चीनी ३५ रुपये प्रति किलो पर पहुंच गई। सरकार ने चीनी मिलों को करोड़ो रुपये कमवा दिया। अब जब किसानों को गन्ने का भुगतान देने की बाद आई जो सरकार को जम्हाई आ रही है और मिल मालिक मौन हैं।
इसी बीच केंद्र सरकार उचित और लाभकारी मूल्य (एफआरपी) ले आई। इसके मुताबिक मिलों को सिर्फ १२९ रुपये प्रति क्विंटल ही किसानों को गन्ना मूल्य देना होगा। अगर किसी राज्य सरकार ने गन्ने के ज्यादा दाम किसानों को दिलाने की कोशिश की, तो उसकी भरपाई उस संबंधित राज्य को करनी होगी। कहने का मतलब यह है कि एफआरपी अगर १३० रुपये क्विंटल तय हो गया और किसी राज्य सरकार ने अपने राज्य के लिए गन्ने का राज्य समर्थित मूल्य १६० रुपये प्रति क्विंटल तय कर दिया तो उस राज्य सरकार को ही किसानों को ३० रुपये क्विंटल किसानों को देना होगा। मिलें सिर्फ १३० रुपये क्विंटल भुगतान करके निकल जाएंगी।
कृषि मंत्री शरद पवार ने कहा कि उत्तर प्रदेश की चीनी मिलों से वे उम्मीद करते हैं कि वे एफआरपी से ज्यादा गन्ने का दाम देंगी। समझ से परे है कि वे किस आधार पर उम्मीद कर रहे हैं कि अधिक दाम देंगी मिलें। अगर गन्ने का अधिक दाम देना उचित है, तो वही दाम केंद्र सरकार ने क्यों नहीं फिक्स कर दिया, उचित औऱ लाभकारी मूल्य के रूप में।
साफ है कि कांग्रेस सरकार बेइमानी और भ्रष्टाचार को बढ़ावा देना चाहती है, न कि किसानों को मुनाफा कराना चाहती है। योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया कहते हैं कि खाद्यान्न के दाम बढ़ने से किसानों को फायदा होगा। शायद वे जमीनी हकीकत से रूबरू नहीं होना चाहते। चीनी मिलों ने वही चीनी ३० रुपये प्रति किलो बेची, जो वे फरवरी तक १५ रुपये किलो बेचा करते थे। और यह ८ महीने से चल रहा है। इस बीच नई चीनी बाजार में नहीं आई है। आयातित चीनी भी अभी बाजार में कम ही आई है (आंकड़े सामने आए तो इस पर एक बार फिर लिखेंगे कि चीनी मिलों ने इस लूट से पिछले आठ महीने में कितने हजार करोड़ रुपये कमाए हैं)। अब मोंटेक सिंह ही बताएं कि इससे गन्ना किसानों को कितना फायदा मिला है और उपभोक्ताओं को कितना फायदा मिला है?
1 comment:
किसान को मन्त्री से संत्री तक - सभी दुहते हैं! :-)
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