Tuesday, July 21, 2009

एक गायिका को करीब से जानने की कोशिश

किशोर सिंह

"वह याद करती हैं, 'मैं कड़ी मेहनत किया करती थी। दिन-रात गानों की रिकॉर्डिंग। एक स्टूडियो से दूसरे स्टूडियों में भागना।' इसका नतीजा यह था, 'मैं दिनभर भूखी रह जाती, क्योंकि तब मैं यह नहीं जानती थी कि रिकॉर्डिंग स्टूडियो में कैंटीन भी होती है और वहां से मैं खरीद कर कुछ खा सकती हूं या चाय ले सकती हूं। अक्सर मैं पूरे दिन बिना खाए और पानी पिए रह जाती। "


अगर आपको मौका दिया जाए तो आप लता मंगेशकर को गाते हुए सुनना पसंद करेंगे या उनकी बातचीत?
बेशक इस पर बहुत अधिक वाद-विवाद की गुंजाइश नहीं है, खासतौर पर तब जब आप सचिन तेंडुलकर की ही तरह मंगेशकर की आवाज के बारे में कह रहे हों।
लंदन की डॉक्यूमेंटरी फिल्म निर्माता नसरीन मुन्नी कबीर ने चैनल 4 के लिए 6 कड़ियों वाली एक डॉक्यूमेंटरी लता मंगेशकर पर बनाई थी और अब कई साल बाद उनके कुछ और साक्षात्कारों के साथ उन्होंने इसे किताब में तब्दील कर दिया, जिसमें पाठकों को गायिका के बारे में काफी कुछ जानकारी मिलेगी।
इसमें लता मंगेशकर ने अपने जीवन और उनकी खुद की आवाज में गाए गए गानों के बारे में बातचीत की है। यह मंगेशकर की आत्मकथा के काफी नजदीक है, जिसमें उनके निजी जीवन से जुड़े विवादों (राज सिंह डूंगरपुर के साथ उनके संबंध)की तस्वीर नहीं है, लेकिन कामकाज की दुनिया से जुड़े कई ऐसे विवादों का जिक्र है।
इन विवादों को उन्होंने बेहद ही शांत और साधारण तरीके से खत्म भी कर दिया। ये विवाद भारत की स्वर कोकिला बनने के 6 दशकों के साथ-साथ ही उनके सामने आते रहे। सांगली के बड़े घर में जहां लता मंगेशकर के पिता थिएटर कंपनी चलाया करते थे, वहीं वह पैदा हुईं और उन्होंने संगीत सीखने की शुरुआत की।
संगीत सीखने के लिए उनके पिता ने अनमने मन से अपनी स्वीकृति दी थी और बचपन में उन्होंने अपने पिता के साथ ही संगीत की शुरुआत भी की। मंगेशकर मानती हैं कि अपनी रोजमर्रा की दीक्षा से बचने के लिए वह 'बहाने बनाती थीं।' वह कहती हैं, 'मैं बहुत छोटी थी और खेलना मुझे बेहद पसंद था', 'मैं ऐसा जताती थी जैसे मेरे सिर या पेट में दर्द हो रहा हो।'
उनके पिता ने उन्हें समझाया, 'हमेशा याद रखो- चाहे गुरु या तुम्हारे पिता तुम्हें सिखा रहे हों- जब भी तुम गाओ तुम सिर्फ अपने बारे में सोचो कि तुम्हें उनसे बेहतर गाना है। यह कभी मत सोचो कि उनकी मौजूदगी में मैं कैसे गा सकूंगी? इसे याद रखना। तुम्हें अपने गुरु से आगे बढ़ना है।' यह ऐसा सबक था जो जीवनभर तक उनके साथ बना रहेगा।
कबीर को उन्होंने बताया, 'बाबा के इन शब्दों को मैं कभी नहीं भूलूंगी।' 'लता मंगेशकर ... इन हर ओन वॉयस' काफी दिलचस्प है, क्योंकि इस किताब के ज्यादातर हिस्से को साक्षात्कार के रूप में लिखा गया है। इन साक्षात्कारों को दिनों या सप्ताहों में नहीं, बल्कि वर्षों में लिखा गया।
मंगेशकर याद कर कहती हैं, 'फिल्मी संगीत को घर पर कभी बहुत नहीं सराहा गया' 'और मेरे पिता एक रूढ़िवादी व्यक्ति थे। हम कैसे तैयार होते हैं, इसे लेकर उनका रवैया काफी कठोर था। हमने कभी पाउडर या मेक-अप नहीं लगाया। हम खुलेआम बाहर जा नहीं सकते थे। नाटक देखने के लिए देर रात हम बाहर जाएं, बाबा को यह पसंद नहीं था, यहां तक कि उनके खुद के।'
