"अगर दुनिया चीन का उत्थान देख रही है और डर से भी वाकिफ है तो वह यह भी जानती है कि चीन डर और शंका के साथ रूस की सोवियत काल के बाद की राजनीति का ही अनुसरण कर रहा है। इस रूसी पहेली के केंद्र में हैं व्लादीमिर पुतिन। पुतिन एक ऐसे व्यक्ति हैं जिन्हें रूसी जनता का जबरदस्त समर्थन हासिल है।"
गोल्डमैन सैक्स के लोकप्रिय संक्षिप्त नाम ब्रिक में वर्ष 2050 तक ब्राजील, भारत और चीन के साथ रूस को देश की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक के रूप में नामित किया गया है।
इन चारों में से रूस हालांकि अपनी भौगोलिक स्थिति के लिहाज से अलग है, क्योंकि यह यूरोप और एशिया दोनों महाद्वीपों में फैला हुआ है। इसके अलावा एक वक्त था जब रूस दुनिया की महाशक्ति के रूप में जाना जाता था।
अगर दुनिया चीन का उत्थान देख रही है और डर से भी वाकिफ है तो वह यह भी जानती है कि चीन डर और शंका के साथ रूस की सोवियत काल के बाद की राजनीति का ही अनुसरण कर रहा है। इस रूसी पहेली के केंद्र में हैं व्लादीमिर पुतिन। पुतिन एक ऐसे व्यक्ति हैं जिन्हें रूसी जनता का जबरदस्त समर्थन हासिल है।
वजह भी वाजिब है। पुतिन ही वह व्यक्ति हैं, जिन्होंने येल्तसिन के बाद के वर्षों में रूसी अर्थव्यवस्था में मचे कोहराम को शांत किया। पुतिन के सत्ता में आने के बाद के वर्षों में रूसी अर्थव्यवस्था में जबरदस्त सुधार देखा गया, जिसमें अहम योगदान तेल और गैस की बढ़ती कीमतों का रहा।
पिछले साल के अंत में केजीबी के इस पूर्व अधिकारी ने राजनीतिक विश्लेषकों को हक्का-बक्का कर दिया। अपनी जगह पुतिन ने अपने विश्वासपात्र दमित्री मेदवेदेव को राष्ट्रपति पद के लिए अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया और खुद प्रधानमंत्री बन बैठे।
2008 में राष्ट्रपति पद छोड़ते वक्त उन्होंने पत्रकारों से कहा था, 'मैं क्रैमलिन छोड़ रहा हूं, रूस नहीं।' और उन्होंने अपना वादा निभाया, भले ही उनके प्रधानमंत्री बनने की उम्मीद किसी ने न की हो। इसलिए क्षेत्रफल के आधार पर सबसे बड़े देश कीअर्थव्यवस्था और भविष्य की विश्व राजनीति का सूत्रधार कौन है?
क्या वह आधुनिक युग का राजनेता है, जिसमें 17वीं शताब्दी के जार की सोच समाई हुई है? क्या वह पूंजीवादी के भेष में स्टालिनवादी है? डाई वेल्ट के प्रमुख संवाददाता माइकल स्टूअर्मर ने अपनी पुस्तक की भूमिका में लिखा है, 'दो शताब्दियों में ऐसा पहली बार नहीं है कि रूस अपनी अर्थव्यवस्था को लेकर दुनिया को हैरत में डाल चुका है।'
दुर्भाग्यवश, 228 पेज की उनकी किताब और अधिक जानकारी मुहैया नहीं करा पाई। अपनी लगन में पक्के स्टूअर्मर के हाथ भी पत्रकारों पर लगी सोवियंत संघ की पाबंदियों से बंधे हैं, हालांकि देश अपने चेहरे से मार्क्सवादी मुखौटे को उतार कर फेंक चुका है और देश की पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में तब्दील हो चुका है।
नतीजतन, रूस पर नजर बनाए हुए किसी भी दूसरे व्यक्ति की ही तरह स्टूअर्मर के स्रोत भी पुतिन की सार्वजनिक सभाओं और प्रेस सम्मेलनों तक ही सीमित रहे। इसमें उनके साक्षात्कार की भी झलक देखने को नहीं मिली। स्टूअर्मर ने अपनी पुस्तक की शुरुआत वर्ष 2007 में पुतिन के सुरक्षा सम्मेलन पर एक भाषण से की है।
