रवीश कुमार
200 साल पुराना है मधेपुरा का मुरलीगंज बाजार। बाढ़ के कारण बड़ी संख्या में व्यापारी इलाके को छोड़ कर चले गए हैं। मुरलीगंज के काशीपुर रोड से करोड़ों रुपये का माल कोलकाता जाता था। कोसी की तबाही की कहानी फिर से इस ब्लॉग पर पसर रही है। क्लिक कीजिए http:// satyendrapratap. blogspot. com
सत्येंद्र प्रताप लिखते हैं कि ट्रक, ट्रैक्टर और बैलगाड़ियों से जाम रहने वाला काशीपुर रोड बाढ़ के एक साल बाद भी अपनी रौनक नहीं पा सकी है। वार्ड नंबर सात के किराना व्यापारी शिव कुमार भगत अपनी बर्बादी की कहानी कहना चाहते हैं।
लेकिन अब कौन सुनता है। कोसी से विस्थापित लाखों लोगों की कहानियां उनके निजी क्षणों में दफन कर दी गई हैं। सरकार के कुछेक प्रयासों की कामयाबी के बाद भी ऐसी कहानियों के लिए जगह नहीं बन पाई। नीतीश कुमार ने अपने राहत के प्रयासों से लोगों का विश्वास भले ही जीत लिया हो, लेकिन एक साल बाद भी लोगों के जहन में कोसी का पानी हिलोर मारता होगा। शायद त्रासदी की उन्हीं लहरों को पकड़ कर कथाओं में बदलने की कोशिश कर रहे हैं सत्येंद्र प्रताप।
ब्लॉग बेहतर जगह है ऐसी कहानियों को दर्ज करने के लिए। मधेपुरा से बीरपुर पहुंचते हैं तो पता चलता है कि जिन किसानों ने बैंक से कैश क्रेडिट अकाउंट लोन लिया था, उनका इस आधार पर बीमा ही नहीं हुआ। बीरपुर बाजार के 100 व्यापारी इस संकट से परेशान हैं। नियम है कि जब बैंक से लोन लेंगे तो बदले में बीमा मिलेगा। जब जयसवाल इंटरप्राइजेज के संतोष जायसवाल ने पिछले चार साल से बैंक उनकी दुकान का बीमा करा रहा था लेकिन जिस साल बाढ़ आई बीमा नहीं कराया। उस साल का नुकसान हो गया। गनीमत है कि बैंक ने इस साल का बीमा करा दिया है।
जाहिर है राज्य सरकार को अपनी नीतिगत कामयाबी के बाद व्यक्तिगत समस्याओं की तरफ भी ध्यान देना चाहिए। मुझे भी बीरपुर से फोन आते हैं कि डाक बाबू अकाउंट खोलने के पैसे मांगता है। एक डाकबाबू की इतनी हिम्मत और लोग कैसे सह लेते हैं, समझ में नहीं आता। सरकारी कर्मचारियों के साथ अपने दैनिक झंझटों को भी हर दिन मुद्दा बनाना चाहिए। ऐसे भ्रष्ट अधिकारियों की कीमत मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठा व्यक्ति ही चुकाता है। लिहाजा उसे ऐसे अधिकारियों को तुरंत चलता कर देने में कोई संकोच नहीं करना चाहिए।
बिहार की जनता ने यह तो बताया ही है कि भ्रष्ट रहते हुए लंबे राजनीतिक भविष्य की कामना न करें। पहली बार हो रहा है कि बिहार की नीतियों की नकल केंद्र सरकार कर रही है। अब इन नीतियों को लागू करने में भी लोगों और अफसरों को पहल करनी चाहिए। सत्येंद्र प्रताप के अलावा भी कई ब्लॉगर कोसी की कहानी लिख रहे हैं। बता रहे हैं कि राहत कार्य लूट-पाट से मुक्त नहीं है। अगर ऐसा होता तो फिर इन इलाकों में सत्तारूढ़ दल को बढ़त कैसे मिलती। जाहिर है कुछ अफसर और कर्मचारी इस तरह की हरकत कर रहे हैं।
