सुबीर रॉय
इस किताब का महत्त्व इसके प्रकाशन के इतिहास में छुपा हुआ है।
लेखकों को याद है कि वर्ष 2006 में इस किताब को इस उम्मीद के साथ प्रकाशित किया गया था कि कारोबारियों को उनकी रणनीतियों में पर्यावरण को शामिल करने के लिए प्रेरित किया जा सकेगा।
इस किताब के प्रकाशन का समय बिल्कुल उपयुक्त ही नहीं रहा, बल्कि इसका प्रभाव लेखकों की उम्मीदों से काफी अधिक दिखाई दिया। पहले जहां शायद ही कोई इक्का-दुक्का कंपनी पर्यावरण के जोखिमों और उसकी लागत पर ध्यान देती थी, वहीं अब ज्यादा से ज्यादा कंपनियां पर्यावरण के साथ लगातार विकास करने और मुनाफा कमाने की राह देख रही हैं।
इस संशोधित पेपरबैक संस्करण में लेखकों ने वाकयों पर नजर डालते और अध्ययन के दौरान कॉर्पोरेट जगत के नवीन चलनों का जिक्र किया है और नई सामग्री को इसमें शामिल किया है। अगर आम तर्क को देखें तो उसमें कोई बदलाव नहीं हुआ है, बल्कि वह पहले के मुकाबले और भी कड़ा और मजबूत हो गया है।
पहले जब यह किताब लिखी गई थी और अब जब इसका संशोधित संस्करण पढ़ने को मिल रहा है तब यह बात कंपनियों के लिए 'अनिवार्य' हो गया है कि वे उनकी कारोबारी रणनीति में पर्यावरण और निरंतरता पर ध्यान दें।
येल आए दोनों लेखकों के रास्ते तो अलग-अलग हैं, लेकिन दोनों की एक समान चिंता का विषय है। डेनियल एस्टी अमेरिका की पर्यावरण सुरक्षा एजेंसी से आए हैं और उन्होंने कंपनियों के साथ उनकी रणनीतियों में सुधार के लिए 15 साल का अपना वक्त दिया है। वहीं दूसरे लेखक ऐंड्रयू विंस्टन ने मार्केटिंग एवं रणनीति में अपने 10 साल दिए हैं।
वर्ष 2003 में येल में बतौर फैकल्टी इन दोनों को एक साथ कॉर्पोरेट की पर्यावरण संबंधी रणनीति को परखने का काम मिला और इन चीजों के साथ-साथ यह किताब भी इसी शोध का नतीजा है। अपने इस शोध के लिए लेखकों ने 300 से भी अधिक लोगों और 100 कंपनियों से बातचीत की थी।
किताब की शुरुआत ही इस बात से होती है कि कैसे और क्यों पर्यावरण सभी आकार के कारोबारों के लिए एक गंभीर रणनीतिक मुद्दे के रूप में उभर कर आया। इसके बाद किताब में ही पर्यावरण संबंधी प्रमुख कंपनियों की पर्यावरण-अनुकूल रणनीतियों का विश्लेषण किया गया है।
इस तरह से दुनिया की ऐसी 50 कंपनियों की पहचान की गई हैं, जो पर्यावरण-अनुकूल बने रहने के लिए अपनी कारोबारी रणनीतियों में इस मुद्दे को गंभीरता से लेती हैं। इनमें से 25 अमेरिका की हैं जबकि बाकी दुनिया के अलग-अलग कोने में हैं।
अमेरिका की कंपनियों की फेहरिस्त में जॉनसन ऐंड जॉनसन, डुपॉन्ट, डाऊ, एचपी, फोर्ड, स्टारबक्स, इंटेल और मैकडॉनल्ड्स शामिल हैं। अंतरराष्ट्रीय फेहरिस्त में बीपी, शेल, टोयोटा, सोनी, यूनिलीवर, लाफार्ज, ऐल्कैन और सीमेंस शामिल है।
प्रमुख कंपनियों ने अपने खर्च कम किए हैं और अपनी पूरी शृंखला में पर्यावरण सबंधी खर्चों में कटौती की है। इसके अलावा उन्होंने उनके परिचालन कार्यों, आपूर्ति शृंखला, में पर्यावरण संबंधी और नियामक जोखिमों को पहचान कर उन्हें कम किया है और ऐसे उत्पादों को लोगों तक पहुंचाया है जो पर्यावरण के लिहाज से बेहतर है और ग्राहकों की ओर से पसंद किए जाते हैं।
ऐसे उत्पादों की बिक्री से उन्होंने कमाई करने की कोशिश भी की है। इसी के साथ उन्होंने पर्यावरण अनुकूल होने के अपने मार्केटिंग प्रयासों के जरिये ऐसी ब्रांड वैल्यू बनाई है जो बेशक दिखाई नहीं देती हो, लेकिन इसके फायदे कंपनियों को खूब होते हैं। ऐसी कंपनियों के साथ आज ग्राहक जुड़ने के बारे में सोचते हैं।
