Wednesday, September 26, 2007

ये क्या क्रिकेट-क्रिकेट लगा रखा है?


सत्येन्द्र प्रताप
पहले टेस्ट मैच बहुत ही झेलाऊ था, फिर पचास ओवर का मैच शुरु हुआ, वह भी झेलाऊ सािबत हुआ तो २०-२० आ गया। क्या खेल है भाई। भारत पािकस्तान का मैच जोहान्सबर्ग में और सन्नाटा िदल्ली की सड़कों पर । मुझे तो इस बत की खुशी हुई िक आिफस से िनकला तो खाली बस िमल गई, सड़क पर सन्नाटा पसरा था।मोहल्ले में पहुंचा तो पटाखों के कागज से सड़कें पट गईं थीं और लोग पटाखे पर पटाखे दागे जा रहे थे।
अरे भाई कोई मुझे भी तो बताए िक आिखर इस खेल में क्या मजा है? कहने को तो इस खेल में २२ िखलाड़ी होते हैं , लेिकन खेलते दो ही हैं। उसमें भी एक लड़का जो गेंद फेकता है वह कुछ मेहनत करता है,दूसरा पटरा नुमा एक उपकरण लेकर खड़ा रहता है। फील्ड में ग्यारह िखलाड़ी बल्लेबाजी कर रहे िखलाड़ी का मुंह ताकते रहते हैं कि कुछ तो रोजगार दो ।
खेल का टाइम भी क्या खाक कम िकया गया है? हाकी और फुटबाल एक से डेढ़ घंटे में निपट जाता है और उसपर भी जो खेलता है उसका एंड़ी का पसीना माथे पर आ जाता है यहां तो भाई लोग मौज करते हैं। हां, धूप मेंखड़े होकर पसीना जरुर बहाते हैं। वैसे अगर जाड़े का वक्त हुआ तो धूप में खड़े होना भी मजेदार अनुभव हो जाता है। बस खड़े रहो और लोगों का मुंह िनहारते रहो। हालांिक िरकी पांिटग जैसे िखलाड़ी जब खड़े-खड़े बोर हो जाते हैं तो वहीं अपनी जगह पर कूदने लगते हैं।
िखलाड़ी भी अजीब-अजीब होते हैं। पहले वाल्श और एंब्रोज थे, दोनों िमलकर बारह ओवर फेंक देते थे और रोजगार देते थे िवकेट कीपर को , बैिटंग करने वाला बंदा तो अपना मुंह हाथ पैर बचाने में ही लगा रहता था। रािबन भाई को कैसे भुलाया जा सकता था, अगर कभी गलती से पचास रन बना िदया मुंह से झाग फेंक देते थे, लगता था कि बेचारे ने मेहनत की है। पािकस्तान के एक भाई साहब थे इंजमाम, क्या कहने , उन्हें तो दौड़ने में भी आलस आता था। ज्यादातर वे आधी िपच तक पहुंचते और उन्हें मुआ अंपायर उंगली कर देता था। वो भी समझ नहीं पाते कि आिखर क्या दुश्मनी है उनसे।
अब तो िवग्यापन कंपनियों की बांछें िखल गई हैं क्योंिक तीन घंटे के क्रिकेट का बुखार भारत के युवकों पर चढ़ गया है। िवश्वकप में भारत पािकस्तान की दुर्दशा से तो उनका दिवाला िनकल गया था। अब आर्थिक अखबारों में सर्वे पर सर्वे आ रहा है िक बड़ा मजा है इस क्रिकेट में। कंपनियों की भी बल्ले-बल्ले है.
हालांिक अगर क्रिकेट को २०-२० की जगह पर दो िखलाड़ियों का मैच कर दिया जाए तो मजा दुगुना हो जाए। अगर सामने लांग आन और लांगआफ पर गेंद जाए तो गेंदवाज उसे पकड़ कर लाए और अगर लेग आन लेग आफ और पीछे की ओर गेंद जाए तो बल्लेबाज उसे पकड़ कर लाए। ये मैच पांच ओवर में ही िनपट जाएगा और िखलाड़ी खेलते हुए भी लगेंगे। दस बीस हजार का टिकट लगाकर क्रिकेट के दीवानों को फील्ड के बाहरी िहस्से पर फील्डिंग के लिए भी लगाया जा सकता है।साथ ही िनयमों में भी बदलाव की जरुरत है। पीछे गेंद जाने पर बालर को रन िमले और आगे की ओर गेंद जाने पर बैट्समैन को ... वगैरा वगैरा। अगर इस तरह का क्रिकेट होने लगे तो सही बताएं गुरु मुझे भी देखने में मजा आ जाए।

1 comment:

bhupendra said...

जमाना २०-२० िक्रकेट का है। सभी को चािहए तेज िक्रकेट अौर मजा। अादमी िक्रकेट देखता क्यों है मजे के िलए। मजा िमल रहा है। इंजाय कीिजए।