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Saturday, September 29, 2007
बड़े पत्रकारों की यौन कुंठा का आिखर दवा क्या है
सत्येन्द्र प्रताप
एक राष्ट्रीय अखबार केस्थानीय संपादक के बारे में खबर आई िक वे लड़की के साथ रंगरेिलयां बनाते हुए देखे गए।कहा जा रहा है िक क्लाउन टाइम्स नाम से िनकलने वाले एक स्थानीय अखबार के रिपोर्टर ने खबर भी फाइल कर दी थी। हालांिक इस तरह की खबरें अखबार और चैनल की दुनिया में आम है और आए िदन आती रही हैं। लेिकन िदल्ली और बड़े महानगरों से जाकर छोटे शहरों में पत्रकािरता का गुर िसखाने वाले स्थानीय संपादकों ने ये खेल शुरु कर दिया है । राष्ट्रीय चैनलों के कुछ नामी िगरामी हस्तियों के तो अपने जूिनयर और ट्रेनी लड़कियों के तो एबार्शन कराए जाने तक की कनफुसकी होती रहती है।
खबर की दुिनया में जब अखबार में किसी लड़के और लड़की के बारे में रंगरेिलयां मनाते हुए धरे गए, खबर लगती है तो उन्हें बहुत हेय दृष्टि से देखा जाता है।लेिकन उन िविद्वानों का क्या िकया जाए जो नौकरी देने की स्थिति में रहते हैं और जब कोई लड़की उनसे नौकरी मांगने आती है तो उसके सौन्दर्य को योग्यता का मानदंड बनाया जाता है और अगर वह लड़की समझौता करने को तैयार हो जाती है तो उसे प्रोन्नति मिलने और बड़ी पत्रकार बनने में देर नहीं लगती।
एक नामी िगरामी तेज - तर्रार और युवा स्थानीय संपादक के बारे में सभी पत्रकार कहते हैं िक वह ले-आउट डिजाइन के निर्विवाद रुप से िवशेषग्य हैं, हरिवंश जी के प्रभात खबर की ले आउट उन्होंने ही तैयार की थी लेिकन साथ ही यह भी जोड़ा जाता है िक वह बहुत ही रंगीन िमजाज थे, पुरबिया अंदाज में कहा जाए तो, लंगोट के कच्चे थे।
महिलाओं के प्रति यौन िंहसा की खबर तमाम प्राइवेट और सरकारी सेक्टर से आती है। न्यायालय से लेकर संसद तक इस मुद्दे पर बहस भी होती है। लेिकन नतीजा कुछ भी नहीं । अगर कुंिठत व्यक्ति उच्च पदासीन है तो मामले दब जाते हैं और अगर कोई छोटा आदमी है तो उसे पुिलस भी पकड़ती है और अपमािनत भी होना पड़ता है।
अगर पत्रकारिता की बात करें तो जैसे ही हम िदल्ली मुंबई जैसे महानगरों से बाहर िनकलते हैं तो खबरों के प्रति लोगों का नजरिया बहुत ही पवित्र होता है। लोग अखबार में भी खबरें ही पढ़ना चाहते हैं जो उनके जीवन और उनके िहतों से जुड़ी हों, सनसनी फैलाने वाली सामग्री कोई भी पसंद नहीं करता। पत्रकारों के प्रति लोगों का नजिरया भी अच्छा है और अखबार के माध्यम से वे अपनी समस्याओं का समाधान चाहते हैं। अगर रंगरेिलयां जैसी खबरें वे अपने पूज्य संपादकों या पत्रकारों के बारे में सुनते या पढ़ते हैं तो उनका नजरिया भी बदल जाता है। हालांिक महानगरों में िहक्की गजट टाइप के ही अखबार छपते हैं जिसमें फिल्मी नायक नायिकाओं के प्रसंग छपते हैं।
यौनकुंिठत उच्चपदों पर बैठे पत्रकारों वरिष्ठ पत्रकारों की कुंठा का कोई हल नजर नहीं ता। बार बार कहा जा रहा है कि प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है , योग्य लोगों की जरुरत है, लेकिन वहीं बड़े पदों पर शराब और शबाब के शौकीन वृद्ध रंगीलों के िकस्से बढ़ते ही जा रहे हैं।
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1 comment:
bhai sahab, kya baat kahi hai. yeh buddhe ladkiyo ka mardan, shusad aur pata nahi kya-kya karte hai. band cabin me kya-kya karte bhagwan hi jane. aisi ghatnaye tv channel me jaya hoti hai.
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