैन सैक्स को पता था कि इससे इलेक्ट्रिक स्टोरेज बैटरी की स्वतंत्रता तो नहीं रह पाएगी लेकिन उनको इतना जरूर लगा कि इससे इलेक्ट्रिक स्टोरेज बैटरी के शेयरधारकों को बेहतर कीमत मिल जाएगी।
इसके चलते गोल्डमैन ने 'व्हाइट नाइट' के तौर पर यूनाइटेड एयरक्राफ्ट को खरीदा और इंटरनेशनल निकेल को मजबूरी में ज्यादा कीमत देकर सौदे को पाटना पड़ा।
इस तरह गोल्डमैन के ग्राहक को ज्यादा पैसा मिला और सलाहकार के तौर पर गोल्डमैन का भी फायदा ही हुआ। सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह थी कि इससे यही संदेश गया कि मुश्किल हालात को संभालने में गोल्डमैन सैक्स से बेहतर कोई और नहीं।
इस किताब में 'रॉबर्ट मैक्सवेल, द क्लाइंट फ्रॉम हेल' वाला अध्याय सबसे ज्यादा बांधे रखता है। मैक्सवेल का जन्म चेकोस्लोवाकिया में हुआ था। कई सालों में उन्होंने लंदन के बाहर काफी बड़ा मीडिया साम्राज्य खड़ा कर लिया। मैक्सवेल काफी दिलचस्प शख्स थे।
छह फुट से भी ज्यादा लंबे मैक्सवेल 9 बच्चों के पिता थे और इतनी ही भाषाएं बोल सकते थे। यह 1991 की बात है जब वह अपनी याट में मृत पाए गए। आज तक यह पता नहीं लग पाया कि उन्होंने खुदकुशी की थी या फिर उनकी हत्या की गई थी।
उन्होंने 2.8 अरब डॉलर का कर्ज बैंकों से लिया हुआ था और दो सार्वजनिक कंपनियों में तकरीबन 50 करोड़ डॉलर की हेराफेरी की थी और लगभग 33,000 ब्रिटिश कामगारों की पेंशन भी हड़प ली।
मैक्सवेल से संबंध की कीमत गोल्डमैन सैक्स को चुकानी पड़ी और लंदन शहर के इतिहास में तब तक के सबसे बड़े 25.2 करोड़ डॉलर के निपटारा पैकेज पर सहमति बनी।
दरअसल, अपने ग्राहकों के लिए निवेश बैंकों और सिक्योरिटीज फर्म की भी जिम्मेदारी बनती है। वैसे, दुनिया के सबसे पुराने निवेश बैंक का इतिहास जानने के लिहाज से यह काफी बढ़िया किताब है।
पुस्तक समीक्षा
द पार्टनरशिप: ए हिस्ट्री ऑफ गोल्डमैन सैक्स
लेखक: चार्ल्स डी. एलिस
प्रकाशक: पेंग्विन
(एलन लेन )
कीमत: 995 रुपये
पृष्ठ: 729
http://hindi.business-standard.com/hin/storypage.php?autono=12555