केदारनाथ सिंह
आरक्षण विरोधी मुहिम चलाने वाले जनता दल के पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह पर आरोप लगाते हैं कि अनुसूचित जाति, जनजाति का आरक्षण कायम रखते हुए मंडल आयोग की सिफारिशों के आधार पर अन्य पिछड़े वर्ग को 27 प्रतिशत आरक्षण दिए जाने से देश के अंदर जातीय तनाव पैदा हो गया है। इसमें कितनी सत्यता है, इसका विवेचन आवश्यक है। जनता दल व हमारे सरीखे लोग जहां सामाजिक न्याय के लिए आरक्षण को एक आवश्यकता महसूस करते हैं वहीं आरक्षण विरोधी आंदोलन चलाने वाले तत्व इसे अनुचित करार देते हैं। आरक्षण उचित नहीं है, इस पर आरक्षण विरोधी अपना तर्क प्रस्तुत कर सकते हैं परंतु जातीय दुर्भावना उभारने में किसका हाथ रहा है, पिछली घटनाओं के आधार पर यह स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि आरक्षण विरोधी आंदोलन चलाने वाले लोग कुलीन तंत्र के घोर पोषक हैं और एक जाति विशेष के अलावा किसी को भी सत्ता में भागीदारी नहीं देना चाहते हैं।
संविधान लागू होने के साथ ही अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लिए उनकी जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण की व्यवस्था की गई थी। यह व्यवस्था स्वर्गीय पंडित जवाहरलाल नेहरू, उनकी पुत्री स्वर्गीय श्रीमती इंदिरा गांधी व उनके पौत्र श्री राजीव गांधी के समय भी लागू रही। क्या कारण है कि उनके समय में आरक्षण विरोधी मुहिम चलाने वाले कुलीन तंत्र के लोग खामोश बैठे रहे? अब जब गैर ब्राह्मण सत्ता परिवर्तन के बाद सत्ता में आया है तो यह तत्व आरक्षण विरोधी मुहिम चलाने का काम करते हैं।
पिछली घटनाओं पर अगर नजर डालें तो मामला साफ हो जाता है। सन 1977 में आपातकाल की ज्यादतियों से ऊबकर जब जनता ने जनता पार्टी को सत्ता सौंपी तो उस समय जगन्नाथ मिश्र के स्थान पर एक नाई के लड़के कर्पूरी ठाकुर बिहार के मुख्यमंत्री बने। इसी तरह उत्तर प्रदेश में पंडित नारायण दत्त तिवारी को हटाकर पिछड़ी जाति के राम नरेश यादव मुख्यमंत्री बने। केंद्र में इंदिरा गांधी की जगह मोरारजी देसाई के नेतृत्व में सरकार बनी। उस समय 1977-78 में आरक्षण विरोधी आंदोलन चलाकर आरक्षण विरोधियों द्वारा जातीय दुर्भावना का प्रदर्शन किया गया। लोकसभा व विधानसभाओं में आरक्षण की अवधि को 10 साल के लिए बढ़ाया जाना था, जिसका विरोध शुरू हो गया, जबकि आरक्षण 1980 में बढ़ाया जाना था।
अगर आरक्षण विरोधियों ने उस समय विरोध शुरू किया था तो उन्हें विरोध जारी रखना चाहिए था। लेकिन 1980 में इंदिरा गांधी के सत्ता में आते ही आरक्षण विरोधी आंदोलन वापस ले लिया गया, जबकि उस समय आरक्षण की अवधि 10 साल के लिए बढ़ाई जानी थी।
आरक्षण विरोधी तत्व 10 साल तक खामोश रहे। जैसे ही सत्ता में गैर ब्राह्मण वर्ग का दबदबा हुआ और 1989 में बिहार में लालू प्रसाद, उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव और देश के प्रधानमंत्री वीपी सिंह बने, आरक्षण विरोधी आंदोलन फिर शुरू हो गया। आरक्षण विरोधी तत्व वीपी सिंह के सत्ता संभालने के बाद 5 दिन तक भी खामोश नहीं बैठ सके।
