Thursday, June 18, 2009

बड़े उपयोगी हैं वित्तीय निर्णय लेने के ये सामान्य नियम

मनीश कुमार मिश्र

वित्तीय योजना बनाने और उस हिसाब से उत्पादों का चयन करने में गणित के साथ-साथ अर्थशास्त्र के ज्ञान की भी आवश्यकता होती है। ऐसा करना प्रत्येक व्यक्ति के बस की बात नहीं होती है।
निवेश करने के कुछ मोटे नियम हैं जो काफी हद तक कामयाब साबित हुए हैं। इसके लिए न तो आपको ज्यादा गणित जानने की आवश्यकता है और न ही अर्थशास्त्र की पढ़ाई करने की। वित्तीय निर्णय लेने वाले व्यक्तियों की सुविधा के लिए ऐसे कुछ अतिसामान्य से नियम बनाए गए हैं।
पहले ही बताते चलें कि इनकी तह में जाने पर इसकी उपयोगिता कम हो सकती है लेकिन मोटे तौर पर ये नियम अपनी जगह पर ठीक हैं। फिर भी इसे अपनाते समय आपको सावधानी बरतनी चाहिए। इन तरीकों को अपनाइए और फायदा उठाइए।
बीमा+निवेश न कि निवेश+बीमा
प्रमाणित वित्तीय योजनाकार विश्राम मोदक कहते हैं, 'जीवन बीमा के मामले में एंडाउमेंट या यूलिप का चुनाव करना बुध्दिमानी नहीं कही जा सकती है। बीमा और निवेश का मिश्रण किसी भी नजरिए से बेहतर नहीं हो सकता है। यूलिप या एंडाउमेंट योजना को आप दो भागों में बांटिए।
एक हिस्सा अपनी जरुरत के अनुसार टर्म इंश्योरेंस प्लान लेने में लगाइए और शेष बचे पैसों को कहीं और निवेशित कर दीजिए।' उनके अनुसार, यूलिप=बीमा+निवेशकी जगह- बीमा+निवेश = यूलिप से अधिक लाभ का सूत्र अपनाइए। एक टर्म इंश्योरेंस प्लान खरीद कर शेष बची राशि का निवेश आप किसी म्यूचुअल फंड की योजना (विशेष रूप से सिप में) कीजिए, यह आपको यूलिप से अधिक लाभ दिलाएगा।

अधिकतम ऋण के नियम
आपने गौर किया होगा कि बैंक सबसे अधिक ऋण होम लोन के रूप में देता है जो आपकी मासिक आय का लगभग 55 गुना तक हो सकता है। अपनालोन के मुख्य कार्याधिकारी हर्षवर्ध्दन रुंगटा कहते हैं, 'बैंक मासिक आय, भुगतान करने की क्षमता, ऋण की अवधि और जायदाद के मामले में जायदाद की कीमत के आधार पर 35 से 55 प्रतिशत तक का ऋण उपलब्ध कराते हैं।'
चलिए मान लेते हैं कि आप 10.5 प्रतिशत की दर पर 20 वर्षों के लिए ऋण लेते हैं और आपकी मासिक किस्त प्रति लाख रुपये के लिए 1,000 रुपए बैठती है। मान लेते हैं कि आपको मिलने वाला वेतन प्रति माह 10,000 रुपये है।
ऋण के सामान्य नियम के मुताबिक कोई भी बैंक यह उम्मीद करता है कि आप मासिक किश्त के रुप में अधिकतम 5,000 रुपये का भुगतान कर सकते हैं। इसलिए वे आपको अधिकतम 5,00,000 रुपये तक का ऋण उपलब्ध करा सकते हैं। यह आपकी मासिक आय के लगभग 50 गुना है।
रूंगटा ने बताया, 'अगर बैंक को यह जानकारी मिलती है कि आपने अन्य किसी प्रकार का भी ऋण पहले से लिया हुआ है जिसकी मासिक किस्तों का आप भुगतान कर रहे हैं तो तो उसी हिसाब से वे आपके ऋण की पात्रता का निर्धारण करते हैं।' अगर आप मासिक किश्त के रुप में 5,000 रुपये प्रति माह दे रहे हैं तो कोई बैंक शायद ही आपको ऋण उपलब्ध कराए।

कब होंगे पैसे दोगुने
बैंक किस समयावधि में आपके पैसों को दोगुना कर देगा, यह जानने का एक आसान तरीका मौजूद है। 72 में ब्याज दर से भाग दीजिए, इस प्रकार जो संख्या प्राप्त होती है उसे आप वर्ष मानिए। अगर ब्याज वार्षिक जुड़ता हो तो उतने वर्षों में आपके पैसे दोगुने हो जाएंगे।
उदाहरण के लिए मान लेते हैं कि कोई बैंक आपको 10 प्रतिशत वार्षिक का ब्याज देता है। ऊपर बताए गए तरीके के मुताबिक यह 7210 वर्षों में अर्थात 7.2 वर्षों में बैंक में जमा की गई रकम दोगुनी हो जाएगी।
अगर ब्याज तिमाही या छमाही जुड़ता हो तो इसके दोगुने होने में अपेक्षाकृत कम समय लगेगा। पहले 5 वर्षों में पैसे दोगुने हो जाते थे, इस मोटे नियम को लागू कर देखा जाए तो उस समय मिलने वाला ब्याज 14.2 फीसदी वार्षिक का था।

इक्विटी में निवेश
ऐसा कहा जाता है कि पोर्टफोलियो में इक्विटी के हिस्से का निर्धारण आप 100 में से अपनी उम्र घटा कर करें। मान लीजिए कि आपकी उम्र 30 वर्ष है और आप 10,000 रु पये का निवेश करना चाहते हैं तो आपको इक्विटी में 7,000 रुपये का निवेश करना चाहिए।
अगर आप 60 वर्ष के हैं तो इस नियम के मुताबिक आपको अपने कुल निवेशित की जाने वाली राशि के 40 प्रतिशत का निवेश इक्विटी में करना चाहिए। आधार के लिए इस नियम का प्रयोग किया जा सकता है। वास्तव में पोर्टफोलियो में विभिन्न घटकों का निर्धारण आपके भविष्य की जरूरतों, जोखिम उठाने की क्षमता आदि के अनुसार निर्धारित की जाती है।

जीवन बीमा गणना की तरकीब
किसी व्यक्ति के जीवन के मूल्य का आकलन करना मुश्किल है। वैसे भी जीवन बीमा कोई व्यक्ति अपने लिए तो करवाता नहीं है, यह तो आश्रितों को वित्तीय सुरक्षा प्रदान करने के लिए लिया जाता है। जीवन बीमा लेते समय सम एश्योर्ड के निर्धारण का एक सामान्य सा नियम यह है कि आप अपनी वार्षिक आय का 10 गुना सम एश्योर्ड लें।
ताकि आपके न होने की दशा में अगर सम एश्योर्ड की राशि पर वार्षिक 10 प्रतिशत का भी प्रतिफल मिले तो आपके आश्रितों को आपके न होने की कमी आर्थिक तौर पर न खले। ध्यान रखें ये नियम शुरुआत करने के लिए हैं। जीवन बीमा का सम एश्योर्ड हो या इक्विटी में निवेश, वास्तविक जरुरत विभिन्न व्यक्तियों की विभिन्न परिस्थितियों के आधार पर भिन्न- भिन्न होती हैं।
http://hindi.business-standard.com/hin/storypage.php?autono=20100

1 comment:

अनुनाद सिंह said...

बहुत ही उपयोगी एवं व्यावहारिक सूचना!