उत्तर प्रदेश के गोरखपुर विश्वविद्यालय में मेरिट की हत्या का अद्भुत कारनामा सामने आया है। अपनी बेटी को पुरस्कार दिलाने के लिए विश्वविद्यालय के एक प्रोफेसर ने सभी नियमों को ताक पर रख दिया। मेधावी छात्र मुंह ताकते रह गए। प्रोफेसर के इस कांड का खुलकर विरोध हो रहा है, वहीं इस मसले का खुलासा करने वाले विश्वविद्यालय के एक और प्रोफेसर को धमकियां मिलने लगी हैं।
राज्य में योगी आदित्यनाथ के सत्ता संभालने के बाद एक खास तबके के हौसले बुलंद हैं। यह मेडल नाथ संप्रदाय के प्रसिद्ध योगी के नाम पर “महायोगी गुरु गोरखनाथ गोल्ड मेडल” शुरू किया गया। मेडल शुरू किया जाना निश्चित रूप से सरकार का एक बेहतरीन फैसला था, जिसके माध्यम से विशिष्ट शोध के लिए दिया जाना था।
गोरखपुर विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में 103 छात्र छात्राओं को डिग्रियां दी जानी हैं। इसके बावजूद विशिष्ट मेडल के लिए सिर्फ दो नाम भेजे गए। इसमें एक नाम भौतिक विज्ञान की शोध छात्रा गार्गी तिवारी का था और दूसरा बॉटनी के शोध छात्र का। बॉटनी के शोध छात्र को इस सूची से यह कहकर बाहर कर दिया गया क्योंकि उसे 2016 में डिग्री अवार्ड की जा चुकी है, इसलिए उसे 2017 का विशिष्ट मेल नहीं दिया जा सकता है। आखिर में इस पुरस्कार की एकमात्र दावेदार गार्गी बचीं, जिन्हें इस पुरस्कार के योग्य मान लिया गया।
अब खेल देखिए। शोधार्थी का नाम विभागीय समिति भेजती है, लेकिन इस मामले में ऐसा नहीं किया गया। अमर उजाला की एक खबर के मुताबिक जिन शोध पत्रों का इंपैक्ट फैक्टर 3.6 और 3.4 है, उन्हें आवेदन फॉर्म जमा करने की सूचना नहीं दी गई। वहीं जिस स्कॉलर को विशिष्ट मेडल दिए जाने की घोषणा की गई है, उसके शोधपत्र का इंपैक्ट फैक्टर 0.3 है। गार्गी की एक बड़ी योग्यता उनके पिता डॉ सुग्रीव नाथ तिवारी हैं, जो भौतिकी के विभागाध्यक्ष हैं।
इस मामले को विश्वविद्यालय शिक्षक संघ के महामंत्री डॉ. उमेश यादव ने उठाया। उन्होंने कुलपति प्रो. वीके सिंह को पत्र लिखकर कहा कि मेडल सुग्रीव नाथ तिवारी की बेटी गार्गी तिवारी को दिया जा रहा है, जबकि उनसे बेहतर संजय यादव, रवि प्रकाश और दीपेंद्र शर्मा का शोध कार्य है।
भौतिक विभाग के शोध छात्र संजय यादव ने भी पूरी प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए डीन आफ साइंस फैकल्टी प्रो. एसके सेनगुप्ता को पत्र लिखकर मेडल के लिए आवेदन जमा करने की अनुमति मांगी है।
जातीय आधार पर द्रोणाचार्यों की अपने शिष्यों का अंगूठा काट लेने की शिकायतें पूरे देश से समय समय पर आती रहती हैं। लेकिन घटती नौकरियों के बीच नव उत्पन्न इन द्रोणाचार्यों ने जाति के भीतर भी अपना गिरोह बना लिया है। विश्वविद्यालय से जुड़े कुछ सूत्रों का कहना है कि सुग्रीवनाथ तिवारी की बेटी गार्गी निहायत औसत विद्यार्थी है और इसके पहले भी बीएससी और एमएससी की परीक्षाओं में भी उसे धांधली करके ज्यादा नंबर देकर टॉप कराया गया। विश्वविद्यालय में गार्गी के सहपाठियों ने उसे ऐज युजुअल मानकर स्वीकार कर लिया और उनका विरोध क्लासरूम और अपने सहपाठियों के बीच घुटकर रह गया।
