आज मेरी पत्नी से बहुत देर तक मेरा सवाल-जवाब चला। उन्होंने पूछ दिया कि ये स्पेक्ट्रम घोटाला क्या है? मैंने उनसे कहा कि देश की संपत्ति की लूट की लूट का मामला है। उन्हें समझ में नहीं आया तो मैने सामान्य ढंग से समझाने की कोशिश की। मैने उनसे पूछा कि २ लाख में कितने शून्य लगते हैं तो उन्होंने बताया कि पांच। फिर मैने पूछा कि २ लाख करोड़ में कितने शून्य लगेंगे तो उन्होंने बहुत मेहनत कर बताया कि करोड़ के सात और लाख के पांच मिलाकर बारह शून्य लगेंगे। तब मैने उन्हें बताया कि २ के बाद बारह शून्य लगाने पर जितने रुपये बनते हैं उतने बाजार मूल्य का स्पेक्ट्रम कुछ कारोबारियों को हमारी सरकार ने करीब मुफ्त में दे दिया है।
हालांकि २ के बाद इतने शून्य लगाने के बाद ही वो चकरा गई थीं। लेकिन उन्होंने सवाल उठाया कि संचार विभाग के अलावा और विभागों में भी ऐसा है क्या? मैने फिर अपनी छोटी बुद्धि दौड़ाई और बताया कि इससे बड़ा घोटाला गैस ब्लॉक आवंटन में हुआ है और एक ही सेठ को सरकार ने औने पौने दाम देश की सारे गैस ब्लॉक दिए हैं। साथ ही देश में कोयला ब्लॉक के आवंटन में भी लूट है। इतनी ही बड़ी लूट लौह अयस्क ब्लॉक के मामले में हुई है। तब तक मेरी पत्नी को याद आया कि कर्नाटक के मुख्यमंत्री को हटाने की साजिश लौह अयस्क की लूट करने वाले लोग कर रहे हैं। येदियुरप्पा के ऊपर कुछ लाख रुपये के प्लाट उनके परिवार को दिए जाने के मामले को लेकर।
बहरहाल, बीच में नीरा राडिया की भी चर्चा हो गई। उनके बारे में भी बताना पड़ा कि वो लंदन में पढ़ी लिखी और पूंजीवाद को नज़दीक से समझने वाली महिला हैं। राडिया की पढ़ाई पूरी हुई, ठीक उसी समय हमारे मनमोहन सिंह बाजार को पूंजीवादी रास्ते पर लेकर आए। उस समय मनमोहन वित्त मंत्री थे। नीरा राडिया ने नजदीक से देखा था कि पूंजीवाद में एक जनसंपर्क एजेंसी की बड़ी भूमिका होती है और उन्होंने वैष्णवी कम्युनिकेशंस की नींव रख दी। बाद में वह टाटा समूह और मुकेश अंबानी समूह प्रमुख उद्योग घरानों के जनसंपर्क देखने लगीं और उन्होंने बहुत बड़ी पूंजी वाली जन संपर्क एजेंसी खड़ी कर ली। अब वह मीडिया और अपने अन्य संपर्कों के माध्यम से उद्योग जगत के पक्ष में माहौल बनाती हैं।
तो आखिर नीरा राडिया कैसे सामने आ गईं? दरअसल टू-जी स्पेक्ट्रम की लूट की जांच का फैसला सरकार ने किया। राडिया चूंकि उद्योगपतियों के लिए काम करती थीं, इसलिए उनके फोन टेप किए जाने लगे। जब फोन टेप में बड़ी-बड़ी मछलियों के नाम सामने आने लगे तो जांच एजेंसी ने उसे साल भर दबाए रखा लेकिन वह टेप लीक हो गई और खबरें मीडिया में आने लगीं।
बहरहाल चर्चा में यह आ गया कि गैस घोटाला क्यों सामने नहीं आया? असल में मुकेश अंबानी ज्यादा चालाक निकले और उन्होंने अपनी डीलिंग सीधे सरकार से की और उस क्षेत्र में किसी प्रतिस्पर्धी को घुसने का मौका ही नहीं दिया। कुछ वैसे ही, जैसे वेदांता के अग्रवाल ने खनन कारोबार में किया था। जब खनन कारोबार में तमाम कारोबारी कमाई के लिए घुसने लगे औऱ घोटाला सामने आने की नौबत आई तो उन्होंने लंदन में घर बसा लिया। अग्रवाल को अब भारत में कमाई से खास मतलब भी नहीं है क्योंकि वेदांता विश्व की तीसरी बड़ी खनन कंपनी बन चुकी है। हालांकि उनका भारत में भी बहुत बड़ा कारोबार है।
मेरी समझ में इतना ही आया और यह मेरे निजी विचार हो सकते हैं। मनमोहन को मैने धन्यवाद भी दिया और खुद नए सिरे से समझने और समझाने की कोशिश की कि किस तरह से देश में धनकुबेरों की संख्या बढ़ रही है और वे वैश्विक धनकुबेरों की सूची में ऊंचा स्थान बनाते जा रहे हैं। इसी को कहते हैं शानदार विकास!