अंजनी कुमार ने अपनी रिपोर्ट में दिल्ली में हुए दो विरोध प्रदर्शनों का आकलन किया है.
यह महाराष्ट्र का धुले नहीं है। फैजाबाद और बरेली नहीं है। यह बस्तर नहीं है। नंदीग्राम और लालगढ़ नहीं है। यह सलवा जुडुम नहीं है, हरमद वाहिनी नहीं है, गुजरात का मोदी का हत्यारा अभियान नहीं है। यह दिल्ली है। लेकिन 1984 नहीं है। यह दिल्ली विश्वविद्यालय है और जंतर-मंतर का 100 मीटर का ‘लोकतांत्रिक’ गलियारा है। 9 जनवरी 2013 को अफजल गुरु की फांसी का विरोध कर जनवादी लोगों को पुलिस, इंटेलीजेंस, आरएसएस अपने पूरे घिरोह के साथ जंतर मंतर पर हमला करने में लगा रहा। आएएसएस बाकायदा टेंट लगाकर लाडडस्पीकर से जोर जोर से अफजल गुरु की फांसी का विरोध करने वालों को मारने पीटने का आदेश और संचालन कर रहा था। कोई कश्मीरी युवा दिख जाए या कोई नारा लगा दे, इन पुलिस और आरएसएस के गुंडों से पहले मीडिया अपना कैमरा लिए उस तरफ दौड़ जाता। और फिर मार पिटाई के दृश्य का फिल्मांकन शुरू हो जाता। कोई भी विरोध का स्वर उठता पुलिस उसे घसीटते हुए अपने गुंडों के में ले जाकर छोड़ जाती और मार पिटाई का दौर शुरू हो जाता। ये गुंडे खुलेआम डंडा लिए घूम रहे थे, मार रहे थे, बदतमीजियां कर रहे थे और पुलिस इनके साथ साथ घूमते हुए अफजल गुरु को फांसी देने वालों की खिलाफत करने वालों के प्रतिरोध को तोड़ रही थी। लगभग तीन घंटे चली इस घटना में विरोध करने वाले 22 लोगों को डीटेन किया गया। लगभग 4.30 बजे की शाम को जंतर मंतर पर 40 लोगों ने अफजल गुरु की फांसी के विरोध में नारा लगाया और पहले से तय ‘जनता पर युद्ध विरोधी मंच’ के कार्यक्रम के अनुसार गांधी शांति प्रतिष्ठान के लिए गए। वहां पहुंचने के पहले पुलिस की भारी संख्या, दर्जनों गाड़ियां और वाटर कैनन के साथ उपस्थित थी। कार्यक्रम खत्म होने तक वे इसी तरह बने रहे।
6 जनवरी 2013 को खालसा कालेज से लेकर श्री राम कालेज ऑफ कॉमर्स के गेट तक नरेंद्र मोदी के समर्थकों की भारी भीड़ है। वे स्वागत के लिए खड़े हैं। पुलिस नरेंद्र मोदी और इन समर्थकों की सुरक्षा में मुस्तैद है। दिल्ली विश्वविद्यालय के आट्र्स फैकल्टी के श्री राम कालेज ऑफ कॉमर्स की तरफ वाले गेट पर नरेंद्र मोदी की मुखालिफत करने वाले छात्रों की भीड़ है। उन्हें पुलिस के दो बैरियर, वाटर कैनन और आंसूगैस, लाठी और बंदूक के साथ तैनात हैं। बैरियर पर नरेंद्र मोदी विरोधी छात्र, संगठन, अध्यापकों के हुजूम के पीछे की तरफ से पुलिस की विशाल फौज खड़ी है। अचानक विरोध करने वाले छात्रों के बीच एबीवीपी और छद्म नाम वाले बैनरों के साथ आरएसएस पुलिस के सहयोग से घुसती है। यह एक दृश्य है। पुलिस बैरियर के इस तरफ और उस तरफ दोनों ही ओर पुलिस की सुरक्षा व सहयोग से आरएसएस और गुडा तत्वों का हमला शुरु होता है। पुलिस लाठी चार्ज करती है। नरेंद्र