सत्येन्द्र पीएस
भारत अब आधिकारिक रूप से उन देशों के क्लब में शामिल हो गया है, जिनके पास अंतरिक्ष में किसी सैटेलाइल को मार गिराने की क्षमता है। भारत ने एंटी सैटेलाइट मिसाइल से एक लाइव सैटेलाइट को मार गिराया, जो अंतरिक्ष में 300 किलोमीटर दूर लो अर्थ ऑर्बिट में स्थित थी। यह क्षमता अब तक रूस, अमेरिका और चीन के पास थी। निश्चित रूप से भारत के हिसाब से यह बड़ी उपलब्धि है।
तकनीक में बहुत आगे बढ़ चुकी है दुनिया
पिछले 2 दशक में विश्व ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में सबसे ज्यादा प्रगति की है। इसकी वजह से हमारे हाथों में सैटेलाइट मोबाइल आए हैं और एक छोटा सा उपकरण लेकर हम दुनिया के किसी कोने में बैठे अपने किसी भी रिश्तेदार या परिचित से बात कर लेते हैं। वहीं हमारे एटीएम से लेकर पूरी बैंकिंग व्यवस्था को सैटेलाइट्स ने बदल दी है। यह एक दूसरे से इंटरलिंक हैं और हम एक चिप लगे डेबिट या क्रेडिट कार्ड के माध्यम से भारत या दुनिया के किसी कोने से अपना धन आसानी से किसी एटीएम से निकाल लेते हैं। इसमें कोई मानवीय हस्तक्षेप नहीं होता है। यह तकनीक इतनी प्रबल हो गई है, जो एक सामान्य मनुष्य के सिर्फ परिकल्पना में है। हम कहीं जा रहे होते हैं और गूगल मैप ऑन करते हैं, गूगल मैप में अपना गंतव्य स्थल सेट कर देते हैं। गूगल मैप को हमारे देश के चप्पे चप्पे की जानकारी है। अगर हम 10 मीटर भी आगे बढ़ जाते हैं तो गूगल मैप सिगनल देने लगता है कि आपने गलत राह पकड़ ली है और वह यू-टर्न लेने को कहता है, या किसी दूसरे रास्ते की मैपिंग दिखाने लगता है। कहने का आशय यह है कि तकनीक ने 21वीं सदी के मनुष्य को पूरी तरह से सैटेलाइट गाइडेड बना दिया है।
स्वाभाविक है कि तकनीक ने लोगों की जिंदगी आसान की है। हम इन तकनीकों पर पूरी तरह से विकसित देशों यानी अमेरिका, जापान, दक्षिण कोरिया और यहां तक कि चीन पर निर्भर हैं। हमारे एटीएम का संचालन चीनी तकनीक करती है। मोबाइल पर पिछले 3 साल में चीन की कंपनियों का कब्जा हो गया है और आपके हाथ में तो ओप्पो, विवो, मोटो, का फोन होता है, वह चीनी कंपनियां हैं। और अगर पूरा मोबाइल चीन का नहीं है तो कम से कम उसे खोलने पर बैट्री पर मेड इन चाइना लिखा पाया जाता है। ऐसी स्थिति में अगर भारत के वैज्ञानिकों ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में कोई तकनीक हासिल कर ली है तो इससे बड़ी खुशी की कोई बात नहीं हो सकती है। इससे उम्मीदों का दरवाजा खुलता है कि भले ही हम चीन, रूस और अमेरिका द्वारा यह उपलब्धि हासिल करने के दशकों बाद स्वदेशी तकनीक से ऐसा करने में सफल हुए हैं, लेकिन यह संभावना है कि हम कुछ बेहतर कर सकते हैं।
देश के नाम संबोधन की घोषणा से भय का माहौल