कोसी से उजड़ें लोगों का वृतांत आगे बढ़ रहा है। बीरपुर बाजार के वीरेंद्र कुमार मिश्रा की कहानी। घड़ी की पूरी दुकान नष्ट हो गई है। टाइटन कंपनी से तीन लाख का लोन लेकर काम चला रहे हैं। अभी तक उनकी दो कारें मिट्टी में धंसी हैं। दुकान का बीमा नहीं हो सका तो पैसा मिला ही नहीं। पढ़ कर बीमा के मामले में घपला लगता है।
उनकी भी कहानी है जिन्हें सरकारी राहत से फायदा हुआ है। बलुआ बाजार के दिल्ली चौक से 15 किमी दूर एक गांव में पवन पासवान को चार हजार नगद और एक क्िवंटल अनाज मिला है। गांव में कई लोगों को मिला है। जोगी पासवान कहते हैं कि सब कुछ उजड़ जाने के बाद भी लोग गांव छोड़ कर नहीं गए। कहते हैं कि इससे पहले सरकारी मदद नहीं मिलती थी इसलिए लोग बाढ़ के बाद दूसरे शहरों में चले जाते थे। जोगी पासवान को शिकायत है तो स्थानीय जनप्रतिनिधि से। जिसने जोगी पासवान को पशु मुआवजा नहीं मिलने दिया।
सहरसा के शिवशंकर झा की कहानी डराती है। कहते हैं कि पिछली पंद्रह साल से बाढ़ की आशंका से रात की नींद टूट जाती है। इस डर के कारण शिवशंकर झा रोज तटबंध की तरफ घूमने निकलते हैं। वो खुद चेक करना चाहते हैं कि आज कोई दरार तो नहीं आई। शिवशंकर झा का डर बताता है कि सरकारों को और जागना होगा। बाढ़ का कोई हल निकालना होगा। सबकुछ केंद्र पर मढ़े जाने वाले आरोपों के सहारे नहीं छोड़ा जा सकता। बांध समाधान नहीं है। कोसी ने साबित किया है। इलाके को फिर से बसाना होगा।
साभार- http://www.livehindustan.com/news/editorial/guestcolumn/57-62-70205.html
200 साल पुराना है मधेपुरा का मुरलीगंज बाजार। बाढ़ के कारण बड़ी संख्या में व्यापारी इलाके को छोड़ कर चले गए हैं। मुरलीगंज के काशीपुर रोड से करोड़ों रुपये का माल कोलकाता जाता था। कोसी की तबाही की कहानी फिर से इस ब्लॉग पर पसर रही है। क्लिक कीजिए http:// satyendrapratap. blogspot. com
सत्येंद्र प्रताप लिखते हैं कि ट्रक, ट्रैक्टर और बैलगाड़ियों से जाम रहने वाला काशीपुर रोड बाढ़ के एक साल बाद भी अपनी रौनक नहीं पा सकी है। वार्ड नंबर सात के किराना व्यापारी शिव कुमार भगत अपनी बर्बादी की कहानी कहना चाहते हैं।
लेकिन अब कौन सुनता है। कोसी से विस्थापित लाखों लोगों की कहानियां उनके निजी क्षणों में दफन कर दी गई हैं। सरकार के कुछेक प्रयासों की कामयाबी के बाद भी ऐसी कहानियों के लिए जगह नहीं बन पाई। नीतीश कुमार ने अपने राहत के प्रयासों से लोगों का विश्वास भले ही जीत लिया हो, लेकिन एक साल बाद भी लोगों के जहन में कोसी का पानी हिलोर मारता होगा। शायद त्रासदी की उन्हीं लहरों को पकड़ कर कथाओं में बदलने की कोशिश कर रहे हैं सत्येंद्र प्रताप।
ब्लॉग बेहतर जगह है ऐसी कहानियों को दर्ज करने के लिए। मधेपुरा से बीरपुर पहुंचते हैं तो पता चलता है कि जिन किसानों ने बैंक से कैश क्रेडिट अकाउंट लोन लिया था, उनका इस आधार पर बीमा ही नहीं हुआ। बीरपुर बाजार के 100 व्यापारी इस संकट से परेशान हैं। नियम है कि जब बैंक से लोन लेंगे तो बदले में बीमा मिलेगा। जब जयसवाल इंटरप्राइजेज के संतोष जायसवाल ने पिछले चार साल से बैंक उनकी दुकान का बीमा करा रहा था लेकिन जिस साल बाढ़ आई बीमा नहीं कराया। उस साल का नुकसान हो गया। गनीमत है कि बैंक ने इस साल का बीमा करा दिया है।
