सत्येन्द्र प्रताप सिंह
अगर आपके मन में कुछ कर गुजरने की इच्छा हो तो धन की कमी कोई मायने नहीं रखती।
यकीन नहीं होगा, लेकिन देश भर में ऐसे तमाम विद्यार्थी, जिन्हें विदेशों में पढ़ने के लिए पैसे नहीं थे, उसके बावजूद उन्होंने न केवल यूरोप और अमेरिका में पढ़ाई की बल्कि अपने उद्देश्यों को लेकर सफलता की राह पर चल रहे हैं। फोर्ड फाउंडेशन के फेलोशिप प्रोग्राम के तहत वर्ष 2000 से हर साल 40 ऐसे छात्र-छात्राओं को उच्च शिक्षा के लिए मदद दी जा रही है, जो उच्च शिक्षा के अवसरों से वंचित रह गए हैं।
उत्तर प्रदेश के भदोही जैसे पिछड़े जिले की रहने वाली दीप्ति का कहना है कि '25 साल की उम्र में शादी हो गई, उस समय उन्होंने स्नातक की शिक्षा पूरी की थी।उसके बाद कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था, लेकिन फोर्ड फाउंडेशन के इंटरनेशनल फेलोशिप प्रोग्राम ने उनकी जिंदगी को नई दिशा दे दी।' उन्होंने ब्रिटेन में रहकर शिक्षा हासिल की और अब वाराणसी के ही एक एनजीओ में काम कर रही हैं, जो वहां के बुनकरों की हालत को सुधारने के लिए काम कर रही है।
फोर्ड फाउंडेशन का इंटरनेशनल फेलोशिप प्रोग्राम सन 2000 में स्थापित किया गया था। फाउंडेशन का उद्देश्य था कि उन छात्रों को उच्च शिक्षा के लिए मदद की जाए, जो ऐतिहासिक कारणों से धनाभाव के चलते उच्च शिक्षा नहीं पा सके हैं। कार्यक्रम का उद्देश्य है कि ऐसे लोग सामाजिक विकास तथा नेतृत्व के क्षेत्र में अपने देश का प्रतिनिधित्व कर सकें तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर व्यापक, आर्थिक तथा सामाजिक न्याय के क्षेत्र में काम कर सकें। इस कार्यक्रम के तहत बिहार, छत्तीसगढ़, गुजरात, झारखंड, मध्य प्रदेश, उड़ीसा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड राज्य से छात्रों का चयन किया जाता है। इस फेलोशिप कार्यक्रम के निदेशक विवेक मनसुखानी का कहना है कि चयन की प्रक्रिया में इस बात का खास खयाल रखा जाता है कि ऐसे लोग चुने जाएं, जिन्होंने उस क्षेत्र में कम से कम 3 साल तक काम किया हो, जिसमें वे उच्च शिक्षा प्राप्त करना चाहते हैं। साथ ही यह कोशिश की जाती है कि चयनित अभ्यर्थी ऐसा हो, जो केवल कैरियर बनाने के लिए विदेश में पढ़ाई न करना चाहता हो और वापस आकर अपने देश में वंचितों, पिछड़ों को सामाजिक न्याय दिलाने के लिए काम कर सके। आठ साल से चल रहे इस कार्यक्रम के तहत करीब 240 छात्र विदेशों में पढ़ाई करने जा चुके हैं। इनमें से 150 शिक्षा पूरी करके आ चुके हैं, जो विभिन्न क्षेत्रों में काम कर रहे हैं। इसके अलावा 50 छात्रों को पोस्ट ग्रेजुएशन के बाद पीएचडी में दाखिला मिल गया और आगे की पढ़ाई पूरी कर रहे हैं। अमेरिका, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया जैसे देशों में शिक्षा प्राप्त कर लौटे छात्र-छात्राओं ने एलुमिनी एसोसिएशन भी बना लिया है और वे हमेशा एक दूसरे के संपर्क में रहते हैं। यह लोग विभिन्न एनजीओ, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में काम कर रहे हैं।
राजस्थान के धौलपुर जिले के शाला गांव के रहने वाले नेकराम के लिए तो शिकागो जाकर पढ़ाई करना सपने जैसा था। फेलोशिप पाने के बाद उन्होंने अपनी एमएससी की पढ़ाई शिकागो की यूनिवर्सिटी आफ इलिनाइस से पूरी की। अब वे पिछले 2 साल से दिल्ली में शारीरिक रूप से अक्षम लोगों के लिए विभिन्न उपकरण तैयार करने वाले संस्थान में काम करते हैं। उनका कहना है कि अब उन्हें 40,000 रुपये प्रतिमाह वेतन मिल जाता है, साथ ही ऐसे तबके के लिए काम करने पर बेहद खुशी होती है, जो अक्षम हैं। हालांकि फोर्ड फाउंडेशन की यह योजना 2010 में खत्म होने वाली है। यानी अब केवल दो बैच को ही मदद मिल पाएगी। फाउंडेशन की मदद से शिक्षा प्राप्त सभी युवक-युवतियां एक स्वर में कहते हैं कि इस योजना को विस्तार दिए जाने की जरूरत है, जिससे वंचितों को वैश्विक दुनिया के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी हासिल करने के अवसर मिल सके।
courtesy: bshindi.com
2 comments:
आभार जानकारी के लिए.
bahut nayi jankari di hai aapne. aapne to aankhe khol di.
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