एंटी सैटेलाइट मिसाइल की घोषणा करने के पहले जिस तरह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने माहौल बनाया, वह अद्भुत है। मोदी ने सुबह सबेरे ट्वीट किया कि मैं 11.45 से 12 बजे के बीच देश को काफी महत्त्वपूर्ण संदेश के साथ देश को संबोधित करूंगा। उसके बाद कई घंटे तक इस ट्वीट का मजाक बना रहा। लोगों को 8 नवंबर 2016 को की गई नोटबंदी की याद आ गई, जब अचानक प्रधानमंत्री टीवी पर नमूदार हुए और उन्होंने कहा कि अब 500 और 1,000 रुपये के नोट लीगल टेंडर नहीं होंगे। कुछ लोगों को लगा कि 2,000 रुपये का नोट बंद होने वाला है। कुछ लोगों ने सोचा कि पाकिस्तान पर कोई एयर स्ट्राइक होने वाला है। तरह तरह की आशंकाएं और मजाक सोशल मीडिया पर चले। इतना ही नहीं इस घबराहट के बीच 12.34 बजे दोपहर बीएसई पर सेंसेक्स 100 अंक नीचे चला गया, जो सुबह 200 अंकों की बढ़त पर कारोबार कर रहा था। अगर देखा जाए तो जनता को ही नहीं, बाजार को भी आशंका थी कि प्रधानमंत्री को कोई नया दौरा पड़ा है और वह राष्ट्र के नाम पर संबोधन में कोई नया पागलपन करने वाले हैं, जिससे देश की अर्थव्यवस्था तबाह होगी। हालांकि जब एंटी सैटेलाइट की घोषणा हुई तो बिजनेस कम्युनिटी ने राहत की सांस ली और मोदी के भाषण के दौरान बाजार 212 अंक चढ़ गया और रक्षा से जुड़े शेयरों में खास तेजी देखी गई।
प्रधानमंत्री की घोषणा के बाद मिली राहत
प्रधानमंत्री की इस घोषणा से घंटों तक आशंकाओं में गोते लगाते भारत के जनमानस को राहत मिली। तमाम लोगों ने आसमान की तरफ देखा और ऊपर वाले को धन्यवाद दिया कि देश पर कोई नई मुसीबत नहीं आई। तमाम लोगों ने आसमान में देखकर गर्व महसूस किया कि अब हम बहुत ताकतवर हो गए हैं। चुनाव के बीच इस तरह से ताकतवर होने का प्रधानमंत्री ने संभवतः इसलिए एहसास दिलाया कि उसके कुछ वोट बढ़ सकेंगे। पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक से माहौल नहीं बन पा रहा था, जिसके बाद प्रधानमंत्री ने यह दिखाने की कवायद की, जैसे उन्होंने और उनकी पार्टी ने कोई विशेष उपलब्धि हासिल कर ली है और देश मजबूत हुआ है।
प्रधानमंत्री ने एंटी सैटेलाइट मिसाइल का राजनीतिक इस्तेमाल किया, डीआरडीओ के वैज्ञानिकों की उपलब्धि को अपनी उपलब्धि बताने की कवायद की है, यह राजनीति में नई गिरावट कही जा सकती है। लेकिन इसमें सबसे ज्यादा ध्यान देने वाली बात यह है कि सरकार ने स्वायत्त संस्थानों को नष्ट करने की कवायद की है। एंटी सैटेलाइट मिसाइल के परीक्षण के कुछ घंटे बाद रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) के पूर्व महानिदेशक विजय कुमार सारस्वत नमूदार हुए। सारस्वत इस समय नीति आयोग के सदस्य के रूप में सरकार द्वारा उपकृत हैं। उन्होंने कहा कि 2012 में यूपीए सरकार से अग्नि 5 के परीक्षण के समय ही एंटी सैटेलाइट मिसाइल के परीक्षण की अनुमति मांगी गई थी, लेकिन नहीं मिली। मंजूरी मिल जाती तो हम तभी ए-सैट की क्षमता हासिल कर चुके होते।
संस्थानों का खतरनाक राजनीतिकरण
इस बयान से लगता है कि सरकार न सिर्फ संस्थानों का राजनीतिकरण कर रही है बल्कि जनरल वीके सिंह जैसे सेना के अधिकारियों, राजकुमार सिंह जैसे आईएएस अधिकारियों, सत्यपाल सिंह जैसे आईपीएस अधिकारियों को सांसद और फिर मंत्री बनाकर उपकृत करने की कड़ी में अन्य तमाम अधिकारियों को नेता बन जाने की पेशकश कर रही है। अब तक संस्थानों को राजनीति से मुक्त रखा गया था, जो शांत माहौल में अपना काम करते थे, लेकिन भाजपा और मोदी सरकार ने संदेश दे दिया है कि अगर उनके पक्ष में अधिकारी बयान देते हैं और पहले की सरकारों की आलोचना करते हैं तो उन्हें पुरस्कार दिया जाएगा।