म्युनिख में अपने इस भाषण के दौरान पहली बार पुतिन ने दुनिया के सामने अपना दृष्टिकोण रखा था। यह भाषण बुनियादी सच्चाई से जुड़ा हुआ था, क्योंकि इसमें सोवियत के बाद पश्चिमी देशों के शोषण और घेराव के डर को लेकर रूस की चिंता साफ दिखाई देती थी। साथ ही इसमें पहली बार दुनिया में रूस की स्थिति को लेकर उनका दृष्टिकोण देखने को मिला था, जिसमें वैश्विक मामलों में रूस भी एक बराबर का भागीदार था।
स्टूअर्मर ने लिखा है, 'भविष्य में इतिहासकार म्युनिख में पुतिन के इस भाषण को असहजता से उपजी हुई एक नपी-तुली चुनौती के रूप में देखेंगे।' 'म्युनिख में पश्चिमी देशों ने ऐसी चीजों का जिक्र किया, जो पुतिन नहीं चाहते थे। लेकिन क्या पुतिन जानते थे कि वह खुद क्या चाहते हैं।'
जिन पाठकों को किताब में इस सवाल के जवाब की उम्मीद होगी, उन्हें निराशा ही हाथ लगेगी। शुरुआती अध्यायों में रूस के सोवियत के बाद के इतिहास पर से धूल हटाई गई है और उन्होंने इसमें एक कहानी बुनी है, जिसमें उन्होंने तेजी से आगे बढ़ रहे पुतिन को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में दिखाया है जो अब किसी खास जगह से जुड़ा हुआ नहीं है।
इस पुस्तक में जो सबसे दिलचस्प अध्याय लगा वह है, 'पुतिन्स पीपल'। इसमें स्टूअर्मर ने क्रैमलिन के एक वरिष्ठ अधिकारी ओलेग श्वार्त्समैन के रूस के एक व्यावसायिक समाचार पत्र में छपे साक्षात्कार से कुछ बातें डाली हैं। स्टूअर्मर का कहना है कि इस साक्षात्कार से 'आज के रूस में सत्ता की ताकत की कार्यप्रणाली की आंतरिक तस्वीर देखने को मिली है।'
असल में उन्होंने जो बताया, वह 'वैक्यूम क्लीनर प्रणाली' के रूप में जाना गया। उन्होंने अपने साक्षात्कार में कहा, 'यह वैक्यूम क्लीनर की तरह काम करता है, जो कंपनियों की परिसंपत्तियों को सोख कर ऐसे ढांचे में डाल देती हैं, जो जल्द ही सरकारी निगमों में तब्दील हो जाते हैं। इसके बाद इन परिसंपत्ति को पेशेवर अगुआओं के हाथों सौंप दिया जाता है। ये उपाय स्वेच्छा और अनिवार्यता दोनों तरीकों से लागू होते हैं... ये सरकार के हाथों में परिसंपत्ति के समेकन के लिए आज के दिशा-निर्देश हैं।'
बाकी किताब के लिए स्टूअर्मर ने गैजप्रॉम की ताकत और विकास के लिए रूस की तेल और गैस की कीमतों पर अनिश्चित निर्भरता पर रोशनी डाली है। उन्होंने देश के जनसांख्यिकीय संकटों, जिनमें आदमी ज्यादातर शराब पीने की वजह से मर रहे थे और जनसंख्या धीमी रफ्तार से बढ़ रही है, का भी जिक्र किया।
हैरत की बात है कि इसमें इस बात की भी चर्चा की गई है कि रूसी जनसंख्या कम हो रही है, जबकि मुस्लिमों की संख्या में इजाफा हो रहा है। गौरतलब है कि इस्लाम धर्म को लेकर वहां भेदभाव होता है। ऐसा ही भेदभाव हिटलर ने यहूदियों के खिलाफ किया था।
पुस्तक इस मायने में उपयोगी है कि इससे आपको रूस की समस्याओं के बारे में तत्काल जानकारी मिल जाती है। यदि पुतिन के रूस में वाकई आंतरिक जानकारी हासिल करनी हो तो पत्रकार ऐना पोलित्कोव्स्काया (जिनकी हत्या की गई) की पुस्तक हमेशा आदर्श रूप में देखी जाती है।
पुस्तक समीक्षा
पुतिन ऐंड दी राइज ऑफ रशिया
लेखक : माइकल स्टूअर्मर
प्रकाशक : हैशे इंडिया
कीमत : 650 रुपये
पृष्ठ : 253http://hindi.business-standard.com/hin/storypage.php?autono=19238
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