हर्फ़े-ताज़ा की तरह क़िस्स-ए-पारीना1 कहूँ
कल की तारीख़ को मैं आज का आईना कहूँ
चश्मे-साफ़ी से छलकती है मये-जाँ तलबी
सब इसे ज़हर कहें मैं इसे नौशीना2 कहूँ
मैं कहूँ जुरअते-इज़हार हुसैनीय्यत है
मेरे यारों का ये कहना है कि ये भी न कहूँ
मैं तो जन्नत को भी जानाँ का शबिस्ताँ3 जानूँ
मैं तो दोज़ख़ को भी आतिशकद-ए-सीना4 कहूँ
ऐ ग़मे-इश्क़ सलामत तेरी साबितक़दमी
ऐ ग़मे-यार तुझे हमदमे-दैरीना5 कहूँ
इश्क़ की राह में जो कोहे-गराँ6 आता है
लोग दीवार कहें मैं तो उसे ज़ीना कहूँ
सब जिसे ताज़ा मुहब्बत का नशा कहते हैं
मैं ‘फ़राज़’ उस को ख़ुमारे-मये-दोशीना7 कहूँ
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1. गुज़रा हुआ, पुराना क़िस्सा 2. शर्बत 3. शयनागार 4. सीना या छाती की भट्ठी 5. पुराना मित्र 6. मुश्किल पहाड़ 7. ग़ुजरी रात की शराब का ख़ुमार
न कोई ख़्वाब न ताबीर ऐ मेरे मालिक
मुझे बता मेरी तक़सीर ऐ मेरे मालिक
न वक़्त है मेरे बस में न दिल पे क़ाबू है
है कौन किसका इनागीर1 ऐ मेरे मालिक
उदासियों का है मौसम तमाम बस्ती पर
बस एक मैं नहीं दिलगीर2 ऐ मेरे मालिक
सभी असीर हैं फिर भी अगरचे देखने हैं
है कोई तौक़3 न ज़ंजीर ऐ मेरे मालिक
सो बार बार उजड़ने से ये हुआ है कि अब
रही न हसरत-ए-तामीर ऐ मेरे मालिक
मुझे बता तो सही मेहरो-माह किसके हैं
ज़मीं तो है मेरी जागीर ऐ मेरे मालिक
‘फ़राज़’ तुझसे है ख़ुश और न तू ‘फ़राज़’ से है
सो बात हो गई गंभीर ऐ मेरे मालिक
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1. लगाम थामने वाला 2. ग़मगीन 3. गले में डाली जाने वाली कड़ी
तेरा क़ुर्ब था कि फ़िराक़ था वही तेरी जलवागरी रही
कि जो रौशनी तेरे जिस्म की थी मेरे बदन में भरी रही
तेरे शहर से मैं चला था जब जो कोई भी साथ न था मेरे
तो मैं किससे महवे-कलाम1 था ? तो ये किसकी हमसफ़री रही ?
मुझे अपने आप पे मान था कि न जब तलक तेरा ध्यान था
तू मिसाल थी मेरी आगही2 तू कमाले-बेख़बरी रही
मेरे आश्ना3 भी अजीब थे न रफ़ीक़4 थे न रक़ीब5 थे
मुझे जाँ से दर्द अज़ीज़ था उन्हें फ़िक्रे-चारागरी6 रही
मैं ये जानता था मेरा हुनर है शिकस्तो-रेख़्त7 से मोतबर8
जहाँ लोग संग-बदस्त9 थे वहीं मेरी शीशागरी रही
जहाँ नासेहों10 का हुजूम था वहीं आशिक़ों की भी धूम थी
जहाँ बख़्यागर11 थे गली-गली वहीं रस्मे-जामादरी12 रही
तेरे पास आके भी जाने क्यूँ मेरी तिश्नगी13 में हिरास1अ था
बमिसाले-चश्मे-ग़ज़ा14 जो लबे-आबजू15 भी डरी रही
जो हवस फ़रोश थे शहर के सभी माल बेच के जा चुके
मगर एक जिन्से-वफ़ा16 मेरी सरे-रह धरी की धरी रही
मेरे नाक़िदों17 ने फ़राज़’ जब मेरा हर्फ़-हर्फ़ परख लिया
तो कहा कि अहदे-रिया18 में भी जो खरी थी बात खरी रही
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1.बात करने में मग्न 2. जानकारी, चेतना 3. परिचित 4. मित्र 5. शत्रु 6. उपचार की धुन 7. टूट फूट 8. ऊपर, सम्मानित 9. हाथ में पत्थर लिए हुए 10. उपदेश देने वाले 11.कपड़ा सीने वाले 12. पागलपन की अवस्था में कपड़े फाड़ने की रीत
13.प्यास 1अ. आशंका निराशा 14.हिरन की आँख की तरह 15.दरिया के किनारे 16.वफ़ा नाम की चीज़ 17. आलोचक 18. झूठा ज़माना