कुछ समय बाद ही परिवार के भाग्य ने करवट ली, सांगली मैंशन नीलाम हो गया और उनके पिता का निधन हो गया। वह घर में सबसे बड़ी थीं, तो उन्हें लगा कि आर्थिक जिम्मेदारी को वह बतौर अभिनेत्री पूरा कर सकती हैं। उन्होंने पहले मराठी और बाद में हिंदी सिनेमा में कोशिश की। उन्हें बताया, 'मेरे पास कोई और विकल्प नहीं था', 'लेकिन मुझे मेक-अप, लाइटें, लोगों का आपको आदेश देना, अपने संवाद पढ़ना कभी पसंद नहीं आया। मैं काफी असहज महसूस कर रही थी।'
यह सौभाग्य ही था कि शास्त्रीय संगीत में उनकी शिक्षा और आवाज पर उनका नियंत्रण इतना अच्छा था कि उन्हें कुछ प्लेबैक का काम मिलना शुरू हुआ। कुछ साल बाद फिल्म 'महल' के गाने 'आएगा आनेवाला' से लता को स्थापित होने में मदद मिली। लता अपने काम के लिए जीती हैं।
वह याद करती हैं, 'मैं कड़ी मेहनत किया करती थी। दिन-रात गानों की रिकॉर्डिंग। एक स्टूडियो से दूसरे स्टूडियों में भागना।' इसका नतीजा यह था, 'मैं दिनभर भूखी रह जाती, क्योंकि तब मैं यह नहीं जानती थी कि रिकॉर्डिंग स्टूडियो में कैंटीन भी होती है और वहां से मैं खरीद कर कुछ खा सकती हूं या चाय ले सकती हूं। अक्सर मैं पूरे दिन बिना खाए और पानी पिए रह जाती।'
पांच दशकों बाद भी 'मैं यह नहीं कह सकती की मेरी आर्थिक स्थिति अच्छी है, लेकिन यह बुरी भी नहीं है, क्योंकि मैंने बहुत काम किया है।' रिहर्सल का क्या और स्टूडियो का मिल जाना जब दिन की शूटिंग समाप्त हो जाए, 'हम स्टूडियो की छत पर जाते थे और रातभर रिकॉर्डिंग किया करते थे। वह जगह धूल से भरी हुई थी, लाइटें उस वक्त भी काफी गर्मी पैदा करती थी। हम आवाज के चलते पंखों का इस्तेमाल भी नहीं कर सकते थे।'
लता के व्यक्तित्व का पता इस बात से ही चल जाता है कि उर्दू बोलने पर जब दिलीप कुमार ने उनकी आलोचना की तो उन्होंने उर्दू सीखी। वे यह भी कहती है, 'नैट किंग कोल, बीटल्स, बारबरा स्ट्रीसैंड और हैरी बेलाफोंट उनके पसंदीदा गायक हैं।' मोहम्मद रफी से 'रॉयल्टी पर' उनका झगड़ा हुआ और राज कपूर ने जब 'सत्यम शिवम सुंदरम' के लिए कंपोजर को बदला तो इस पर शम्मी कपूर से उनकी तू-तू, मैं-मैं हुई।
लोगों की हूबहू नकल करना उन्हें बेहद पसंद है, उनकी कारें सबसे पहले सलेटी हिलमैन बाद में शेव्रले, क्राइसलर और पुरानी मर्सीडिज के बाद यश चोपड़ा की ओर से 'वीर जारा' के लिए उन्हें तोहफे के रूप में मिली मर्सीडिज उनकी पसंदीदा चीजों की फेहरिस्त में शामिल है। लता को सिगरेट का धुआं पसंद नहीं, लेकिन हीरे और एमेराल्ड बेहद पसंद हैं।
क्रिकेट और मर्लिन डिट्रिच को स्टेज पर देखने के लिए उनकी विदेश यात्राएं उनका जोश बढ़ा देती हैं। इस किताब में शामिल उनके खुद पर आलोचनात्मक दृष्टिकोण ने इस किताब को और भी यादगार बना दिया है। लता का कहना है, 'मैं हमेशा खुद पर निर्भर करती हूं।' 'इस मामले में, मैंने खुद अपने मुकाम हासिल किए हैं। मैंने लड़ना सीखा। मैं कभी किसी से नहीं डरी। मैं निडर हूं।'

पुस्तक समीक्षा

लता मंगेशकर ... इन हर ओन वॉयस
नसरीन मुन्नी कबीर के साथ बातचीत
प्रकाशक : नियोगी बुक्स
कीमत : 1,500 रुपये
पृष्ठ : 268


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