विरोधी छात्रों को न केवल पुलिस साथ उनके बुलाए गुंडे भी मारते हैं। पुलिस विरोधी छात्रों को गिरफ्तार करना शुरू करती है। फिर यह काम रुक जाता है। इस दौरान पुलिस ने पांच अध्यापकों को मार कर घायल कर चुकी है। एक छात्र को गंभीर हालत में अस्पताल ले जाया जाता है। एक बेहोश हो जाता है। अध्यापक, छात्र अपनी एकता को बनाए रखते हुए अपना विरोध जारी रखा। गुंडा तत्वों से निपटा। पुलिस उन्हें सुरक्षित कर एक कोने में खड़ा किए रही। एक बार फिर लाठी चार्ज हुआ। पुलिस ने छात्रों को गिरफ्तार किया। कई छात्रों को मारा। इस बीच आरएसएस और पुलिस के गुंडे पुलिस की गाड़ी पर खड़े होकर नरेंद्र मोदी का झंडा लहरा रहे थे। रॉड और डंडे लहरा रहे थे। गालियां बक रहे थे और मौका मिलने पर मार पिटाई के लिए आगे आ रहे थे। पुलिस की अभूतपूर्व सुरक्षा में आरएसएस और उनके गुंडों का यह खेल रात के दस बजे तक चलता रहा। विरोध कर रहे छात्रों और संगठनों डीएसयू, आइसा, एसएफआई, एसआईओ, सीएफआई और अध्यापकों ने अपनी मोर्चेबंदी जारी रखी। और पुलिस और गुंडा तत्वों के खिलाफ मामला दर्ज कराया। उसके दूसरे दिन पता चला कि पुलिस ने छात्रों और अध्यापकों पर केस दर्ज कर दिया है। पुलिस के अनुसार इन्होंने सुरक्षा के लिए ‘खतरा उत्पन्न’ किया। इस दौरान एक भी आरएसएस या गुंडा तत्वों की गिरफ्तारी नहीं की गई। उन्हें अंत तक सुरक्षित रखा गया।
6 जनवरी को नरेंद्र मोदी का भाषण हुआ। और उसके अगले दिन भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने उसे प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया। दिल्ली विश्वविद्यालय को लांचिंग पैड बनाया गया। छात्र यूनियन के नाम से नरेंद्र मोदी को बुलाने की रस्म अदा की गई। छात्रों और अध्यापकों को इस बात की भनक कार्यक्रम घोषित होने के दो दिन पहले लगी। सवाल उठा कि किसने बुलाया। एक ठोस बात आई: अरुण जेतली ने। अरुण जेतली श्री राम कॉलेज ऑफ कामर्स के गवर्निंग बॉडी के सदस्य हैं। जाहिरा तौर पर इसमें वह लोग काफी संख्या में हैं जिन्हें मोदी के आने से कोई दिक्कत नहीं है। यह कॉलेज इसी गवर्निंग बॉडी से चलता है। छात्र और अध्यापक का इस कॉलेज में क्या हैसियत बनती है। यह दुकान है जहां शिक्षा का कारोबार चल रहा है। यही स्थिति दिल्ली विश्वविद्यालय की है। छात्र अध्यापक पाठ्यक्रम, शिक्षा पद्धति, फीस, कैंटीन और यहां तक की पुलिस व वीसी की कथित सुरक्षा व्यवस्था को लेकर आंदोलन करें, धरना दें, ...