केंद्र सरकार के तमाम आश्वासनों के बावजूद नौकरियों में आरक्षित वर्ग की नियुक्ति को लेकर गड़बड़ियां और धांधलियां रुकने का नाम नहीं ले रही हैं। ताजा मामला उत्तर प्रदेश के डिग्री कॉलेजों में असिस्टेंट प्रोफेसरों की भर्ती का है। राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (एनसीबीसी) ने एक मामले की सुनवाई के दौरान पाया है कि इसमें आरक्षण के प्रावधानों का खुला उल्लंघन हुआ है। एनसीबीसी ने भर्ती के लिए चल रहा साक्षात्कार तत्काल रोक देने को कहा है। आयोग ने लिखित परीक्षा के परिणाम के आधार पर आरक्षण के प्रावधानों के मुताबिक उत्तीर्ण अभ्यर्थियों की सूची बनाकर साक्षात्कार कराने को कहा है।
उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य के महाविद्यालयों के रिक्त 1150 असिस्टेंट प्रोफेसर पदों पर भर्ती की प्रक्रिया शुरू की। 14 जुलाई 2016 तक इन पदों के लिए आवेदन आमंत्रित किए गए। इसके लिखित परीक्षा के परिणाम आने लगे तो विसंगतियां खुलकर सामने आईं। भर्ती प्रक्रिया में करीब हर विषय में अन्य पिछड़ा वर्ग की मेरिट अनारक्षित सीटों पर चयनित अभ्यर्थियों से ज्यादा थी। यानी कि सामान्य वर्ग की तुलना में आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों को ज्यादा अंक मिलने पर सलेक्ट किया गया था। इसे लेकर कुछ वेबसाइट्स पर खबरें चलीं। सोशल मीडिया पर बड़े पैमाने पर विरोध हुआ। सरकार को कुछ ज्ञापन भी भेजे गए। उत्तर प्रदेश उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग (यूपीएचईएससी) की ओर से कराई जा रही इस परीक्षा को लेकर सवाल खड़े होने शुरू हो गए कि आखिर यह अचंभा कैसे हो रहा है कि आरक्षण पाने वाले अभ्यर्थी ज्यादा अंक पाने पर सलेक्ट हो रहे हैं और बगैर आरक्षण वाले अभ्यर्थी कम अंक पाने पर सलेक्ट हो रहे हैं।
सोशल मीडिया, कुछ वेबसाइट्स की खबरों के बाद यह मामला एनसीबीसी के पास गया। एनसीबीसी ने पिछले 6 सितंबर को सुनवाई की। इसमें शिकायतकर्ता व उत्तर प्रदेश उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग की सचिव ने अपना अपना पक्ष रखा। सचिव द्वारा कोई प्रासंगिक अभिलेख प्रस्तुत न किए जाने के बाद आयोग ने साक्षात्कार रोक देने और 11 सितंबर को अगली सुनवाई की तिथि निर्धारित की थी।
आयोग के अध्यक्ष डॉ भगवान लाल साहनी और सदस्य कौशलेंद्र सिंह पटेल के पीठ ने 11 सितंबर को सुनवाई की। आयोग के सूत्रों ने बताया कि उत्तर प्रदेश उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग (यूपीएचईएससी) की सचिव ने एनसीबीसी को लिखित जानकारी दी कि जून 2018 में एक आंतरिक बैठक में यह फैसला किया गया कि आरक्षित वर्ग के लोगों का चयन आरक्षित श्रेणी में ही किया जाएगा।
यूपीएचईएससी ने आयोग की बैठक संख्या 1028 की जानकारी दी। 10 जून 2019 को हुई इस बैठक में यूपीएचईएससी ने कहा, “विज्ञापन संख्या 48 व विज्ञापन संख्या 47 में विज्ञापित सहायक आयार्य के आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थी यदि सामान्य श्रेणी के लिए निर्धारित कट ऑफ मार्क्स से अधिक अंक होने की स्थिति में आते हैं तो आरक्षित वर्ग की कट आफ मार्क्स के निर्धारण पर सम्यक विचार किया गया और सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया कि आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थी यदि सामान्य श्रेणी के लिए निर्धारित कट आफ मार्क्स से अधिक अंक धारित करते है, उस स्थिति में भी एक पद के सापेक्ष 5 अभ्यर्थियों को ही मेरिट के आधार पर साक्षात्कार के लिए आमंत्रित किया जाए। श्रेणीवार कट आफ मार्क में जितने भी अभ्यर्थी आएंगे, उनको सम्मिलित किया जाए।”
इस तरह से यूपीएचईएससी ने साफ कर दिया कि आरक्षित वर्ग को अनारक्षित या सामान्य श्रेणी के पदों पर नहीं बुलाया जाएगा। परिणाम आने लगे और आरक्षित वर्ग के तमाम ऐसे अभ्यर्थी साक्षात्कार के लिए नहीं बुलाए गए, जिन्हें अनारक्षित श्रेणी के अभ्यर्थियों की तुलना में ज्यादा अंक मिले थे।