इस क्रम में विजय कुमार सारस्वत की नई एंट्री है। सारस्वत ने डीआरडीओ के प्रमुख रहते हुए 2012 में इंडिया टुडे पत्रिका को दिए गए भारी भरकम साक्षात्कार में कहा था कि भारत ने एंटी सैटेलाइट मिसाइल तैयार कर लिया है और अब वह अंतरिक्ष में लाइव किसी सैटेलाइट को मार गिराने में सक्षम है। प्रधानमंत्री ने जब राष्ट्र के नाम संबोधन कर इस एंटी सैटेलाइट मिसाइल का राजनीतिकरण कर दिया, उसके तुरंत बाद कांग्रेस के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से ट्वीट कर कहा गया कि 1962 में पं. जवाहर लाल नेहरू द्वारा स्थापित किए गए भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम और इंदिरा गाँधी के द्वारा स्थापित किए गए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने हमेशा अपनी उपलब्धियों से भारत को गौरवान्वित किया है। केंद्र सरकार को लगा कि कांग्रेस इसका श्रेय लेने की कोशिश कर रही है। इस पर केंद्र सरकार की ओर से केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने जोरदार पलटवार किया, वहां तक तो ठीक है। लेकिन सरकार ने सारस्वत को मैदान में उतार दिया।
टाइमिंग पर सवाल तो उठेंगे ही
ऐसे में सारस्वत से सवाल पूछा जाना लाजिम है कि अगर 2012 में उपलब्धि हासिल हो गई थी और मई 2014 में भाजपा की सरकार बन गई तो ताकतवर प्रधानमंत्री मोदी ने 2014 में ही परीक्षण की अनुमति क्यों नहीं दे दी? सारस्वत की सरकार से नजदीकी इससे समझी जा सकती है कि उन्हें मोदी ने नीति आयोग का सदस्य बनाकर उपकृत कर रखा है। ऐसे में उन्होंने यह सलाह तत्काल ही क्यों नहीं दी कि कांग्रेस इसके परीक्षण की अनुमति न देकर करीब डेढ़ साल की देरी कर चुकी है, अब यह परीक्षण तत्काल हो जाना चाहिए। यह सवाल उठना लाजिम है कि इतनी बेहतरीन टाइमिंग सारस्वत और उनकी टीम ने किस तरह से निर्धारित कराई कि एक पूरी तरह से तैयार एंटी सैटेलाइट मिसाइल का परीक्षण तब हो सका है, जब लोकसभा चुनाव के लिए मतदान शुरू होने में 14 दिन बचे हैं और 11 अप्रैल 2019 को लोकसभा चुनाव के पहले चरण के लिए मतदान होना है।
प्रधानमंत्री का ऐलान
प्रधानमंत्री ने 27 मार्च 2019 को ऐलान किया कि भारत ने अंतरिक्ष में एंटी सैटेलाइट मिसाइल से एक लाइव सैटेलाइट को मार गिराते हुए आज अपना नाम अंतरिक्ष महाशक्ति के तौर पर दर्ज कराया और ऐसी क्षमता हासिल करने वाला दुनिया का चौथा देश बन गया। प्रधानमंत्री ने कहा हर राष्ट्र की विकास यात्रा में कुछ ऐसे पल आते हैं जो उसके लिए अत्यधिक गौरव वाले होते हैं और आने वाली पीढय़िों पर उनका असर होता है। आज कुछ ऐसा ही समय है। मोदी ने राष्ट्र के नाम संदेश में कहा कहा, “मिशन शक्ति के तहत भारत ने स्वदेशी एंटी सैटेलाइट मिसाइल ए सैट से तीन मिनट में एक लाइव सैटेलाइट को सफलतापूर्वक मार गिराया। उन्होंने बाद में ट्वीट किया मिशन शक्ति की सफलता के लिए हर किसी को बधाई।”