यह कौन सा मानदंड है? यह किसी के समझ में आने वाली चीज नहीं है। कोई चीज यदि किसी की नजर में गलत है तो उसकी नजर में जब तक कोई परिवर्तन नहीं होता, गलत ही रहेगी। आरक्षण व्यवस्था ब्राह्मणवादी शाशन व्यवस्था के अंतर्गत उचित करार दिया जाए और गैर ब्राह्मणवादी शासन में अनुचित करार दिया जाए, यह जातीय दुर्भावना नहीं तो और क्या है।
राजीव गांधी और उसके पहले के शासनकाल में जो आरक्षण व्यवस्था अनुसूचित जाति के लोगों के लिए थी, उसमें वीपी सिंह ने कोई बदलाव नहीं किया, सत्ता में आने पर उसमें कोई बढ़ोतरी नहीं की। इसके बावजूद वीपी सिंह को 5 दिन भी कुर्सी पर चैन न लेने देने का क्या कारण है? यदि कुर्सी पर बैठते ही तत्काल कोई परिवर्तन किया गया होता तो आरक्षण विरोधी मुहिम चलाने का कोई औचित्य होता। मंडल आयोग की सिफारिशें भी उस समय लागू नहीं की गई थीं। फिर भी आरक्षण विरोधी आंदोलन चला दिया गया।
कुलीनतंत्र के पोषकों ने जनता दल की सरकारों व वीपी सिंह के समक्ष ऐसी स्थिति उत्पन्न कर दी, जिसका समाधान ढूंढना कठिन हो गया। वास्तव में तथाकथित कुलीन तंत्र जो तिकड़म करके अपने को अनुसूचित जाति का ठेकेदार समझता था, उसने एक सुनियोजित षड़यंत्र के द्वारा एक खतरनाक जाल फेंकने का काम किया। देश के अंदर इस आंदोलन को चलाकर राष्ट्र की संपत्ति बर्बाद की गई। बस व ट्रेनें फूंकी गईं। देश के अंदर हिंसक वारदातें हुईं। इन घटनाओं में जाने अनजाने में पिछड़े वर्ग ने भी शिरकत की। कुल मिलाकर कुलीन तंत्र ने वीपी सिंह के सामने ऐसी स्थिति खड़ी कर दी कि वे घबराकर अनुसूचित जाति का आरक्षण खत्म कर दें और अनुसूचित जाति के लोग उनकी गोद में बैठ जाएं या वीपी सिंह सत्ता से हट जाएं। ऐसी स्थिति में वीपी सिंह और उनके केंद्रीय मंत्रिमंडल ने दूरदर्शिता का परिचय देतेहुए अपने चुनावी घोषणापत्र के मुताबिक 7 अगस्त 1990 को अन्य पिछड़े वर्ग के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण दिए जाने की घोषणा की।
इससे अलग थलग पड़े अनुसूचित जाति को सुरक्षा की गारंटी मिली और पिछड़े वर्ग के गरीब लोगों को सामाजिक न्याय मिलने का अवसर प्राप्त हुआ। परिणाम यहहुआ कि इन कुलीन तंत्र के साथ में पिछड़े वर्ग के जो लोग आरक्षण विरोधी मुहिम में शामिल थे और भ्रमित थे, उनका नजरिया साफ हो गया और आरक्षण विरोधी आंदोलन फीका पड़ गया।
आरक्षण विरोधी आंदोलन की आड़ में ऐसे भी उदाहरण आए हैं कि नौनिहाल बच्चे बच्चियों को जिंदा जलाकर आत्मदाह का ढोंग रचाने का जघन्य अपराध किया गया। इससे निकृष्ट तत्व समाज को और कहां मिल सकते हैं?
कुलीन तंत्र के पोषकों ने वीपी सिंह और उनकी सरकार को लंगड़ी मारकर गिराने की कोशिश की, लेकिन वीपी सिंह ने इसके जबावमें ऐसा धोबियापाट मारा कि यह लोग चारों खाने चित्त हो गए। धोबियापाट से घायल कुलीन तंत्र केलोग बौखला गए और वीपी सिंह व जनता दल के नेताओं, कार्यकर्ताओं पर कातिलाना हमले शुरू हो गए। बम फेके गए। काफिले पर ईंट पत्थर बरसाए गए। अगर यह कुलीन तंत्र ठाकुर जाति को बर्दाश्त नहींकर सका तो और किसी दूसरी जाति को कहां ठिकाना मिलेगा?
कुलीन तंत्र अपनी तिकड़म से हजारों साल से राज करते रहे हैं। देश में नगण्य संख्या में रहते हुए भी सत्ता को नहीं छोड़ना चाहते और लोकतंत्र का हनन कर रहे हैं। लोकतांत्रिक व्यवस्था में चुनी हुई सरकारों पर इन्हें आस्था नहीं है। इस मुद्दे पर हारने के बाद इस चालाक कुलीनतंत्र ने गुपचुप तरीके से अलग योजना बनाई।
जारी.....