दिल्ली के वजीरपुर गांव के लोग कह रहे हैं कि एक ही गांव के लोग भाई बहन होते हैं। वे क्या गलत कह रहे हैं? सिर्फ इतना ही नहीं, चाचा-भतीजा, भाई-भाभी, बाबा-दादी, ताऊ, ताई तमाम रिश्ते होते हैं। मैने अपने गांव में देखा है। मुझसे कम उम्र के कितने लोग मेरे चाचा हैं। मैं अपने उम्र के दोगुने उम्र के लोगों का चाचा भी हूं। तमाम लोग, जो मेरे हमउम्र हैं, रिश्ते में मेरे बाबा हैं। मेरी तमाम बुआ हैं। गांव की किसी लड़की का पति अगर गांव में आता है तो वह पूरे गांव का दामाद हो जाता है। उसके बच्चे आते हैं तो सारा गांव उसका मामा-मामी, नाना-नानी हो जाते हैं। हां, ऐसा कोई उदाहरण शायद मैने अपने गांव में नहीं देखा है कि एक ही गांव के लोग पति-पत्नी या प्रेमी-प्रेमिका हों।
गांव में रिश्तों की एक तासीर होती है। वे शायद शहरी रिश्तों को नहीं समझ पाते कि बगल वाले फ्लैट में रहने वाला व्यक्ति, रिश्ते में उसका क्या लगता है? शायद इसका कारण है कि शहरों में अभी लोग १०-२० या ४०-५० साल से बसे हैं। वे अलग-अलग इलाके से आते हैं। उन्हें बगल वाले के दुख-दर्द से कोई मतलब नहीं होता। अगर बगल के फ्लैट में कोई अकेला है, बीमार है और मरने की कगार पर है तो उसका पड़ोसी ऑफिस जाना ज्यादा जरूरी समझता है। गांव का आदमी अगर आधी रात को बीमार पड़ता है तो गांव में संसाधन, इलाज की सुविधा आदि न होने के बावजूद पूरा गांव एकत्र हो जाता है औऱ उसे अगर १०० किलोमीटर दूर इलाज के लिए ले जाना पड़ता है तो गांव के १० लोग साथ हो लेते हैं। लोगों के पास पैसा नहीं होता है लेकिन गांव में तत्काल १०-२० हजार रुपये इकट्ठा हो जाता है। दिल्ली में ज्यादातर लोग लखपति हैं, लेकिन यहां १०-२० प्रतिशत आबादी भूखे पेट सो जाती है। गांव में सभी लोग आधा पेट भोजन करते हैं, और भूख से तभी मरते हैं जब पूरा गांव भूख से मरने की कगार पर पहुंचने को होता है।
यह होती है रिश्तों की तासीर। यह होता है गांव और शहर के रिश्तों में फर्क, जो मैने महसूस किया है।
2 comments:
सत्य वचन।
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क्या आप बता सकते हैं कि इंसान और साँप में कौन ज़्यादा ज़हरीला होता है?
अगर हाँ, तो फिर चले आइए रहस्य और रोमाँच से भरी एक नवीन दुनिया में आपका स्वागत है।
Tum mere gaav ke nahi ho lekin fir bhi mere bhai ho :-)
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