चीनी 50 रुपये किलो पर पहुंच गई है। शरद पवार आरोप लगा रहे हैं कि उत्तर प्रदेश सरकार ने कच्ची चीनी को शोधित करने पर रोक लगा दी, जिसके चलते दाम बढ़ गए। साथ ही उन्होंने कहा कि मैं ज्योतिषी नहीं हूं।पवार साहब चीनी के दाम बढ़वाने तक ही ज्योतिषी रहे। पिछले डेढ़ साल से औसतन हर महीने में 2 बार बयान दे रहे हैं की चीनी के दाम बढ़ेंगे, लेकिन जब चीनी के दाम में कमी कम आएगी, यह बताना हुआ तो उनका ज्योतिष ज्ञान खत्म हो गया।
शायद यह सभी को याद हो कि जब उत्तर प्रदेश की चीनी मिलों ने परोक्ष रूप से धमकी दे दी थी कि किसानों का गन्ना वे 200 रुपये क्विंटल के हिसाब से नहीं लेंगे, तब उत्तर प्रदेश सरकार ने कच्ची चीनी के प्रवेश पर रोक लगाई थी। मिलों को भरोसा था कि वे पेराई नहीं भी करते तो आयातित कच्ची चीनी साफ करके मोटा मुनाफा कमा लेंगे। किसानों का गन्ना सूखे- उनकी बला से। केंद्र में तो पवार साहब हैं ही बयान देने के लिए कि कच्ची चीनी महंगी पड़ रही है, इसलिए चीनी की कीमतें 100 रुपये किलो तक जा सकती हैं।
आखिर केंद्र सरकार किसे बेवकूफ बना रही है? चीनी माफिया मंत्रियों ने जनता को धोखा देने की ठान ली है। अभी तो मान लीजिए कि कच्ची चीनी आ रही है, वह महंगी पड़ रही है इसलिए दाम बढ़ रहे हैं। याद कीजिए कि 2009 मार्च से लेकर अक्टूबर तक वही चीनी मिलों द्वारा 30 रुपये किलो तक बेची गई, जो चीनी मार्च के पहले 16 रुपये किलो बिक रही थी। आखिर चीनी तैयार करने की लागत कितनी बढ़ गई है कि मिलें थोक भाव में 41 रुपये किलो चीनी बेचने लगीं? आखिर मिलों को कितना मुनाफा खाना है? कितने प्रतिशत लाभ कमाना है, चीनी की कमी दिखाकर? इसके लिए कौैन जवाबदेह है? केंद्र सरकार या राज्यों की सरकारें? जवाब या तो केंद्र सरकार दे सकती है... या लोकतंत्र में सबसे ताकतवर माना जाने वाला मतदाता- यानी आम जनता।
1 comment:
लोकतंत्र में सबसे ताकतवर माना जाने वाला मतदाता- यानी आम जनता .. सबसे पहले इसे अपनी शक्ति का ज्ञान तो हो !!
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