यूँ तुझे ढूँढ़ने निकले के न आए ख़ुद भी
वो मुसाफ़िर कि जो मंज़िल थे बजाए ख़ुद भी
कितने ग़म थे कि ज़माने से छुपा रक्खे थे
इस तरह से कि हमें याद न आए खुद भी
ऐसा ज़ालिम कि अगर ज़िक्र में उसके कोई ज़ुल्म
हमसे रह जाए तो वो याद दिलाए ख़ुद भी
लुत्फ़ तो जब है तअल्लुक़ में कि वो शहरे-जमाल1
कभी खींचे कभी खिंचता चला आए ख़ुद भी
ऐसा साक़ी हो तो फिर देखिए रंगे-महफ़िल
सबको मदहोश करे होश से जाए ख़ुद भी
यार से हमको तगाफ़ुल का गिला है बेजा
बारहा महफ़िले-जानाँ से उठ आए ख़ुद भी
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1. महबूब
आज फिर दिल ने कहा आओ भुला दें यादें
ज़िंदगी बीत गई और वही यादें-यादें
जिस तरह आज ही बिछड़े हों बिछड़ने वाले
जैसे इक उम्र के दुःख याद दिला दें यादें
काश मुमकिन हो कि इक काग़ज़ी कश्ती की तरह
ख़ुदफरामोशी के दरिया में बहा दें यादें
वो भी रुत आए कि ऐ ज़ूद-फ़रामोश1 मेरे
फूल पत्ते तेरी यादों में बिछा दें यादें
जैसे चाहत भी कोई जुर्म हो और जुर्म भी वो
जिसकी पादाश2 में ताउम्र सज़ा दें यादें
भूल जाना भी तो इक तरह की नेअमत है ‘फ़राज़’
वरना इंसान को पागल न बना दें यादें
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1.जल्दी भूलने वाला 2. जुर्म की सज़ा
बुझा है दिल तो ग़मे-यार अब कहाँ तू भी
मिसाले साया-ए-दीवार1 अब कहाँ तू भी
बजा कि चश्मे-तलब2 भी हुई तही3 कीस:4
मगर है रौनक़े-बाज़ार अब कहाँ तू भी
हमें भी कारे-जहाँ5 ले गया है दूर बहुत
रहा है दर-पए आज़ार6 अब कहाँ तू भी
हज़ार सूरतें आंखों में फिरती रहती हैं
मेरी निगाह में हर बार अब कहाँ तू भी
उसी को अहद फ़रामोश क्यों कहें ऐ दिल
रहा है इतना वफ़ादार अब कहाँ तू भी
मेरी गज़ल में कोई और कैसे दर आए
सितम तो ये है कि ऐ यार अब कहाँ तू भी
जो तुझसे प्यार करे तेरी नफ़रतों के सबब
‘फ़राज़’ ऐसा गुनहगार अब कहाँ तू भी
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1.दीवार के साये की तरह 2. इच्छा वाली आँख 3. ख़ाली 4. झोली, कटोरा, प्याला 5. दुनिया, ज़माने वाला कार्य 6. तकलीफ़ और मुसीबत पहुँचाने पर प्रतिबद्ध
मैं दीवाना सही पर बात सुन ऐ हमनशीं मेरी
कि सबसे हाले-दिल कहता फिरूँ आदत नहीं मेरी
तअम्मुल1 क़त्ल में तुझको मुझे मरने की जल्दी थी
ख़ता दोनों की है उसमें, कहीं तेरी कहीं मेरी
भला क्यों रोकता है मुझको नासेह गिर्य:2 करने से
कि चश्मे-तर मेरा है, दिल मेरा है, आस्तीं मेरी
मुझे दुनिया के ग़म और फ़िक्र उक़बा3 की तुझे नासेह
चलो झगड़ा चुकाएँ आसमाँ तेरा ज़मीं मेरी
मैं सब कुछ देखते क्यों आ गया दामे-मुहब्बत में
चलो दिल हो गया था यार का, आंखें तो थीं मेरी
‘फ़राज़’ ऐसी ग़ज़ल पहले कभी मैंने न लिक्खी थी
मुझे ख़ुद पढ़के लगता है कि ये काविश4 नहीं मेरी
1. हिचकिचाहट, देरी, फ़िक्र, संकोच 2. रोना, विलाप, 3. परलोक 4. प्रयास
2 comments:
उदासियों का है मौसम तमाम बस्ती पर
बस एक मैं नहीं दिलगीर2 ऐ मेरे मालिक
bahut achach likha hai
bahut bahut bahut khoobsoorat, jitni taareef karun, kam hai, he is my fav shayar...yes is, becoz vo hamesha amar rahenge.thanks
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