कोई फर्क नहीं पड़ रहा। यह दिल्ली है और यहां के हालात ऐसे ही बदल रहे हैं। यह लैंड ग्रैबिंग नहीं है। यह एजुकेशन ग्रैबिंग है। यह विशाल मकान जिसमें शिक्षा का कारोबार चल रहा है, उस पर कब्जा का अभियान है। और इसके लिए नरेंद्र मोदी के शब्दों में अच्छे ब्रांड वाले फैक्ल्टी व कॉलेज को ‘विशेष पैकेज’ दिया जाएगा। इस काम को निपटाने वालों को ऊंचा पद और पैसा दिया जाएगा। इस भाषण पर खाये अघाए घरों से आने वाले छात्र तालियां पीट रहे थे। यह शिक्षा का नया तंत्र है जो आम घरों से आए छात्रों को खदेड़कर बाहर कर रहा है। इस तंत्र में इस बात की फिक्र ही नहीं है कि 20 रुपए पर जिंदगी बसर करने वाले परिवारों के बच्चे पढ़ने के लिए कहां जाएंगे? कर्ज में डूबते मध्यवर्ग का विशाल हिस्सा अपने बच्चों को लेकर कहां जाएगा? दलित, आदिवासी, मुसलमानों के बच्चे किन स्कूलों में पढ़ेंगे? ये सवाल इस तंत्र के लिए वैसे ही हैं जैसे इस देश की सरकारों के लिए महिलाओं की सुरक्षा का सवाल। ये खदेड़ते रहेंगे और देश की इज्जत का छौंक बघारेंगे।
दिल्ली की इन दोनों घटनाओं को अंजाम देने वाली केंद्र और राज्य दोनों ही कांग्रेस की सरकार है। दिल्ली विश्वविद्यालय का कुलपति और कुलाधिपति दोनों ही कांग्रेस की विचारधारा के माने जाते हैं। बरेली, प्रतापगढ़ और फैजाबाद में पुलिस की देखरेख में आरएसएस के गुंडों द्वारा मुस्लिम परिवारों को मारा जाना, उनके घरों और दुकानों को जलाना भाजपा सरकार के नेतृत्व में नहीं सपा की मुलायम-अखिलेश यादव की सरकार कर रही है। और इसके खिलाफ बसपा, कांग्रेस को बोलने की मशक्कत भी नहीं करनी पड़ी। सड़क पर उतर कर विरोध करने की बात ही कुछ और है। धुले और फैजाबाद से लेकर दिल्ली तक घटनाओं के इस बढ़ते सिलसिले को चिदंबरम के इस बयान के मद्देनजर देखने से की जरूरत है: आर्थिक वृद्धि राष्ट्रीय सुरक्षा का केंद्रीय मसला है।’ यह ठीक उसी दिन का बयान है जिस दिन नरेंद्र मोदी श्री राम कालेज ऑफ कॉमर्स के छात्रों और उपस्थित चंद अध्यापकों और बुलाए गए अतिथियों को संबोधित कर रहा था। यूरोपीय यूनियन और अमेरीका ने मोदी के लिए रास्ता साफ करना शुरु कर दिया है। साम्राज्यवादियों की लूट का केंद्र बने भारत में फासीवादी तंत्र को आगे ले जाने का निर्णय सरकारी तंत्र, लंपट तत्व, हुक्मरान पार्टियों और हिंदुत्व के ब्राह्मणवादी बहुमत के साथ लागू होना शुरु हो गया है। अपने पड़ोसी देश पर कब्जा करने की आकांक्षा, कश्मीर को विवादग्रस्त बनाए रखने के साथ साथ फौज पर कब्जा बनाए रखने की नीति, साम्राज्यवादी देशों के साथ जिसमें रूस भी शामिल है, के साथ फौजी गठजोड़ और मोदी बनाम राहुल का खेल देश को किस तरफ ले जाएगा, का उत्तर बहुत साफ है। दुनिया की आर्थिक वृद्धि की गिरावट अमेरीका और यूरोपीय यूनियन के गिरेबान को पकड़ा हुआ है। भारत में यह सारे निवेश और सट्टेबाजी के बावजूद 5 से 6 प्रतिशत से ऊपर तैयार नहीं है। ऐसे में ‘विकास’ और ‘आर्थिक वृद्धि’ को राष्ट्रीय सुरक्षा से जोड़कर देखना और कुछ नहीं बल्कि फासीवाद के आमफहम परिभाषाओं के तहत ही उसका आगमन है।
आभार : http://hashiya.blogspot.in/2013/02/blog-post_14.html