मोदी ने कहा कि हमने जो नई क्षमता हासिल की है, यह किसी के विरूद्ध नहीं है बल्कि तेज गति से बढ़ रहे हिन्दुस्तान की रक्षात्मक पहल है। उन्होंने वैज्ञानिकों को इस उपलब्धि के लिए बधाई दी और उनकी सराहना भी की। प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि इससे किसी अंतरराष्ट्रीय कानून या संधि का उल्लंघन नहीं हुआ है। भारत हमेशा से अंतरिक्ष में हथियारों की होड़ के विरूद्ध रहा है और इससे (उपग्रह मार गिराने से) देश की इस नीति में कोई परिवर्तन नहीं आया है। मोदी ने कहा कि मिशन शक्ति एक अत्यंत जटिल ऑपरेशन था जिसमें उच्च कोटि की तकनीकी क्षमता की आवश्यकता थी। वैज्ञानिकों द्वारा निर्धारित सभी लक्ष्य और उद्देश्य प्राप्त कर लिए गए हैं।
कांग्रेस ने भारत की उपग्रह रोधी मिसाइल क्षमता के सफल इस्तेमाल के लिए वैज्ञानिकों को बधाई देते हुए केंद्र सरकार पर वैज्ञानिकों की इस उपलब्धि का भी श्रेय लेने की कोशिश करने का आरोप लगाया। ग्रेस के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा, “रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) के वैज्ञानिकों को इस उपलब्धि के लिए बहुत-बहुत मुबारक और शुभकामनाएं। भारत ने एक और मील का पत्थर कायम किया है। यह क्षमता 2012 में डीआरडीओ ने हासिल कर ली थी। इसके बाद आज इसका व्यावहारिक परीक्षण किया गया।” उपग्रह रोधी मिसाइल की सफलता की घोषणा स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा किए जाने के कारण इस उपलब्धि से चुनावी
लाभ लेने के आरोपों के बारे में पूछने पर सुरजेवाला ने कहा, “जब सब कुछ खोने लगे, जब राजनीतिक धरातल खिसक जाए, जब कुछ भी हासिल न हो रहा हो, जब 15 लाख रुपए वाले जुमलों की पोल खुल जाए, जब किसान इंसाफ मांगे, और जब कांग्रेस की न्याय योजना से घबराहट शुरू हो जाए तो उस हड़बड़ी में कुछ भी करना पड़ता है।” उन्होंने कहा कि इससे पहले भी उपग्रह प्रक्षेपण से लेकर अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में अनगिनत उपलब्धियां हासिल की गई हैं और आगे भी यह सिलसिला जारी रहेगा। उन्होंने कहा, “हमारे वैज्ञानिकों की उपलब्धियों के लिए सभी सरकारों का डीआरडीओ को पूरा सहयोग और समर्थन रहा। लेकिन यह शायद पहला मौका है जबकि प्रधानमंत्री ने वैज्ञानिकों की उपलब्धि को सार्वजनिक किया। यह वही व्यक्ति है जिसने हिंदुस्तान एयरोनोटिक्स लिमिटेड को नष्ट कर दिया।”
युद्ध के समय कारगर तकनीक
यह एक ऐसी तकनीक है, जो किसी देश के साथ युद्ध की स्थिति में कारगर है। अगर इस तकनीक को हासिल कर लिया जाए तो युद्ध के दौरान दुश्मन देश के सैटेलाइट को ध्वस्त कर उसकी पूरी संचार प्रणाली को तबाह किया जा सकता है। इसके चलते अंतरराष्ट्रीय समुदाय इसे युद्ध की स्थिति में आगे बढ़ने की होड़ मानता है। हालांकि विकसित देश अब इतने आगे बढ़ चुके हैं कि वे एक बग या वायरस डालकर किसी देश की पूरी बैंकिंग प्रणाली तक नष्ट कर सकते हैं या उसे अपने कब्जे में ले सकते हैं। वहीं गूगल को भारत के चप्पे चप्पे की लोकेशन पता है और कौन सा व्यक्ति किस गली में किस मकान में रहता है, इसका डेटा अमेरिका के पास मौजूद है। इसे आप अपने मोबाइल में अमेरिकी गूगल मैप खोलकर अपनी लोकेशन पर क्लिक करके जान सकते हैं