अकबर इलाहाबादी ने एक शायरी में व्यंग्य करते हुए डार्विन के पुरखों के लंगूर होने पर सवाल उठाया था। हालांकि वैग्यानिक तथ्यों को मानें तो बहुत पहले आदमी को भी पूंछ हुआ करती थी। तब भगवान ने पूंछ की जरूरत महसूस की थी और सबको पूंछ दिया। बाद में भगवान को लगा होगा कि अब आदतें बदल गईं आदमी सभ्य हो गया, इसे पूंछ की जरूरत नहीं है और आदमी से पूंछ छीन ली।
हालांकि आदमी पूंछ का साथ छोड़ने को तैयार नहीं है। स्वाभाविक है कि पूंछ गायब होने में अगर सदियों लगे हैं तो उसकी पूंछ हिलाने की आदत इतनी जल्दी कैसे छूट जाएगी।
एक बार मेरे एक सहकर्मी ने सवाल किया कि इतनी तत्परता से काम करने के बावजूद मेरे काम पर सवाल क्यों उठाया जाता है? बार-बार ड्यूटी क्यों बदली जाती है? काम में बाधा डालने के लिए तरह-तरह के हथकंडे क्यों अपनाए जाते हैं?
हालांकि कोई भी पुराना आदमी (मेरा मतलब है लंबे समय से नौकरी कर रहे व्यक्ति से ) लक्षण सुनकर बीमारी पहले ही जान लेगा। उसे मैने समझाने की कोशिश की। देखिये- जो काम करता है उसी के काम पर सवाल उठता है। अगर काम न करिए तो कोई सवाल ही नहीं उठेगा। कभी कभी काम करिए तो सभी कहेंगे भी कि आपने काम किया। उसने फिर सवाल कर दिया कि काम नहीं करेंगे तो नौकरी कैसे बचेगी। उत्तर साफ था- पूंछ हिलानी शुरू करो बॉस, दूसरा और कौन सा रास्ता है।
लोग हमेशा ढोंग करते हैं कि हमें चमचागीरी पसंद नहीं है। खासकर उच्च पदों पर बैठे लोग। लेकिन आंकड़े और तथ्य स्पष्ट कर देते हैं कि भइये चमचागीरी तो सभी को पसंद है। अब अगर आपका कोई बॉस कोई खबर लिखता है और पूछता है कि कैसी है--- अगर आप उसकी आलोचना करने की कोशिश करते हैं और अपनी बुद्धिमत्ता दिखाते हैं तो गए काम से। तत्काल कह दीजिए कि बहुत बेहतरीन सर... इससे बेहतर तो कुछ हो ही नहीं सकता। अगर वह फिर सवाल उठाता है कि यह लाइनें या पैराग्राफ कुछ कमजोर लग रहे हैं... तपाक से बोलिए, हां सर यही तो मुझे भी खटक रहा था। और पूंछ हिलाने में दक्ष तो आप तब माने जाएंगे, जब बॉस किसी खबर का शीर्षक लगाए (यह कोई और काम भी हो सकता है) और आपकी तरफ मुंह करके हल्का सा मुस्कराए.. आप अपनी स्वाभाविक प्रतिक्रिया देना न भूलें कि वाह सर... इससे बढ़िया शीर्षक तो कोई दे ही नहीं सकता, यहां तक तो किसी की सोच पहुंचती ही नहीं।
बहरहाल, मेरे उस मित्र ने सही फार्मूला अपनाया और पूंछ हिलाने की शुरुआत कर दी। अब पता नहीं वह संतुष्ट हुआ या नहीं लेकिन मुझसे बातचीत बंद है, बॉस से ही ज्यादा बात होती है इन दिनों उसकी।
2 comments:
शायद कुछ जगह ही पुछ हिलाने से काम चलता है बाकी जगह मेहनत चाहिए पूछ हिलाने वाला नहीं
भाई काम और मेहनत तो सभी करते हैं, लेकिन उसी के काम को तरजीह मिलती है, जो पूंछ हिलाने का काम भी उतनी ही शिद्दत से करे। इसे समझने के लिए व्यावहारिक अनुभव जरूरी है। जहां तक मेहनत की बात है, पूंछ हिलाना बहुत कठिन काम है, ऐसे में जबकि आपसे भगवान ने पूंछ छीन ली हो।
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