शायद तीन दशक पहले की बात आपको याद होगी, बाल ठाकरे के नेतृत्व में मुंबई में रहने वाले दक्षिण भारतीयों के खिलाफ एक नारा दिया गया था, लुंगी उठाओ-पुंगी बजाओ। अब उसी खानदान के कुलदीपक ने उत्तर भारतीयों के विरोध का ठेका लिया है। संकट सामने है कि आगामी लोकसभा चुनाव में किसे चुनें। अब देखिए वर्तमान राजनीति--
कांग्रेस की राजनीति
कांग्रेस इसलिए नवनिर्माण सेना को बढ़ावा दे रही है कि उसे शिव सेना से अगले चुनाव में मुकाबला करना है। अगर राज ठाकरे इस तरह की नंगई करके कुछ वोट काटने में सफल हो जाता है तो वह कांग्रेस के हित में रहेगा। यही वजह है कि कांग्रेस सरकार महाराष्ट्र में जंगलराज बरकरार रखने में मदद कर रही है। विलासराव देशमुख सरकार ने अगर गिरफ्तारी की भी, तो नाटक करने के लिए। हिंदी टीवी चैनलों पर मराठी बोलकर दिखाना पड़ा कि वे भी मराठियों के खैरख्वाह हैं।
भाजपा की राजनीति
यह पार्टी तो जैसे नंगी होने के लिए पैदा ही हुई है। सत्ता में रही तब अपने मुद्दे को छो़ड़कर नंगी हुई। सत्ता के बाहर रही तो और तरीकों से। राष्ट्रीय और हिंदूवादी पार्टी होने का दावा करने वाले ये लोग भी मुंबई में चल रही गुंडई के बारे में मौन साधे हुए हैं। शायद आडवाणी को प्रधानमंत्री बनने का लोभ इतना है कि वे राज ठाकरे और बाल ठाकरे दोनों को साधे रखना चाहते हैं। लेकिन इनको यह पता नहीं कि इस तरह के दोगलेपन को जनता पसंद नहीं करती।
लालू और मुलायम की राजनीति
ये केंद्र में सत्ता में बैठे हैं, लेकिन औकात नहीं है कि केंद्र सरकार की मुंबई में उत्तर प्रदेश और बिहार के लोगों को पिटवाने की नीति का विरोध कर सकें। खास बात यह है कि मुलायम के मुंबई प्रतिनिधि अबू आजमी भी अब उत्तर भारतीयों को संगठित करने में लग गए हैं। कोशिश यही कि इस पिटाई का राजनीतिक फायदा उठा लिया जाए। कांग्रेस की तुष्टिकरण में अमर सिंह तो पहले से ही सहयोगी बनकर बाटला हाउस के प्रवक्ता बनकर उभरे हैं।
अब सवाल उठता है कि ऐसी बुरी दशा में जनता जाए तो कहां जाए। राष्ट्रीयता का खामियाजा यूपी और बिहार वाले भुगत ही रहे हैं, जिसके कारण न तो इन राज्यों में सार्वजनिक इकाइयां हैं और न ही निजी। नौकरी के लिए ये दूसरे राज्यों में जाते हैं और यह समझते हैं कि पूरा भारत हमारा है, क्योंकि हम हिंदुस्तानी हैं।
1 comment:
अच्छा लिखा है। सबकी औकात बता दी आपने।
Post a Comment