रामदेव छोटे कारोबारी हैं। विज्ञापन देने के बजाय वह सुर्खियां बटोरकर लोगों की नजर में रहते हैं। इसी बहाने अपने उत्पाद का प्रचार भी कर लेते हैं। बिल्कुल वैसे, जैसे कचहरी में तमाशा दिखाने वाला मदारी चूरन बेचकर चला जाता है। ज्यादा संभव है कि इस आंदोलन पर आए खर्च की भरपाई बाबा अपने 285 उत्पादों के दाम बढ़ाकर करें। एक पड़ताल...सत्येन्द्र प्रताप सिंह बाबा रामदेव ३ दिन के अनशन पर बैठे हैं। इस बार उनका धरने पर बैठने से पहले भी टोन डाउन था, अभी भी है। बैठने के पहले ही उन्होंने स्पष्ट कर दिया था कि सिर्फ तीन दिन अनशन चलेगा। अगर सरकार नहीं मानती तो आगे की रणनीति तय की जाएगी। बाबा रामदेव के साथ इस बार ठीक-ठाक भीड़ है। भीड़ पहले भी थी, जब उन्हें अनशन छोड़कर भागना पडा था। उनके भीड़ की गणित दूसरी है। श्रद्धा औऱ कारोबार की छौंक। यूं तो वैसे भी यहां हजारों की संख्या में बाबा हैं और एक एक बाबा के लाखों चेले हैं, जो एक आह्वान पर जहां कहा जाए, जुटने को तैयार हो जाते हैं। लेकिन बाबा कभी पंगा नहीं लेते, सरकारें भी उनसे पंगा नहीं लेती हैं। आपसी सहमति है... सरकारें बाबाओं को खुलकर चरने देती है और बाबा लोग भी अपनी ताकत का जोश नहीं दिखाते। दरअसल नए बाबा दलित ही साबित हुए हैं। पुराने मठाधीशों के उत्तराधिकारी तो मौज में रहते हैं, लेकिन किसी नए बाबा की बाबागीरी बहुत ज्यादा नहीं चल पाती। हालांकि यह दावे के साथ यह कहना सही नहीं होगा। इस बीच तमाम कथावाचक, छूकर इलाज करने वाले हुए, लेकिन परंपरागत या कहें कि पीढ़ी दर पीढ़ी वाली बाबागीरी व्यापक पैमाने पर विकसित करने में वह ज्यादा सफल नहीं हुए हैं। बाबा रामदेव ने बाबागीरी का अलग कांसेप्ट दिया। बिल्कुल नया कांसेप्ट। हालांकि बाबागीरी भी एक कारोबार है, जिसमें किसी अदृश्य सत्ता का भय दिखाकर वसूली की जाती है। परेशान लोग औऱ डरते हैं और पैसे देकर आते हैं। मंदिरों में विभिन्न तरह की पूजा के पैकेज चलते हैं। इस कारोबार की तुलना में बिल्कुल अलग कारोबार है बाबा रामदेव का। जैसे एक उद्योगपति अपने उत्पाद तैयार करता है और बेचता है, वही काम बाबा रामदेव भी करते हैं। हालांकि यह कांसेप्ट किसी का भय दिखाकर वसूली की तुलना में मुझे बेहतर लगता है। कारोबारी मॉडल आइए बात करते हैं बाबा के कारोबारी मॉडल पर। बाबा ने योग, वाक्पटुता आदि के माध्यम से ठीक ठाक नाम कमाया। उन्होंने आयुर्वेद पर जोर देना शुरू किया। इस बीच बाबा ने दिव्य योग फार्मेसी भी खोल ली। इस उद्योग में उन्होंने हर कारोबारी मानक का ध्यान रखा है। बेहतरीन चिकित्सक, शोधकर्ता औऱ प्रोडक्ट बना रहे लोग। कारोबार जैसे जैसे जोर पकड़ता गया, बाबा ने इसका विस्तारकिया। मांग के मुताबिक आपूर्ति की। इस समय बाबा के दिव्य फार्मेसी के 285 उत्पाद हैं। यही नहीं, बाबा पूरे कारोबारी कांसेप्ट मानते हैं। उन्होंने इलाजों का पैकेज भी दे रखा है। कुल ३२ भयंकर या कहें लाइलाज मानी जाने वाली बीमारियों का उपचार वह पैकेज के माध्यम से करते हैं। इसमें लीवर सिरोसिस से लेकर कैंसर तक के इलाज का ठेका शामिल है। हालांकि ऐसी कोई दावेदारी नहीं की गई है कि इस इलाज से बीमारी ठीक होगी। वह तो किसी भी चिकित्सा पद्धति में नहीं की जाती। लेकिन बाबा समय समय पर अपने योग शिविर के भाषणों में दावे भी करते रहते हैं। हर एक इलाज के लिए अलग-अलग पैकेज है। विज्ञापन का तरीका बाबा ने इस साम्राज्य के लिए किसी विज्ञापन का सहारा नहीं लिया। बस, अपने भाषणों में योग सिखाने के लिए जुटी भीड़ को वह अपनी विभिन्न दवाइयों की विशेषताएं बता देते हैं। इसके चलते उनका