Thursday, April 15, 2010

आईपीएल घोटाले में सोनिया गांधी शामिल

सोनिया गांधी के राजनीति में आने और उनके
प्रधानमंत्री पद ग्रहण करने से इनकार के बाद सामान्यतया उन्हें त्यागी, साध्वी,
धर्मनिष्ठ और जनसेवक महिला के रूप में प्रचारित किया जाता है। आईपीएल यानी क्रिकेट
तमाशे में 200 करोड़ रुपये के घोटाले में सोनिया गांधी की भी हिस्सेदारी सामने आ
रही है। साथ ही यह भी सामने आ रहा है कि हुल्लड़बाजी और अनावश्यक खेल से अरबों की
कमाई में हिस्सेदारी के लिए टीम के हिस्सेदारों को केंद्रीय मंत्रियों ने अपने आवास
पर बुलाकर धमकाया और कारोबारियों को अपनी निजी सुरक्षा बढ़ानी पड़ी।
सामान्यतया
हम लोग किसी यूपी या बिहार के नेता को सांसद कोटे की राशि में से कुछ लाख रुपये
कमाने पर उसे बेइमान कहते हैं। या उसके कुछ लाख रुपये की अवैध कमाई (ठेकेदारी,
चंदावसूली आदि) के चलते बेइमान कहते हैं, लेकि न राजनीति से दूर रहने वाले और गणित
करके मंत्री पद हथियाने वाले मंत्री तो एक झटके में 100 करोड़ या 1000 करोड़ कमा
लेते हैं और यह उन्हें मिलता है उन कंपनियों से, जो गरीब जनता से पाई पाई निचोड़कर
अरबपति बनते हैं।
आश्चर्य है कि विदेश राज्य मंत्री ने अपनी प्रेमिका को 75
करोड़ रुपये का तोहफा कारोबारियों को धमकी देकर दिला दिया। और इस मामले में उन्हें
सीधा संरक्षण मिल रहा है सोनिया गांधी से। अगर उन्हें मंत्री पद से हटा दिया जाता
है तो सोनिया गांधी शायद खुद को साफ-पाक दिखा सकेंगी, लेकिन क्या इन बेइमानों को
उनकी बेइमानी की सजा मिल पाएगी... सत्येन्द्र


इसके तथ्यों को जानने के लिए एक रिपोर्ट पढि़ए....

http://www.business-standard.com/india/news/of-intriguearm-twisting-in-high-places/391883/