जाहिर है राज्य सरकार को अपनी नीतिगत कामयाबी के बाद व्यक्तिगत समस्याओं की तरफ भी ध्यान देना चाहिए। मुझे भी बीरपुर से फोन आते हैं कि डाक बाबू अकाउंट खोलने के पैसे मांगता है। एक डाकबाबू की इतनी हिम्मत और लोग कैसे सह लेते हैं, समझ में नहीं आता। सरकारी कर्मचारियों के साथ अपने दैनिक झंझटों को भी हर दिन मुद्दा बनाना चाहिए। ऐसे भ्रष्ट अधिकारियों की कीमत मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठा व्यक्ति ही चुकाता है। लिहाजा उसे ऐसे अधिकारियों को तुरंत चलता कर देने में कोई संकोच नहीं करना चाहिए।
बिहार की जनता ने यह तो बताया ही है कि भ्रष्ट रहते हुए लंबे राजनीतिक भविष्य की कामना न करें। पहली बार हो रहा है कि बिहार की नीतियों की नकल केंद्र सरकार कर रही है। अब इन नीतियों को लागू करने में भी लोगों और अफसरों को पहल करनी चाहिए। सत्येंद्र प्रताप के अलावा भी कई ब्लॉगर कोसी की कहानी लिख रहे हैं। बता रहे हैं कि राहत कार्य लूट-पाट से मुक्त नहीं है। अगर ऐसा होता तो फिर इन इलाकों में सत्तारूढ़ दल को बढ़त कैसे मिलती। जाहिर है कुछ अफसर और कर्मचारी इस तरह की हरकत कर रहे हैं।
कोसी से उजड़ें लोगों का वृतांत आगे बढ़ रहा है। बीरपुर बाजार के वीरेंद्र कुमार मिश्रा की कहानी। घड़ी की पूरी दुकान नष्ट हो गई है। टाइटन कंपनी से तीन लाख का लोन लेकर काम चला रहे हैं। अभी तक उनकी दो कारें मिट्टी में धंसी हैं। दुकान का बीमा नहीं हो सका तो पैसा मिला ही नहीं। पढ़ कर बीमा के मामले में घपला लगता है।
उनकी भी कहानी है जिन्हें सरकारी राहत से फायदा हुआ है। बलुआ बाजार के दिल्ली चौक से 15 किमी दूर एक गांव में पवन पासवान को चार हजार नगद और एक क्िवंटल अनाज मिला है। गांव में कई लोगों को मिला है। जोगी पासवान कहते हैं कि सब कुछ उजड़ जाने के बाद भी लोग गांव छोड़ कर नहीं गए। कहते हैं कि इससे पहले सरकारी मदद नहीं मिलती थी इसलिए लोग बाढ़ के बाद दूसरे शहरों में चले जाते थे। जोगी पासवान को शिकायत है तो स्थानीय जनप्रतिनिधि से। जिसने जोगी पासवान को पशु मुआवजा नहीं मिलने दिया।
सहरसा के शिवशंकर झा की कहानी डराती है। कहते हैं कि पिछली पंद्रह साल से बाढ़ की आशंका से रात की नींद टूट जाती है। इस डर के कारण शिवशंकर झा रोज तटबंध की तरफ घूमने निकलते हैं। वो खुद चेक करना चाहते हैं कि आज कोई दरार तो नहीं आई। शिवशंकर झा का डर बताता है कि सरकारों को और जागना होगा। बाढ़ का कोई हल निकालना होगा। सबकुछ केंद्र पर मढ़े जाने वाले आरोपों के सहारे नहीं छोड़ा जा सकता। बांध समाधान नहीं है। कोसी ने साबित किया है। इलाके को फिर से बसाना होगा।
साभार- http://www.livehindustan.com/news/editorial/guestcolumn/57-62-70205.html
2 comments:
बढ़िया
इसे प्रिंट मीडिया पर ब्लॉग चर्चा पर देखिए
बधाई!!
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