सत्येन्द्र प्रताप सिंह / पूर्णिया September 06, 2008
नेपाल के कुसहा में तटबंध टूटने से दर्जन भर से अधिक बाजार जलमग्न हो गए हैं।
स्थानीय लोगों में स्वर्गनगरी के नाम से विख्यात सुपौल जिले का बीरपुर बाजार ध्वस्त हो गया है, जो नई बनी धारा के बीच में है। इस बाजार में भारत, नेपाल, चीन की बहुत सारी सामग्री उपलब्ध रहती है, महंगी शराब से लेकर सूई तक। यह बिहार और नेपाल के कुछ इलाकों के लिए पर्यटन स्थल के रूप में विख्यात था, जहां लोग छुट्टियां मनाने जाते थे।
बीरपुर बाजार के पहले भीमनगर का अस्तित्व खत्म हुआ। नदी की तेज धार ने आगे बढ़ते हुए बलुआ बाजार, छातापुर, फारबिसगंज, रानीगंज, नरपतगंज को डुबोते हुए मधेपुरा के रामनगर, कुमारखंड और मुरलीगंज के बाद पूर्णिया को प्रभावित किया है। इसके अलावा, जीतपुर, आलमनगर, पुरैनी, चौसा सहित तमाम बाजार प्रभावित हुए हैं। बीरपुर बाजार भारत-नेपाल के प्रमुख बाजार के रूप में जाना जाता है। यहां अनुमान के मुताबिक, प्रतिदिन 50 लाख रुपये का कारोबार होता था। यहां पर हीरो होंडा का शोरूम, थोक व फुटकर दुकानें, अदालत, सरकारी कार्यालय सभी डूब गए हैं। कुछ इमारतें बंद हो गई हैं, बाकी बची इमारतें भी टूट रही हैं।
इसके अलावा, मुरलीगंज और बिहारीगंज इस इलाके का सबसे बडा थोक बाजार था, जहां प्रतिदिन 2 करोड़ रुपये से ज्यादा का कारोबार होता था। सुपौल के थोक व्यवसायी तपेश्वर मिश्र ने बताया, मुरलीगंज और बिहारीगंज, सहरसा जिले से भी बड़े थोक बाजार थे, जहां सामान कोलकाता से लाया जाता था और मधेपुरा, पूर्णिया के तमाम इलाके और सुपौल में सामान की आपूर्ति की जाती थी। इन इलाकों की नदियों पर अध्ययन कर चुके रणजीव ने कहा, नदी ने रुख बदल लिया है और ये सभी बाजार भरी हुई नदी धमदाहा कोसी मार्ग पर है, जिस मार्ग को तटबंध टूटने के बाद नदी ने पकड़ा है। इन सभी बाजारों में पानी की धार तेज है और सारा कारोबार चौपट हो गया है।
सुपौल व्यापार संघ के सचिव गोविन्द प्रसाद अग्रवाल का कहना है कि जो बाजार बचे हैं, वे टापू बन गए हैं। पूरा का पूरा कारोबार चौपट हो गया है। इस समय सभी व्यापारी इस कोशिश में लगे हैं कि जो पानी से निकलकर बाहर आ रहे हैं, उन्हें बचाया जाए।
पल भर में बने करोडपति से मोहताज
मधेपुरा जिले में मुरलीगंज बाजार के जोरगामा में अरविन्द चौधरी तेल मसाला व जिंस का कारोबार करते थे। उनका एक करोड़ से अधिक को थोक व्यापार था। 21 अगस्त को उनके घर में पानी घुसा, तो वे छत पर आ गए। 7 दिनों तक छत पर रहने के बाद सेना की नाव उन तक पहुंची और किसी तरह परिवार के साथ जान बचाकर भागे।जब वे अपने बहनोई के घर सहरसा पहुंचे तो उनके तन पर केवल लुंगी और बनियान थी। कुछ भी पूछने पर शून्य में खो जाते हैं और बार-बार सेना और भगवान को धन्यवाद देते हैं कि जान बच गई। कारोबार के बारे में पूछने पर कहते हैं कि जान बच गई है, तो जीने का कोई सहारा तो ढूंढ़ ही लेंगे।
2 comments:
सचमुच हजारों दुःख भरी कहानियाँ हैं, दिल द्रवित हो उठता है… बेबसी भी है और नेताओं पर गुस्सा भी…
aap ne sahi likha hi, lekin d. mishra kuch aur rag alaap rahen hain. maine unhen aaina dikhane ka prayas kiya hi. kripya dekhiye www.koshimani.blogspot.com
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