आदिति फडणीस
आईपीएल की नई टीम कोच्चि को भले ही आगाज से पहले ही कई मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा हो लेकिन उनके लिए चिंता की कोई बात नहीं क्योंकि देश की सबसे बड़ी वीटो पावर का वरदहस्त उन्हें हासिल हैं। यहां बात हो रही है कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की जो इस मामले में कोच्चि के हक में खड़ी दिखाई दे रही हैं।
कोच्चि की टीम हासिल करने वाले रॉन्दिवु स्पोट्र्स ग्रुप (आरएसडब्ल्यू) के सात निवेशकों में से 2 को पिछले हफ्ते एक केंद्रीय मंत्री के मुंबई स्थित आवास पर तलब किया गया। उनसे कोच्चि टीम की दावेदारी से हटने के लिए कहा गया। यह बातचीत रात 10 बजे शुरू हुई और सुबह करीब 4 बजे तक चली। मंत्रीजी ने उनसे कहा, 'आप जैसे लोगों से निपटने के हमें कई तरीके मालूम हैं।Ó जाहिर है उन दोनों निवेशकों में खौफ सा बैठ गया होगा।
अब उन्होंने दिल्ली दरबार का रुख किया और उसी राजनीतिक दल से संबद्घ एक अन्य मंत्री से गुहार लगाई। उन मंत्री महोदय ने अपने साथ के व्यवहार के लिए उनसे माफी मांगी लेकिन उनका भी विनम्र शब्दों में यही कहना था, 'आईपीएल से बाहर आ जाओ और टीम बेच दो।Ó
अब दोनों निवेशक अपने आप को असहाय स्थिति में पा रहे थे। उनमें से एक अपना कारोबार चलाते हैं और दूसरे एक ब्रोकिंग फर्म के मालिक हैं जो कीमती रत्नों के सौदे करती है। वे करोड़पति हैं। लेकिन उन्हें यह मालूम नहीं था कि क्रिकेट में पैसा लगाना जान में हाथ में लेकर घूमने जैसा काम होगा।
इस कहानी की शुरुआत साल भर पहले हुई जब देश के सात धनाढ्यों ने आईपीएल में पैसा लगाने का मन बनाया। अगले सत्र से इस टूर्नामेंट में दो नई टीमों के आने से उन्हें यह मौका भी मयस्सर हो गया। इस समूह की कमान एक बैंकर के हाथ में थी। जब यह निर्धारित हो गया कि कोच्चि की भी टीम बन सकती है तो समूह ने तय किया कि अगर केरल का कोई जनप्रतिनिधि उनके अभियान का समर्थन करे तो उनकी राह कुछ आसान हो सकती है। उन्होंने शशि थरूर से संपर्क किया और थरूर ने अपनी सहयोगी सुनंदा पुष्कर की हिस्सेदारी के लिए समर्थन मांगा। समूह का कहना है कि पुष्कर की टीम में केवल 5 फीसदी हिस्सेदारी है और उनकी 20 फीसदी हिस्सेदारी की चलाई जा रही खबरें बेबुनियाद हैं।
आरएसडब्ल्यू खेल प्रशंसकों का एक समूह है जो सहायतार्थ आयोजन कराता रहा है लेकिन उसका नाम बहुत ज्यादा सुर्खियों में कभी नहीं रहा। बोली लगाने के लिए बहुत ज्यादा रकम की जरूरत थी। इसके लिए कंपनी की कुल हैसियत 1 अरब डॉलर (तकरीबन 4,500 करोड़ रुपये) होनी चाहिए थी। समूह को लगा कि किसी दिग्गज कारोबारी के सहयोग के बिना उनका मकसद हासिल नहीं हो पाएगा। रॉन्दिुवु ने इसके लिए गौड़ समूह के जे पी गौड़ से संपर्क किया।
आरएसडब्ल्यू के एक सदस्य का कहना है, 'हमें किसी बड़े उद्योगपति के सहारे की दरकार थी।Ó उस समय तक यह स्पष्टï हो चुका था कि दो अन्य स्थानों के लिए भी आक्रामक बोलियां लगाई जाएंगी। इनमें अदाणी समूह अहमदाबाद और वीडियोकॉन और सहारा समूह पुणे के लिए बोली लगाने जा रहे थे। गौड़ ने फैसला लिया कि उन्हें खुद अपने दम पर बोली लगानी चाहिए और उन्होंने आरएसडब्ल्यू का साथ छोड़ दिया। तब रॉन्दिवु का एहसास हुआ कि वह इस खेल में पिछड़ते जा रहे हैं।
बहरहाल पहले दौर की बोली निरस्त कर दी गई और इसे दो हफ्ते बाद चेन्नई में करने का निश्चय किया गया। यह रविवार की एक सुबह थी और चेन्नई में क्रिकेट का एक मैच भी चल रहा था। तब तक पांच कंपनियां होड़ में बरकारर थीं। ये थीं अदाणी समूह, वीडियोकॉन, आरएसडब्ल्यू, साइरस पूनानवाला और उनके साथ बिल्डर अजय शिर्के और सहारा समूह।
जब रॉन्दिवु के पास यह संदेश गया कि उनकी बोली 30 करोड़ डॉलर से कम है और उनकी दावेदारी पिछड़ सकती है। उन्होंने आपस में राय-मशविरा किया और अपनी बोली बढ़ाकर 33.3 करोड़ डॉलर (तकरीबन 1,533 करोड़ रुपये) कर दी। आखिरकार वह टीम हासिल करने में कामयाब हो गए। जश्न मनाने की तैयारी भी हो गई थी लेकिन उनके मुखिया ने चेताया कि पहले फ्रैंचाइजी लैटर हाथ में आ जाए उसके बाद ही कुछ किया जाए।
उन्होंने दिल्ली में आईपीएल कमिश्नर ललित मोदी से मुलाकात की। जिस कमरे में बातचीत हो रही थी उसमें एक केंद्रीय मंत्री की बेटी भी मौजूद थीं। उनसे कहा गया कि चलो 5 करोड़ डॉलर लो और इससे बाहर आ जाओ। पहले तो समूह भौचक्का रह गया लेकिन जवाब आया, 'मान लीजिए कि हम इससे निकल भी जाते हैं तो कौन हमें यह रकम देगा।Ó यह जवाब एक निवेश बैंकर की ओर से आया था। मुखिया ने कहा, 'बातें न बनाएं! मैं निवेश बैंकर हूं और अच्छी तरह से जानता हूं कि कोई भी हमें इतनी बड़ी रकम नहीं देगा।Ó दूसरी ओर से जवाब आया, 'एक निवेश बैंकर का ही ग्राहक।Ó
हालांकि समूह खुद अचरज में पड़ गया लेकिन उन्होंने जवाब दिया कि उनकी साख दांव पर लगी है इसलिए वे ऐसा नहीं कर सकते। सिलसिला यहीं खत्म नहीं हुआ। संभाव्य देनदारियों, हिस्सेदारी का तरीका और आखिर में 10 फीसदी बैंक गारंटी जैसी तमाम औपचारिकताओं की आड़ में फ्रैंचाइजी पत्र वाले दस्तावेज को देने में देरी की जाती रही। आखिर में एक संदेश आया, 'आप इसमें क्यों फंसे? टीम बेच दो।Ó बातचीत की आखिरी जगह मंत्री का बंगला ही था।
समूह को लग गया था कि अगर राजनीतिक तरीके से ही उन्हें न्याय मिल पाएगा तो इसके लिए भी उन्हें किसी राजनेता का ही दरवाजा खटखटाना होगा। शशि थरूर ने अपने दोस्तों को भरोसा दिलाया कि वह विवाह की अपनी योजना को थोड़ा आगे खिसका सकते हैं। सुनंदा पुष्कर जरूर रुआंसी हो गईं। समूह के दो गुजराती निवेशकों ने अपने और अपने परिवार के लिए अतिरिक्त निजी सुरक्षा तैनात कर दी।
समूह के एक सदस्य का कहना है, 'पूरा खेल कुछ यूं था कि हम फ्रैंचाइजी अगले बोलीकर्ता के लिए खाली कर दें।Óयह मामला तो तब है जब किसी भी फ्रैंचाइजी को शुरुआती दो साल में 40 से 50 फीसदी का नुकसान झेलना पड़ता है। एक सदस्य का कहना है, 'हम पहले दो साल में कम से कम 100 करोड़ रुपये का नुकसान होते देख रहे हैं।Óतटस्थ जानकारों का मानना है कि यह विवाद महज 'चालाक लोगोंÓ के दो समूहों के हितों का टकराव है। बीसीसीआई की गवर्निंग परिषद के एक सदस्य का कहना है, 'मोदी के मामले में तो एकदम स्पष्टï है। उनके दामाद के पास इंटरनेट विज्ञापन अधिकार हैं और उनके साले एक टीम में हिस्सेदार हैं। जहां तक शशि थरूर की बात है तो वह जिस महिला से शादी करने जा रहे हैं उन्हें 75 करोड़ रुपये की हिस्सेदारी दी गई जो कुछ साल के बाद 500 करोड़ रुपये तक की हो सकती है। उनके पास जो मंत्रालय है उसमें भी उन्हें पश्चिम एशिया प्रभार मिला हुआ है और उनका कारोबार भी यहीं फैला है। क्या यह भी किसी संपत्ति से कम है।Ó

