-माओवादियों ने पहले सबको ट्रेन से उतर जाने को कहा
-वे ट्रेन को जलाना चाहते थे
-बाद में कुछ बच्चे और महिलाएं डर के मारे रोने लगे तो उन्होंने ट्रेन जलाने का विचार त्याग दिया
-उन्होंने पूरी ट्रेन में नारे लिखे और लिखा कि छत्रधर महतो संथालियों के मित्र हैं
-ट्रेन छोड़ने से पहले वे अपने साथ पेंट्री कार से खाना और कंबल लूट के ले गए
यह सब पढ़कर थोड़ा अफसोस हुआ। ब्लागों पर पढ़ते आ रहे थे कि ये बहुत धनी, अमीर लोग हैं। लेवी वसूलते हैं। करोडो़ की संपत्ति रखते हैं। ऐय्याशियां करते हैं। लेकिन खबरें कुछ ऐसी आईं कि दिल में दर्द हुआ। ये तो रोटी लूटते हैं। ओढ़ने के लिए कंबल लूटते हैं। यात्रियों और उनके सामान को सुरक्षित छोड़ देते हैं और अपनी बात कहकर जंगल में चले जाते हैं।
स्वतंत्रता के समय संथालों ने भी अंग्रेजों के शोषण के खिलाफ आवाज उठाई थी। मैनै अयोध्या सिंह की अंग्रेजों के समय हुए आदिवासी विद्रोह पर लिखी गई किताब में यह सब पढ़ा। उनके पास गोला बारूद नहीं था। जान देकर अपने तीर धनुष से लड़े थे। स्वतंत्र भारत में भी वे वैसे ही हैं। रोटी लूटते हैं, तीर धनुष, फरसा लेकर क्रांति लाने और शोषण के खिलाफ आवाज उठाने की कोशिश मात्र करते हैं। उनकी जिंदगी में आज भी सब कुछ वैसा ही है, जैसा १०० साल पहले था। उनकी जमीन अंग्रेजों और जमींदारों ने मिलकर छीनी। वहां से खनिजों का दोहन हुआ। आदिवासियों को जंगल में जाने के अधिकार से भी वंचित कर दिया गया।
मजे की बात है कि अखबार भी उनकी दयनीय हालत के बारे में लिखते-लिखते थक गए। पढ़ने वाले भी थक गए। अखबारों ने लिखना बंद कर दिया.. और सरकार ने उनके बारे में सोचना। अब जब उन्होंने राजधानी एक्सप्रेस को कब्जे में लिया, तब जाकर खबर बने। लेकिन उनकी समस्या पर कुछ नहीं लिखा गया। क्या उन्हें स्वतंत्र भारत में रोटी और कंबल लूटते और पुलिस की गोलियां खाते ही जिंदगी काटनी है??
बुधवार की सुबह से ही खबरें आ रही हैं कि दिल्ली की केंद्र सरकार उच्च स्तरीय बैठक कर रही है। चिदंबरम साब पहले ही सेना और अर्धसैनिक बलों के माध्यम से लड़ाई लड़ने की तैयारी कर चुके हैं।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि किस तरह से सरकार गरीबों पर गोलियां चलाकर गरीबी खत्म कर पाती है। और किस हद तक। सवाल यह भी है कि जिन आदिवासी इलाकों में आजतक सड़कें, रेल, पेयजल, स्वास्थ्य सुविधाएं, पुलिस व्यवस्था बहाल नहीं की जा सकी, वहां अब सरकार सेना को कैसे पहुंचाती है और इन इलाकों के लोगों के ऊपर गोलियां चलवाकर किस तरह से हिंसक आंदोलन को खत्म करती है।
-वे ट्रेन को जलाना चाहते थे
-बाद में कुछ बच्चे और महिलाएं डर के मारे रोने लगे तो उन्होंने ट्रेन जलाने का विचार त्याग दिया
-उन्होंने पूरी ट्रेन में नारे लिखे और लिखा कि छत्रधर महतो संथालियों के मित्र हैं
-ट्रेन छोड़ने से पहले वे अपने साथ पेंट्री कार से खाना और कंबल लूट के ले गए
यह सब पढ़कर थोड़ा अफसोस हुआ। ब्लागों पर पढ़ते आ रहे थे कि ये बहुत धनी, अमीर लोग हैं। लेवी वसूलते हैं। करोडो़ की संपत्ति रखते हैं। ऐय्याशियां करते हैं। लेकिन खबरें कुछ ऐसी आईं कि दिल में दर्द हुआ। ये तो रोटी लूटते हैं। ओढ़ने के लिए कंबल लूटते हैं। यात्रियों और उनके सामान को सुरक्षित छोड़ देते हैं और अपनी बात कहकर जंगल में चले जाते हैं।
स्वतंत्रता के समय संथालों ने भी अंग्रेजों के शोषण के खिलाफ आवाज उठाई थी। मैनै अयोध्या सिंह की अंग्रेजों के समय हुए आदिवासी विद्रोह पर लिखी गई किताब में यह सब पढ़ा। उनके पास गोला बारूद नहीं था। जान देकर अपने तीर धनुष से लड़े थे। स्वतंत्र भारत में भी वे वैसे ही हैं। रोटी लूटते हैं, तीर धनुष, फरसा लेकर क्रांति लाने और शोषण के खिलाफ आवाज उठाने की कोशिश मात्र करते हैं। उनकी जिंदगी में आज भी सब कुछ वैसा ही है, जैसा १०० साल पहले था। उनकी जमीन अंग्रेजों और जमींदारों ने मिलकर छीनी। वहां से खनिजों का दोहन हुआ। आदिवासियों को जंगल में जाने के अधिकार से भी वंचित कर दिया गया।
मजे की बात है कि अखबार भी उनकी दयनीय हालत के बारे में लिखते-लिखते थक गए। पढ़ने वाले भी थक गए। अखबारों ने लिखना बंद कर दिया.. और सरकार ने उनके बारे में सोचना। अब जब उन्होंने राजधानी एक्सप्रेस को कब्जे में लिया, तब जाकर खबर बने। लेकिन उनकी समस्या पर कुछ नहीं लिखा गया। क्या उन्हें स्वतंत्र भारत में रोटी और कंबल लूटते और पुलिस की गोलियां खाते ही जिंदगी काटनी है??
बुधवार की सुबह से ही खबरें आ रही हैं कि दिल्ली की केंद्र सरकार उच्च स्तरीय बैठक कर रही है। चिदंबरम साब पहले ही सेना और अर्धसैनिक बलों के माध्यम से लड़ाई लड़ने की तैयारी कर चुके हैं।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि किस तरह से सरकार गरीबों पर गोलियां चलाकर गरीबी खत्म कर पाती है। और किस हद तक। सवाल यह भी है कि जिन आदिवासी इलाकों में आजतक सड़कें, रेल, पेयजल, स्वास्थ्य सुविधाएं, पुलिस व्यवस्था बहाल नहीं की जा सकी, वहां अब सरकार सेना को कैसे पहुंचाती है और इन इलाकों के लोगों के ऊपर गोलियां चलवाकर किस तरह से हिंसक आंदोलन को खत्म करती है।