लाखों का विज्ञापन का खर्च बच जाता है। विज्ञापन का यह खर्च तब तक बचता रहेगा, जब तक बाबा चर्चा में रहेंगे। सुर्खियों में उनकी बने रहने की इच्छा के पीछे एक बड़ी वजह यह भी है। हां, पिछली बार केंद्र सरकार से बनते बनते बात बिगड़ गई थी, यह अलग मसला है। बाबा एक बार फिर अपने कारोबार के प्रचार में निकले हैं। लोग उनकी बात सुन रहे हैं। इलाज में विश्वसनीयता बहुत मायने रखती है। अगर उसमें देशभक्ति और बेहतर व्यक्ति होने की छौंक लग जाए तो कोई मान ही नहीं सकता कि यह महज कारोबार का मामला है। इसमें प्राचीन ज्ञान विज्ञान से लेकर देशभक्ति और सरकार विरोधी गुस्सा को एख साथ भुनाने का मौका है। अनशन में भीड़ की वजह बाबा के अनशन में भीड़ जुटने की कई वजहें हैं। पहले.., योग के नाम पर उनके शिविर में दस पांच हजार तो यूं ही आ जाते हैं। दूसरे... बाबा के कारोबार का पूरा नेटवर्क है। उत्तर भारत के हर शहर में इनके उत्पादों की दुकानें हैं। हर जिले में इनके स्टाकिस्ट हैं। अगर गौर से देखें तो बाबा के स्टाकिस्टों ने इस आंदोलन में अहम भूमिका निभाई है। जहां पर इनके स्टाकिस्ट की दुकान या घर है, उस मोहल्ले में विरोध प्रदर्शन शिविर लग गए हैं। बूढ़ी महिलाएं, बूढे पुरुष, बच्चे वहां जमा हो रहे हैं... जिनके लिए बाबा के स्टाकिस्टों ने बेहतरीन प्रबंध कर रखा है। कारोबारी इस पर अच्छा निवेश कर रहे हैं। हालांकि यह खबर नहीं है कि स्टाकिस्टों को कोई निर्देश दिया गया है, लेकिन वह अपने जिलों से वाहनों आदि की पूरी व्यवस्था में लगे हैं। साथ ही रामलीला मैदान में भी भरपूर प्रबंध है, रहने और खाने का। कारोबारी पूंजी बाबा का कारोबार विभिन्न ट्रस्टों के माध्यम से चलता है। इसमें ४ विभिन्न ट्रस्ट शामिल हैं। पिछले साल जून महीने में बाबा की घोषणा के मुताबिक उनका कुल कारोबारी साम्राज्य १,१०० करोड़ रुपये के आसपास है। बाबा ने अपने कारोबार का ब्योरा अपनी वेबसाइट पर भी डाल रखा है औऱ उनका कहना है कि कारोबार में पूरी पारदर्शिता बरती जाती है। चार्टर्ड एकाउंटेंट अनिल अशोक एंड एसोसिएट्स ने उनके सभी ट्रस्टों की आडिट की है। आयुर्वेद का कारोबार देश में किसी भी जटिल इलाज के लिए शायद ही आयुर्वेद का सहारा लिया जाता हो, लेकिन कारोबार इतना तो है ही कि डाबर, वैद्यनाथ जैसी बड़ी कंपनियों से लेकर गली कूचे तक में आयुर्वेदिक दवाएं बनती हैं। लेकिन आज के कारोबार के हिसाब से देखें तो आयुर्वेद के मामले में रामदेव सभी कंपनियों को टक्कर देते नजर आ रहे हैं। कहीं जेब पर न भारी पड़े आंदोलन? स्वाभाविक है कि रामदेव ने जो कमाया है, उसी में से खर्च कर रहे हैं। बाबा रामदेव का कारोबार पूरी तरह से विश्वास पर ही चलता है। आज उनके पूरे स्टॉकिस्ट से लेकर खुदरा दुकानदार तक इस आंदोलन में निवेश कर रहे हैं। अब रामदेव के उत्पादों के ग्राहकों को देखना होगा कि आंदोलन पर आए खर्च की भरपाई उनकी जेब से कैसे की जाती है। बाबा रामदेव का आंदोलन खत्म होने के बाद पूरी संभावना है कि उनके उत्पादों की कीमतों में बढ़ोतरी हो। हालांकि पूरा मामला इलाज से न जुड़ा होकर श्रद्धा की छौंक भी है, इसलिए यह भी संभव है कि उनके शिष्य या कहें ग्राहक, यह भी तर्क दें कि अच्छे काज के लिए पैसे खर्च किए, थोड़े दाम बढ़ाकर वसूली कर रहे हैं तो उसमें बुरा क्या है?
सबकी अपनी अपनी सोच है, विचारों के इन्हीं प्रवाह में जीवन चलता रहता है ... अविरल धारा की तरह...
Friday, August 10, 2012
उत्पादों के दाम बढ़ाकर आंदोलन का खर्च वसूल सकते हैं रामदेव
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