5 comments:

L.R.Gandhi said...

यह तो महज़ एक खेल से खिलवाड़ मात्र है -ये लोग तो देश को बेचने पर तुले है। क्रिकेट में खिलाडिओं का छक्का तो मैदान की बांडरी के पार ही जाता है और खिलाडी का कुछ दाम और बढ़ जाता है। इन राजनैतिक खिलाडिओं के छक्के तो देश की बांडरी के पार सीधे स्विस बैंक के आहाते में गिरते हैं और इन शातिर खिलाडिओं के खाते में ७० लाख करोड़ तो अभी तक जमा भी हो चुके हैं और खेल अभी ज़ारी है।

Gyan Dutt Pandey said...

ट्यूब लाइट जल पड़ी हमारी!

RAJENDRA said...

बेचने दो न देश इन्हें इनका क्या जाता है इनके कोंसे बाप का देश है जिनके बाप का देश है उन्हें या तो गैरत नहीं है या बेचारे रीढ़ विहीन हैं

RAJENDRA said...

बेचने दो न देश इन्हें इनका क्या जाता है इनके कोंसे बाप का देश है जिनके बाप का देश है उन्हें या तो गैरत नहीं है या बेचारे रीढ़ विहीन हैं

RAJENDRA said...

बेचने दो न देश इन्हें इनका क्या जाता है इनके कोंसे बाप का देश है जिनके बाप का देश है उन्हें या तो गैरत नहीं है या बेचारे रीढ़ विहीन हैं