एनसीबीसी ने पाया कि यूपीएचईएससी के इस अनुमोदन में आरक्षण के तमाम प्रावधानों व न्यायालय के फैसलों का उल्लंघन हुआ है। एनसीबीसी ने 2018 में आयोग को नरेंद्र मोदी सरकार से मिली संवैधानिक शक्तियों का हवाला देते हुए अनुशंसा की है कि विज्ञापन संख्या 47 की साक्षात्कार प्रक्रिया को अविलंब स्थगित किया जाए। एनसीबीसी ने कहा है कि आरक्षण अधिनियमों व आदेशों के मुताबिक साक्षात्कार के लिए फिर से मेरिट सूची बनाई जाए। मेरिट सूची इस तरह जारी की जाए कि अनारक्षित संवर्ग की अंतिम कट ऑफ के बराबर या उससे अधिक अंक पाने वाले समस्त अभ्यर्थियों (ओबीसी, अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति संवर्ग को शामिल करते हुए) को साक्षात्कार हेतु आमंत्रित किया जाए।
साथ ही एनसीबीसी ने कहा है कि विज्ञापन संख्या 47 के जिन विषयों के अंतिम परिणाम जारी किए जा चुके हैं, उनमें भी संशोधन कर ओबीसी/एससी/एसटी संवर्ग के उन अभ्यर्थियों को फिर से साक्षात्कार कर शामिल किया जाए, जिन्होंने अनारक्षित वर्ग की लिखित परीक्षा के अंतिम कट ऑफ के बराबर या उससे ज्यादा अंक अर्जित किया है और पहले के साक्षात्कार में वंचित कर दिए गए हैं।
राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के इस फैसले के बाद भी उस प्रक्रिया में विसंगतियां साफ नजर आ रही हैं। यूपीएचईएससी
के उस विज्ञापन में कहा गया है कि आरक्षण का प्रावधान उच्च न्यायालय के 20 जुलाई 2009 के आदेश के मुताबिक किया गया है और इस सिलसिले में उच्चतम न्यायाल में अपील दाखिल की गई है और आरक्षण व्यवस्था शीर्ष न्यायालय के फैसले पर निर्भर होगा।
शीर्ष न्यायालय विश्वविद्यालयों में भर्ती में विभागवार रोस्टर की व्यवस्था जारी रखी थी। उसके बाद तमाम आंदोलनों व आश्वासनों, संसद में हंगामे के बाद केंद्र सरकार ने अध्यादेश निकालकर विभागवार आरक्षण के फैसले को बदल दिया और पूर्ववत 200 प्वाइंट रोस्टर बरकरार रखा है। यह अध्यादेश संसद के दोनों सदनों में पारित होकर संवैधानिक रूप ले चुका है।
उत्तर प्रदेश उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग में असिस्टेंट प्रोफ़ेसरों की नियुक्ति प्रक्रिया में भी आरक्षित पदों की संख्या संबंधी गड़बड़ियाँ खुलकर सामने आई हैं। इतिहास में 38 पदों में से 32 अनारक्षित हैं, जबकि 4 पद ओबीसी और 2 पद एससी-एसटी के लिए आरक्षित हैं। भूगोल विषय के कुल 48 पद में 31 अनारक्षित, 12 ओबीसी और 5 पद एससी-एसटी के लिए आरक्षित रखे गए हैं। उर्दू में 11 पदों में से 9 सामान्य एक ओबीसी और एक पद एससी-एसटी के लिए है। राजनीति शास्त्र के कुल 121 पदों में से 92 सामान्य, 18 ओबीसी और 11 एससी-एसटी के लिए आरक्षित रखे गए हैं। यह पद कहीं से भी ओबीसी के लिए 27 प्रतिशत और एससी-एसटी के लिए 22.5 प्रतिशत आरक्षित पदों से मेल नहीं खाते हैं।
एनसीबीसी और यूपीएचईएससी दोनों ही जिम्मेदार आयोगों ने यह विचार नहीं किया कि 121 पदों में अगर ओबीसी के लिए 18 पद आरक्षित हैं तो इसमें 27 प्रतिशत आरक्षण का पालन कहां हुआ है। इसका कोई स्पष्टीकरण नहीं आया है कि 121 का 27 प्रतिशत किस गणित के हिसाब से 18 होता है। हालांकि उत्तर प्रदेश में ऐसा कारनामा हुआ है।
इस तरह से देखें तो सरकारी विभागों की हत्या कर या निजीकरण करके ही आरक्षण की हत्या नहीं की जा रही है, बल्कि जो संस्थान अभी सरकारी बचे हुए हैं, उनमें भी भर्तियों में गड़बड़ियां चरम पर हैं। वंचित तबके के लोग न इसे समझने में सक्षम हैं, न अपनी आवाज उठा पाने में सक्षम हैं, न इन धांधलियों के खिलाफ कोई व्यापक आंदोलन हो रहा है। हकमारी जारी है।
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