गोरखनाथ मेडल देने के नाम की घोषणा होने पर भी विद्यार्थियों के बीच सिर्फ सुगबुगाहट ही थी कि किस आधार पर, कैसे और किस आवेदन पर गार्गी का चय़न कर लिया गया। तमाम छात्र छात्राओं को पुरस्कार के लिए गार्गी के नाम की घोषणा होने के बाद पता चला कि द्रोणाचार्यों ने मिलकर खेल कर दिया है। विद्यार्थी घुट रहे थे। प्रोफेसर सुग्रीव और उनकी फौज विजेता थी। उसी बीच डॉ उमेश यादव ने इस मामले की शिकायत कुलपति से कर दी।
अब महज 2 दिन बाद यह पुरस्कार दिया जाना है। 19 दिसंबर को दीक्षांत समारोह होना है। इस बेइमानी का शिकार सिर्फ दलित पिछड़े नहीं हुए, बल्कि 103 छात्र छात्राएं हुए हैं। सभी अवाक हैं कि आखिर चयन का आधार क्या है।
इस बीच यह मामला उठाने वाले डॉ उमेश यादव को कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ रहा है। विश्वविद्यालय के सूत्रों के मुताबिक सुग्रीवनाथ तिवारी से जुड़े लोग यादव को धमकियां दे रहे हैं। उन्हें नौकरी न कर पाने देने की भी धमकी मिल रही है, जो पहले इस धमकी से शुरू हुई थी कि आपका भी कोई कैंडीडेड होगा तो हमीं लोगों को साथ देना है, सोच लीजिएगा।
गोरखपुर विश्वविद्यालय में एकलव्य का अंगूठा कटवाने की पुरानी परंपरा ये बेईमान कायम रखे हुए हैं, बस स्वरूप बदल गया है। विश्वविद्यालय में शुरू में इन बेईमानों के खिलाफ प्रखर आवाज डॉ अनिरुद्ध प्रसाद ने उठाया था। 'आरक्षण पर धरातली विचार क्यो नही' नामक पुस्तक में उन्होने कथित मेरिट धारियो की जमकर हवा निकाली है और अपने पुराने संस्मरण भी बताए हैं।
बहरहाल अभी इस पुरस्कार से वंचित किए जाने वालों में जिनका नाम सामने आ रहा है, उनमें संजय यादव पहले स्थान पर हैं। यादव के शोधपत्र की प्रशंसा न सिर्फ उनके सहपाठी करते रहे हैं, बल्कि उनके गुरुजन भी उनके लिखे को बेहतरीन मानते रहे हैं। दूसरे स्थान पर रवि प्रकाश का नाम है। रवि प्रकाश तिवारी सेंट एंड्यूज पीजी कॉलेज में में शोधार्थी रहे हैं। वह जाने माने भौतिकविद प्रो. एसए खान के विद्यार्थी हैं, जिनके कुशल नेतृत्व में तिवारी शोध पत्र लिखकर चर्चा में आए थे। तीसरे स्थान पर दीपेंद्र शर्मा का नाम है। दीपेंद्र लोहार समुदाय से हैं। इनका शोध भी लगातार चर्चा में रहा है और सहपाठियों से लेकर इनके गुरुजनों तक को आश्चर्य हो रहा है कि आखिर किस आधार पर दीपेंद्र को छांटा गया है।
कुल मिलाकर देखें तो यह मेरिट को मार डालने का अद्भुत कारनामा है। ब्राह्मणवाद और मनुवाद की गिरोहबंदी किसी को छोड़ने को तैयार नहीं है। यह सब कुछ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री की नाक के नीचे, उनकी 3 दशक से कर्मभूमि गोरखपुर में हो रहा है।
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