Friday, April 22, 2011

आखिर कैसे मिलेगा मुख्तारन माई जैसी महिलाओं को न्याय?

सत्येन्द्र प्रताप सिंह


...औरतों के खिलाफ जुल्म का मसला कितना बड़ा है, मैं यह महसूस करके भौचक्की रह जाती हूं। हर उस औरत के मुकाबले, जो जुल्म के खिलाफ लड़ती है और बच निकलती है, कितनी औरतें रेत में दफन हो जाती हैं, बिना किसी कद्र और कीमत के, यहां तक कि कब्र के बिना भी। तकलीफ की इस दुनिया में मेरा दुख कितना छोटा है।...

पाकिस्तान की मुख्तारन माई का ये दुख दरअसल उतना छोटा नहीं है। मुख्तारन माई की किताब ...इन द नेम ऑफ ऑनर... तकरीबन 5 साल पहले आई थी।

आज फिर मुख्तारन माई चर्चा में हैं. आज ही पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायालय ने उनके साथ हुए सामूहिक बलात्कार का फैसला सुनाया है. मुख्तारन माई रो रही है. पाकिस्तान के मानवाधिकारवादी रो रहे है, जिन्हें न्याय प्रणाली में आस्था है (थी). मुख्तारन माई ने कहा कि अगर अब उनकी हत्या हो जाती है तो पाकिस्तान की सरकार के साथ यहाँ की न्यायपालिका भी जिम्मेदार होगी.

पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायालय ने गुरुवार को उच्च न्यायालय के फैसले को बरक़रार रखते हुए मुख्तारन माई के सामूहिक बलात्कार के मामले में ५ आरोपियों को बाइज्जत बरी कर दिया. वहां की एक पंचायत ने मुख्तारन माई के भाई के अपराध के लिए २००२ की गर्मियों में उसके साथ सामूहिक बलात्कार करने की सजा सुनाई थी. सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि साक्ष्य पर्याप्त नहीं हैं और इसका फायदा आरोपियों के पक्ष में जाता है.

अब कौन सी औरत होगी, जो इतने थू-थू के बीच न्याय की आस लगाएगी? और इस व्यवस्था में कैसे आस्था कर पाएंगे लोग?

3 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

दुर्भाग्यपूर्ण है।

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

पाकिस्तान की व्यवस्था में न्याय के बारे में सोचना उतना ही सार्थक है जितना भारतीय राजनेताओं में ईमान की उम्मीद करना.

satyendra said...

भारत के न्याय के बारे में आपका क्या खयाल है सर?