हरियाली से कमाई का खेल खेलने में महारत हासिल करने के लिए कंपनियों को सबसे पहले एक मानसिकता अपनाने की जरूरत है और उन्हें कॉर्पोरेट रणनीति में पर्यावरण संबंधी सोच पर ध्यान देने की जरूरत है। इसके लिए उन्हें उनके पर्यावरण संबंधी प्रदर्शन का जायजा लेने और ऐसे मामलों को समझने की जरूरत है, जिनसे वे प्रभावित होते हैं।
इसके बाद उन्हें अपनी पूरी शृंखला में बदलाव लाने और उन्हें ऐसी पर्यावरण अनुकूल संस्कृति का विकास करने की जरूरत है जो ऊपर से नीचे तक हर जगह उनकी कंपनी में फैल जाए। पर्यावरण अनुकूल रणनीति में छोटी-मोटी अड़चनों पर नहीं बल्कि अल्पावधि-मध्यावधि और दीर्घावधि पर ध्यान देना चाहिए।
इन कंपनियों ने तेजी से उभरते हुए एक अहम सच 'अर्थव्यवस्था और पर्यावरण आपस में गहरे जुड़े हुए हैं' पर अपनी प्रतिक्रिया दी और लेखकों ने यह अनुमान लगाया कि जल्द ही 'कोई भी कंपनी अपनी रणनीति में पर्यावरण संबंधी मामलों को शामिल किए बगैर उद्योग में अपना दबदबा कायम नहीं कर पाएगी और लगातार मुनाफा भी नहीं कमा पाएगी।'
यह मुख्यतया दो कारणों से होगा- प्रदूषण और प्राकृतिक संसाधनों का अभाव और 'ऐसे लोगों का समूह जो कारोबारी समुदायों को इस दिशा में कदम उठाने के लिए मजबूर कर रहा है।' आमतौरपर सिविल सोसायटी और खासतौर पर पर्यावरण संबंधी गैर-सरकारी संगठन एक दबाव बनाने वाले संगठन के रूप में उभरे हैं। '
ई-मेल, वेब, सोशल नेटवर्किंग और दूसरे आधुनिक संपर्क से जुड़ी प्रौद्योगिकी के बिना गैर-जिम्मेवार कंपनियों के खिलाफ एक साथ कदम उठाना कभी आसान नहीं होता। और सक्रिय हिस्सेदारों, जिनमें बड़ी संख्या में मुख्यधारा की निवेशक कंपनियां भी शामिल हैं, के कानों में उनकी आवाज पड़ने लगी है।' इससे कई अलग-अलग उद्योगों के भविष्य पर प्रभाव पड़ रहा है।
कोयले का क्या होगा? अगर यह उद्योग जीवित रहा तो क्या आगे भी बना रहेगा? अध्ययन में यह भी बताया गया है कि कंपनियों को पर्यावरण अनुकूल बनने के लिए क्या-क्या करना पड़ा। ऐल्कैन ने 22.5 करोड़ डॉलर जितनी बड़ी रकम जहरीले अपशिष्ट पदार्थ, जो एल्युमीनियम बनाते हुए खांचों के नीचे जमा हो जाता है, को दोबारा इस्तेमाल के लायक बनाने में खर्च करने पड़े।
इतने से न सिर्फ ऐल्कैन के अपशिष्ट की समस्या का समाधान नहीं निकला, बल्कि कंपनी प्रतिद्वंद्वियों के अपशिष्ट को भी एक कीमत लेकर खत्म कर सकती है। टोयोटा 21वीं शताब्दी की कार पर दोबारा नजर डाल रही है और कंपनी ने हाइब्रिड प्रियस का प्रयोग किया है, जिसके लिए ग्राहक इंतजार करने और मोटी रकम देने को भी तैया होंगे।
ट्रैक्टर बेचने वाले जॉन डीरे ने किसानों की फसल के लिए पवन ऊर्जा का इस्तेमाल करने के लिए मदद को एक इकाई लगाई है। और पर्यावरण अनुकूल रणनीति में जबरदस्त प्रभाव दिखाई देगा, जब बड़े कारोबारी जैसे वॉल-मार्ट और मैकडॉनल्ड्स अपनी आपूर्ति शृंखलाओं में पर्यावरण संबंधी रणनीतियों को लागू करेंगे।
कारोबार के लिए दुनिया बदल रही है, क्योंकि पर्यावरण को लेकर लोगों में जागरूकता बढ़ रही है और नियामक इस दिशा में कदम भी उठा रहे हैं। भला इसमें भारतीय आंकड़े क्या कहते हैं? इस मामले में देश निश्चित रूप से सार्वजनिक जागरूकता और नियामक स्तर पर काफी लंबा रास्ता तय करके आया है, क्योंकि इंदिरा गांधी ने अकेले ही साइलैंट वैली के खात्मे को रोक दिया था।
बाजवूद इसके अब भी काफी लंबा रास्ता तय करना बाकी है। कई कारोबार पर्यावरण संबंधी चिंताओं को रास्ते में बाधा मानते हैं और यहां तक कि कई प्रबंधक अपनी परियोजनाओं के मामले में पर्यावरण संबंधी अनुमति को एक बाधा बताते हैं। आईटीसी को वेवराइडर बनने की चाहत है और वह दिन काफी अहम होगा, जब अंतरराष्ट्रीय 25 कंपनियों की फेहरिस्त में इसका नाम भी शामिल होगा।
ग्रीन टु गोल्ड
संपादन: डेनियन सी एस्टी और ऐंड्रयू एस विंस्टन
प्रकाशक: वाईयूपी
कीमत: 19.95 डॉलर
पृष्ठ: 380