कि तकनीक कहां तक पहुंच चुकी है। ऐसे में वैश्विक समुदाय मानवोपयोगी तकनीकी विकास के अलावा किसी ऐसी तकनीक का ऐलान नहीं करता, जिससे युद्धोन्माद या भय का वातावरण बने। विकसित देशों ने एंटी सैटेलाइट मिसाइल कई दशक पहले बना ली थी, तो स्वाभाविक रूप से वह इसके बहुत आगे का शोध कर चुके होंगे, उनका परीक्षण भी कर चुके होंगे, लेकिन इसका ऐलान नहीं किया जाता और किसी आपात स्थिति में उसका प्रयोग कर लिया जाता है, जैसे अमेरिका ने द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान 1945 में हिरोशिमा और नागाशाकी में परमाणु बम गिराकर अपनी ताकत दिखा दी थी, जिसका ढिंढोरा अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने 11 से 13 मई 2018 को पोखरण परीक्षण करके पीटा था।
विदेश मंत्रालय का स्पष्टीकरण
ऐसी स्थिति में विदेश मंत्रालय को भी सामने आना पड़ा। विदेश मंत्रालय ने बताया कि यह डीआरडीओ का प्रौद्योगिकी मिशन था और इस मिशन में उपयोग किया गया उपग्रह निचली कक्षा में मौजूद भारत के उपग्रहों में से एक था। इसमें बताया गया, परीक्षण पूरी तरह से सफल रहा और योजना के तहत सभी मानदंडों को पूरा किया। यह पूरी तरह से स्वदेशी प्रौद्योगिकी पर आधारित था। इसमें स्पष्ट किया गया है कि भारत का परीक्षण किसी देश को निशाना बनाकर नहीं किया गया है। यह परीक्षण क्यों किया गया, इस सवाल के जवाब में कहा गया कि यह परीक्षण इसलिए किया गया ताकि भारत के अपने अंतरिक्ष संबंधी परिसंपत्तियों की सुरक्षा की क्षमता की पुष्टि की जा सके। यह सरकार की जिम्मेदारी है कि हम बाहरी अंतरिक्ष में अपने देश के हितों की रक्षा कर सकें। मंत्रालय ने यह स्पष्ट किया कि भारत का इरादा बाहरी अंतरिक्ष में हथियारों की दौड़ में शामिल होना नहीं है और उसने हमेशा इस बात का पालन किया है कि अंतरिक्ष का केवल शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए ही इस्तेमाल किया जाए।
इसमें कहा गया है कि भारत बाहरी अंतरिक्ष के शस्त्रीकरण के खिलाफ है और अंतरिक्ष आधारित परिसंपत्तियों की सुरक्षा के अंतरराष्ट्रीय प्रयासों का समर्थन करता है। क्या भारत बाहरी अंतरिक्ष में हथियारों की दौड़ में प्रवेश कर रहा है, इस सवाल के जवाब में विदेश मंत्रालय ने कहा कि भारत मानता है कि बाहरी अंतरिक्ष मानवता की साझी धरोहर है और यह सभी राष्ट्रों की जिम्मेदारी है कि इसका संरक्षण किया जाए और अंतरराष्ट्रीय प्रौद्योगिकी में हुई उन्नति के लाभ को प्रोत्साहित किया जाए। मंत्रालय ने कहा कि भारत बाहरी अंतरिक्ष से जुड़ी सभी अंतरराष्ट्रीय संधियों का पक्षकार है। भारत ने इस क्षेत्र में पारदर्शिता एवं विश्वास बहाली के अनेक उपायों को लागू किया है। भारत बाहरी अंतरिक्ष में पहले हथियारों का प्रयोग नहीं करने के संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रस्ताव का समर्थन करता है। इसमें कहा गया है कि भारत भविष्य में बाहरी अंतरिक्ष में हथियारों की दौड़ को रोकने के लिए अंतरराष्ट्रीय कानून का मसौदा तैयार करने में भूमिका अदा करने की उम्मीद करता है।
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